ब्रा कोई गुप्त चीज नही

ढीले और लटकी ब्रैस्ट देखने में भद्दी लगती है. अकसर ऐसा बड़ी उम्र में होता है. लेकिन कई बार ऐसा छोटी उम्र में भी देखने को मिलता है. इस की वजह है ब्रा न पहनना. ढीली और लटकी ब्रैस्ट बिलकुल अट्रैक्टिव नहीं होती है. लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि ब्रा को दिनभर पहने रहना आसान नहीं होता है.

ब्रा से जुड़ा अपना ऐक्सपीरियंस बताते हुए 24 साल की रचना यादव कहती है, ‘‘मु?ो शुरूशुरू में ब्रा पहनना बिलकुल पसंद नहीं था. लेकिन धीरेधीरे यह मेरी आदत में शामिल हो गया. टीनऐज में जब मां मु?ो ब्रा पहनने को कहती थीं तो मु?ो बहुत गुस्सा आता था क्योंकि मैं कपड़े का एक और बो?ा अपने शरीर पर लादना नहीं चाहती थी. लेकिन मु?ा से कहा गया कि मैं अब बड़ी हो रही हूं. मेरी बौडी में तरहतरह के बदलाव हो रहे हैं और इन में लड़की की छाती बहुत महत्त्वपूर्ण होती है. इन बदलाव में मेरी ब्रैस्ट उभरने लगेगी. इसलिए मु?ो ब्रा पहननी चाहिए.

‘‘मगर ब्रा पहनना आसान नहीं था. सब से ज्यादा मुश्किल इसे पूरा दिन पहने रखना था. ब्रा पहनने के बाद मु?ो अपनी बौडी बंधीबंधी सी लगने लगी. लेकिन फिर यह धीरेधीरे मेरी हैबिट में आ गया. अब ब्रा न पहनूं तो अजीब सा लगता है. ऐसा लगता है जैसे कुछ खाली सा हो.’’

खुद की चौइस होनी चाहिए

कंफर्ट की बात पर रचना कहती है, ‘‘शुरूशुरू में यह बिलकुल कंफर्टेबल नहीं था. सांस लेने में दिक्कत होती थी. अकसर ब्रा की स्ट्रैप से निशान पड़ जाते थे. गरमी के मौसम में ये दिक्कतें और बढ़ जाती थीं जैसे पसीने आना, ब्रैस्ट और उस के आसपास खुजली होना.

इतना ही नहीं कई बार ब्रा से रैशेज भी पड़ जाते थे. इन सब के बावजूद ब्रा पहनने से ब्रैस्ट सही पोजीशन में रहती है. वह कसी रहती है. लटकती नहीं है. इतना ही नहीं अलगअलग ऐक्टिविटीज करते समय यह उछलते भी नहीं है, जिस की वजह से यह भद्दी नहीं लगती है. इसे पहनने से मैं कौन्फिडैंट फील करती हूं. मैं ब्रा पहनने के पक्ष में हूं. लेकिन हां मैं इसे पूरा दिन पहनने के पक्ष में नहीं हूं. इसलिए मैं इसे रात को उतार कर सोना पसंद करती हूं.’’

नई दिल्ली के एक बुक स्टोर में जौब कर ने वाली प्रीति तिवारी कहती है, ‘‘पूरा दिन ब्रा पहने रहना अनकंफर्टेबल होता है. जब मैं ने पहली बार ब्रा पहनी थी तो मु?ो ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरी ब्रैस्ट को जकड़ लिया हो. मु?ो लगा जैसे मैं अब सांस नहीं ले पाऊंगी. मैं बस इसे उतार कर फेंकना चाहती थी. लेकिन कई दिनों तक इसे पहनने के बाद मु?ो धीरेधीरे इस की आदत पड़ गई.

‘‘ब्रा से होने वाली परेशानी को मैं इस गंदी सोसाइटी के आगे भूल गई थी. मैं बिना ब्रा के बाहर जाने में बिलकुल कंफर्टेबल नहीं हूं. लेकिन यह भी सच है कि घर आते ही मैं इसे उतार देती हूं. इसे उतारने पर ही मु?ो राहत मिलती है. मैं फ्री फील करती हूं. मैं सम?ाती हूं ब्रा पहनना न पहनना लड़की की अपनी चौइस होनी चाहिए न कि सोसाइटी का डर, जिस की वजह सी उसे ब्रा पहननी पड़ रही है.’’

मगर सवाल यह है कि इतनी प्रौब्लम्स होने के बाद भी लड़कियों और महिलाओं को ब्रा क्यों पहननी पड़ती है? इस के उत्तर में निधि धावरिया कहती है, ‘‘महिलाओं पर पितृसत्तात्मक सोच का बो?ा है जो उन्हें बातबात पर यह बताती है कि आप के लिए क्या सही है और क्या नहीं. अगर कोई महिला सभ्य तरीके से कपड़े पहनने के पितृसत्तात्मक तरीकों को मानने से इनकार कर देती है, तो उसे फूहड़ कहा जाता है. इन्होंने आदमीऔरत की बनावट के आधार पर न सिर्फ उन के अधिकारों को बांटा है बल्कि उन के कपड़े भी बांट दिए हैं. पुरुषवादी समाज ने हमेशा ही महिलाओं को अपने अंदर रखने की कोशिश की है.

‘‘वे चाहते हैं कि महिलाएं बस उन का कहना मानें. लेकिन इस के उलट महिलाएं पुरुषों की इस रूढि़वादी सोच का हिस्सा नहीं बनना चाहती हैं. वे चाहती हैं कि ब्रा पहननी है या नहीं इस का फैसला वे खुद करें न कि यह दकियानूसी बातें करने वाला पुरुषवर्ग.’’

ब्रा पर थोपी पुरुषवादी सोच

उत्तर प्रदेश से दिल्ली आ कर बसने वाली 26 वर्षीय मानवी राय कहती है, ‘‘गांवों में ब्रा को ‘बौडी’ कहते हैं. कई शहरी लड़कियां इसे ‘बी’ कह कर बुलाती हैं. हमारे गांव में ब्रा बोलने भर से तूफान मच जाता था. लेकिन अब लड़कियां अपनी आजादी को ले कर ज्यादा जागरूक हो गई हैं. वे सम?ा गई हैं कि ब्रा उन पर थोपी गई एक पुरुषवादी सोच है. इसीलिए अब कई महिलाएं ब्रा का विरोध करने लगी हैं. आज दुनियाभर में कई ऐसी महिलाएं है जिन्होंने ब्रा को ‘नो’ कह कर उसे न पहनने से इनकार कर दिया.’’

कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं जो ब्रा पहनना पसंद नहीं करती हैं. 2017 में साउथ कोरिया की मौडल और ऐक्ट्रैस सूली ने एक फैमनिस्ट कैंपेन शुरू किया, जिसे ‘नो ब्रा मूवमैंट’ नाम दिया गया. उन्होंने अपने सोशल अकाउंट पर बिना ब्रा के टौप पहने पिक्चर अपलोड की. इस का परिणाम यह रहा कि महिलाएं वर्किंग और पब्लिक प्लेस पर विदाउट ब्रा घूमने लगीं. इस मुहिम ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया था. महिलाएं हैशटैग नो ब्रा लिख कर बिना ब्रा के कपड़े पहन कर अपनी तसवीरें सोशल मीडिया पर शेयर करने लगीं.

नैशनल नो ब्रा डे

ऐसा ही एक ग्रुप महिलाओं का है, जिसे ‘फैन’ के नाम से जानते हैं जो अपने विरोध के अनोखे तरीकों के लिए जाना जाता है. यह गु्रप अपनी छाती को ढकता नहीं था. इसलिए यह चर्चा का विषय था. इसी की तरह 1960 में ‘ब्रा बर्निंग’ नाम का मूवमैंट आया. इस में महिलाएं अपना विरोध जताने के लिए ब्रा को जलाया करती थी. वहीं कुछ महिलाएं ब्रा न जला कर उन्हें कूड़ेदान में फेंक देती थीं. यह उन का विरोध जताने का एक अनोखा तरीका था. भारत में हर साल 13 अक्तूबर को ‘नैशनल नो ब्रा डे’ मनाया जाता है. यह ब्रैस्ट कैंसर के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है.

ब्रा न पहनने का पक्ष लेने वाली कोलकाता की 22 साल की विनिता मुखर्जी की भी कुछ ऐसी ही राय है. वह कहती है, ‘‘हम खुद के शरीर के साथ अनकंफर्टेबल फील करेंगे तो दूसरों को भी ऐसा एहसास होगा. पहले मु?ो बिना ब्रा के पब्लिक प्लेस पर जाने में प्रौब्लम होती थी लेकिन धीरेधीरे मैं कंफर्टेबल हो गई. लेकिन मैं यही कहूंगी कि लड़कियां और महिलाएं खुद फैसला करें कि उन्हें ब्रा पहननी है या नहीं.

विदाउट ब्रा घर से बाहर जाने पर महिलाओं की सोच मिलीजुली है. दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में ब्यूटीपार्लर चलाने वाली 32 वर्षीय वीणा दुबे कहती है, ‘‘वैसे तो ब्रा हमारी बौडी पर एक ऐक्ट्रा कपड़ा ही है, लेकिन हमारी सोसाइटी ने हमारे माइंड में यह फिट कर दिया है कि महिलाओं को बिना ब्रा के बाहर नहीं निकलना चाहिए. यह उन के सभ्य दिखने के लिए बहुत जरूरी है. इन लोगों ने ब्रा को हमारी आदत बना दिया है. इसलिए हम अब खुद को बिना ब्रा के देख कर अनकंफर्टेबल फील करते हैं.’’

वीणा की ही तरह मुंबई की रहने वाली योगा इंस्ट्रक्टर सूर्यंका मिश्रा कहती है, ‘‘विदआउट ब्रा के घर से बाहर निकलने के बारे में मु?ो सोच कर ही अजीब सा लगता है. ब्रा ब्रैस्ट को सपौर्ट करती है. अगर ब्रा नहीं पहनेंगी तो ब्रैस्ट लटकने लगेगी. ब्रा न पहनने से कम उम्र की महिलाएं भी ज्यादा उम्र की लगने लगती है. वहीं ब्रा के पहनने के बाद कपड़ों की फीटिंग भी अच्छी आती है. टौप के नीचे ब्रा पहनी लड़की विदाउट ब्रा पहने लड़की से ज्यादा अटैक्ट्रिव लगती है. लेकिन फिर भी ब्रा पहनना आप की अपनी चौइस है.’’

कई बार टीनऐज में लड़कियों को ब्रा के बारे में नौलेज नहीं होता है. इसलिए वे ब्रा नहीं पहन पातीं. यही कारण है कि उन की ब्रैस्ट लटकने लगतर है. ऐसा अकसर स्लम एरिया में देखने को मिलता है.

ब्रा का इतिहास

अगर इतिहास उठा कर देखा जाए तो ऐसा नहीं है कि महिलाओं ने हमेशा ही ब्रा पहनी है या कहें अपनी छाती को ढका है. ब्रा कैसे अस्तित्व में आई इस के लिए यह जानना जरूरी है कि ब्रा शब्द है क्या. असल में ब्रा फ्रैंच शब्द ‘ब्रासिएर’ का छोटा रूप है, जिस का शाब्दिक अर्थ होता है शरीर का ऊपरी हिस्सा.

अगर बात करें दुनिया की पहली मौडर्न ब्रा कहां बनी थी, तो इस का जवाब है फ्रांस में. 1869 में फ्रांस की हर्मिनी कैडोल ने एक जैकेटनुमा पोशाक को 2 टुकड़ों में काट कर अंडरगार्मैंट्स बनाए थे. बाद में इस के ऊपर का हिस्सा ब्रा की तरह पहना और बेचा जाने लगा.

रोमन औरतें स्तनों को छिपाने के लिए छाती वाले हिस्से के चारों तरफ एक कपड़ा बांध लेती थीं. वहीं ग्रीक औरतों की बात करें तो वे एक बैल्ट के जरीए ब्रैस्ट को उभारने की कोशिश करती थीं. ये सब ब्रा के शुरुआती रूप थे. वहीं आज जैसी ब्रा आज हम दुकानों में देखते हैं वैसी अमेरिका में 1930 में बननी शुरू हुई थीं.

महिलाएं हमेशा से ब्रा पहनती नहीं आई हैं. उन्हें ब्रा का तोहफा या कहें बेहूदा तोहफा देने के पीछे पुरुषों की साजिश थी. वे महिलाओं को हमेशा आकर्षण की वस्तु मानते आए हैं. वहीं ब्रा एक सैक्सुअली कपड़ा है. अगर महिला ब्रा पहनेंगी तो वह सैक्सी लगेगी और पुरुष उसे भोगने के लिए उत्सुक होंगे.

दूसरा कारण है बिजनैस. ब्रा के बिना भी काम चल सकता है. लेकिन अपने व्यापार का क्षेत्र बढ़ाने के लिए व्यापारियों ने ब्रा को ईजाद किया. इस के बाद धीरेधीरे अलगअलग  तरह की ब्रा बना कर अपने बिजनैस को बढ़ाते चले गए.

नहीं पहनना कितना कंफर्टेबल होता है

अगर बात कंफर्ट की की जाए तो पूरा दिन ब्रा पहनना बिलकुल कंफर्टेबल नहीं होता है. इसलिए घर पर अकेले रहने वाली लड़कियां

और महिलाएं ब्रा नहीं पहनती हैं. लगभग हर लड़की और महिला रात को सोने से पहले ब्रा उतार देती है.

पूरी दुनिया जब कोविड की चपेट में थी तब ब्रा की बिक्री में गिरावट देखी गई. कोविड-19 के समय में वर्क फ्रौम होम चल रहा था. ऐसे में ज्यादातर महिलाएं घर पर ही थीं. वर्क फ्रौम होम करने वाली महिलाएं कंफर्टेबल फील करने के लिए घर पर ब्रा पहनना अवौइड करती थीं.

33 साल की रागिनी खन्ना पेशे से टीचर है. वह बताती है, ‘‘कोविड के समय स्कूलकालेज सब बंद थे. लेकिन देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों की पढ़ाई में कोई रुकावट न हो इसलिए सरकार ने औनलाइन क्लासेज शुरू कीं. इस समय सभी टीचर्स ने बच्चों को औनलाइन पढ़ाया. वह बताती है मेरी जब औनलाइन क्लास होती थी तो मैं ब्रा पहनती थी. लेकिन क्लास खत्म होते ही मैं ब्रा उतार देती थी. बिना ब्रा के रहना मु?ो ज्यादा कंफर्टेबल फील कराता था.

‘‘पूरा दिन ब्रा पहनना बिलकुल कंफर्टेबल नहीं होता है. ऐसे लगता है जैसे किसी ने सांसें रोक ली हों. वहीं अगर विदाउट ब्रा रहें तो फ्रीफ्री सा फील होता है. बौडी एकदम रिलैक्स लगती है. ऐसा लगता है जैसे कोई बो?ा हट गया हो. मगर ब्रा पहनने के क्या फायदे और नुकसान हैं यह जानना बहुत जरूरी है.’’

दिल्ली के बतरा हौस्पिटल की एमबीबीएस डाक्टर श्रुति गुप्ता कहती हैं, ‘‘ब्रैस्ट ह्यूमन फीमेल बौडी का महत्त्वपूर्ण पार्ट होता है. फीमेल बौडी में ब्रैस्ट अट्रैक्शन का मुख्य केंद्र होती है. बिना ब्रा के रहने से स्तन कैंसर होने की संभावना को कम किया जा सकता है.

‘‘ब्रा ब्रैस्ट डैवलपमैंट में हैल्प करती हैं. इसे न पहनने से ब्रैस्ट डैवलपमैंट में प्रौब्लम आती है. जो लड़कियां या महिलाएं ब्रा नहीं पहनती हैं उन की ब्रैस्ट लटकने लगती है. इतना ही नहीं ब्रा न पहनने से ब्रा का साइज बढ़ जाता है. लेकिन यह भी सच है कि 12 घंटे से ज्यादा देर तक ब्रा पहनना हानिकारक होता है. रात को ब्लड सर्कुलेशन तेज होता है. इसलिए रात को ब्रा उतार कर सोना चाहिए.’’

आप खुद करें फैसला

मोनिका गुप्ता कहती है, ‘‘एक सही ब्रा आप की ड्रैस में चार चांद लगा देती है. कई ड्रैसेज ऐसी होती हैं जिन के लिए अलगअलग तरह की ब्रा चाहिए होती है. बिना ब्रा के वह ड्रैस उतनी खास नहीं लगेगी जितनी ब्रा के साथ. ऐसे में ब्रा को अवौइड करना सही नहीं होगा.

ब्रा ही तो है

तुम्हारी ब्रा का स्ट्रैप दिख रहा है, इसे ठीक करो. तुम अपनी ब्रा को बाहर बालकनी में मत सुखाया करो. कोई देख लेगा तो क्या कहेगा. तुम अपनी ब्रा को अपनी अलमारी में छिपा कर क्यों नहीं रखती हो. इस तरह की बातें हर लड़की ने अपनी लाइफ में कभी न कभी जरूर सुनी होंगी. सवाल यह है कि यह सिर्फ एक कपड़ा है न कि कोई गुप्त चीज.

नहाने जाते वक्त भी महिलाएं अपने अंडरगारमैंट्स को कपड़ों में छिपा कर ले जाती हैं. यही नहीं ब्रा को सुखाते समय इसे दूसरे कपड़ों के नीचे छिपा कर रखती हैं ताकि वह किसी को दिखाई न दे सके.

वक्त के साथसाथ बड़ेबड़े बदलाव तो हुए, लेकिन आज भी समाज में ब्रा को देखना एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. अगर किसी लड़की या महिला की ब्रा स्ट्रैप दिखाई देती है तो लोग उसे अजीब तरीके से देखते हैं. टिप्पणियां करने लगते हैं. उसे बिना संस्कार वाली लड़की सम?ा जाता है. इस सोच को बदलना बहुत जरूरी है. ब्रा की स्ट्रैप दिखना कोई बड़ी बात नहीं है. यह बहुत ही सामान्य है. बिलकुल वैसे ही जैसे पुरुषों की बनियान की स्टैप दिखाई देती है.

औरतों के लिए जरूरी सेवा

देश भर में आटो रिक्शा इस्तेमाल करने वालों को एक बड़ी मुसीबत यह रहती है कि आटो वाले इस तरफ कभी नहीं जाना चाहते जिधर सवारी चाहती है और दूसरी दिक्कत होती है कि मीटर या तो होते ही नहीं या ओवर बात करते हैं. इस के लिए दोषी हमेशा आटो ड्राइवरों को ठहराया जाता है और उन की पूरी कोम को मन ही मन 20 गालियां दे दी जाती हैं.

शहरों को ङ्क्षजदा रखने वाली यह सेवा देने वाले बेइमान हैं तो इस का जिम्मेदार इन के उन पर सारा सिस्टम है. शहर में कोई भी आटो बिना परमिट के नहीं चल सकता और यह परमिट हर साल रिन्यू कराना पड़ता है. सुप्रीम कोर्ट ने न जाने किस वजह से शहर में आटो की संख्या पर सीधा लगा रखी है जो दिल्ली में 1 लाख है. परमिट इशू करने वालों के लिए यह सीधा और हर साल रिन्यूअल एक वरदान है, लक्ष्मी का बेइमानी की सोने की मोहरे देने वाला है.

इस परमिट को पाने के लिए ढेरों रुपया चाहिए होता है. शहर बढ़ रहा है पर परमिटों की संख्या नहीं तो पुराने परमिटों की जमकर बिक्री होती है. जो परमिट होल्डर मर जाए उस का परमिट दूसरे के नाम करने के 15-20 लाख तक लग जाते हैं जिस में ये मुश्किल से 10000 रुपए मृत होल्डर ने परिवार को मिलते हैं.

उवर ओला ने इन नियमों को ताक पर रख कर टैक्नोलौजी के बल पर टैक्सियां तो उतार दी पर वे आटो की संख्या कहीं भी नहीं बढ़वा पाए. बढ़ते फैलते शहरों की जरूरत को हट करने के लिए इस सॢवस के लिए तो सरकार को सब्सिडी देनी चाहिए पर सरकार और सरकार के मुलाजिम लगभग पूरे देश में पैसा बनाते है. यही पैसा आटो रिक्शा वाले सवारियों से बसूलते हैं और इस सॢवस को बहुत नाकभौं ङ्क्षसकोड़ कर लिया जाता है.

आटो रिक्शा अगर मैले, टूटे, बदबूदार है तो इसलिए कि सरकारी अगला जिस में ट्रांसपोर्ट अर्थारिटी से ले कर नुक्कड़ का ट्रैफिक पुलिसमैन शामिल हैं, नियमों के नाम पर भरपूर कमाई करते है और आटो रिक्शा वालों के पास वह पैसा नहीं बचता जो बचाना चाहिए.

आटो रिक्शा ड्राइङ्क्षवग में वैसे भी 50 प्रतिशत औरतों को आना चाहिए ताकि औरतें उन के साथ चलने में उचित समझें. आज औरतों के लिए यह व्यवसाय सहज सुलभ है जिस में वे अपनी मर्जी के घंटों के साथ काम कर सकती हैं और घरों की घुटन भरी सांस से बच सकती है. वे सडक़ों, टै्रफिक से जूझ सकती है और ट्रांसपोर्ट अर्थोरिटियों की माफियानुमा जंजीरों को शायद, नहीं तोड़ सकतीं और इसीलिए कम औरतें ही इस लाइन में आ रही हैं. कभीकभार बड़े मान से औरतों को परमिट दिए जाते है पर लगता है सही ही वे बिकबिका जाते.

आटो रिक्शा सॢवस औरतों के लिए एक बहुत जरूरी सेवा है जो उन्हें घरों की कैद से निकाल सकती है और जब तक यह ठीकठाक न हो, शहर सुरक्षित नहीं होंगे पर शहरों के मालिकों के लिए यह साॢवस वह दुलारू गाय है जो दान में पंडित जी को मिली जिसे छुए और फिर सडक़ों पर छोड़ दो.

अपना घर लेना आसान नहीं

एक अच्छे घर के सपने के लिए लाखों लोग अपना घर सोसायटियों में ले रहे हैं जहां सुरक्षामनचाहे लोगकुछ सार्वजनिक सुविधाएं और एक स्टेटस मिलता है. शहरों के बाहर खेती की जमीनों पर तेजी से मकान उग रहे हैं. लोन की सुविधा पर युवा जोड़े अपना आशियाना खोज रहे है. आरवीआई (रिजर्व बैंक औफ इंडिया) की रिपोर्ट के अनुसार जनवरीमार्च 2023 में घरों की बिक्री 21.6 ‘ बढ़ी और साथ ही घरों पर बकाया लोन बढ़ कर 19,36.428 करोड़ रुपए हो गया.

अपनेआप में यह सुखद बात है कि लोग अपना मकान ले रहे हैं पर अफसोस यह है कि वे बचत पर नहीं ले रहे लोन पर ले रहे हैं. लोन पर लिए मकान का मतलब बौंकर के अपने घर में 24 घंटे मेहमान की तरह रखना जो करता कुछ नहीं है सिर्फ खाता है और गुर्राता है. उस ने मकान दिलवायां तो वह मकान मालिक से ज्यादा गुर्राता है और ज्यादा खाता है क्योंकि एक भी ईएमआई में देर हुई नहीं कि पीनल इंट्रस्ट चालू हो जाता है जो घरों में बैठे इस मेहमान को खूखांर और जानलेवा तक बना देता है.

यदि सामान्य बैंक के कम इंट्रस्ट वाले लोन की इंस्टालमैंट नहीं चुका पाओ तो बाजार से ज्यादा इंट्रस्ट पर लोन लेना पड़ता है. जैसेजैसे अच्छे मकानों की तमन्ना बढ़ती जा रही है वैसेवैसे ज्यादा इंट्रस्ट वाले लोन भी बढ़ रहे हैं और अब कुल होम लोन का 56.1 का 56.1 प्रतिशत हो गया है.

अपना फ्लैट एक अच्छी ग्रेट्ड सोसायटी में होना एक अच्छा सपना है पर जिस तरह से सरकारबिल्डरप्रौपर्टी एजेंट और बैंक आम ग्राहक को लूटते है. उस से यह सपना टूटने में देर नहीं लगती. सभी शहरों में हजारों बिङ्क्षल्डगों में ताले लगे फ्लैट दिख जाएंगे जो अलाट तो हो गए हैं पर पूरा पैसा न देने पर उन का पौजेशन नहीं दिया गया.

सरकार ने रेस नाम की एक संस्था बनाई है जो बिल्डरों पर लगाम लगा कर यह भी पुलिस थाने और अदालत जैसे हो गई है जहां शिकायत हल नहीं की जाती टाली जाती हैसाल दर साल और इस दौरान बुक किए फ्लैट पर इंट्रस्ट बढ़ता रहता है और भटकते रहते हैं.

सोसायटी में रहने की तमन्ना के लायक अभी देश की इकोनौमिक हालत नहीं हुई है. देश अभी भी गरीबों का देश है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहे अमेरिका जा कर ढींग कर आए कि पिछले 10 सालों में अर्थव्यवस्था 10वें से 5वें स्थान पर पहुंच गई है. प्रति व्यक्ति आय के पैमाने पर 2015 से 2022 में आय 1600 डौलर प्रति व्यक्ति से 400 डौलर बढ़ कर 2000 डौलर हुई जबकि इसी दौरान वियटनाम जैसे पिछड़े देश में 2055 से बढ़ कर 3025 डौलर और ङ्क्षसगापुर जैसे समृद्ध देश में 59112 डौलर से बढ़ कर 69.896 डौलर हो गई है.

हम सभी अपने घर अफौर्ड नहीं कर सकते. यह साफ है. कुछ ही ऐसे चतुर हैं जो या तो मांबाप के मकाए पैसे पर या किसी तरह के भागीदार हो कर होमलोन चुकता कर पाने की स्थिति में है.

 

धर्म के नाम पर पाखंड का बोलबाला

आज जब पूरे विश्व में विज्ञान के क्षेत्र में नित नए आयाम स्थापित किए जा रहे हैं, वैज्ञानिक चांद और मंगल पर बस्तियां बसाने की कोशिश में प्रयासरत हैं, वहीं हमारा देश सांप्रदायिक विद्वेश और पाखंड में उलझता चला जा रहा है.

धर्म के नाम पर तर्क शास्त्र और शास्त्रार्थ की परंपरा को समाप्त कर दिया है और दिनोंदिन पाखंड में दिखावा बढ़ता जा रहा है जिस की वजह से पाखंड महंगा होता जा रहा है. हमारा मीडिया और सोशल साइट्स पाखंड और अंधविश्वास को बढ़ाने में अपना भरपूर सहयोग कर रही हैं.

गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं, हज करने से व्यक्ति पवित्र हो जाता है तो ईसाइयों के लिए पवित्र जल बहुत महत्त्वपूर्ण है. वैसे ही सिखों के लिए पवित्र सरोवर और गुरु ग्रंथ साहिब और मुसलमानों के लिए कुरान. इन ग्रंथों के अपमान के नाम पर हत्या और दंगे आएदिन की बात है. यह पाखंड नहीं तो क्या है? साथ में हज या अन्य किसी भी दूरदराज स्थान की तीर्थयात्राएं सामान्य वर्ग के लिए बहुत महंगी होती हैं. वर्तमान सरकार भी तीर्थयात्राओं को आसान व सुविधापूर्ण बनाने के लिए काफी प्रयासरत दिखाई पड़ रही है. आजकल चारों तरफ विशाल मंदिरों, मसजिदों का जाल फैलता चला जा रहा है.

ठगने का धंधा

आज के युग में लोग इतने भयभीत रहने लगे हैं कि हनुमान, शिव एवं शनि मंदिरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. स्कूल और अस्पतालों के स्थान पर मंदिर और मसजिदों की संख्या तथा उन का पुनर्निर्माण धूमधाम एवं भव्य होता जा रहा है. प्रत्येक समाज का अपना अलग त्योहार एवं तीर्थ हो चला है. ज्योतिषी लोगों को उन का भविष्य बताने और दुखों को दूर करने वाले टोटके बता कर समाज में पाखंड और अंधविश्वास फैला कर अपनी रोजीरोटी चलाने का धंधा कर रहे हैं. विभिन्न टीवी चैनल दिनरात जनता को पाखंड के जाल में फंसाने के लिए तरहतरह के उपाय बता कर ठगने का धंधा कर रहे हैं और हमारा सरकारी तंत्र आंखकान बंद कर बैठा है.

हिंदू धर्म में दान करने की महिमा का बारबार वर्णन किया गया है इसलिए लोगों के मन  में पाखंड करने की इच्छा तो परिवार में बचपन से ही कूटकूट कर भर दी जाती हैं. दान का महिमामंडन करते हुए कहा है-

‘हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कंठस्य भूषणं,

श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणै: किं प्रयोजनम्.’

हाथ का आभूषण दान है, कंठ का सत्य है और कान का आभूषण शास्त्र है, फिर अन्य किसी आभूषण की क्या आवश्यकता है?

हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का बहुत महत्त्व है. संस्कार का तात्पर्य उन धार्मिक कृत्यों से है जो किसी समुदाय का योग्य सदस्य बना कर उस के मनमस्तिष्क को पवित्र करें परंतु वर्तमान में लोग एकदूसरे का अनुकरण करते हुए भेड़चाल चलते ज्यादा दिखाई दे रहे हैं.

पाखंड पर विश्वास क्यों

हिमाचल प्रदेश के फौजी परिवार की रिया  बैंगलुरु में आईटी कंपनी में काम करती थी और वहीं पर सहकर्मी अक्षर को पसंद करने लगी थी. दोनों ने 2-3 साल लिव इन में रहने के बाद जब शादी कर लेने का निर्णय कर लिया तो अक्षर के घर वालों ने जन्मकुंडली में काल सर्प योग बता कर उस की पूजा करवाने को कहा तो पढ़ीलिखी रिया और उस के मातापिता ने साफ मना कर दिया कि वे इस तरह के पाखंड की बातों पर विश्वास नहीं करते. अक्षर के दबाव में बु?ो मन से मांबाप शादी के लिए राजी हो गए. पंडितजी के बताए हुए शुभ मुहूर्त में दोनों की शादी धूमधाम से हो गई.

रिया ने अक्षर के लिए सरप्राइज प्लान कर के हनीमून पैकेज ले कर कश्मीर की वादियों की बुकिंग करवा रखी थी. अक्षर के पेरैंट्स उत्तर प्रदेश के उन्नाव के रहने वाले थे. काल सर्प योग के डर से उन लोगों ने अक्षर को अपना निर्णय सुना दिया कि नासिक के त्रयंबकेश्वर मंदिर में काल सर्प योग की पूजा के बाद ही हनीमून संभव है. उस की आंखों में आंसू बह निकले थे, लेकिन  अक्षर एक तरफ मांबाप को खुश करने के लिए नासिक की ट्रेन के टिकट और पूजा के लिए पंडित औनलाइन खोजता रहा तो दूसरी तरफ रिया के सामने कान पकड़ कर गिड़गिड़ाता रहा. वह अपने हनीमून पीरियड में परिवार के साथ सर्पों की पूजा कर रही थी. डरे हुए पेरैंट्स चांदी, तांबे और सोने का सर्प बनवा कर अपने साथ लाए थे.

बाद में पछताना पड़ता है

काल सर्प योग की शांति पूजा 3 घंटे में समाप्त हो गई, पूजा का खर्च तो क्व7 हजार था  परंतु पंडित को खुश करने के लिए पेरैंट्स उन के लिए कपड़ा, दक्षिणा आदि देने के बाद पंडित ने सम?ा लिया कि शिकार पूरी तरह उन के कब्जे में है, तो उंगलियों पर गिनती करते हुए रिया के साथ शादी को अक्षर के जीवन के लिए खतरा बताते हुए महामृत्युंजय की पूजा के लिए संकल्प करवा कर क्व25 हजार और ले लिए. रिया भोले पेरैंट्स को लुटते देखती रही और मन ही मन उस घड़ी को कोसती रही जब अक्षर से उस की मुलाकात हुई थी. अक्षर मिट्टी का माधो सा खड़ा सब देखता रहा.

हनीमून का सपना सपना ही बना रह गया. दोनों के संबंध में ऐसी गांठ पड़ गई, जिसे सुल?ाना आसान नहीं था और वह आज तक रिया पूजा की याद कर के गुस्से से भर उठती है.

उन की कीमती छुट्टियां और बुकिंग के रुपए बरबाद हो गए इस मूर्खता के पाखंड के कारण. अक्षर की बेचारगी देख वह अपने निर्णय पर बारबार पछता रही थी.

पूजा के नाम पर नाटक

मध्य प्रदेश के भिंड की रहने वाली संजना और आरव की शादी धूमधाम से हुई. दोनों संपन्न और दकियानूसी परिवार थे. अरेंज्ड मैरिज थी. संजना फिजियोथेरैपिस्ट थी और आरव सीए दोनों की मुलाकात एक पार्टी में हुई थी. दोनों वर्किंग थे और खुश थे. संजना प्रैगनैंट हो गई तो आरव की मां की हिदायतों ने उसे परेशान कर के रख दिया. बेटा हुआ तो तुरंत पंडित से औनलाइन संपर्क शुरू हुआ और पंडित ने बता दिया कि बच्चा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ है और पिता के स्वास्थ्य के लिए भारी है. संयोगवश आरव की गाड़ी किसी बाइक से टकरा गई.

अब तो भिंड से मूल शांति के लिए पंडितजी ने जो लंबी लिस्ट लिखवाई कि आरव ने उसे देखते ही हाथ जोड़ दिए. लेकिन संजना की मां तुरंत आ गईं और जबरदस्ती उसे पूजा करवाने के लिए मजबूर कर दिया. फिर तो उसे नन्हे को ले कर भिंड आना पड़ा और पूजा के नाम पर ऐसा नाटक हुआ कि पूछो मत. वह और आरव दोनों ही चुपचाप 27 कुंओं का जल, 7 जगह की मिट्टी, 7 तरह का अनाज, सोने की मूल नक्षत्र की मूर्ति और जाने क्याक्या. नाई के लिए कपड़े, पंडितजी के लिए सिल्क का धोतीकुरता व सोने की

अंगूठी नन्हे बच्चे के बराबर तोल कर अन्न दान, 27 ब्राह्मणों का भोजन, उन की दक्षिणा, नातेरिश्तेदारों के लिए गिफ्ट और दावत.

मूल शांति के नाम पर कुल मिला कर लाखों का खर्च किया गया ऊपर से आरव का क्लोजिंग ईयर का टाइम चल रहा था, इसलिए उन दिनों छुट्टी लेने की वजह से उस की प्रमौशन अलग से रुक गई.

आजकल यहांवहां भागवत् कथा का धूमधाम से आयोजन देखा जा सकता है- इन दिनों संगीतमय भागवत् का बहुत प्रचलन दिखाई दे रहा है, जिस का न्यूनतम खर्च क्व2-3 लाख तक आ जाता है. यदि कोई नामी कथा वाचक है तो केवल उस की फीस ही लाखों में होती है.

कमाई पर ध्यान

मेरे पड़ोस में सार्वजनिक भागवत् कथा का आयोजन हुआ, जिस में कहने के लिए कथावाचक ने कोई फीस नहीं ली परंतु उन के संगीत बजाने वाले 7-8 लोगों की टीम को क्व1 हजार प्रतिदिन देना तय हुआ. टैंट वाले ने क्व40 हजार लिए संगीत के उपकरणों के लिए भी क्व20 हजार लगे. अन्य संसाधन जुटाने में क्व15-20 हजार लगे.

रोज के फूलफल, मिष्ठान्न आदि पर

क्व1 हजार प्रतिदिन लगते रहे. लोग भक्तिभाव से भरपूर चढ़ावा चढ़ाते रहे. आरती में हजारों रुपए आ जाते.

भीड़ बढ़ती गई और साथ में चढ़ावे की रकम भी. वह सब चढ़ावा कथावाचक समेटते रहे. उन के कर्मचारी पूरे समय दान का डब्बा ले कर भीड़ में चक्कर लगाते रहते. डब्बे पर ताला लगा कर रखा था जिसे वह चुपचाप खोलते और समेट कर अंदर कर लेते. कोई क्व500 देता तो तुरंत माइक पर नाम अनाउंस करते. इस तरह कथा कम होती बस कमाई पर ज्यादा ध्यान रहता .

अंत में भंडारे के आयोजन पर लगभग

50 हजार रुपये का खर्च आया. इस के अतिरिक्त कार्यक्रम के दौरान प्रतिदिन की पूजा, विभिन्न कथा प्रसंगों के लिए कभी साड़ी, कभी चावल, कभी सोनाचांदी का दान, कभी कलश स्थापना और पूजा आदि का खर्च भी प्रति परिवार 15 से 20 रुपये हजार अलग से हुआ. जो मुख्य जजमान बना उस का व्यक्तिगत खर्च 20 से 25 हजार रुपये हुआ. अभी कथावाचक के लिए वस्त्र और दक्षिणा के साथ कुछ सोने की अंगूठियों का खर्च नहीं जोड़ा गया है.

यहांवहां पूछताछ करने पर एक प्रमुख कथावाचक ने भागवत् सुनाने की केवल अपनी  फीस 25 लाख रुपये बताई थी. सोचिए कि पाखंड दिनोंदिन कितना महंगा होता जा रहा है .

कथा के नाम पर फूहड़ डांस

मेरे एक परिचित ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि उन के परिवार ने भागवत् कथा के आयोजन के लिए गांव की जमीन बेच दी और वहां से मिले रुपयों में से लगभग 15 से 20 लाख रुपये का खर्च इस भागवत् कथा के आयोजन पर किया क्योंकि समाज में उन्हें अपना नाम करना था. कथा का तो नाम था वहां पर फिल्मी धुन पर भजन के नाम पर उलटेसीधे गाने गाए जाते थे और फूहड़ डांस होता रहता था.

कभी कृष्णराधा की झंकी तो कभी गरीब सुदामा तो कभी नंद बाबा और बाल कृष्ण के जन्म की झंकी लोगों के आकर्षण का केंद्रबिंदु बन गई थी. भीड़ और चढ़ावा दोनों भलीभांति बढ़ते जा रहे थे और साथ में कथावाचक की कथा के बजाय झंकियों पर ज्यादा जोर होता चला गया था. कुल मिला कर कथावाचक का ध्यान पैसे की उगाही में लगा रहता था. आज कृष्ण जन्म उत्सव, तो कल गिरिराजजी की पूजा तो परसों रुक्मिणी विवाह के लिए साड़ी और सुहाग का सामान. इस तरह से रोज एक नया नाटक होता रहता.

बाद में मालूम हुआ कि धंधे से अनापशनाप पैसे इन धार्मिक कार्यों, आयोजनों में लगाने और साथ में अपना शोरूम अपने विश्वस्त लोगों पर छोड़ देने से उन्हें भारी नुकसान हो गया. कोठी भी बिक गई और बेटे ने बुढ़ापे में वृद्धाश्रम में रहने के लिए भेज दिया. सारे धर्मकर्म धरे रह गए.

पूजा भी ठेके की तरह हो गई

उत्तर प्रदेश के रहने वाले आयुष एवं पूर्वी ने मुंबई में 3 करोड़ रुपये में अपना फ्लैट खरीदा तो उन की मां ने गृहप्रवेश की पूजा को जरूरी बताया. इस के अतिरिक्त सभी लोगों ने वास्तु पूजा और गृहप्रवेश की पूजा करने को आवश्यक बताया तो दोनों ने औनलाइन पंडित और पूजा के विषय में जानने के लिए सर्च करना शुरू किया. दोनों ही पूजन सामग्री की लिस्ट देख कर ही आश्चर्यचकित हो गए थे.

उन लोगों ने गूगल पर नंबर देख कर यहांवहां फोन मिलाए तो मालूम हुआ. गृह प्रवेश और वास्तु पूजा और ग्रह शांति पूजा के नाम पर 25 हजार रुपये से शुरू हो कर लाखों वाले पंडित उपलब्ध हो रहे थे. उन लोगों ने अंतत: गायत्री परिवार के पंडित जो 11 हजार रुपये में पूजा कर रहे थे उन्हें बुलाया, लेकिन पूजा कर के उन के मन को शांति कम अशांति एवं पैसे और समय की बरबादी ज्यादा लगी. पंडितजी ने 11 हजार रुपये के बजाय लगभग 20 हजार रुपये खर्च करवा दिए. वे सोचने लगे कि इस से तो कोई नया सामान ले लेते, जो उन के काम आता.

महानगर में पूजा भी ठेके की तरह हो गई है. जिस स्तर की पूजा करवानी है, उसी स्तर के पुजारी उपलब्ध हैं, सस्ते वाले गायत्री परिवार के 11 हजार रुपये से शुरू हो कर 51 हजार रुपये या लाखों में किया जा सकता है. अब पंडितजी पूजन सामग्री अपने साथ भी ले कर आते हैं जिस का मूल्य वे अपने कौंट्रैक्ट में ले लेते हैं. पूजा के नाम पर लोग अपने खर्च में कटौती कर के जी खोल कर पूजा और धार्मिक कार्यों पर खर्च करते हैं. इस के लिए चाहे उधार ले कर करना पड़े, लेकिन ऐसे आयोजन अवश्य करते हैं क्योंकि उन की सोच होती है कि उन्हें पूजा कर के सीधा स्वर्ग का टिकट मिलने वाला होता है.

20 से 25 हजार रुपये तो साधारण पूजा में लगने ही हैं. पंडित के कपड़े और दक्षिणा उस के स्तर के अनुसार होनी चाहिए. आप का समय चाहे कितना कीमती है 7-8 घंटे तो लगने ही हैं. ज्यादा ताम?ाम वाला करना है तो 1 से 3 दिन तक लग सकते हैं.

पूरी निगाह चढ़ावे पर

आजकल समाज में सुंदरकांड और माता की चौकी का जगहजगह आयोजन देखा जाता है. ये लोग भी एक कौंट्रैक्ट जैसा तय कर लेते हैं जिस की शुरुआत 21 हजार रुपये से होती है. यदि बहुत साधारण स्तर का है तो 11 हजार रुपये में भी राजी हो जाते हैं, लेकिन इन की पूरी निगाह चढ़ावे पर होती है. बातबात पर रुपए की मांग करते हैं और फलमिठाई और चढ़ावे, आरती के सारे रुपए समेट कर रख लेते हैं. इस में भी 7-8 लोगों की टीम होती है जो अपने संगीत उपकरण अपने साथ ले कर आते हैं जैसे ढोलक मजीरा, हारमोनियम, कैसियो, तबला आदि आप से डैक या लाउडस्पीकर लगवाने की फरमाइश करते हैं.

कानफोड़ू आवाज में फिल्मी धुन पर सुंदरकांड हो या माता के भजन गाते हैं. मैं ने स्वयं देखा कि  एक आयोजन में एक बच्चे को शेर का मुखौटा पहना दिया और दूसरे बच्चे का दुर्गा माता का स्वरूप बना कर उस पर बैठा दिया और चारों तरफ शोर मच गया माता प्रकट हो गईं कह कर लोग अपना सिर नवा कर दुर्गा माता की जयजयकार करने लगे. उन पर रुपयों की बौछार शुरू हो गई. बहुत हास्यास्पद दृश्य उपस्थित कर दिया गया था. संयोजक ने बताया कि माता की चौकी करवाने के लिए प्रसाद, चढ़ावा, टैंट आदि के बाद खाना करने में लगभग 50 हजार रुपये खर्च हो गए.

इस तरह के दृश्य बना कर लोगों के मन में भक्तिभाव जगा कर अघिक से अधिक धन उगाही करना उन का मुख्य उद्देश्य होता है. सभी उपस्थित भक्तिभाव से प्रसन्न मन से उन पर रुपयों की बौछार करने लग जाते हैं .

नीरजा की बेटी बुखार से तप रही थी. डाक्टर से उन की अपौइंटमैंट थी. रास्ते में ट्रैफिक जाम की वजह से रुकना पड़ा. डीजे की कानफोड़ू आवाज उन्हें विचलित कर रही थी. बीमार बच्ची के कानों को उन्होंने जोर से बंद किया. शोर के कारण उन का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. संगीत संगीत न हो कर विध्वंसक सुर में बदल गया. उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था. 15-20 लड़के समूह में डीजे के साथ नाच रहे थे. एक ठेले पर माता की ज्योत को ले जाया जा रहा था. पता लगा कि नशे में झूमतेनाचते ये लड़के वैष्णव माता के दरबार में जा रहे हैं. यह कैसा पाखंड जो बढ़ता

जा रहा है? वहां पर भक्ति और आस्था का

तो नामोनिशान नहीं था. था तो केवल पाखंड

का दिखावा.

शिकारी आएगा जाल में फंसाएगा

भारत ही एक ऐसा विचित्र देश है, जहां धर्म के नाम पर पाखंड का इतना बोलबाला है. यहां हर गली कूचे में स्कूल और अस्पताल के स्थान पर मंदिर या मसजिद मिल जाएगी. हमारे देश मे सब को आजादी है कि वह अपने तरीके से अपने धर्म का प्रचारप्रसार कर सकता है. धर्म के नाम पर बढ़ते पाखंड के दिखावे पर रोक लगना आवश्यक है. आज यहांवहां बड़ेबड़े धार्मिक आयोजन बहुत बड़े स्तर पर आयोजित किए जाते हैं, जिन में दिखावे के लिए पैसे को पानी की तरह बहाया जाता है और इन साधूसंतों और अन्य धर्मगुरुओं ने अपना एक नैटवर्क बना लिया है जहां देश की भोली जनता यहां तक कि युवा पीढ़ी भी तात्कालिक लाभ पाने के लिए उन के जाल में फंस जाती हैं.

यह भी देखने में आ रहा है कि युवा पीढ़ी धार्मिक कार्यक्रमों को भी मौजमस्ती में ढालती जा रही है. पाखंड दिखावे के कारण दिनोंदिन महंगा होता जा रहा है. जब तक डीजे को तेज आवाज में नहीं बजाएंगे, धार्मिक यात्राएं, बड़ेबड़े यज्ञ, हवन  के आयोजन नहीं किए जाएंगे, हजारों लोगों के भंडारे का आयोजन कर के भीड़ नहीं इकट्ठी करेंगे, डीजे की आवाज पर बरातियों की तरह नाचेंगे नहीं, तब तक भगवान को कैसे पता लगेगा कि उन के मन में कितनी श्रद्धा है और वहे भगवान के कितने बड़े भक्त हैं.

जितना बड़ा मंदिर, जितना ज्यादा दिखावा, जितना ज्यादा खर्च, समाज में उतना बड़ा नाम. यह आज के पाखंड  का स्वरूप है. वर्तमान सरकार भी अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए जनता की धार्मिक भावनाओं का सहारा ले कर मंदिरों के पुनर्निर्माण और अन्य सुविधाओं पर पैसा खर्च कर रही है.

आज पूजापाखंड पर मंदिरों की यात्राओं के आयोजन, फूलफल प्रसाद पर पैसे खर्च करने के स्थान पर शिक्षा के लिए स्कूलों की व्यवस्था और अस्पतालों पर यदि पैसे खर्च किए जाए तो आम जनता ज्यादा लाभांवित होगी और देश की स्थिति अधिक सुधर सकती है.

आज धर्म के सही अर्थ को समझने की आवश्यकता है. एक स्वर और एक आवाज में धर्म की सच्ची राह सब को विशेष कर युवा पीढ़ी को दिखाना बहुत जरूरी हो गया है. शोरशराबे, पाखंड और दिखावे को छोड़ कर सच्ची भावना के साथ, लोकहित की कामना को ले कर धर्म के मार्ग पर चलना ही सच्चा मानव धर्म है.

समझौता नहीं आजादी चुनें

तू नहीं तो कोई और सही, कोई और नहीं तो कोई और सही बहुत लंबी है यह जिंदगी, मिल जाएंगे हम को लाखों हसीं.

कुछ ऐसी ही कहानी रही है गुरुग्राम में रहने वाली अनीता की. अनीता एक पंजाबी परिवार की 22 साल की खूबसूरत, लंबी, गोरी लड़की थी जिसे कोई एक बार देख ले तो देखता रह जाए. वह जितनी आकर्षक थी उतनी ही चुलबुली भी. खूब बातें करती थी और नाजुक होने के बावजूद दबंग भी थी. बचपन से उसे अपने लिए इतनी तारीफें सुनने को मिली थीं कि उस के चेहरे से साफ ?ालकता था. उस के पिता बिजनैसमैन थे. घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी. मगर एक हादसे में उस के पिता की मौत हो गई. उस वक्त अनीता 17 साल की थी और उस की बड़ी बहन 20 साल की.

पिता के जाने के बाद मां ने अनीता की बहन की शादी जल्दी करा दी ताकि जवान लड़की के साथ कुछ ऊंचनीच न हो जाए. फिर मां अनीता के लिए भी लड़का देखने लगी. पिता के बाद उन की हैसियत किसी बड़े घर में रिश्ते की तो थी नहीं सो मां ने एक साधारण परिवार में उस की शादी करा दी. लड़का प्राइवेट स्कूल में टीचर था. घर में आर्थिक तंगी थी. घर भी छोटा सा था जिस में ननद, देवर और सासससुर समेत कुल 6 प्राणी रहते थे. अनीता ने आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो सास ने मना कर दिया.

प्रैगनैंसी सुखद नहीं रही

अनीता के लिए वहां 1-1 दिन काटना कठिन होने लगा. पति देखने में साधारण था. उसे गुस्सा बहुत जल्दी आता था. छोटीछोटी बात पर दोनों लड़ने लगते. पति मारपीट भी करता था. अंत में अनीता ने उस शादी से निकलना ही बेहतर सम?ा और क्व2 लाख ले कर आपसी सहमति से अलग हो गई.

अनीता ने जल्द ही दूसरी शादी कर ली. दूसरे पति की आर्थिक स्थिति थोड़ी बेहतर थी. पैसों की कमी नहीं थी और घर में सदस्य भी कम थे. सिर्फ देवर और ससुर साथ रहते थे. अनीता उस घर में खुश थी. जल्द ही वह प्रैगनैंट भी हो गई. उस दौरान उस के चेहरे पर हमेशा मुसकान खिली रहती. मगर जल्द ही उस की मुसकान छिन गई जब उस का मिसकैरेज हो गया. कुछ समय बाद वह फिर से प्रैगनैंट हुई. मगर इस बार उस की कोख में एक स्पैशल चाइल्ड था जिसे पति के कहने पर उसे अबौर्ट कराना पड़ा. तीसरी बार की प्रैगनैंसी भी उस के लिए सुखद नहीं रही क्योंकि यह बच्चा भी मैंटली रिटार्डेड था.

मगर इस बार अनीता अड़ गई और बच्चे को जन्म दिया. उसे अपने बच्चे से बहुत प्यार था. मगर घर में और कोई उसे पसंद नहीं करता था. अनीता के पति ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह बच्चे को ऐसे संस्थान में भेज दे जहां इस तरह के बच्चे रहते हैं. मगर अनीता की ममता ने यह बात स्वीकार नहीं की. पति द्वारा ज्यादा जोर दिए जाने और मानसिक रूप से टौर्चर किए जाने पर उस ने पति के बजाय बेटे को चुना और दूसरी बार फिर से तलाक ले कर अलग हो गई.

इस बार उसे पति से क्व3-4 लाख मिले जिन्हें उस ने बेटे के नाम जमा करा दिया. इतना कुछ सहने के बाद अब अनीता के चेहरे की चमक कम हो चुकी थी. वह थोड़ी परेशान भी रहने लगी थी, मगर उस ने हिम्मत नहीं हारी और एक बार फिर से शादी का फैसला लिया. लड़का उस की सहेली का परिचित था जो काफी अमीर और 2 बच्चों का पिता था. अनीता ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी.

तीसरे पति के साथ भी उस की ज्यादा समय तक निभ नहीं सकी. तीसरे पति की 2 संतानें पहले से थीं. दोनों बच्चे टीनएजर थे और वे अनीता के छोटे बच्चे को काफी परेशान करते थे. अनीता जब इस बात की शिकायत करती तो उस का पति बच्चे को स्पैशल चाइल्ड के स्कूल में भेजने की बात करने लगता. उस के बच्चे के साथ भेदभाव किया जाता. पति प्रौपर्टी डीलर था. घर में  पैसों की कमी नहीं थी. मगर उसे बच्चे पर रुपए खर्च करने से रोका जाता.

छोटीछोटी बातें खटकने लगीं

अनीता को इस तरह की छोटीछोटी बातें खटकने लगीं. एक बार ?ागड़ा शुरू हुआ तो फिर बढ़ता ही गया. बहुत जल्दी अनीता की सम?ा में आ गया कि वह इस शादी को और नहीं खींच सकती. वह अपने आत्मसम्मान और अपने बच्चे का अपमान नहीं देख पाई और अंत में भारी मन से तलाक लेने का फैसला कर लिया.

इस तलाक में अनीता को काफी रुपए मिले जिन्हें उस ने भविष्य के लिए जमा कर लिए. फिर गुरुग्राम की एक अच्छी सोसाइटी में एक किराए का 2 बीएचके फ्लैट ले कर अकेली अपने बेटे के साथ रहने लगी. इनकम के लिए उस ने फ्रीलांस ट्रांसलेटर का काम शुरू किया और अपने बल पर बच्चे का पालनपोषण करने लगी.

तलाक से गुजरने के बाद की मानसिक स्थिति

तलाक से गुजरने वाला शख्स क्या सहता है इस की कल्पना भी नहीं की जा सकती. अनीता के लिए भी वह दौर इतना मुश्किल रहा कि वह भावनात्मक रूप से काफी टूट गई थी. हर बार हालात ऐसे बने कि उसे अलग होने के इस कठिन और कड़वे अनुभव से गुजरने पर मजबूर होना पड़ा. डिवोर्स लेना किसी भी तरह से आसान नहीं होता है क्योंकि एक रिश्ते से प्यार, भावनाएं, यादें, जिम्मेदारियां, परिवार जैसी कई चीजें जुड़ी होती हैं.

हर बार अनीता के अंदर अजीब सी उथलपुथल मची रहती थी. उसे गुस्सा, उदासी और पछतावा सब एकसाथ महसूस होता. कई बार अपनी शादी को निभाने की कोशिश और उसे खत्म करने के फैसले के बीच वह खुद को फंसी हुई भी महसूस करती थी. तलाक के दौरान और उस के बाद कई दफा उसे डिप्रैशन भी महसूस हुआ. वह अंदर ही अंदर दिल के किसी कोने में अपनी शादी को बचाने की उम्मीद रखती पर वास्तव में ऐसा हो पाना संभव नहीं होता. उसे सम?ा आता गया कि वह चाहे कुछ भी कर ले लेकिन अपने रिश्ते को टूटने से नहीं बचा सकेगी. उसे पता था कि उस के पास चीजों को जाने देने के अलावा और कोई चारा नहीं है.

अपने फैसलों से खुश

अनीता ने अपने तीनों तलाक स्वीकार कर लिए थे. वह अब अपने अतीत के दर्दों को भुला कर जीवन के नए पहलू की तरफ आगे बढ़ने की कोशिश करने लगी और इस में सफल भी हो चुकी है. वह हर वक्त अपने दुखों के बारे में सोचने की जगह बच्चे के साथ अपनी जिंदगी को ऐंजौय करने लगी है. वह अब छोटीछोटी चीजों से हमेशा अपनेआप को खुश रखने की कोशिश करती है. उस ने प्रौपर्टी डीलिंग का बिजनैस भी शुरू कर लिया है और घर से ही काम करती है ताकि बेटे को पूरा समय दे सके. कुछ लोग उस के इस कदम को सही नहीं मानते. मगर वह अपने फैसलों से खुश है.

अगर कोई स्त्री तलाक लेती है तो लोग अकसर उसे ही दोषी करार देते हैं. वे कहने लगते हैं कि वह निभाना नहीं जानती होगी. जरूर उस का चक्कर चल रहा होगा या फिर वह बां?ा होगी. लोग यह नहीं सोच पाते कि समस्या पुरुष या उस के परिवार में भी हो सकती है. मुमकिन है कि उस के साथ अत्याचार हो रहा हो या फिर उस के बढ़ते कदमों को रोका जा रहा हो या वह वहां खुश नहीं हो. आखिर औरत हमेशा अपने आत्मसम्मान को दांव पर लगा कर रिश्ते निभाने की कोशिश क्यों करती रहे? एक बार तलाक तो फिर भी समाज द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है? मगर जब बात 2 या 3 तलाक की हो तब लोग औरतों को ही दोषी मान लेते हैं. उन के फैसले पर उंगली उठाई जाती है. श्वेता तिवारी का उदाहरण भी कुछ ऐसा ही है.

श्वेता तिवारी की 2 शादियां और तलाक

टीवी ऐक्ट्रैस श्वेता तिवारी ने भी 2 शादियां कीं, लेकिन दोनों ही शादियां उन के लिए जी का जंजाल बन गईं. पहली शादी राजा चौधरी से हुई जिस पर श्वेता ने घरेलू हिंसा के आरोप लगाए और तलाक ले लिया. राजा से इन्हें 1 बेटी पालक है. इस के बाद श्वेता ने अभिनव कोहली से दूसरी शादी की और बेटे रेयांश का जन्म हुआ. लेकिन यह शादी भी नहीं टिक पाई. अभिनव पर भी श्वेता ने घरेलू हिंसा, गालीगलौज के आरोप लगाए और अलग रहने लग गईं. मिडल क्लास फैमिली की होने की वजह से उन के परिवार ने हमेशा उन्हें शादी न तोड़ने की सलाह दी और कहा था कि एडजस्ट करो. लेकिन वे ऐसे रिश्ते में नहीं रहना चाहती थीं जिस में सम्मान न मिले.

2 शादियां टूटने के बाद लोग श्वेता को तीसरी शादी न करने की सलाह देते हैं. इस पर श्वेता का कहना है कि अगर आप 10 साल तक लिव इन रिलेशनशिप में रहें तो कोई सवाल नहीं करेगा. लेकिन आप 2 साल में शादी तोड़ दें तो लोग सवाल करेंगे कि तुम कितनी शादियां करोगी? कई लोग मु?ो यह भी सलाह देते हैं कि तुम तीसरी शादी मत कर लेना. मगर क्यों? यह मेरा डिसीजन है. मेरी लाइफ है. इंसान को दूसरी क्या 5वी शादी में भी दिक्कत हो तो उसे अलग हो जाना चाहिए.

सवाल यह उठता है कि हम भला दिक्कतों के साथ क्यों जीएं और ये नंबर्स हैं ही क्यों? आप कई अफेयर्स करें तो ठीक है फिर कई शादियां करने में दिक्कत क्यों? गलत व्यक्ति तो आप को दूसरी या तीसरी शादी में भी मिल सकता है. ऐसे में एक ही व्यक्ति के साथ बारबार समस्याओं का सामना करने से अच्छा है कोई दूसरी समस्या डिस्कवर करो. जहां भी समस्या आए तो छोड़ो और आगे बढ़ो.

क्यों न नई शुरुआत करें

दरअसल, जब औरत समझते के बजाय आजादी चुनती है तो पुरातनपंथी लोगों को बहुत कड़वा लगता है. वे औरत को दोष देने लगते हैं. मगर हकीकत में खुश रहने का हक सब को है. किसी अनहैप्पी मैरिज में बने रह कर परेशान रहने के बजाय क्या यह अच्छा नहीं कि स्त्री उस बंधन को तोड़ कर नई शुरुआत करे? तलाक के बाद जिंदगी खत्म नहीं हो जाती. वह दूसरी या तीसरी बार शादी क्यों नहीं कर सकती? उसे भी हक है कि वह अपने लिए बेहतर लाइफ पार्टनर की तलाश करे ताकि उस की जिंदगी की हर कमी पूरी हो सके. अगर ऐसा नहीं हो पाता और उसे बारबार तलाक लेना पड़ता है तो भी इस में गलत क्या है? आखिर दमघोटू माहौल में रह कर मैंटली, फिजिकली सिक होने से तो अच्छा है कि वह बेहतर औप्शन की तलाश करे. कम से कम उस के पास कोशिश करने का हक तो है ही.

अकसर लोगों को कहते सुना जाता है कि पतिपत्नी का रिश्ता तो 7 जन्मों का होता है. हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच जन्मजन्मांतरों का संबंध माना जाता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता. अग्नि के 7 फेरे ले कर और धु्रव तारे को साक्षी मान कर 2 तन और मन एक बंधन में बंध जाते हैं. हिंदू धर्म में तलाक और लिव इन रिलेशनशिप वगैरह सही नहीं माने जाते हैं. यह मान्यता दृढ़ होती है कि एक बार जिस व्यक्ति का किसी से विवाह हो जाता है तो मृत्युपर्यंत जारी रहता है और उस विवाह में पवित्रता होनी जरूरी होती है.

आंकड़े क्या कहते हैं

यही वजह है कि भारत में तलाक दर  लगभग 1.1त्न होने का अनुमान है जो पूरी

दुनिया में सब से कम है. दुनियाभर में अधिकांश तलाक महिलाओं द्वारा शुरू किए जाते हैं जबकि भारत में ज्यादातर पुरुष ही तलाक की पहल

करते हैं.

एक स्टडी भी कहती है कि दूसरी शादी में तलाक की दर पहली शादी की तुलना में 60त्न से अधिक होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर लोग तनाव में पुनर्विवाह का फैसला करते हैं जो उन्हें कभी भी खुश नहीं रहने देता है. ऐसे में अगर आप भी दूसरी शादी का विचार कर रहे हैं तो कुछ बातों पर पहले से विचार करें:

आप की मरजी या परिवार का प्रैशर

इस में कोई दोराय नहीं कि पार्टनर से अलग होने के बाद की जिंदगी किसी के लिए भी आसान नहीं होती. जिन चीजों की जिम्मेदारी पहले पतिपत्नी मिल कर उठाते थे अलग होने के बाद वह सब अकेले ही मैनेज करना पड़ता है. ऐसे में अगर आप खुद दूसरी शादी करना और पिछला सब भूल कर आगे बढ़ना चाहते हैं तो यह उचित है. लेकिन यदि केवल परिवार के प्रैशर में आ कर दूसरी शादी करने को तैयार होते हैं तो संभव है कि आप आगे चल कर एडजस्ट न कर पाएं. याद रखें परिवार या आप के दोस्त आप को दूसरी शादी के लिए मोटिवेट कर सकते हैं. लेकिन यह आप को खुद तय करना होता है कि आप अपनी लाइफ से क्या चाहते हैं.

पुरानी कड़वाहट साथ ले कर न जाएं

जब लोग पुनर्विवाह करते हैं तो अकसर पुराने रिश्ते की कड़वाहट और कुछ बातों को ले कर पूर्वाग्रह उन के दिलोदिमाग में कायम रहते हैं जो किसी भी नए रिश्ते को मजबूत बनने से रोकने के लिए काफी हैं. इसी तरह अगर आप अभी भी अपने एक्स की यादों से घिरे हुए हैं तो ये कभी आप को नए रिश्ते में बंधने नहीं देंगी. इसलिए खुद को थोड़ा समय दें.

दरअसल, जब हम किसी रिश्ते में अपना 100त्न देते हैं और अचानक से वह रिश्ता खत्म हो जाता है तो वहां कौन्फिडैंस, ऐक्सपैक्टेशंस और सोचनेसम?ाने की क्षमता न के बराबर रह जाती है. ऐसे में सब से जरूरी यही है कि कोई भी फैसला लेने से पहले खुद को थोड़ा समय दें. सोचसम?ा कर फैसला लें और फिर पूरी कोशिश करें कि यह रिश्ता सफल हो जाए.

सोचसमझ कर लें फैसला

दूसरी शादी में डर का होना लाजिम है. लेकिन आप को अपने पार्टनर से अपने विचारों और इच्छाओं को व्यक्त करना होगा. बताना  होगा कि जिंदगी से और लाइफपार्टनर से आप की क्या उम्मीदें हैं. बहुत से लोग अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं जिस की वजह से भी वे दूसरी शादी करने पर विचार करते हैं. हालांकि ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि बिना सही सोचविचार किए पुनर्विवाह से आप की परेशानी कम होने वाली नहीं है.

नए रिश्ते के लिए ईमानदारी

किसी भी नए रिश्ते में बंधने के लिए ईमानदारी का होना बेहद जरूरी है. अगर आप नए रिश्ते की शुरुआत करने की सोच रहे हैं तो खुद से सवाल करिए कि क्या आप वाकई में बच्चों की जिम्मेदारी से ले कर पार्टनर की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए तैयार हैं? पिछले रिश्ते में कहां क्या गलती हुई, इसे जितना खुल कर आप अपने साथी से डिसकस करेंगे उतना ही आप अपने पार्टनर से जुड़ाव महसूस करेंगी.

किन हालात में महिलाओं के लिए तलाक ही अच्छा है

हमारे देश में लड़की और शादी को इस तरह से लिया जाता है जैसे लड़की का जन्म ही शादी करने के लिए हुआ हो. शादी के बंधन में बंध कर ही उस का जीवन सार्थक होता है और ऐसे में अगर वह तलाक ले ले तो यह उस की जिंदगी की एक बड़ी असफलता समझ जाता है. तलाकशुदा महिला को शादीशुदा जितना सम्मान नहीं मिलता. तलाक के बाद महिला मातापिता पर बोझ समझ जाती है. उस के नाम से डिवोर्सी का टैग जुड़ जाता है. तलाक के बाद अलग तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं इसलिए महिलाएं अपनी शादी को हर तरह से निभाने की कोशिश करती हैं. मगर किसी भी चीज की सीमा होती है. इन स्थितियों पर तलाक लेना ही बेहतर है:

दहेज की मांग की जा रही हो: अगर शादी के बाद भी आप को दहेज के लिए बातें सुनाई जाती हैं, रातदिन ताने दिए जाते हैं और आप को नीचा दिखाया जाता है तो ऐसे घर में रहना उचित नहीं. दहेज के लोभियों का क्या भरोसा कब वे हिंसक हो उठें और आप की जान पर बन आए. वैसे दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनी जुर्म हैं. फिर भी हमारे समाज में दहेज का लालच खत्म नहीं हुआ है. कई दफा दहेज के बिना शादी तो हो जाती है, लेकिन पैसों की मांग शादी के बाद होती है. लड़की पर दबाव बनाया जाता है कि वह अपने घर से पैसे लाए और जब ऐसा नहीं होता तो उस पर अत्याचार किए जाते हैं. शादी बचाने और मातापिता की इज्जत का खयाल कर लड़कियां सब सहती हैं. मगर याद रखें जिस घर में इंसान से ज्यादा पैसे को अहमियत दी जाए वहां आप सुरक्षित नहीं.

घरेलू हिंसा की जा रही हो: अगर शादी के बाद अगर आप के साथ किसी भी प्रकार की हिंसा मसलन मारपीट, यौन शोषण या गालीगलौज की जा रही है तो आप को बिना समय गंवाए तलाक का फैसला ले लेना चाहिए. याद रखें शादी कर के पति पत्नी का मालिक नहीं हो जाता. किसी को यह हक नहीं कि आप पर हाथ उठाए. बहुत सी महिलाएं सालों मारपीट सहती हैं. मगर ऐसी जिंदगी का क्या फायदा? घुटघुट कर जीने और रोज मरने से अच्छा है अलग हो जाना.

बेइज्जती की जाती हो: शब्दों के तीर अकसर बहुत गहरे जख्म देते हैं. अगर घर में महिला के साथ दुर्व्यवहार हो रहा हो, पति खुद गलती मानने के बजाय हर बात के लिए पत्नी को ही दोषी ठहराए, उस की कीमत न समझे, उसे हलके में ले, उस के काम को अहमियत न दे, उस पर बारबार चिल्लाए, गाली दे, नीचा दिखाए तो इस रिश्ते को तोड़ देना ही बेहतर है. रोजरोज की मानसिक प्रताड़ना झेल कर कोई खुश नहीं रह सकता. बेहतर है कि अलग हो जाएं.

पति बेवफा हो: अगर किसी महिला को यह पता चलता है कि उस के पति का किसी और के साथ अफेयर है तो एक बार तो वह खुद को समझ कर पति से अपने प्यार की दुहाई देगी. ऐसे में अगर पति अपनी गलती मान कर उस औरत से मिलना छोड़ दे तो बात संभल जाती है. अकसर लड़के घर वालों के दबाव में आ कर शादी तो कर लेते हैं, लेकिन शादी के बाद भी वे अपने प्यार से अलग नहीं हो पाते. कई बार पति अपनी पत्नी से बोर हो कर भी बाहर खुशियां ढूंढ़ता है. ऐसे रिश्तों में बहुत कोफ्त होती है. बेवफाई रिश्तों के भरोसे को खत्म कर देती है और कोई भी रिश्ता बिना भरोसे के चल नहीं सकता. इसलिए महिला के लिए बेहतर यही होता है कि वह ऐसे रिश्ते से अलग हो जाए.

जब रिश्ते में केवल नकारात्मकता हो: अगर आप को पति के साथ नकारात्मकता महसूस होने लगे, आप दोनों हर बात पर झगड़ने लगें और पति का करीब आना भी आप को बरदाश्त न हो तो जाहिर है ऐसा रिश्ता अंदर से खोखला हो चुका होता है. अगर आप को लगता है कि आप के पास अपने साथी से जुड़ी नकारात्मक बातें सकारात्मक बातों की तुलना में ज्यादा हैं तो आप को तलाक की जरूरत है.

 ये 3 कारण बनते हैं कपल्स के बीच तलाक की मुख्य वजह

‘जर्नल औफ सैक्स ऐंड मैरिटल थेरैपी’ में प्रकाशित एक शोध में कपल्स के बीच तलाक की मुख्य वजहों को जानने की कोशिश की गई. इस के लिए 2371 लोगों को शामिल कर उन से कुछ सवाल पूछे गए और उस आधार पर तलाक के कारण बताए गए:

कम्युनिकेशन गैप: ज्यादातर कपल्स में तलाक का कारण कम्युनिकेशन गैप होता है. रिसर्च के अनुसार 44त्न रिलेशनशिप में डिवोर्स का कारण कम्युनिकेशन गैप होता है. दरअसल, बातचीत से ही रिश्तों में मधुरता आती है और मतभेद दूर किए जाते हैं. संवाद की कमी रिश्ते को खोखला कर देती है.

रिश्ते में इंटिमेसी की कमी: रिसर्च में शामिल लगभग 47त्न प्रतिभागियों का कहना था कि लो इंटिमेसी के चलते उन का तलाक हुआ है. इंटिमेसी की कमी सिर्फ उम्रदराज कपल्स में ही नहीं बल्कि युवाओं में भी होती है, जिस का कारण तलाक के रूप में दिख रहा है. इस के पीछे तनाव, खराब खानपान और अनियमित दिनचर्या जैसे कई कारण जिम्मेदार हैं.

पार्टनर के लिए सम्मान, भरोसे या सहानुभूति का अभाव: शोध में शामिल करीब 34त्न महिलाओं ने अपने पति से इन 3 चीजों के अभाव का दावा किया, जिन के चलते उन में से कुछ महिलाओं ने अपने पति से तलाक ले लिया और कुछ ने दूसरी शादी कर ली.

दूसरी शादी करने से पहले खुद से पूछें कुछ सवाल: प्यार, सम्मान, मुसकान, भावनात्मक जुड़ाव, विश्वास और जीवन भर के साथ का इरादा एक शादीशुदा रिश्ते में इन बातों का होना बेहद जरूरी है. कुछ कपल्स जहां जिंदगी में आए हर उतारचढ़ाव को पार करते हुए आगे बढ़ते रहने का प्रयास करते हैं तो कइयों का साथ बीच में ही छूट जाता है. जब प्यार की डोर कमजोर होती है तो जिंदगी की मुश्किलें और गलतफहमियां बड़ी आसानी से रिश्ते में दरार ले आती हैं. इस तरह जब भी कोई रिश्ता टूटता है तो वे सपने भी टूट जाते हैं जिन्हें दोनों ने मिल कर संजोया था.

शादीशुदा रिश्ते के बिखर जाने के बाद जिम्मेदारियों का बो?ा न केवल एक इंसान पर आ जाता है बल्कि कठिन राहों में अकेले आगे बढ़ना भी मुश्किल लगने लगता है. ऐसे समय में ज्यादातर लोग दोबारा शादी करने का विचार करते हैं. मगर अकसर दूसरी या तीसरी शादी करने से पहले व्यक्ति के मन में थोड़ी असमंजस की स्थिति होती है क्योंकि उसे पता नहीं होता है कि इस शादी का परिणाम क्या होगा. उसे डर रहता है कि कहीं पहले की तरह यह रिश्ता भी दर्द की सौगात दे कर खत्म न हो जाए.

दीक्षा डगर: बांए हाथ से दुनिया मुट्ठी में

अपनी कमी को कोई अगर अपनी ताकत बना ले तो फिर उसका नाम दीक्षा डगर ही हो सकता है. दीक्षा ने जहां परिवार का नाम रोशन किया है वही देश का परचम भी अनेक दफा लहराया है. दीक्षा जन्मजात श्रवण बाधित है मगर उसने अपनी कमी को अपनी कमजोरी कभी नहीं माना  और ऐसा मुकाम हासिल किया है जो शारीरिक अक्षमता से घिरे अवसाद ग्रस्त लोगों के लिए एक नजीर है.

आइए आज आपको हम मिलाते हैं हरियाणा में झज्जर की रहने वाली प्रतिभाशाली गोल्फ खिलाड़ी दीक्षा डागर से. जिन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए  अपना दूसरा ‘लेडीज यूरोपीय टूर’ खिताब जीत लिया है. तेईस वर्षीय दीक्षा डागर ‘टिपस्पोर्ट चक लेडीज ओपन में चार शाट की जीत के साथ खिताब अपने नाम कर इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करा लिया.

दीक्षा डागर के बारे में आपको हम   बताते चले कि आप बाएं हाथ से खेलती है . और पहले पहल मात्र 19 वर्ष की उम्र में  2019 में एलईटी खिताब जीता था लंदन- में वह अरेमैको टीम सीरीज में विजयी टीम का हिस्सा रही. अब तक आप दो व्यक्तिगत खिताब के अलावा नौ बार शीर्ष दस में आ चुकी हैं।l. इनमें में चार बार तो वर्तमान सीजन में ही किया है.

हाल की खिताबी दौड़ में दीक्षा ने दिन की शुरुआत पांच शाट की बढ़त के साथ की थी. अंतिम राउंड में  69 का स्कोर किया और हफ्ते में सिर्फ एक बार ही बोगी लगी. मजे की बात यह है कि केवल पहला और अंतिम शाट ड्राप किया. दीक्षा की थाईलैंड की ट्रिचेट से टक्कर थी. और अंतिम दिन नाइन शाट से शुरुआत की थी. खेल के दिन  दीक्षा शानदार लय में थीं. ट्रिचेट दूसरे स्थान पर रहीं, जबकि फ्रांस की सेलिन हचिन को तीसरा स्थान मिला. रावल विरोन क्लब में हवाओं के बीच भी अच्छा प्रदर्शन किया. वह इस हफ्ते 2021 में यहां संयुक्त चौथे स्थान पर रहीं थी.

दीक्षा डागर भारत की दूसरी महिला गोल्फर हैं, जिसने एलईटी टूर पर खिताब जीता है. इससे पहले अदिति अशोक ने 2016 में इंडियन ओपन जीता था. दीक्षा डागर ने पहला खिताब मार्च 2019 में दक्षिण अफ्रीकी ओपन के रूप में जीत दर्ज की थी . दीक्षा दो बार डेफलपिक (बधिरों के लिए ओलंपिक) में दो बार पदक जीत चुकी हैं. 2017 में रजत पदक और 2021 में स्वर्ण पदक हासिल किया था। उसके बाद उन्होंने तोक्यो ओलंपिक में भाग लिया और ऐसी पहली गोल्फर बनीं, जिसने डेफ ओलंपिक और मुख्य ओलंपिक दोनों जगह हिस्सा लिया. उन्होंने 2018 एशियाई खेलों में भी शिरकत की थी.

दीक्षा डागर को जन्म से ही सुनने में दिक्कत है. वह छह साल की उम्र से ही मशीन की मदद से सुनती रही हैं. उनके भाई योगेश डागर भी बहरेपन की समस्या से ग्रसित हैं. मानो अपनी अदम्य जिजीविषा से दीक्षा ने बहरेपन की चुनौतियों पर काबू पा लिया और महिला गोल्फ में अपना नाम कमाने के लिए ज्यादातर लिप- रोडिंग या साइन लैंग्वेज का सहारा लिया. परिजन बताते हैं कि जब वह कुछ महीने की थी, तब बहरेपन के संकेत मिले थे. वह आवाज का जवाब नहीं दे पाती थी.

इस बीच चिकित्सा तकनीक में भी सुधार हुआ था. पूर्व स्क्रैच गोल्फर रहे उनके पिता कर्नल नरेन्द्र डागर ने उन्हें गोल्फ की शुरुआती बारीकियां सिखाई.  आखिकार दीक्षा ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया और सफलता के झंडे गाड़ दिए .माता-पिता ने हमेशा सुनने की अक्षमता को गंभीरता से न लेने में उनकी मदद की.  पिता नरेंद्र अपने दोनों बच्चों को एक सामान्य जीवन देने के लिए दृढ़ थे.

उन्होंने सोचा कि खेल उनके  आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करेगा. ऐसे में उनके परिवार ने उनकी पढ़ाई को लेकर ज्यादा चिंता नहीं की. क्योंकि, वह टेनिस, तैराकी और एथलेटिक्स में वह पारंगत हो गई थी. और दीक्षा ने दिखा दिया कि बाएं हाथ से भी वह कैसे कमाल दिखा सकती

राजनीति भी व्यवसाय

विरासत की राजनीति भारतीय जनता पार्टी का एक लुभावना नारा है जिस में कम पढ़ेलिखों को तो छोडि़ए, अच्छे पढ़ेलिखे भी फंस जाते हैं. राजाओं के जमाने में राजा का बेटा ही राजा बने का सिद्धांत था. लोकतंत्र में यह गलत है पर जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी की राजनीति को विरासत की राजनीति ठहराने के साथ इसे लोकतंत्र पर धब्बा बता कर वोट बटोरे जा रहे हैं.

अगर भारतीय जनता पार्टी की रगों में कहीं भी लोकतंत्र के प्रति आस्था होती तो इस आरोप में दम होता. भारतीय जनता पार्टी ने अपनी राजनीति न लोकतंत्र की भावनाओं पर खड़ी की है, न बराबरी के सिद्धांत पर और न ही स्वतंत्र विचारों की रक्षा पर. उस ने अपनी राजनीति पूरी तरह राममंदिर के नाम पर खड़ी की है. राम जन्म स्थल का नाम ले कर एक आंधी उड़ाई है जिस में जनता को पूरी तरह से सफलता से बहकाया गया है.

अगर राम जन्म स्थल ही भाजपा का मुख्य उद्देश्य व लक्ष्य है तो भाजपा कैसे विरासत की राजनीति के विरोध की बात कह सकती है? राम का जन्म अगर अयोध्या के बड़े राजा दशरथ के महल में हुआ था और राजा दशरथ के पुत्र होने के बाद उन्हें राजसिंहासन मिलना तय था तो इसे लोकतंत्र के लिए कैसे आदर्श कहा जा सकता है? जब राजमहल की राजनीति (आश्चर्य है कि सतयुग में इस तरह की राजनीति थी) के कारण राम को गद्दी पर अधिकार छोड़ना पड़ा तो वह छोटे भाई भरत को मिला, किसी अन्य जनता के चुने प्रतिनिधि को नहीं.

ठीक है, उस काल में संविधान जैसी कोईर् चीज नहीं थी, वोटिंग नाम की बात नहीं थी, लेकिन बात आज की हो रही है कि उसी जबान से विरासत को कोसा जाता है और फिर राज्य के वारिस दशरथ पुत्र राम का गुणगान ही नहीं किया जाता, बल्कि उन के लिए मरनामारना भी ठीक माना जाता है. अयोध्या के मंदिर के नाम पर तो हजारों जानें गईं, अब हर साल रामनवमी पर कुछ जानें चली जाती हैं, क्यों, एक वारिस की महत्ता को आज भी कायम रखने के लिए?

कांग्रेस की यह बड़ी गलती है कि उस ने किसी और नेता को पनपने नहीं दिया. मोरारजी देसाई, कामराज, नारायण दत्त तिवारी, शरद पवार, ममता बनर्जी, जगन रेड्डी आदि सैकड़ों उभरते नेताओं को अपनी पार्टियां बनानी पड़ीं जिन में से कुछ तो नष्ट हो गईं, कुछ भारतीय जनता पार्टी में चली गईं तो कुछ बाहर रह कर गुलाम नबी आजाद की तरह कांग्रेस की जड़ों में तेजाब डालती रहती हैं.

विरासत की राजनीति को चुनावी हथकंडा बनाना भारतीय जनता पार्टी के लिए दोमुखी बात करना है. यह बात कांग्रेस छोड़े नेता कह सकते हैं लेकिन राम और कृष्ण के भक्त नहीं कह सकते क्योंकि इन के भगवानों को नाम का स्तर पारिवारिक विरासत के विवाद के कारण मिला. कृष्ण भी विरासत में मिले. राज के बंटवारे में मुख्य पात्र थे वे.

राजनीति में विरासत की कोई जगह नहीं है पर यह सही है कि राजनीति जिन घरों में रोज चर्चा का हिस्सा होती है वहां के बच्चे स्वाभाविक तौर पर इस में कूद पड़ते हैं. हर देश में यह हो रहा है. राजनीति भी दूसरे व्यवसायों की तरह है जिस में बचपन की ट्रेनिंग बहुत काम आती है.

लड़कियों पर हावी क्यों फिगर फोबिया

कई वर्षों से सिनेमा, टीवी और मौडलिंग के बढ़ते दबाव की वजह से सौंदर्य के मानदंड तेजी से बदलने लगे हैं. साफ शब्दों में कहा जाए तो आजकल जरूरत से ज्यादा खूबसूरत दिखने की अनर्गल चाहत, ऊपर से फैशन का अनावश्यक दबाव और उस पर खुले बाजार की मार ने यहां बहुतकुछ बदल डाला है.

सौंदर्य की इस मौजूदा परिभाषा से इत्तफाक रखने वाले भी इस सचाई को स्वीकार करने लगे हैं कि फिगर का यह फोबिया कई तरह की मुसीबतों को जन्म देने लगा है. सौंदर्य में नए अवतार जीरो फिगर की चाहत युवतियों के दिलोदिमाग पर इस हद तक हावी है कि वे सौंदर्य ही नहीं, अपने स्वास्थ्य को भी दांव पर लगा रही हैं.

नकल में माहिर होती युवा पीढ़ी को अब इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि कल तक प्रीति जिंटा, रानी मुखर्जी और काजोल जैसी गोलमटोल व गदराए यौवन की मल्लिकाएं लोगों की पहली पसंद हुआ करती थीं. आज तो जिसे देखो वही दिशा पाटनी, अनन्या पांडे, आलिया भट्ट और दीपिका पादुकोण जैसी फिगर पाना चाहती हैं.

टीवी, सिनेमा और मौडलिंग की इस भेड़चाल पर टिप्पणी करते हुए मशहूर मौडल और मिस चंडीगढ़ रह चुकीं दिशा शर्मा ने कहा कि करीना कपूर की फिल्म ‘टशन’ जैसी फिगर प्राप्त करने के लिए अब कालेजगोइंग युवतियां ही नहीं, बल्कि नवविवाहिता और कईकई बच्चों की मांएं भी डाइटिंग के साथसाथ जिस प्रकार ऐंटीबायोटिक दवाएं गटक रही हैं, उस ने उन के सामने कई तरह की शारीरिक समस्याएं खड़ी कर दी हैं.

दरअसल भारत में जीरो फिगर की गपशप पहली बार करीना कपूर ‘टशन’ फिल्म से ले कर आई थीं. इस फिल्म में करीना कपूर ने तोतिया रंग की सैक्सी बिकिनी पहनी थी. उस सीन को समुद्र में फिल्माया गया. इस के बाद से ही बड़े जोरशोर से जीरो फिगर यानी सैक्सी दिखना सम?ा गया. हाल में दीपिका पादुकोण ने भी फिल्म ‘पठान’ में बिकिनी पहनी. वह तो बवाल भगवा बिकिनी पर मच गया, वरना जिस करीने से दीपिका पादुकोण की फिगर को फिल्माया गया उस ने यंग लड़कियों के दिमाग में जरूर रश्क पैदा किया होगा.

आज जितने भी फैशन शो होते हैं वहां जीरो फिगर वाली मौडल ही रहती हैं. हालांकि कई पश्चिमी देशों ने जीरो फिगर वाली मौडल्स की प्रतियोगिताओं और फैशन परेडों के इतर ऐसी मौडल्स के लिए भी प्रतियोगिताएं आयोजित करनी शुरू की हैं जो चरबीयुक्त हैं. लेकिन इस के बावजूद जीरो फिगर आज युवतियों के सिर चढ़ कर बोल रहा है.

समस्या यह है कि इस से मासिकधर्म में गड़बड़ी, सिर चकराने और पेट में जलन होने की शिकायतें देखी गई हैं लेकिन बाजारवाद ने जीरो फिगर को इस हद तक लोकप्रिय बना दिया है कि तमाम समस्याओं के बावजूद यह ट्रैंड में रहता है.

जीरो फिगर की अवधारणा

सौंदर्य के मानक हर समय और स्थान के अनुरूप कभी स्थायी नहीं होते. जीरो फिगर 32-22-34  के नाम में परिभाषित है. इस में छाती 32 इंच, हिप 34 इंच और कमर की माप 22 इंच है, जो आमतौर पर किसी 8-9 साल की बच्ची का होता है.

इसी साइज को मौडलिंग और सौंदर्य प्रतियोगिता की दुनिया में मुफीद माना जाता है. हलकी और छरहरी काया की प्राप्ति के लिए कम से कम भोजन कर के मौडलिंग के क्षेत्र में जमी लड़कियों की मजबूरी को तो समझ जा सकता है मगर आजकल इस के लिए लड़कियों का मकसद युवाओं को आकर्षित करना भी है. भले ही इस के लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़े.

आजकल कमर ही क्यों, चेहरे पर चरबी की जरा सी भी परत जमा न हो, इस के लिए अब कौस्मेटिक सर्जरी के अलावा भी बहुत से विकल्पों का इस्तेमाल किया जा रहा है. चंडीगढ़ स्थित एक जिम की संचालिका कहती हैं, ‘‘केवल फिगर की दीवानगी में शरीर को कंकाल बनाना सम?ादारी की बात नहीं है. यह एक जनून है और हद से गुजर जाने के बाद यही चाहत आगे चल कर मानसिक बीमारी बन जाती है.’’

बेकाबू हो रही है ग्लैमर की स्थिति

ग्लैमरस फिगर वैसे तो हर औरत की चाहत होती है लेकिन जीरो फिगर की चाहत में युवतियां जिस प्रकार संतुलित आहार तक को नजरअंदाज कर रही हैं, वह अत्यंत घातक है. इस से शरीर में पौष्टिक तत्त्वों की कमी से पाचनतंत्र भी कमजोर पड़ जाता है, जिस से इंसान की भूख मर जाती है.

इस से एनोरौक्सिया की चपेट में आने पर चक्कर आना, बेहोशी के दौरे पड़ने की संभावना भी बढ़ जाती है. साथ ही, इस से गर्भाशय की समस्या और हड्डियों के कमजोर होने का भी खतरा बना रहता है.

औरत के शरीर को रोज औसतन 1,500 से 2,500 कैलोरी की जरूरत होती है लेकिन जब यह घट कर 1,200 रह जाती है तो शरीर अंदरूनी हिस्सों और हड्डियों से इस कमी को पूरा करना शुरू कर देता है, जोकि स्वास्थ्य के लिए काफी बुरा संकेत है.

समय से पहले बुढ़ापे को आमंत्रण

फिगर को मैंटेन रखने का दबाव मौडलिंग, एंकरिंग और अभिनय से जुड़ी युवतियों पर रहने की बात तो फिर भी समझ में आती है लेकिन शादी की तारीख नजदीक आते ही विवाह की तैयारियों में जुटी युवतियां भी जीरो फिगर की गिरफ्त में आए बिना नहीं रहतीं.

शादी से ठीक पहले कमर को पतला करने का क्रेज युवतियों के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी होता है कि इस के लिए वे 15 से 16 किलोग्राम वजन कम कर लेती हैं. 18 से 25 साल के आयुवर्ग की युवतियों में यह प्रवृत्ति सर्वाधिक देखने को मिलती है.

हाल ही में वेटवाचर पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वे में कहा गया है कि युवतियां भूख मार कर भले ही छरहरे बदन की मल्लिकाएं बन जाएं मगर थोड़े समय बाद उन का रूप प्रौढ़ औरत जैसा दिखाई देने लगता है. वे उम्र से पूर्व ही बड़ी दिखाई देने लगती हैं. सच तो यह है कि भरे गाल और मांसल देह वाली औरत बड़ी उम्र में भी ज्यादा युवा दिखाई देती है.

डाइटिंग के साइड इफैक्ट

आमतौर पर महिलाएं पतली होने के लिए डाइटिंग पर फोकस करती हैं. मशहूर महिला रोग विशेषज्ञ डा. सुषमा नौहेरिया की राय में वजन कम करने और फिर खुद को संतुलित रखने के लिए जौगिंग, व्यायाम का सहारा लेना डाइटिंग और वजन घटाने वाली दवा लेने से कहीं बेहतर है.

अत्यधिक डाइटिंग से समूचे शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है, मसलन, उपवास की स्थिति से शरीर में पाचक तत्त्वों का संचार कम होने से इंसान की पाचनशक्ति क्षीण हो जाती है, जिस से लिवर और मांसपेशियों पर बुरा असर पड़ता है. कुछ मामलों में हार्मोन असंतुलन की वजह से युवतियों में मासिकधर्म भी अनियमित होता देखा गया है. अत्यधिक व्यायाम या जिम जाने से शरीर में पानी की कमी के साथसाथ चेहरे पर झुर्रियां और आंखों के नीचे काले घेरे भी नजर आने लगते हैं.

यह अन्याय है

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर बनाना और पत्नी से छिपा कर रखना अब और मुश्किल होता जा रहा है. वैसे ही हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैंहर जगह आईडी पूछी जाती है. हर जगह भीड़ उमड़ी रहती है और ऊपर से प्यार के दुश्मन दिल्ली हाई कोर्ट के जज कहते हैं कि अगर पति पर शक है तो पत्नी किसी होटल का रिकौर्ड मांग सकती है.

एक ऐडल्ट्री के मामले में पत्नी ने पति की जयपुर यात्रा के दौरान एक होटल से गैस्टों का रिकौर्ड और सीसीटीवी फुटेज मांगी पर होटल ने गैस्ट की राइट टू प्राइवेसी’ के नाम पर देने से इनकार कर दिया. दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि हिंदू मैरिज ऐक्ट के अंतर्गत ऐडल्ट्री मैट्रीमोनियल औफैंस है और उस के लिए सुबूत जुटाने का हक पत्नी को है. उस ने आदेश दिया है कि पति और उस की प्रेमिका की कौल रिकौर्डहोटल स्टे रिकौर्डसीसीटीवी फुटेज दिलवाई जाए ताकि वह साबित कर सके कि पति ऐडल्ट्री का गुनहगार है.

यह अन्याय है. प्रेमियों को मिलने देने का हक नहीं छीना जा सकता चाहे प्रेमियों में से एक या दोनों पहले से विवाहित ही क्यों न हों और वे विवाह तोड़ना नहीं चाहते हों. घर की रसोई का उबाऊ खाना बाहर के ठेले वाले के खाने से भी घटिया लगने लगे तो भला खाने वाले का क्या दोष. बेकार में हाई कोर्ट पति के प्रेम को अपराध बता रहा है. उन्हें प्रेम से जीने का हक पति को देना चाहिए. हम तो कहेंगे कि पत्नी को फटकार लगे कि तुम में क्या कमी हो गई कि पति बाहर जा रहा है और इतना बड़ा रिस्क ले रहा है और मोटे पैसे दे रहा है.

घर के सुगंधित बिस्तर की जगह इंपर्सनल होटलों के कमरों में प्रेमिका से रोमांस आखिर कितने दिन भाएगा. घर का कुत्ता 2-4 दिन बाहर लगा कर लौट ही आएगा का सिद्धांत भूलना नहीं चाहिए.

पत्नी भी मूर्ख है कि ऐडल्ट्री साबित करने के चक्कर में अपनी पोल खोल रही है कि पति को उस में कोई आकर्षण नहीं दिख रहा है और वह किसी और के चक्कर में शहरशहर मारा फिर रहा है. यह बेहद शर्मनाक है. हर प्रेमी को सम्मानजनक जगह मिलनी ही चाहिए और पत्नी या पुलिस डंडा घुमाते घूमे यह बिलकुल इजाजत नहीं होनी चाहिए.

पतिपत्नी के वादों का क्यावादे तो तोड़ने के लिए होते हैं. प्रधानमंत्री कहते रहे हैं कि हरेक की जेब में 15 लाख आएंगे. आए क्यापंडितमौलवी कहते रहते हैं कि ईश्वरअल्लाह छप्पर फाड़ कर देंगे. दिया क्याअब उन के खिलाफ क्या कर सकते हैंकुछ नहीं नतो वादे तोड़ने वाले पति के पीछे क्यों लट्ठ ले कर फिरे हो?

भईजो किक छिपछिपा कर प्रेम करने में मिलती है वह शादीशुदा पत्नी से प्रेम में कहां मिलेगी. बुरा हो कानूनबाजों का जो वे पतियों का जीना हराम कर रहे हैं.               

जानें प्रदूषण के बारे में क्या कहती हैं स्मिता कनोडिया, क्षेत्रीय अधिकारी- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

धरती पर वायु, जल और ध्वनि का जितना संतुलन रहेगा, उतना ही हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा. मगर यह बड़े अफसोस की बात है कि हम जैसेजैसे आधुनिकता की तरफ बढ़ रहे हैं, पर्यावरण पर प्रदूषण का प्रकोप उतना ही ज्यादा होता जा रहा है.

केंद्र और राज्य सरकारें भी प्रदूषण को रोकने के लिए अपने स्तर पर कई तरह के काम करती हैं. ऐसे में लोगों को यह जानने का हक है कि प्रदूषण क्या बला है और यह हमारी धरती को किस तरह नुकसान पहुंचाता है? इसी सिलसिले में हरियाणा प्रदूषण बोर्ड फरीदाबाद की क्षेत्रीय अधिकारी स्मिता कनोडिया से बातचीत की गई. पेश हैं, उसी बातचीत के खास अंश:

लोगों को आसान शब्दों में यह कैसे समझया जाए कि प्रदूषण क्या है और

यह कितने तरीके का होता है?

पर्यावरण में होने वाला हर वह बदलाव जिस का धरती पर मौजूद जीवों पर बुरा असर पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है. चूंकि ऐसे जहरीले तत्त्व हवा, पानी और भूमि की क्वालिटी को खराब करते हैं, इसलिए जल, वायु और ध्वनि ये 3 प्रकार के प्रदूषण हमें सब से ज्यादा प्रभावित करते हैं.

भूमिगत जल प्रदूषण किस कारण से होता है?

इसे प्रदूषण का चौथा प्रकार कहा जा सकता है. हमारे घरों, कारखानों, अस्पतालों आदि से निकलने वाला कचरा भूमिगत जल को खराब करने की सब से बड़ी वजह है. यही ठोस कचरा जमीन के रास्ते धरती के भीतर जा कर भूमिगत पानी को खराब कर देता है.

फरीदाबाद और गुरुग्राम का ऐसा ठोस कचरा बंधवाड़ी लैंडफिल मैनेजमैंट साइट पर जमा किया जाता है. अगर शहरों का ऐसा कचरा ट्रीट किया जा रहा है, तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाता है, तो वह कचरा धीरेधीरे जमीन के पानी को प्रदूषित कर देता है, जो एक खतरे की घंटी है.

कहने को लैंडफिल साइट पर घरों का कचरा ही जमा होता है, पर उस में प्लास्टिक, पौलिथीन, टूटे थर्मामीटर, बैटरी, कांच आदि भी होते हैं, जो बहुत खतरनाक होते हैं. प्लास्टिक की लाइफ 100 साल तक होती है. ऐसी चीजों का अगर वैज्ञानिक तरीके से निबटान न किया जाए, तो भूमिगत पानी पर बहुत बुरा असर डालती हैं, तभी तो बड़ीबड़ी फैक्टरियों, कारखानों आदि में ट्रीटमैंट प्लांट्स लगाने के आदेश दिए जाते हैं और उन्हें काम के हिसाब से ग्रीन, ह्वाइट, औरेंज और रैड कैटेगरी में बांटा जाता है. जो लोग नियमों का पालन नहीं करते हैं, उन पर कड़ी कार्यवाही तक की जाती है.

कैमिकलयुक्त वेस्ट वाटर को ट्रीट करने के बाद ही फैक्टरी वाले उसे सीवर में डाल सकते हैं. अगर कोई रैड कैटेगरी की फैक्टरी किसी भी तरह के कानून का उल्लंघन करती पाई जाती है, तो उस पर 12,500, औरेंज कैटेगरी पर 7,500 और ग्रीन कैटेगरी पर 5,000 रुपए प्रतिदिन का जुरमाना लगता है.

इसी तरह कोई इंडस्ट्री पर्यावरण में विषैला धुआं छोड़ती है तो उसे नियंत्रित करने के लिए एअर पौल्यूशन कंट्रोल डिवाइस लगाने होते हैं. इस के बाद ही चिमनी से धुआं बाहर छोड़ा जा सकता है.

गांवदेहात में खेत में पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण कैसे नुकसानदायक होता है?

पराली को खेत में जलाने के अलग नुकसान हैं. इस से धरती की ऊपरी परत खराब हो जाती है, जो सब से ज्यादा उपजाऊ मानी जाती है. धुएं से पर्यावरण तो खराब होता ही है, सांस से संबंधित बीमारियां होने का खतरा भी बना रहता है.

प्रदूषण से जुड़े सरकारी महकमे कैसे प्रदूषण की रोकथाम पर काम करते हैं?

दरअसल, हमारा विभाग एक मौनिटरिंग एजेंसी है. हम दूसरे विभागों से तालमेल करते हैं ताकि पर्यावरण से जुड़ी समस्याएं समय रहते दूर की जा सकें.

निर्माण क्षेत्र के हिसाब से सरकार द्वारा ऐंटीस्मोग गन लगाने के दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. अगर कोई बिल्डर 5000 स्क्वेयर मीटर के एरिया में एक ऐंटीस्मोग गन लगा कर काम करता है तो पौल्युशन कम होता है.

सरकार ने अपनी तरफ से भी ऐंटीस्मोग गन लगवाई हैं. इस के अतिरिक्त मशीनीकृत ?ाड़ू भी लगवाई जाती है. अगर किसी इलाके में काफी कंस्ट्रक्शन हो रहा है और उस एअर क्वालिटी खराब हो कर 300 के मानक से ऊपर पहुंच जाए तो फिर कंस्ट्रक्शन के सारे काम रुकवा दिए जाते हैं.

लोगों को किस तरह इस समस्या के प्रति जागरूक किया जा सकता है?

कार पूलिंग करनी चाहिए. ज्यादा गाडि़यां चलेंगी तो प्रदूषण ज्यादा होगा और ट्रैफिक जाम की समस्या भी बढ़ेगी. इस से वायु और ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है. यातायात सार्वजनिक परिवहन जैसे बस, मैट्रो आदि का इस्तेमाल करें. लोगों की जागरूकता ही प्रदूषण को कम करने का आसान हल है.

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