फ्लर्ट से जिंदगी में नया मजा

‘‘मेरा पति मुझे प्यार करता है, मेरी पूरी इज्जत करता है, मेरा पूरा ध्यान रखता है, इस बात का विश्वास दिलाता है कि वह मुझे धोखा नहीं देगा, विश्वासघात नहीं करेगा, लेकिन अपने मन की बहुत सी बातें मुझ से शेयर करता हुआ वह यह भी कहता है कि वह अन्य औरतों की ओर आकर्षित होता है. ‘‘यह बात मुझे हैरान भी करती है और परेशान भी. हैरान इसलिए कि वह मुझे अपने मन की सचाई बता रहा है, लेकिन वह शादीशुदा होते हुए अन्य महिलाओं की ओर आकर्षित कैसे हो सकता है, यह बात मुझे परेशान करती है.’’ वैवाहिक संबंधों की एक सलाहकार के सामने बैठी महिला उन्हें यह बता कर अपनी समस्या का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास कर रही है. मैरिज काउंसलर का इस बारे में कहना है, ‘‘मुझे पता है कि किसी भी पत्नी के लिए अपने पति का अन्य महिलाओं की ओर आकर्षित होना परेशानी व ईर्ष्या का विषय है. पत्नी के लिए यह मानसिक आघात व पीड़ादायक स्थिति होती है.

‘‘लेकिन पति आप से अपने इस आकर्षण के बारे में बात करता है, तो वह सच्चा है, आप के प्रति ईमानदार है. इस के विपरीत वे पुरुष, जो अन्य महिलाओं की तरफ आकर्षित होते हैं, उन से रिश्ता रखते हैं, लेकिन पत्नी से छिपाते हैं, झूठ बोलते हैं, वे ईमानदार पतियों की श्रेणी में नहीं आते. ऐसी बात तो पत्नियों के लिए चिंता का विषय है.’’

कुछ भी गलत नहीं

आप चाहे किसी जानीमानी हीरोइन जैसी दिखती हों पर अगर कोई दूसरी आकर्षक शख्सीयत कमरे में आएगी तो आप के पति का उस की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है. यह स्थिति परेशान करती है पर बदलेगी नहीं, क्योंकि यह प्राकृतिक है. इस में कुछ भी गलत नहीं है. क्या पत्नियां आकर्षक सजीले पुरुषों की ओर आकर्षित नहीं होतीं, उन्हें नहीं निहारतीं, उन की तारीफ नहीं करतीं? अगर आप के सामने कोई जानामाना शख्स होगा तो आप भी अपने पति को छोड़ कर उसे निहारेंगी, उस की ओर आकर्षित होंगी.

सहजता से लें

किसी भी सुंदर, अच्छी चीज की ओर आकर्षण मानव का स्वभाव है. यह हमारे जींस में है. यह एक हैल्दी धारणा है. आप शादी के बंधन में बंध गए तो आप किसी अन्य महिला या पुरुष की ओर नहीं देखेंगे, यह किसी ग्रंथ या किताब में लिखा भी है तो भी प्रकृति का दिया नहीं है. इसलिए जब कभी कोई एक किसी अन्य को देख कर उस की तरफ निहारे तो कोपभाजन में न जा कर उसे सहजता से लें. देखने भर से अगर किसी को सुकून मिलता है तो इस में आप का कुछ बिगड़ नहीं जाता. आप एक नई कार खरीदते हैं पर आप सड़क पर चल रही अन्य बड़ी, आकर्षक कारों की ओर आकर्षित भी होेते हैं, तारीफ भी करते हैं, बल्कि उसे अपना बनाने की चाहत भी रखते हैं. यह तो कार की बात है, लेकिन रिश्ते में आकर्षण यानी विपरीत सैक्स की ओर आकर्षण स्वाभाविक है.

नीरसता को तोड़ता है

मैनेजमैंट के 2 छात्र आकांक्षा व प्रतीक अपना कोर्स खत्म हो जाने के बाद अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए. सालों बाद जब फेसबुक पर वे मिले तो दोनों ने एकदूसरे के बारे में जाना. दोनों की शादी हो गई थी, लेकिन दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. हां, दोनों ने अपनी अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं किया. थोड़ा सा रोमानी हो जाना रुटीन की नीरसता को तोड़ता है. आकांक्षा को सास की टोकाटाकी, घर की जिम्मेदारियों व पति के असहयोगी रवैए की अपेक्षा प्रतीक काफी सुलझा हुआ, नारी की स्वतंत्रता में विश्वास रखने वाला लगा. वहीं प्रतीक को बेतरतीबी से रहने वाली अपनी पत्नी की अपेक्षा आकांक्षा कहीं अधिक सजग व आकर्षक लगी. दोनों के बीच मैसेज और औनलाइन चैटिंग होने लगी. दोनों अपने कालेज, दोस्तों, परिवार, समस्याओं और भावनाओं को एकदूसरे के साथ बांटने लगे. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगने लगा. धीरेधीरे दोनों को एकदूसरे की आदत सी हो गई.

जीवन का हिस्सा

प्रतीक की पत्नी सीमा और आकांक्षा के पति गौरव को यह आकर्षण, यह मेलजोल बिलकुल नहीं सुहाता था, लेकिन गौरव और सीमा को अगर कोई पुराना दोस्त मिलेगा और उस में उन्हें आकर्षण नजर आएगा, तो क्या वे आकर्षित हुए बिना रह पाएंगे? हर इंसान एक रुटीन वाली दिनचर्या से नजात चाहता है, जिंदगी में नयापन चाहता है. ऐसे में क्या शादी हो जाने का मतलब अपनी सोचसमझ खो कर सिर्फ एकदूसरे की जिंदगी में बेवजह शक करना और रोज की किचकिच को वैवाहिक जीवन का हिस्सा बनाना है?

परिवर्तन के लिए

आज जब कामकाज के मामले में स्त्रीपुरुष में भेद करना रूढिवादिता है, ऐसे में जब स्त्रीपुरुष दोनों घर से बाहर निकलते हैं, तो उन में यौनाकर्षण होना स्वाभाविक है. चाहे प्राइवेट औफिस हो या विश्वविद्यालय, पुरुष अपनी भावनाओं, अनुभवों को साथ बांटने वाली स्त्री के साथ समीपता महसूस करता है, जो पत्नी के साथ संभव नहीं होता. औरत अकेलेपन से घबराती है, इसलिए वह किसी के साथ ऐसा रिश्तानाता जोड़ती है. घर से बाहर का पुरुष, जिस का स्वभाव उस से मिलता जुलता है, जो उसे घरेलू समस्याओं से दूर रखता है, उस की दिलचस्पी वाले विषयों पर उस से बातें करता है, उस के साथ बैठ कर कामकाजी महिला को थोड़े समय के लिए मानसिक और शारीरिक तनाव से मुक्ति मिलती है, उसे घर की कैद से राहत की सांस मिलती है, जो उसे मानसिक सुकून देती है. घर में साफसफाई, बच्चों की जिम्मेदारी, घर के खर्च, बजट, मैनेजमैंट आदि के मुद्दे पतिपत्नी के अहंकारों के टकराने का कारण बनते हैं, जिस से जीवन प्रेमविहीन होने लगता है. ऐसे में पुरुष व महिलाओं के एकदूसरे की ओर आकर्षण को अपराध मानना गलत है और एकदूसरे को शक के कठघरे में खड़ा करना शादीशुदा जीवन का अंत बन जाता है.

आकर्षण स्वस्थ धारणा है

आप ने बहुत सैक्सी ड्रैस पहनी है. आप के पति आप से पूछेंगे कहां जा रही हो? आप न कहेंगी तो वे हैरान होंगे कि आप ऐसे तैयार क्यों हुई हैं और आप की ओर आकर्षित होंगे ताकि कोई और आप की ओर आकर्षित न हो. आकर्षण एक स्वस्थ धारणा है, इसे शक के दायरे में ला कर इस की खूबसूरती को बदसूरत बनाना समझदारी नहीं है. आप एक नई ड्रैस खरीदती हैं, लेकिन अगर किसी और ने अधिक अच्छी ड्रैस पहनी है तो क्या आप उस ड्रैस की ओर नहीं देखेंगी या उस की ओर आकर्षित नहीं होंगी. यह मानवीय स्वभाव है कि जब आप किसी बंधन में बंध जाते हैं तो आप आजाद हो कर नियम तोड़ना चाहते हैं. ऐसे में विपरीत सैक्स की ओर आकर्षण प्राकृतिक है, यह बेईमानी या विश्वासघात नहीं है. वास्तविकता यह है कि आप का पति बेहद आकर्षक है लेकिन उन के आगे आप को कोई मशहूर शख्स अधिक आकर्षक लगेगा. ऐसा ही पुरुषों के साथ भी होता है.

मजे के लिए

जब पतिपत्नी में से कोई विपरीत सैक्स की ओर आकर्षित होता है, फ्लर्ट करता है तो इस का अर्थ यह नहीं है कि उन में से कोई पति या पत्नी को छोड़ देगा. उन से रिश्ता तोड़ देगा. साथी आकर्षित हो कर फ्लर्ट सिर्फ जिंदगी में नएपन या मजे के लिए करता है और आप को इस की जानकारी है तो इसे स्वस्थ और सकारात्मक नजरिए से देखिए. अगर पतिपत्नी एकदूसरे के प्रति जिम्मेदार हैं, दोनों को एकदूसरे पर विश्वास है, तो परपुरुष या परस्त्री की ओर आकर्षित होना अपराध नहीं है.

जब पति को भाने लगे दूसरी औरत

भारतीय क्रिकेट जगत का जानामाना नाम मोहम्मद शमी पिछले दिनों सुर्खियों में रहे. उन की पत्नी हसेन जहान ने उन पर आरोप लगाया कि वे दूसरी औरत के चक्कर में घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं.

जहान ने शमी के व्हाट्सऐप और फेसबुक मैसेंजर के कई स्क्रीन शौर्ट दिखाए जिन में कितनी ही औरतों के साथ उनकी बातचीत के सुबूत थे. जब शमी दक्षिण अफ्रीका के दौर से लौटे और जहान ने इस सब के खिलाफ आपत्ति जताई तब उन्होंने जहान के साथ मारपीट शुरू कर दी. जहान कहती हैं कि उन्होंने शमी को काफी समय दिया खुद को सुधारने के लिए, लेकिन शमी ने अपना सारा गुस्सा जहान पर निकाला. हालांकि शमी इस सब से इनकार करते हैं.

साक्षी एक बैंक मैंनेजर हैं. अच्छा जौब, अच्छी शादीशुदा जिंदगी और ऊपर से देखने में सबकुछ बहुत बढि़या. लेकिन अंदर ?ांको तब पता चलता है कि जब साक्षी को अपने पति के दूसरी औरत के साथ संबंध के बारे में शक हुआ और उस ने अपने पति ने प्रश्न किया तो उस के पति ने आक्रामक रूप धारण कर लिया. चोर की दाढ़ी में तिनका वाली कहावत सच हो गई. जब कभी साक्षी कोई प्रश्न करती तभी उस का पति फौरन गुस्सा करने लगता. धीरेधीरे साक्षी का शक बढ़ता गया और उस के पति का उस के ऊपर गुस्सा.

मजबूरी में जिंदगी

बात घरेलू हिंसा तक पहुंची गई. हर बार ?ागड़े की स्थिति में साक्षी का पति उसे अपने जूते की हील से तो कभी लातघूंसों से पीटता, साक्षी फिर भी उस के साथ जीती जा रही थी, इस उम्मीद में कि उस के पति को गलती का एहसास होगा और वह उस के पास लौट कर आ जाएगा.

हिंसा के बाद जब अगली सुबह साक्षी अपने बैंक जाती तो मेकअप से अपनी चोटों के निशान छिपा कर, बढि़या लिपस्टिक, बिंदी लगा कर जाती. लेकिन उस की सहेली और सहकर्मी को फिर भी शक हो ही गया. उन के द्वारा किसी को न बताने का वादा करने पर साक्षी ने रोरो कर अपना हाल सुना दिया.

‘‘हमारे घर के पास एक बाबाजी रहते हैं जो सौतन से तुरंत छुटकारा दिलवा देते हैं. तू हिम्मत न हार. मैं तु?ो उन के पास लेकर चलूंगी.’’

सहेली की बातों में आ कर साक्षी बाबाजी की शरण में पहुंच गई. बाबाजी के आश्रम में जगहजगह संदिग्ध से पोस्टर लगे हुए थे, धूपदीप जल रहे थे, धुआं उठ रहा था. उन्होंने नाटकीय मुद्रा में आंखें बंद कीं और हाथ हवा में लहराते हुए कहने लगे, ‘‘अगर तेरा पति किसी और औरत के जाल में फंस गया है तो कमी जरूर तेरे ही प्यार में है तभी वो दूसरी की ओर आकर्षित हुआ है.

‘‘छुटकारा पाने के लिए तुम्हें अपनी यौवन की सुंदरता का मोहजाल बनाना होगा पर सब से असरदार टोटका है कि तुम भगवान कृष्ण की शरण में जाओ क्योंकि वे प्रेम के देवता हैं. उन की शरण में जाने से तुम्हारा प्रेम पुन: तुम्हें प्राप्त होगा. हर शुक्रवार को भगवान कृष्ण का ध्यान करते हुए मात्र 3 इलायची अपने शरीर पर स्पर्श कर के अपने पल्लू में बांध लेना और उन्हें बंधे रहने देना.

‘‘दूसरे दिन प्रात:काल उठ कर स्नान कर के भगवान कृष्ण का ध्यान करते हुए अपने पति को चाय में या भोजन में मिला कर इलायची खिला देना. यह टोटका तुम्हें 3 शुक्रवार करना होगा. देखना तुम्हारा पति तुम्हारी तरफ आकर्षित होने लगेगा और पहले से भी अधिक प्रेम करने लगेगा. जा अपनेआप सौतन से छुटकारा मिल जाएगा.’’

इतना सरल उपाय जान कर साक्षी खुश हुई और बाबाजी का जयकारा करती हुई आश्वस्त हो कर वापस लौट आई. लेकिन बाबाजी के टोटके से कोई लाभ न हुआ. पति की दूसरी औरत के प्रति आसक्ति भी वही रही और साक्षी के टोकने पर हिंसा भी जस की तस बनी रही. हां बाबा और उन के चेलों को सभी का रोजाना दर्शन लाभ अवश्य मिला.

आकर्षण की सीमा रेखा

किसी के प्रति आकर्षण होना एक अलग चीज है, लेकिन उस आकर्षण के चलते अपनी शादीशुदा जिंदगी को ताक पर रख देना बिलकुल गलत है. ऐसा नहीं कि शादी के बाद महिला या पुरुष इस बात के लिए प्रतिबंधित हो जाएंगे कि वे अपने साथी के अलावा न तो किसी को देखेंगे और न ही बात करेंगे.

शादी का अर्थ बंधन नहीं और न ही अपने साथी को किसी पिंजरे में रखना है. लेकिन अगर बात केवल देख कर तारीफ करने या बात करने से आगे बढ़ती है तो बेशक इसे गलत कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए.

हिंदू संस्कृति में सौतन से छुटकारा

मनुष्यों के रिश्तों में सब से महत्त्वपूर्ण है पतिपत्नी का रिश्ता जैसे इंसान स्वयं जोड़ता है. कभी अभिभावक जीवनसाथी चुनते हैं तो कभी हम खुद. दोनों ही स्थितियों में इस रिश्ते की गरिमा अनूठी और गरिमामई होती है. पुराने जमाने में पतियों को एक से अधिक पत्नी रखने की सामाजिक स्वीकृति प्राप्त थी. हिंदू समाज में पहली पत्नी का अपना स्थान होता था, लेकिन वहीं दूसरी औरत को हेय दृष्टि से न देख कर उसे भी पत्नी का स्थान प्राप्त हो जाता था.

किंतु हिंदू मैरिज ऐक्ट के आने से यह संभव नहीं है, इसलिए अब पहली पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह करना संभव नहीं परंतु पराई स्त्री की ओर आकर्षण कैसे रोक सकता है कोई. ये सौतनों पतियों की दृष्टि में हमेशा से खटकती आई हैं. हिंदू शास्त्रों के अनुसार कामदेव की उपासना करने और उन के मंत्र जाप से पतिपत्नी में प्रेम बढ़ता है और सौतन से छुटकारा मिलता है. यहां पति को सौतन की कुदृष्टि से बचाने के लिए मंत्र भी है-

ॐ कामदेवाय: विद्मह्य: रति प्रियायौ धीमाहिं तन्नोह् अनंग: प्रचोदयात्. ऐसे ही कहा गया कि शुक्र मंत्र का जाप करने से भी सौतन से छुटकारा मिलता है और पतिपत्नी में प्रेम बढ़ता है.

ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय: नम:

टोनेटोटकों की दुनिया

सौतन से छुटकारा पाने के लिए टोनेटोटकों की कोई कमी नहीं है. चाहे आप औफलाइन जाएं या औनलाइन, टोटकों की भरमार आप को चकित कर देगी. ज्योतिसकथन साइट के उपेंद्र अग्रवाल पति वशीकरण का टोटका बताते हुए कहते हैं, ‘‘अगर आप अपने पति को वश में रखना चाहती हैं और आप को शक है कि आप का पति किसी अन्य स्त्री से प्रेम करता है तो शुक्ल पक्ष के किसी भी रविवार को अपने शरीर के उस स्थान पर लौंग रखें जहां पसीना आता हो और फिर उस लौंग को सुखा कर रख लें और अपने पति को किसी तरह खिला दें. आप का पति आप के वश में आ जाएगा और आप के कहे अनुसार चलेगा.’’

पाखंडियों का पाखंड

अघोरी को इन वैबसाइट के अनुसार पति को अपने प्रति मोहित करने के लिए शुक्र मंत्र का जाप अचूक उपाय माना जाता है जिस के नियमित रूप से पाठ करने से पति सौतन को छोड़ कर अपनी पत्नी के प्रति कामासक्त हो उठेगा.

एक और वैबसाइट ‘पामशास्त्र’ कहती है कि सौतन से छुटकारा पाना हो तो साबूत पान के पत्ते पर चंदन तथा केसर का चूर्ण मिला कर अपने मस्तक पर तिलक लगाएं तथा पति या उन के चित्र के समक्ष जाएं. ये प्रयोग 43 दिनों तक करें तथा नित्य नयापत्ता लें जो कहीं से भी कटाफटा न हो. अंतिम दिन सभी पान के पत्तों को एकत्रित कर बहते पानी में बहा दें. आप में सम्मोहक शक्ति आ जाएगी.

बैंगलुरु की ऐस्ट्रोलौजर साइट के मोहम्मद अली खान का दूसरी औरत से छुटकारा पाने का टोटका मानें तो सिंदूर में डूबी हुई कलाई में पहने लायक काली डोरी अपने पति की जेब या पर्स में रखें. अगर आप के पति रखने से मना कर दे तो आप अपने शयनकक्ष के बैड के सिरहाने कहीं भी छिपा के रख दें. ऐसे ही पति को औफिस के लिए खाना जिस बरतन में देते है उस बरतन पर सिंदूर का छोटा सा निशान कर दें.

मगर इन टोनेटोटकों से कुछ नहीं होता. आप को ध्यान रखना होगा कि जिंदगी में इन नकारा, मन बहलाने के कामों से कुछ हासिल नहीं होता. जो कुछ होगा वह ठोस कदम उठाने से होगा, इसलिए इन बहकावों में आ कर अपनी जिंदगी के महत्त्वपूर्ण समय को व्यर्थ न गवाएं बल्कि सही समय पर उचित कदम उठा कर अपने जीवन को सही राह पर लाने का भरसक प्रयास करें.

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के कारण

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर होने के बहुत से कारण हो सकते हैं, लेकिन अगर समय रहते उन कारणों को जान लिया जाए तो इस मुसीबत से पार पाया जा सकता है. ज्यादातर मामलों में ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर शादीशुदा जिंदगी में कलह होने की वजह से होते हैं, लेकिन यह एकमात्र कारण नहीं है. कई बार घर वालों और समाज की वजह से कुछ लोगों की शादी बहुत कम उम्र में हो जाती है. ऐसे लोग जब जिंदगी के अगले पड़ाव पर पहुंचते हैं तो उन्हें यह लगने लगता है कि उन्होंने काफी कुछ मिस कर दिया है.

ऐसे में वे ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की ओर कदम बढ़ाने लगते हैं. सैक्सुअल सैटिस्फैशन न मिलना भी एक प्रमुख कारण हो सकता है कि आप का साथी आप के अलावा किसी और के प्रति आकर्षित हो. कई मामलों में तो यह सब से बड़ी और एकमात्र वजह होती है. लेकिन कई बार कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन में अतिरिक्त संबंध बनाने की क्रेविंग होती है.

अपने साथी से संतुष्ट होने के बावजूद वे दूसरे के साथ संबंध बनाने के लिए आतुर रहते हैं. एक और बड़ी वजह है बच्चों का जन्म. मातापिता बनाने के बाद जिंदगी पूरी तरह से बदल जाती है. पत्नी अकसर मां की भूमिका को प्राथमिकता देने लगती है और पति इधरउधर भटक जाता है.

अफेयर होने के चांस

दांपत्य विश्वासघात के प्रसिद्ध थेरैपिस्ट डा. स्काट हाल्जमन कहते हैं कि सोशल मीडिया और ई कम्यूनिकेशन के आ जाने से विश्वासघात में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. कारण है नए लोगों से मुलाकातों के बढ़े हुए आयाम. कई लोगों से आप पहली बार नैट के जरीए मिल सकते हैं. और तो और पुराने जानकारों से व मित्रों से भी सोशल नैटवर्किंग साइट की मदद से आसानी से मिल सकते हैं, जिस से कई बार अफेयर होने के चांस बढ़ जाते हैं.

योगेश निजी कंपनी में ऊंचे ओहदे पर कार्यरत है. उस की सामाजिक छवि एक सफल गृहस्थ इंसान की है. किंतु उस की पत्नी पद्मा जानती है कि उस की भटकती हुई नजरें हर सामने आने वाली महिला पर बिखर जाती हैं. वो उस की इस आदत से काफी परेशान है. लेकिन हद तो तब हो गई जब योगेश का अफेयर उस के दफ्तर में कार्यरत एक महिला सहकर्मी से चल पड़ा.

धीरेधीरे वह उस महिला को घर लाने लगा. वह उसे घर लाता, अपने कमरे में ले जा कर दरवाजा अंदर से बंद कर लेता. पद्मा के पूछने पर कहता कि औफिस का कुछ खास काम है और उन दोनों को डिस्टर्ब न किया जाए.

जब यह सिलसिला बढ़ने लगा तो पद्मा ने इस पर आपत्ति जतानी शुरू की. लेकिन उस के मना करने पर योगेश उस पर हाथ उठाने लगा. पद्मा को आभास हो गया कि पानी सिर से ऊपर जा रहा है. आखिर ऐसे कब तक सहती वह.

यदि पतिपत्नी का संबंध तालमेल से चले तो जिंदगी एक सुमधुर गीत बन जाती है, परंतु ताल टूटते ही मेल भी बिखर कर रह जाता है और ऐसा अकसर तीसरे के कारण होता है जो दोनों के बीच आकर पूरा रिश्ता खराब कर देता है. पद्मा को एक परित्यक्ता का जीवन जीना स्वीकार नहीं था. उस ने ठोस कदम उठाने के बारे में सोचा.

परिवार को सम्मिलित किया

पद्मा ने पहले योगेश के और फिर जब बात नहीं बनी तो अपने परिवार को अपनी समस्या में सम्मिलित लिया. उस ने पारिवारिक मीटिंग बुलवाई और उन में योगेश के अफेयर और उस पर हाथ उठाने की बात को उठाया. वह इस शर्म से बाहर निकली कि समाज क्या कहेगा. उस ने अपने कुछ निकटतम दोस्तों और यहां तक कि योगेश के औफिस के बौस को भी ये बातें बताईं. योगश को अपनी छवि का बेहद खयाल था. अपनी छवि खराब होती देख उसे संभलना ही पड़ा. लेकिन बात यहां खत्म नहीं हुई. पद्मा ने इस प्रकरण के पीछे के असली कारणों को जानने की पूरी कोशिश की ताकि भविष्य में दोबारा ऐसा कभी न हो.

पहचानें असली कारणों को

एक अफेयर यों ही नहीं हो जाता. क्यों होता है? क्या कारण रहते हैं कि एक गृहस्थ पुरुष भटक जाता है? इस के पीछे छिपे कारण और असलियत जानने की कोशिश करनी चाहिए. अफेयर को नजरअंदाज करना ठीक वैसा ही होगा जैसे किसी चोटिल व्यक्ति को अस्पताल न ले जाना. देरसबेर चोट भले ही ठीक हो जाए पर उस का दर्द और निशान छूट ही जाएगा. भावनात्मक चोट भी शारीरिक चोट की तरह ही होती है.

यदि आप अपनी गृहस्थी बचाना चाहती हैं तो अफेयर का सामना करना, डट कर खड़े रहना और उस के वार के सामने अडिग रहना जरूरी है वरना कहीं ऐसा न हो कि एक अफेयर खत्म होने पर भी इस के पुन: आप के जीवन में आ कर आप को डराने की आशंका बनी रहे.

द्य सब से पहले तो पत्नी को अफेयर करने, अपनी पत्नी को धोखा देने और घरेलू हिंसा करने की जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी. वह मासूम सा बन कर या सारा दोष अपनी पत्नी पर मढ़ कर नहीं छूट सकता. जब अपनी गलती स्वीकारेगा, तभी तो सुधार की दिशा में कदम उठाएगा.

द्य अफेयर के पीछे कई कारण होते हैं. केवल पति को दोष देना भी ठीक नहीं. पत्नी को भी अपने अंदर ?ांकना होगा. हो सकता है कुछ ऐसे कारण दिखाई दे जाएं जिन की वजह से पति को शादी के बाहर भटकना पड़ गया.

द्य खुल कर आपसी बातचीत से हल निकाला जा सकता है. पतिपत्नी को एकदूसरे के प्रश्नों के उत्तर देने की कोशिश करनी चाहिए पर ध्यान रहे कि उत्तर ईमानदार हों.

द्य अपने अंदर के दर्द का सामना करें और जिस किसी चीज से आप को शांति मिले, वह करने का प्रयास करें.

काउंसलर की सहायता लें

डा. निशा खन्ना जोकि एक फैमिली काउंसलर हैं, कहती हैं कि जहां परिवार और दोस्त किसी एक पक्ष की तरफदारी कर सकते हैं, वहीं काउंसलर एक निष्पक्ष व्यक्ति होता है जो तटस्थ भाव से दोनों पक्षों की बात सुन कर बीच की राह ढूंढ़ने का प्रयास करता है. काउंसलर की कोशिश रहती है कि पतिपत्नी में आपसी कम्यूनिकेशन में सुधार हो और रिश्ते में जो दूरी आ गई है वह मिट सके.

सरलाजी के पति को उन के अफेयर के बारे में जब पता चला तो वे एकदम बिखर सी गईं. उन का विश्वास तारतार हो गया. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि महेंद्रजी उस के साथ विश्वासघात करेंगे. बात पुरानी हो चुकी थी. महेंद्रजी को अपनी गलती का एहसास हो गया था और प्रायश्चित्त के तौर पर उन्होंने स्वयं ही यह बात सरलाजी को बताई.

पहले तो सरलाजी इतना नाराज हुईं कि कई दिनों तक महेंद्रजी से कोई बातचीत नहीं की. लेकिन फिर उन के मन में यह विचार आया कि क्या 6 माह के अफेयर के लिए वे अपनी 30 साल की शादी तोड़ देंगी? क्या एक भूल सुधरी नहीं जा सकती? क्या वे इतने पुराने गृहस्थ जीवन को एक गलती की कसोटी पर तोल नहीं पाएंगी? उन्होंने अपनी शादीशुदा जिंदगी को चुना और एक भूल को माफ  करने में ही सम?ादारी सम?ा.

ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर और घरेलू हिंसा

‘जर्नल औफ मैरिज ऐंड फैमिली’ के एक आलेख ‘वायलैंस पोटैंशियल इन ऐक्सट्रा मैरिटल रिस्पौंस’ के लेखक राबर्ट वाइटहर्स्ट की मानें तो ऐक्सट्रा मैरिटल सैक्स के कारण ही घरेलू हिंसा होती है. जब बात मारपीट पर उतर आए तो इसे हलके में नहीं लेना चाहिए. कोई भी पत्नी यह सह नहीं सकती कि उस का पति किसी और स्त्री के चक्कर में पड़ जाए. किंतु यदि विरोध करने से बात बिगड़ने लगे तो इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा. यदि पति मारपीट न छोड़े तो पुलिस में जाने से भी नहीं हिचकना चाहिए.

ऐसी कितनी ही महिलाएं होंगी जिन के पति उन के साथ विश्वासघात करते हैं. यह बात बेहद उदासीन है, लेकिन सच है. मगर एक बात यह भी सच है कि हर किसी के जीवन में कोई न कोई कमी, कोई न कोई दुख होता है. कोई बीमारी से ग्रस्त होता है तो कोई जीवनसाथी के अभाव से. इस संसार मेंकौन है जो किसी भी दुखदर्द से वंचित है.

यदि आप का पति पराई स्त्री के रूपयौवन के पीछे दीवाना हो जाए तो आप की खुशियों को ग्रहण लग जाना स्वाभाविक है. ऐसे में कोई भी चीज आप को सुख नहीं देती, किंतु फिर भी इस कठिन समय से बाहर निकलना जरूरी है.

इसलिए जो कुछ भी संभव हो वह प्रयास करें और स्वयं को तथा अपने साथी को इस समस्या से उबारने की भरसक कोशिश करें ताकि भविष्य में आने वाली खुशियां आप का द्वार खटखटाएं और तब आप सोचें कि हम दोनों ने कितना अच्छा किया जो समय से चेत गए और सही राह चुन ली.

दोस्ती लड़के और लड़की के बीच

साल 1989 की ब्लॉकबस्टर हिंदी फिल्म ‘ मैं ने प्यार किया ‘ में लीड एक्टर सलमान खान और हीरोइन भाग्यश्री के रिश्ते की शुरुआत दोस्ती के जरिए हुई थी जो आगे चल कर प्यार में बदल गई. इस फिल्म का एक फेमस डायलॉग है जो विलेन मोहनीश बहल ने कहा था कि एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते. भले ही उस दौर में यह बात काफी हद तक सही थी मगर अब तीन दशक से अधिक का समय बीत चुका है. लोगों की खासकर यंग जेनरेशन की सोच काफी हद तक बदल चुकी है. अब लड़केलड़कियां न केवल दोस्त होते हैं बल्कि बेस्ट फ्रेंड भी बनते हैं. बदलते दौर में हम ऐसी कई मिसालें देखते हैं कि मेल और फीमेल न सिर्फ अच्छे दोस्त रहे हैं बल्कि इस खूबसूरत रिश्ते को जिंदगी भर निभाया भी है. आयरलैंड के मशहूर कवि ऑस्कर वाइल्ड ने कहा था, ‘दोस्ती प्यार के मुकाबले ज्यादा ट्रैजिक होती है. यह लंबे वक्त तक टिकती है’. जब मेल फीमेल के बीच दोस्ती का रिश्ता होता है तो यह और भी ज्यादा समय तक टिकता है. इस दोस्ती में कभीकभी रोमांस की भी एंट्री हो सकती है. हालांकि ज्यादातर मामले में

यह प्यार एकतरफा होता है.

याद कीजिए फिल्म ‘ ऐ दिल है मुश्किल’ के रणवीर कपूर को जो अनुष्का शर्मा को दोस्त से बढ़ कर मानते थे. मगर अनुष्का उन्हें केवल दोस्त बनाए रखना चाहती थी. वह दोस्ती के प्यार को महसूस करना चाहती थी. ऐसा ही कुछ फिल्म बेफिक्रे के रणबीर सिंह के साथ भी हुआ. बेफिक्रे फिल्म में रणवीर कहता है, ‘ वह डेट पर जाती तो मुझ से पूछती क्या पहनूं. हर एडवाइस मुझ से लेती और अब शादी किसी और से कर रही है.’

आज के युवाओं की भाषा में इसे फ्रेंडजॉन नाम दिया जाता है. कई बार एक लड़की और लड़के के केस में महज दोस्त भर रह जाना लड़के को कंफ्यूज कर जाती है. एक लड़के के तौर पर आप कन्फ्यूज हो जाते हैं कि आखिर यह लड़की चाहती क्या है. क्या बस एक कंधा जो उसे हर इमोशनल परिस्थिति में सहारा दे? कहीं वह सिर्फ अपनी इमोशनल जरूरतों के लिए ‘यूज’ तो नहीं कर रही?

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिस के बिना कोई भी व्यक्ति नहीं रह सकता पहले के समय में अधिकतर लड़कियों की दोस्ती लड़कियों से और लड़कों की समान उम्र के लड़कों से होती थीं लेकिन आज के समय में लड़कालड़की की दोस्ती होना सामान्य बात है और इस में कोई बुराई भी नहीं है स्कूल कॉलेज में लड़के लड़कियां मिल कर मस्ती करते हैं और दोस्तों की तरह पढ़ाई के साथ साथ जिंदगी के उतार चढ़ाव में एकदूसरे की मदद भी करते हैं. दुनिया के अधिकतर रिश्ते तो हमें जन्म के साथ ही मिलते हैं लेकिन दोस्ती के रिश्ते में सामने वाले व्यक्ति को हम स्वयं चुनते हैं किसी से दोस्ती करते समय नहीं देखा जाता कि वह लड़का है या लड़की या फिर उस का रंगरूप या धर्म क्या है दोस्ती के लिए सामने वाले व्यक्ति का अच्छा इंसान होना और आपस में विचार मिलना जरूरी है किसी भी दोस्ती की शुरुआत तब होती है जब हालात या फिर इंट्रेस्ट एक जैसे हों. इस दोस्ती में भी अपने फ्रेंड को वैसे ही ट्रीट किया जाता है जैसा कि आप सेम जेंडर के फ्रेंड्स को करते हैं. हालांकि ज्यादातर पुरुष दोस्त अपनी फीमेल फ्रेंड्स से ज्यादा रिस्पेक्टफुली बात करते हैं क्योंकि महिलाएं असल में मर्दों के मुकाबले ज्यादा सेंसिटिव होती है. किसी भी दोस्ती में सब से जरूरी है भरोसा इस के साथ ही ये रिश्ता तब तक चलेगा जब तक कि दोनों के बीच में किसी तरह का स्वार्थ न पैदा हुआ हो. लड़कियों को ये भरोसा होना चाहिए कि वे अपने पुरुष मित्र के साथ सेफ हैं. वहीं मेल फ्रेंड को भी इस बात का यकीन रहे कि वो दोस्ती के नाम पर इस्तेमाल तो नहीं किए जा रहे. यही विश्वास फ्रेंडशिप को पक्का करता है.

क्यों मजबूत होती है ये दोस्ती

विश्वास

लड़कियां अपनी सहेलियों की बजाय पुरुष मित्रों पर अधिक विश्वास करती हैं इस के पीछे एक वजह यह भी है कि लड़कियां अन्य लड़कियों पर ज्यादा विश्वास नहीं कर पाती हैं कई बार उन में आपस में जलन की भावना भी उत्पन्न हो जाती है लेकिन लड़के और लड़की की दोस्ती में ऐसा कभी नहीं होता है. जलन के बजाए आकर्षण सदैव बना रहता है. नकारात्मक भाव न होने के कारण विश्वसनीयता भी बनी रहती है

लगाव और आकर्षण

आकर्षण होने का मतलब जरूरी नहीं कि प्रेम ही हो. हमें किसी की कोई बात पसंद आती है उस की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाते हैं. विपरीत लिंग के लोगों में वैसे भी अधिक आकर्षण होता है. आकर्षण वाला यह लगाव एकदूसरे को एक मजबूत बंधन में बांधता है.

केयर करना

यदि आप का दोस्त कहता है कि घर पहुंच कर मैसेज करना, समय से घर पहुंचना, अपना ख्याल रखना तो बहुत अच्छी फीलिंग आती है. लगता है जैसे घरवालों के अलावा भी कोई है जिसे आप की इतनी फ़िक्र है. दो लड़कियां भी बातोंबातों में एक दूसरे की फिक्र जताती हैं लेकिन लड़के के फ़िक्र जताने का तरीका अलग होता है. वह अपनी दोस्त के प्रति बहुत केयरिंग होते हैं. इसी तरह लड़कियां भी लड़के दोस्त के लिए खास तौर पर केयरिंग होती हैं.

आखिर क्यों होनी चाहिए हर लड़के के पास एक अच्छी फीमेल दोस्त

अंडरस्टैंडिंग

आप की फीमेल दोस्त आप को बाकी दोस्तों से बेहतर तरीके से समझ पाती है अक्सर देखा जाता है कि लड़को को सिर्फ उतना ही समझ आता है जितना उन्हें कुछ बताया जाता है लेकिन अगर आप के पास कोई महिला मित्र है तो वह आप के मूड को देख कर ही भांप जाएगी कि आप के दिमाग में आखिर क्या चल रहा है आपकी दोस्त न केवल आप को बेहतर समझती है बल्कि यह भी जानती है कि आप को कौन सी बात खुश करेगी और कौन सी बात से आप उदास हो सकते है इतना ही नहीं वह आप के साथ शॉपिंग पर जाने से कभी बोर भी नहीं होगी

रोने के लिए कन्धा

लोग कहते है कि पुरुष कभी नहीं रोते हालांकि इस बात में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है अक्सर देखा गया है कि पुरुष महिलाओं से ज्यादा इमोशनल होते हैं कोई परेशानी आने पर अक्सर लड़के बहुत अकेला महसूस करते है ऐसे में अगर कोई फीमेल फ्रेंड होगी तो उस के सामने रोकर आप अपना दुख हलका कर सकते हैं ऐसा करने पर वह दूसरे लड़के की तरह आप का मजाक नहीं उड़ायेगी

शॉपिंग गाइड

बाज़ार जाने के नाम से ही लड़कों की शक्ल बन जाती है. ऐसे में ज़रा सोचिये कि आप को अपनी गर्लफ्रेंड या फिर बहन या माँ के लिए कुछ तोहफा लेना हो तो क्या करेंगे? ऐसे मौके पर काम आती है आप की लड़की दोस्त. लड़कियों को खरीददारी का बहुत शौक होता है और अक्सर वे जानती है कि कौन सी चीज़ किस मार्किट में अच्छी मिलती है. उन्हें नए नए फैशन का भी ध्यान होता है. कीमत का भी सही अंदाजा होता है. इसलिए तोहफे खरीदने के लिए ही नहीं आप उन की मदद अपने मेकओवर में भी ले सकते है. इस के विपरीत अगर आप अपने किसी लड़के दोस्त के साथ शॉपिंग करने जाते हैं तो आप को यकीनन काफी परेशानी होती है क्यों कि शॉपिंग के मामले में लड़के कच्चे होते हैं इसी तरह बीवी या गर्लफ्रेंड के साथ जाने का मतलब है उन के लिए ही शॉपिंग करते रहना और बैठेबिठाए जेब खाली हो जाना. लेकिन अगर एक लड़की आप की दोस्त है तो उस के साथ आप का शॉपिंग एक्सपीरियंस काफी अच्छा होता है आप उस के साथ कई दुकानों पर जा कर अपने लिए वह खरीद सकते हैं जो आप पर सब से ज्यादा सूट करता हो साथ ही वह आप को कुछ अच्छे आईडियाज भी देती रहेगी कि आप पर क्या अच्छा लगेगा

रिलेशनशिप गाइड

कई बार ऐसा होता है कि आप की लव लाइफ सही नहीं चल रही होती है. उस समय आप को समझ नहीं आता कि आप क्या करें और किस से मदद लें इस स्थिति में एक लड़की दोस्त से बेहतर दूसरा कोई सहारा नहीं हो सकता एक लड़की होने के नाते

आप की दोस्त आप की स्थिति को बेहतर तरीके से समझ सकती है अक्सर लड़के लड़कियों की बातें या इशारे नहीं समझ पाते. अगर आप को भी अपनी गर्लफ्रेंड को समझने में दिक्कत आती है तो इस मामले में भी लड़की दोस्त आप की मदद कर सकती है वह बता पायेगी कि आप की गर्लफ्रेंड की हर बात का सही मायनों में मतलब क्या है लड़की दोस्त के साथ समय बिताने पर आप समझने लगते है कि लड़कियों का व्यवहार कैसा होता है. उन्हें क्या पसंद आता है क्या नहीं, किस तरह उन्हें खुश किया जा सकता है. यही नहीं आप की दोस्त गर्लफ्रेंड से मिलाने में आप की मदद भी करती है.

हमराज

एक लड़की बेस्टी होने का मतलब है कि आप उसे बिना झिझक के कुछ भी आसानी से बता सकते हैं वैसे तो एक लड़के दोस्त से भी बातें शेयर की जा सकती हैं लेकिन वह आप की फीलिंग को उस तरह नहीं समझ सकता जिस तरह एक लड़की समझ सकती है लड़कों के साथ इमोशनल टॉक करना उतना अच्छा आईडिया नहीं है लेकिन जब एक लड़की दोस्त की बात आती है तो आप उस से अपने डीप सीक्रेट आसानी से बता सकते हैं कभीकभी लड़के दोस्त किसी संजीदा बात को भी मजाक में उड़ा देते है लेकिन अगर वही बात आप अपनी लड़की दोस्त को बताते है तो वह सुनती है. सुनने के साथसाथ अक्सर लड़कियां समस्या का हल भी बता देती है. आप बेहिचक उन से अपनी ख़ुशी, सपने, दुःख या डर के बारे में बात कर सकते है.

बुरे वक्त का सहारा

जिंदगी में बहुत बार ऐसे मौके आते है जब हम किसी बात से परेशान होते है. ऐसे वक्त में अगर कोई लड़की आप की दोस्त है तो उस से अच्छा सहारा कोई नहीं हो सकता. वो आप की बात को समझती है खासकर अगर मामला प्रेम प्रसंग का हो.

हर जगह साथ

एक लड़की दोस्त जीवन के हर पहलू में आप की ताकत बन कर खड़ी होती है आप उस के साथ मस्ती भी कर सकते हैं और गंभीर बातें भी. आप उस के साथ हंस भी लेते हैं और रो भी सकते हैं. उन के साथ बाहर घूमनेफिरने के लिए भी आप को ज्यादा सोचना नहीं पड़ता इसी तरह मुश्किल वक्त में या दुखी होने पर एक लड़की अच्छी दोस्त के रूप में आप का साथ देती है और आप से इमोशनली कनेक्ट होती है.

एक लड़की से दोस्ती मतलब उस की सहेलियों से भी दोस्ती

अगर आप की कोई लड़की दोस्त नहीं है तो किसी लड़की से बात करना थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन अगर आप की बेस्ट फ्रेंड कोई लड़की है तो किसी और लड़की से बात करना बहुत ही आसान हो जाता है क्योंकि आप की एक पहचान होती है कि आप फलां लड़की के दोस्त है. इस से काम आसान हो जाता है.

एक लड़की को मिलते हैं लड़के दोस्त से ये फायदे

आप के लिए हमेशा तैयार

अगर आप के पास एक लड़का दोस्त है जो आप का बेस्ट फ्रेंड है तो फिर आप को यह चिंता करने की जरुरत नहीं होगी कि कहीं आप गलत समय पर तो फोन नहीं कर रहीं? दिन हो या आधी रात, आप उसे बेफिक्र हो कर कभी भी फ़ोन कर सकती हैं और अपना दुखड़ा सुना सकती हैं. आप किसी प्रॉब्लम में हाँ तो वह आप की सहायता के लिए पहुँच जाएगा कहीं ट्रैफिक, बारिश या किसी मुसीबत में फंस गई है तो वह बाइक लेकर हाजिर हो जाएगा. इस तरह किसी गंभीर रिलेशनशिप में न होते हुए भी वह गंभीरता से आप की केयर करेगा.

नखरे कम करते हैं लड़के

लड़कियां लड़को को फ्रेंड बनाना इसलिए पसंद करती हैं क्यों कि लड़के बहुत कम नखरे करते हैं उन के साथ कोई प्रोग्राम बनाना या कुछ काम करना बहुत आसान होता है और वे हेल्प करने के लिए भी हमेशा तैयार रहते हैं. आधी रात में भी अपनी मदद करने के लिये बुलाएंगी तो भी वे हंसतेमुसकुराते आपकी मदद के लिए पहुंच जाएंगे न वे खाने में चूजी होते हैं और न कपड़ों में न मेकअप में समय लगाते हैं और न कहीं जाने में आनाकानी करते हैं. उन्हें जैसे चाहो वैसे घुमाया जा सकता है.

अपने बारे में कुछ नहीं छिपाते

एक लड़का आप का दोस्त बनने के बाद अपने बारे में आप से कभी कुछ नहीं छिपाता कोई राज नहीं रखता. वह आप से हर बात शेयर कर लेता है. इस से आप पुरुषों के व्यवहार के बारे में अच्छी तरह से जान सकती हैं और यही बात आगे चल कर पति के साथ आप के रिश्ते को रोमांटिक बनाने के काम आ सकती है

प्रॉब्लम सॉल्वर

एक लड़के दोस्त के पास आप की हर समस्या के लिए समाधान होता है और आप के गुस्से को शांत करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है लड़कों को टेक्निकल नॉलेज भी ज्यादा होता है और वे स्ट्रांग भी होते हैं. वे आप को कार या बाइक चलाना भी सिखा सकते हैं और तैराकी या सेल्फ डिफेन्स भी. आप की समस्याओं का हल वे चुटकियों में निकाल सकते हैं.

कहीं आप सेक्स एडिक्टेड तो नहीं?

सेक्स ऐडिक्शन  एक खतरनाक डिसऑर्डर है, जिसमें आदमी अपनी सेक्शुअल नीड्स पर कंट्रोल नहीं कर पाता. यह है कि यह बेहद खतरनाक डिसऑर्डर है और अडिक्टेड आदमी की जिंदगी बर्बाद भी कर सकता है.

क्या है सेक्स ऐडिक्शन ?  

सेक्स ऐडिक्शन  आउट ऑफ कंट्रोल हो जाने वाली सेक्शुअल ऐक्टिविटी है. इस स्थिति में सेक्स से जुड़ी हर बात आती है चाहे पॉर्न देखना हो, मास्टरबेशन हो या फिर प्रॉस्टिट्यूट्स के पास जाना, बस यह एक ऐसी ऐक्टिविटी होती है जिस पर इंसान का कंट्रोल नहीं रहता.

क्या हैं लक्षण?

सेक्स थेरेपिस्ट के साथ रेग्युलर मीटिंग्स के बिना यह बताना बहुत मुश्किल है कि किसे यह डिसऑर्डर है लेकिन कुछ लक्षण है जिनसे आप अंदाजा लगा सकती हैं और फिर डॉक्टर से कंसल्ट कर सकती हैं. जैसे, बहुत सारे लोगों के साथ अफेयर होना, मल्टिपल वन नाइट स्टैंड, मल्टिपल सेक्शुअल पार्टनर्स, हद से ज्यादा पॉर्न देखना, अनसेफ सेक्स करना, साइबर सेक्स, प्रॉस्टिट्यूट्स के पास जाना, शर्मिंदगी महसूस होना, सेक्शुअल नीड्स पर से नियंत्रण खो देना, ज्यादातर समय सेक्स के बारे में ही सोचना या सेक्स करना, सेक्स न कर पाने की स्थिति में तनाव में चले जाना.

ऐसे पायें छुटकारा

सेक्स ऐडिक्शन  के शिकार लोगों को फौरन साइकॉलजिस्ट या साइकायट्रिस्ट के पास जाना चाहिए. साइकॉलजिस्ट काउंसिलिंग और बिहेवियर मॉडिफिकेशन के आधार पर इस ऐडिक्शन का इलाज करते हैं और मरीज के विचारों में परिवर्तन लाने की कोशिश करते हैं. ऐसे लोगों को दूसरे कामों में व्यस्त रहने की सलाह दी जाती है. उन्हें समझाया जाता है कि वे संगीत, लॉन्ग वॉक आदि का सहारा लें और अपने परिवारवालों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएं. साइकायट्रिस्ट दवाओं के माध्यम से इलाज करता है.

सेक्स ऐडिक्शन  एनोनिमस (एसएए) सेक्स ऐडिक्शन   के शिकार लोगों का संगठन हैं. यहां कोई फीस नहीं ली जाती और न ही दवा दी जाती है. मीटिंग में इसके सदस्य जीवन के कड़वे अनुभवों, इससे जीवन में होने वाले नुकसान और काबू पाने की कहानी शेयर करते हैं. मीटिंग में आने वाले नए सदस्यों को इससे छुटकारा दिलाने के लिए मदद भी करते हैं. इससे पीड़ितों का आत्मबल बढ़ता है और उनमें इस बुरी आदत को छोड़ने की शक्ति विकसित होती है.

भाभी की एक ख्वाहिश के कारण मैं परेशान हो गया हूं, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं विवाहित पुरुष हूं. विवाह को 8 वर्ष हो गए हैं. 7 साल का एक बच्चा है. मैं बच्चे व पत्नी से बहुत प्यार करता हूं. मेरी समस्या मेरी दूर के रिश्ते की भाभी को ले कर है. उन के विवाह को 10 वर्ष हो गए हैं लेकिन वे अभी तक मां बनने का सुख हासिल नहीं कर पाई हैं. मैडिकल जांच में भाभी के पति में कमी पाई गई है. भाभी चाहती हैं कि मैं उन का साथ दूं ताकि वे मां बनने का सुख हासिल कर सकें. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं, सलाह दें.

जवाब

आप अपने वैवाहिक जीवन में सुखी हैं तो फिर बैठे बिठाए अपने वैवाहिक जीवन को क्यों बरबाद करना चाहते हैं. आप की भाभी का मां बनने को ले कर आप से जो प्रस्ताव है वह पूरी तरह से गलत है. ऐसा करने से आप की हंसती खेलती गृहस्थी बरबाद हो जाएगी.

जहां तक भाभी के मां बनने का सवाल है उस के लिए मैडिकल औप्शन उपलब्ध है जैसे आईवीएफ. वे इस उपाय को अपना सकती हैं. इस से आप की खुशहाल गृहस्थी में भी कोई आंच नहीं आएगी और आप की भाभी मां बनने का सुख हासिल भी कर सकेंगी. आप भूल कर भी अपनी भाभी के प्रस्ताव को न स्वीकारें. इस से न केवल आप पति पत्नी के रिश्ते में दरार आएगी, बल्कि आप के अपने दूर के भाई से भी संबंध बिगड़ते देर नहीं लगेगी.

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संध्या की आंखों में नींद नहीं थी. बिस्तर पर लेटे हुए छत को एकटक निहारे जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, जिस से वह आकाश के चंगुल से निकल सके. वह बुरी तरह से उस के चंगुल में फंसी हुई थी. लाचार, बेबस कुछ भी नहीं कर पा रही थी. गलती उस की ही थी जो आकाश को उसे ब्लैकमेल करने का मौका मिल गया. वह जब चाहता उसे एकांत में बुलाता और जाने क्याक्या करने की मांग करता. संध्या का जीना दूभर हो गया था. आकाश कोई और नहीं उस का देवर ही था. सगा देवर. एक ही घर, एक ही छत के नीचे रहने वाला आकाश इतना शैतान निकलेगा, संध्या ने कल्पना भी नहीं की थी. वह लगातार उसे ब्लैकमेल किए जा रहा था और वह कुछ भी नहीं कर पा रही थी. बात ज्यादा पुरानी नहीं थी. 2 माह पहले ही संध्या अपने पति साहिल के साथ यूरोप ट्रिप पर गई थी. 50 महिलापुरुषों का गु्रप दिल्ली इंटरनैशनल एअरपोर्ट से रवाना हुआ.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- सबक: संध्या का कौनसा राज छिपाए बैठा था उसका देवर

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Welcome 2023: नए साल में ग्रैंड पेरैंट्स के साथ ग्रैंड पार्टी

नए साल का आरंभ आपसी रिश्तों को सुधारने का सब से अच्छा समय साबित हो सकता है. पुरानी पीढ़ी के पास अनुभव की कमी नहीं होती और नई पीढ़ी के पास ऊर्जा भरपूर होती है. अगर अनुभव और ऊर्जा का समावेश एक जगह पर हो जाए तो तरक्की पक्की हो जाती है. कई बार बाप और बेटे के बीच रिश्ते उतने अच्छे नहीं होते जितने दादा और पोते के बीच होते हैं. ऐसी ही दूरियां दूसरे रिश्तों में भी आ रही हैं. ऐसे में जरूरी है कि नए साल पर परिवार के साथ ग्रैंड पार्टी करें. जिस में हर पीढ़ी के लोग शामिल हों. आमतौर पर पुरानी पीढ़ी ऐसी ग्रैंड पार्टी से दूर रहती है, इसलिए उस को पार्टी में जरूर शामिल करें.

बुढ़ापे में दादा के साथ थोड़ी बात कर उन के अनुभव के विषय में जानकारी ले ली जाए तो दादा का दिल खुश हो जाएगा. बुढ़ापे का खाली समय डिप्रैशन की भावना को जन्म देता है. अगर दादा और पोते के बीच संबंध बेहतर हों, पोते के पास दादा को देने के लिए कुछ समय हो तो दादा के अंदर डिप्रैशन का जन्म ही नहीं होगा. केवल दादा और पोते की ही बात नहीं है. मां और दादी के बीच भी बेटी एक कड़ी हो सकती है. पेरैंट्स और ग्रैंड पेरैंट्स के साथ नए साल की ग्रैंड पार्टी से पीढि़यों के बीच रिश्ते सुधारने में मदद मिलती है. पूरा परिवार सालभर नई एनर्जी को महसूस करेगा.

बीकौम कर रही नेहा बताती है, ‘‘मैं अपनी मम्मी से ज्यादा अपनी दादी के करीब हूं. वे मेरी बात ज्यादा अच्छे से समझ लेती हैं. वे मेरी बात को समझ कर मां को भी मेरी बात समझा देती हैं, जिस से मुझे अपने काम के लिए मम्मी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता.’’

प्रेरणा की शादी तय हुई थी. प्रेरणा की मां के पास इतना समय नहीं था कि वे उसे कुछ अच्छे से समझा पातीं. प्रेरणा कहती है, ‘‘मेरी नानी ने मुझे ससुराल में रिश्ते निभाने के कुछ टिप्स दिए. मैं हैरान रह गई जब उन्होंने पति के साथ शारीरिक संबंधों को ले कर बहुत ही सहज तरीके से मुझे समझा दिया, इस से मेरी कई तरह की भ्रांतियां दूर हो गईं.’’

करीब होते हैं ग्रैंड पेरैंट्स

दादी के पास हर समस्या का समाधान होता है. हालांकि नई पीढ़ी की लड़कियों को लगता है कि वृद्ध दादी के पास उन की समस्या का समाधान कैसे होेसकता है. बेटियां तब आश्चर्यचकित रह जाती हैं जब दादी, मां के मुकाबले अधिक व्यावहारिक सलाह दे देती हैं. यही वजह है कि प्रचारप्रसार यानी विज्ञापनों की दुनिया में भी बेटी और दादी के रिश्तों को ले कर ज्यादा विज्ञापन बनते हैं. दादी की सलाह केवल सेहत और खानपान तक से ही जुड़ी नहीं रहती, वे रिश्तों को ले कर भी बहुत सटीक सलाह देती हैं.

असल में दादी और दादा, जिन को पुरानी पीढ़ी का मान कर दरकिनार कर दिया जाता है, वे आज भी मातापिता से ज्यादा आधुनिक सोच वाले होते हैं. दादी और दादा की पीढ़ी के पास समय अधिक होता है. उन के पास करने को ज्यादा काम नहीं होता. वे अपनी आधुनिक सोच किसी पर दिखाएं तो लोग उन का मजाक उड़ाते हैं. ऐसे में अगर बेटा या बेटी उन के पास कुछ समय गुजारते हैं तो उन्हें दोहरा लाभ होता है. एक तो वे लोग खुद में व्यस्त हो जाते हैं. उन को लगता है कि परिवार में उन की पूछ बनी हुई है. बेटा न सही, उस के बच्चे उन की सलाह तो ले रहे हैं. परिवार को यह लाभ मिलता है कि बेटे और बाप के बीच आईर् दूरी को कम करने के लिए एक सेतु मिल जाता है. ग्रैंड पेरैंट्स जब परिवार के साथ नए साल की पार्टी में शामिल होंगे तो उन का उत्साह बढ़ जाएगा. इस से परिवार के बीच सामंजस्यभरा माहौल बनेगा.

सब की रुचि का खयाल रखें

नए साल में तमाम तरह की पार्टियों का आयोजन होता है. ऐसे आयोजन को तैयार करते समय घर की पुरानी पीढ़ी को ध्यान में रखें, इस बात की जरूरत बड़े स्तर पर महसूस की जा रही है. यही वजह है कि अच्छी सोच वाले स्कूल अब ग्रैंड पेरैंट्स मीटिंग भी कराने लगे हैं, जिस में बच्चे अपने ग्रैंड पेरैंट्स के साथ आते हैं. बच्चों को अपनी कमी या समस्याएं मांबाप से साझा करने में संकोच होता है. वे ग्रैंड पेरैंट्स से बात को शेयर करने में हिचक का अनुभव नहीं करते. अगर नए साल में ग्रैंड पेरैंट्स के साथ पार्टी सैलिब्रेशन होगा तो उस की खुशियां पूरे साल घरपरिवार को नई ऊर्जा देती रहेंगी.

नए साल में सर्दी बहुत होती है, ऐसे में पार्टी का आयोजन करते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि दादादादी किस तरह से उस में हिस्सा लेंगे. उन के खाने, ड्रैस कोड से ले कर मनोरंजन तक के अलग इंतजाम करने जरूरी होंगे. पार्टी इस तरह की न हो कि दादादादी केवल कोने में बैठे नजर आएं. आप उन की रुचियों को देखते हुए आयोजन करें ताकि वे लोग भी शामिल हो सकें. पार्टी का असली मजा तभी आता है जब सभी सक्रियता से शामिल हों. परिवार के सभी लोगों का पार्टी में हिस्सा लेना संबंधों को नई ऊर्जा देता है. घरपरिवार के माहौल को बेहतर बनाने के लिए ऐसे उत्सव जरूरी हो जाते हैं.

सुधरेंगे रिश्ते, बदलेगा माहौल

आमतौर पर नए साल की पार्टी में घर के बुजुर्ग लोगों को हाशिए पर रखा जाता है. इस का प्रमुख कारण यह होता है कि नए साल की पार्टी में शराब और जुआ जैसी बुराइयों वाले आयोजन होते हैं. ऐसे में बुजुर्गों के बीच यह संभव नहीं होता. इस कारण उन को घर पर ही छोड़ दिया जाता है. जब नए साल की पार्टी में घर के बुजुर्गों को शामिल किया जाएगा तो पार्टी के आयोजन में शराब और जुआ जैसी चीजें बाहर हो जाएंगी, आपसी रिश्तों में ऊर्जा आएगी. कई बार घरपरिवार के विवाद भी ऐसे आयोजनों से खत्म हो जाते हैं. इसलिए नए साल की ग्रैंड पार्टी में ग्रैंड पेरैंट्स को जरूर शामिल करें. इस से रिश्ते सुधरेंगे और घरपरिवार का माहौल बदलेगा.

पीढि़यों में दूरी को कम करने के लिए पार्टी का अपना अहम रोल होता है. यह नए साल के जश्न से ले कर फैमिली आउटडोर डिनर कुछ भी हो सकता है. आज के समय में पुरानी पीढ़ी केवल सोच के आधार पर ही नहीं, पहनावे और फैशन के लिहाज से भी नईर् पीढ़ी का मुकाबला करने को तैयार है. पार्टियों में ऐसे लोगों को संगीत पर थिरकते देखा जा सकता है. कई बार नई पीढ़ी उन से पीछे रह जाती है. नई पीढ़ी की सोच अब बदल रही है. वह पुरानी पीढ़ी के बीच सामंजस्य बैठा कर चलती है. ऐसे में यह चलन बढ़ रहा है और यह चलन आपसी रिश्तों को मजबूत भी कर रहा है.

डाक्टर बन चुका गौरव अपनी पसंद की लड़की से शादी करना चाहता था. उस के पिता चाहते थे कि वह रिश्तेदार की लड़की से शादी करे. वे लड़की भी पसंद कर चुके थे. बाप और बेटे के बीच विचारों का टकराव था. जिस के चलते गौरव शादी ही नहीं कर रहा था. ऐसे में गौरव के दादा ने पहल की और पिता को समझाया. जिस के बाद गौरव की शादी उस की पसंद की लड़की से हो गई. केवल शादी तक ही नहीं, गौरव के दादा ने शादी के बाद भी घरपरिवार, नातेरिश्तेदारों के बीच गौरव की पत्नी की ऐसी इमेज बना दी कि सभी उस की प्रशंसा करने लगे. ग्रैंड पेरैंट्स बच्चों के लिए बहुत जरूरी होते हैं. उन के बीच की कड़ी को जोड़ने के लिए नए साल की पार्टी जैसे अवसरों का लाभ उठाना चाहिए.

केवल कलैंडर का पन्ना बदलने या घड़ी की सूई की जगह बदलने से जीवन में खुशियां नहीं आतीं. जीवन में खुशियों को भरने के लिए सोच बदलने की जरूरत है. ऐसे आयोजन इस में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ग्रैंड पेरैंट्स के पास समय अधिक होता है. उन के समय का सदुपयोग करें और जीवन में नई ऊर्जा भरें. नए साल की शुरुआत की यह ऊर्जा पूरे साल बनी रहेगी.

ताकि रिश्तों में मिठास घुले

पार्टी किसी भी तरह की हो, उस से ऊर्जा मिलती ही है. परिवार के साथ नए साल की पार्टी में पूरे परिवार के लोग शामिल होंगे तो आपस में संबंध बेहतर होंगे. आमतौर पर नए साल की पार्टी को लोग अकेले सैलिबे्रट करना चाहते हैं. ऐसे में परिवार उपेक्षित रहते हैं. जिस से कई तरह की दूरियां आपस में पैदा हो सकती हैं. जब पूरा परिवार साथ रह कर पार्टी करेगा तो संबंध बेहतर होते हैं. खासकर हम ग्रैंड पेरैंट्स को इस में शामिल कर सकते हैं. एकसाथ कई पीढि़यां इस में तालमेल के साथ हिस्सा ले सकती हैं जो पूरे परिवार के लिए लाभकारी हो सकता है.

— रीना गुप्ता, समाजसेविका

पार्टी के नाम पर लोग कई तरह की बुराइयों के शिकार हो जाते है. केवल आदमी ही नहीं, औरतें भी पार्टी में शराब और जुए का शौक पूरा करती हैं. यह जीवन के लिए बहुत अच्छा नहीं होता. परिवार के साथ पार्टी करने से ऐसी बुरी आदतों से लोग बचे रहेंगे. परिवार के साथ होने से नशे और जुए जैसी आदतों से दूर रहेंगे. एकसाथ कई परिवार मिल कर भी ऐसे आयोजन कर सकते हैं. ऐसे में उस उम्र के लोगों में आपसी बातचीत से संबंध सुधरेंगे. पार्टी में परिवार के करीबी लोगों के शामिल होने से लोगों का एकदूसरे की रुचियों को समझना आसान हो जाता है.

— विनोद, बिजनैसमैन

ज्यादा प्यार न बन जाएं सिरदर्द

पति पत्नी का रिश्ता प्यार, विश्वास और समर्पण से जुड़ा होता है. जैसेजैसे समय बीतता जाता है यह रिश्ता और भी अधिक मजबूत होता जाता है. इस रिश्ते में किसी कारणवश आई खटास जहां रिश्ते में जहर घोल देती है, वहीं हद से ज्यादा प्यार भी दोनों के लिए नुकसानदाई साबित हो सकता है.

दरअसल, जब पार्टनर आप से ज्यादा प्यार करता है, तो वह भी आप से बेइंतहा प्यार की उम्मीद करता है. लेकिन समस्या उस वक्त आती है जब आप की बातों को आप का पार्टनर समझ नहीं पाता. ऐसे में आप का रिश्ता मुश्किल में पड़ जाता है.

ऐसी स्थिति में दोनों ही एकदूसरे के लिए गलत सोच रखने लगते हैं. एक को लगता है कि उस के प्यार की कोई अहमियत नहीं, तो दूसरा सोचता है कि उस का पार्टनर उस की पूरी आजादी छीन रहा है. ऐसे में दोनों के बीच दूरी आने लगती है. नौबत यहां तक आ जाती है कि एकदूसरे से अलग होना पड़ जाता है.

यह नौबत आप के सामने न आए, इस के लिए इन सुझावों पर गौर फरमाएं:

  1.  हमेशा नजर न रखें:

अकसर देखने में आता है कि जब हम किसी से प्यार करते हैं, तो हम सोचते हैं कि उस का हर तरह से ध्यान रखें. लेकिन हद तब होती है जब आप हद से ज्यादा अपने पार्टनर पर नजर रखने लगते हैं. बहुत ज्यादा प्यार की वजह से पार्टनर में खीज पैदा होती है, क्योंकि आप हर समय उस के खानेपीने, सोने, उठने, आनेजाने पर ध्यान रखने लगते हैं. ऐसे में उसे अपनी आजादी छिनती नजर आने लगती है. वह खुद को एक बंधन में बंधा सा महसूस करने लगता है.

2. स्पेस दें:

रिश्ता चाहे कोई भी हो, उस में स्पेस बेहद जरूरी है वरना उस रिश्ते का ज्यादा दिन टिक पाना मुश्किल है. स्पेस न देने से प्यार कम हो जाता है और लड़ाईझगड़े बढ़ते जाते हैं, जिस से नजदीकियों के बजाय रिश्ते में दूरियां पैदा होती जाती हैं.

3. हक न जताएं:

जब प्यार में स्पेस खत्म होती जाती है तो पार्टनर अपने व्यक्तित्व को खो देता है, साथ ही उस का मानसिक संतुलन भी बिगड़ता दिखता है. उसे बातबात पर गुस्सा आने लगता है, जिस की वजह से स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है. छोटीछोटी बात पर बहस आम बात बन जाती है. साथी पर हर वक्त हक जताना उसे गुस्सैल बना देता है.

4. हमेशा पार्टनर के साथ रहना:

ज्यादा प्यार करने वालों की यही कोशिश रहती है कि उन का पार्टनर हर जगह उन के साथ रहे, लेकिन यह भी हो सकता है कि पार्टनर का कभी दोस्तों या रिश्तेदारों के साथ जाने का मन हो. ऐसे में आप का प्यार उस के लिए सजा भी बन सकता है.

5. उम्मीद की हो सीमा:

कई बार हम अपने पार्टनर से हद से ज्यादा उम्मीद करने लगते हैं कि वह यदि मुझ से प्यार करता है तो मेरी हर उम्मीद पर खरा उतरेगा. जितना आप उस से प्यार करते हैं उतना ही वह भी आप से प्यार करे, यह आप के पार्टनर को बंधन में होने जैसा लगने लगता है. वह खुद को इस से निकालने की कोशिश में लग जाता है.

6. शक न करें:

जरूरी नहीं कि आप का पार्टनर हर छोटी से छोटी बात भी आप से पूछ कर करे. लेकिन आप उस से उम्मीद करने लगते हैं कि वह कोई भी कार्य आप से पूछ कर ही करे. आप के द्वारा हर समय फोन करते रहना कि आप का पार्टनर क्या कर रहा है, उस पर शक करते रहना, उस की हर छोटीबड़ी बात की खबर रखना आप के पार्टनर को चिड़चिड़ा बना देता है.

7. नजदीकियां हों सीमित:

हद से ज्यादा नजदीकी होने पर एकदूसरे के साथ तकरार होने की संभावना भी काफी बढ़ जाती है, क्योंकि हक जताना कभीकभी आदेश देने में बदल जाता है. इसलिए अपने पार्टनर को प्यार दें न कि अधिक प्यार. उसे खुद समझने दें कि आप की और आप के रिश्ते की क्या अहमियत है.

यदि आप चाहते हैं कि आप का प्यार कहीं आप दोनों के लिए सिरदर्द न बन जाए, तो रखें इन बातों का खयाल:

– यदि आप अपने पार्टनर से हद से ज्यादा प्यार करते हैं, तो आप अपना प्यार उस पर थोपें नहीं न ही जबरदस्ती करने का प्रयास करें.

– आप को लगता है कि जितना प्यार और ध्यान आप अपने पार्टनर का रखते हैं उतना ही वह आप का रखे, तो हमेशा किसी से प्यार या उस का ध्यान हम इस उम्मीद से नहीं रखते कि वह भी वैसा ही करे.

– हमेशा अपने पार्टनर के साथ चिपके न रहें. अपने प्यार को हद तक सीमित रखें.

– जब आप को लगने लगता है कि आप का पार्टनर आप पर ज्यादा दबाव बना रहा है, तो उस से अलग होना ही इस का हल न निकालें. उसे थोड़ा समय दें. किसी दबाव तले दोनों का रिश्ता ज्यादा दिन नहीं ठहर सकता.

– अगर आप अपने पार्टनर से जितना प्यार करते हैं उतना प्यार वह नहीं कर पा रहा है या आप के मनमुताबिक प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहा है, तो धैर्य रखें और पार्टनर से बात करें.

– रिश्ते में दिनप्रतिदिन बदलाव आते रहते हैं. वक्त के साथ सब कुछ बदल जाता है. लेकिन प्यार के लिए उम्मीदें पहले की तरह जिंदा रहती हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप रिश्ते में आ रहे बदलावों पर बात करते रहें.

– हमेशा रोकटोक और नोकझोंक से रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चलता. पार्टनर पर हमेशा नजर रखने में आप का प्यार नहीं है वरन अपने पार्टनर के प्रति अविश्वास नजर आता है.

प्यार में क्यों डूबती हैं किशोरियां

किशोरावस्था में विपरीत लिंग से प्यार होने के कारणों में सब से महत्त्वपूर्ण है इस उम्र में हारमोंस का विकास होना. इस बारे में मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि सात तालों में बंद करने के बाद भी इस वर्ग की किशोरियों को किसी के प्यार में पड़ने से नहीं रोका जा सकता. उन के अनुसार, ‘‘इस उम्र में किशोरकिशोरियों का शारीरिक विकास होता है और ऐसे हारमोंस की वृद्धि होती है जिन से मस्तिष्क प्रभावित होता है. इस के अलावा इसी बीच जननांगों का भी विकास होता है.’’

इन्हीं परिवर्तनों के कारण किशोरकिशोरियों में अपने जननांगों के प्रति उत्सुकता जागती है और किशोरियां कल्पनालोक में खोई इस परिवर्तन से आत्ममुग्ध होती रहती हैं. वे अपना अक्स किसी दूसरे में भी देखना चाहती हैं. उन की अपनी प्रशंसा उन्हें सतरंगी ख्वाब दिखाने लगती है. उम्र का यही पड़ाव उन में विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण पैदा करता है.

किशोरकिशोरियां इन शारीरिक परिवर्तनों से परस्पर आकर्षित होते हैं. यही झुकाव उन्हें प्यार की मंजिल दिखा देता है. वे दोनों अपना अधिकतर समय छिपछिप कर बातें करने व एकदूसरे की जिज्ञासाएं शांत करने में बिताते हैं. उन का यह सामीप्य उन में एक सुखद अनुभूति पैदा कर देता है, जिस से वे उन्मुक्त हो कर प्यार के बंधन में बंध जाते हैं.

आखिर कुछ किशोरकिशोरियां ही इस मार्ग को क्यों अपनाते हैं? समाजशास्त्रियों का मानना है कि बच्चे के सामाजीकरण में सामाजिक, पारिवारिक संस्थाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है. मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है, ‘‘इस उम्र में किशोरियों की स्थिति गरम लोहे के समान होती है और जब उन का माहौल उन पर चोट करता है तो वह उसी रंग में रंग जाती हैं.’’

  1. पारिवारिक वातावरण का प्रभाव

किशोरियों को घरेलू तनाव, हर वक्त की नोकझोंक से उत्पन्न तनाव प्रभावित करता है, इस से जूझते बच्चे प्यार का सहारा खोजते हैं. ऐसे में दूसरे के प्रति आकर्षित होना सहज है. एक किशोरी ने बताया कि वह कैसे कच्ची उम्र में ही प्यार करने लगी थी. उस की सौतेली मां का व्यवहार अच्छा न था. उस के दिन भर काम करने पर भी उसे प्यार के दो मीठे बोल सुनने को नहीं मिलते थे. इसी दौरान एक लड़का उसे विशेष रुचि से निहारता था, कई बार स्कूल जाते समय उस की प्रशंसा करता था, जबकि वह अपने घर के कड़वाहट भरे जीवन से उकता रही थी. इस लड़के से उसे असीम प्यार व सहानुभूति मिली तो वह भी उस से प्यार करने लगी.

2. स्कूल के माहौल का प्रभाव

स्कूल का माहौल भी काफी हद तक प्रभावित करता है. स्कूल में कुछ किशोरियां अपने प्यार के किस्से को बढ़ाचढ़ा कर सुनाती रहती हैं. सहेलियों की संगत उन्हें अपने रंग में रंग लेती है. ऐसे में छात्राओं में प्यार की प्रतिस्पर्धा होती भी देखी गई है. ऐसी परिस्थितियों में मांबाप की लापरवाही आग में घी का काम करती है. इस उम्र में किशोरियों को प्यार, सहानुभूति व उचित शिक्षा की जरूरत होती है. कभीकभी स्कूल जैसी पवित्र संस्था से जुड़े कुछ लोग इन किशोरियों के साथ गलत सलूक करते हैं. चूंकि बच्चे भयग्रस्त होते हैं अत: कुछ कह नहीं पाते. ऐसी परिस्थितियों पर निगाह रखना या जानकारी रखना मांबाप का कर्तव्य है. कच्ची उम्र में भय और भावना दोनों ही खतरनाक होते हैं.

3. मीडिया का प्रभाव

मीडिया भी किशोरियों को इस राह पर पहुंचाने के लिए काफी हद तक उत्तरदायी है. आज हमारे सशक्त मीडिया दूरदर्शन पर शिक्षा की अपेक्षा मनोरंजन पर अधिक बल दिया जा रहा है, जिस में उत्तेजक दृश्यों की भरमार रहती है. उत्तेजक दृश्यों से उत्पन्न वासना किशोरियों को गुमराह करती है.

4. अश्लील साहित्य का प्रभाव

साहित्य समाज का प्रतिबिंब होता है लेकिन आज हमारा साहित्य किशोरों की उत्तेजना भड़काने वाला अधिक होता जा रहा है. उस में अश्लील लेखन व चिंत्राकन की भरमार रहती है. रहीसही कसर अब इंटरनैट व मोबाइल ने पूरी कर दी है. इस स्थिति से निबटने के लिए किशोरियों को उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है. इस मार्गदर्शन में मां का उत्तरदायित्व सब से अधिक होता है.

5. बचाव के उपाय

पेरैंट्स को चाहिए कि बेटी के साथ मित्रता का भाव रखें. उस की समस्याओं को जान कर उन का निवारण करें. किशोर बेटी के प्रति लापरवाही न बरतें. समयसमय पर मां उस से यह जानकारी लेती रहें कि उसे कोई गुमराह तो नहीं कर रहा तथा उस की कोई समस्या या जिज्ञासा तो नहीं है.

घर की समस्याओं से भी किशोरियों को दूर न रखें, क्योंकि इस से वे अछूती रहती हैं तो उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का ज्ञान नहीं हो पाता है. उसे बच्ची कहने मात्र से आप का दायित्व खत्म नहीं होता बल्कि उस पर दायित्व डाल देना ज्यादा बेहतर है. छोटे भाईबहनों को पढ़ाना, उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना या घर के कामों में मां का हाथ बंटाना आदि ऐसे ही दायित्व हैं.

किशोरावस्था में किशोरियों को नितांत अकेला न छोडे़ं, क्योंकि एकांत कुछ न कुछ सोचने पर मजबूर करता है. जहां तक हो सके उन्हें व्यस्त रखें. व्यस्त रखने का मतलब उन से भारी काम लेना नहीं अपितु कुछ रुचिकर काम उन से लिया जा सकता है. खाली समय में व्यावसायिक शिक्षा भी दी जा सकती है. नाचगाने, पिकनिक, पर्वतारोहण, कंप्यूटर आदि का ज्ञान किशोरकिशोरियों की महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्रियाएं हैं.

अगर किसी किशोरी को किसी किशोर से प्यार हो जाता है तो उसे प्यार से समझाएं कि यह वक्त पढ़नेलिखने का है, प्रेम करने का नहीं. उन्हें मारेंपीटें नहीं और न ही जरूरत से ज्यादा पाबंदियां लगाएं. उन का ध्यान किसी क्रिएटिव काम को करने में लगाएं.

कच्चा रिश्ता है लिव इन

टीवी स्टार प्रत्यूषा बनर्जी अपने घर में फांसी के फंदे पर लटकी पाई गई, जो मूलतया जमशेदपुर की थी. प्रत्यूषा अपने बौयफ्रैंड राहुल राज के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी. वह राहुल से शादी करना चाहती थी. पुलिस तफ्तीश में यह बात भी सामने आई कि वह प्रैगनैंट थी.

जाहिर है प्रत्यूषा लिव इन के अपने कमजोर रिश्ते को विवाह के मजबूत बंधन में तबदील करना चाहती होगी, मगर उस का बौयफ्रैंड शायद इस के लिए तैयार नहीं था. नतीजा सब के सामने है. इस मानसिक पीड़ा ने अंतत: उस के जीवन को लील लिया.

लिव इन आज की बदलती जीवनशैली के अनुरूप युवाओं द्वारा ईजाद किया गया थोड़ा कम आजमाया कौंसैप्ट है. पहले लड़के बाइयों के यहां पड़े रहते थे या फिर उन के भाभियों, कजिनों के साथ संबंध तो होते थे पर वे एक घर में नहीं रहते थे. घर नहीं चलाते थे.

लड़केलड़की की कपल्स की तरह साथ रहने की व्यवस्था यानी लिव इन में वैवाहिक जिंदगी की हसरतें तो पूरी होती हैं, एकदूसरे का साथ भी मिलता है पर लंबी जिम्मेदारियां निभाने का कोई वादा नहीं होता. कभी भी अलग हो जाने की आजादी रहती है. यह कौंसैप्ट शादी के लिए तैयार नहीं लोगों को लुभावना नजर आता है, पर अंदर से उतना ही खोखला और अस्थाई तो है ही, पर उस में भी बहुत जिम्मेदारियां भरी पड़ी हैं. शायद यही वजह है कि ज्यादातर लोग खासकर लड़कियां आज भी इसे स्वीकार नहीं कर पातीं.

अधूरेपन की कसक

एक तरह से यह रिश्ता धार्मिक मान्यताओं की जकड़न, सामाजिक रीतिरिवाजों और शोशेबाजी के रंग से दूर है और कानून ने भी इसे कुछ हद तक मान्यता दे दी है. मगर फिर भी इस रिश्ते के अधूरेपन को अनदेखा नहीं किया जा सकता खासकर लड़कियां इस तरह के रिश्ते में कई बार गहरी मानसिक पीड़ा से गुजरती हैं.

दरअसल, लिव इन में रिश्ता जब गहरा होता है और दोनों एकदूसरे के करीब आते हैं, शारीरिक संबंध बनते हैं, तो वह जज्बा लड़की के मन में हमेशा साथ रहने की चाहत को जन्म देता है.

50 मिनट की नजदीकी 50 सालों के साथ की इच्छा में बदलने लगती है. मगर जरूरी नहीं कि लड़का भी इसी रूप में सोचे और जिम्मेदारियां निभाने को तैयार हो जाए.

ज्यादातर मामलों में इस बात पर रिश्ता टूट जाता है और अंतत: शारीरिक प्रेम की बुनियाद पर बना यह रिश्ता उम्र भर की कसक बन कर रह जाता है. कई दफा इस टूटन से उत्पन्न पीड़ा इतनी गहरी होती है कि लड़की स्वयं को खत्म कर लेने जैसा बेवकूफी भरा कदम उठाने को भी तैयार हो जाती है जैसाकि प्रत्यूषा ने किया.

ऐसे रिश्तों में प्यार कम विवाद ज्यादा

इस रिश्ते में लड़केलड़कियों का एकदूसरे पर पूरा हक नहीं होता. वे जौइंट डिसीजन भी नहीं ले सकते. जैसाकि विवाहित दंपती लेते हैं. उदाहरण के लिए संपत्ति या तो लड़के की होती है या फिर लड़की की. दोनों का हक नहीं होता. दूसरे का यह पूछने का हक नहीं कि रुपए किस प्रकार खर्च हो रहे हैं. दोनों अपने रुपए अपने हिसाब से खर्च करते हैं.

इसी वजह से अकसर इन के बीच हक और अधिकार की लड़ाई होती रहती है. इन विवादों का निबटारा सहज नहीं होता. वे प्रयास करते हैं कि प्यार जता कर या आपस में बात कर मसला सुलझाया जाए, मगर अकसर ऐसा हो नहीं पाता, क्योंकि किसी भी रिश्ते को बनाए रखने और 2 लोगों को करीब रखने के लिए जो गुण सब से ज्यादा जरूरी हैं वे हैं, विश्वास, ईमानदारी, पारदर्शिता और आत्मिक निकटता.

इन्हें विकसित करने के लिए समय चाहिए होता है. महज भौतिक या शारीरिक निकटता मानसिक और भावनात्मक जुड़ाव भी दे, यह जरूरी नहीं. ऐसे खोखले रिश्ते में कड़वाहट का दौर आसानी से खत्म नहीं होता.

जिम्मेदारियों से भागना सिखाता है लिव इन

लिव इन रिलेशनशिप वास्तव में भावनात्मक बंधन के आधार पर साथ रहने का एक व्यक्तिगत और आर्थिक प्रबंध मात्र है. इस में हमेशा के लिए एकदूसरे का साथ देने का कोई वादा नहीं होता, न ही पूरे समाजकानून के आगे इस तरह का कोई अनुबंध ही किया जाता है. इस वजह से पार्टनर्स एकदूसरे पर (लिखित/मौखिक) किसी तरह का कोई दबाव नहीं बना सकते. ऐसा रिश्ता एक तरह से रैंटल ऐग्रीमैंट के समान होता है. यह बड़ी सहजता से बनाया जाता है और जब तक दोनों पक्ष सही व्यवहार करते हैं, एकदूसरे को खुश रखते हैं तभी तक वे साथ होते हैं. इस के विपरीत शादी इस पार्टनरशिप से बहुत ज्यादा गहरी है. यह एक सार्वभौमिक तौर पर किया गया अनुबंध है, जिस के साथ कानूनी और सामाजिक जिम्मेदारियां जुड़ी होती हैं. वस्तुत: शादी न सिर्फ 2 लोगों वरन 2 परिवारों व समुदायों के बीच बनाया गया रिश्ता है, जो उम्र भर के लिए स्वीकार्य है. जीवन में कितने भी दुख, परेशानियां आएं, आपसी बंधन कायम रखने का वादा किया जाता है.

कहा जा सकता है कि जब दिल मिल रहे हों तो रस्मोरिवाज की क्या जरूरत? मगर यहां बात सिर्फ रस्मों की नहीं वरन सामाजिक तौर पर की गई कमिटमैंट की है, सदैव जिम्मेदारियां उठाने की कमिटमैंट, हमेशा साथ निभाने की कमिटमैंट, विवाह में एक डिफरैंट लैवल की कमिटमैंट होती है, इसलिए एक डिफरैंट लैवल की सुरक्षा, आजादी और परिणामस्वरूप डिफरैंट लैवल की खुशी भी प्राप्त होती है. यह उस से बिलकुल अलग है, जो रिश्ता महज तब तक निभाया जाता है जब तक कि परस्पर प्यार और आकर्षण कायम है. बेहतर विकल्प मिलते ही अलग होने का रास्ता खुला होता है. हमेशा इस बात के लिए तैयार रहना पड़ता है कि कभी भी रिश्ता खत्म हो सकता है.

वफा चाहिए तो लिव इन नहीं

जब बात वफा की आती है, तो शादीशुदा पार्टनर इस दृष्टि से काफी लौयल पाए जाते  हैं. 5 सालों के एक अध्ययन के मुताबिक 90% विवाहित महिलाएं पतिव्रता पाई गईं, जबकि लिव इन में रह रहीं सिर्फ 60% महिलाएं ही लौयल निकलीं.

पुरुषों के मामले में स्थिति और भी ज्यादा आश्चर्यजनक रही. 90% विवाहित पुरुष अपनी पत्नी के प्रति वफादार रहे, जबकि लिव इन के मामले में केवल 43% पुरुष.

यही नहीं, लिव इन का प्रकोप यानी प्रीमैरिटल सैक्सुअल ऐटीट्यूड और बिहेवियर शादी के बाद भी नहीं बदलता. यदि एक महिला शादी से पहले किसी पुरुष के साथ रहती है, तो यह काफी हद तक संभव है कि वह शादी के बाद भी अपने पति को धोखा देगी.

अध्ययनों व अनुसंधानों के मुताबिक यदि कोई शख्स शादी से पहले सैक्स का अनुभव करता है, तो इस की संभावना काफी ज्यादा रहती है कि शादी के बाद भी उस के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स रहेंगे. यह खासतौर पर महिलाओं के लिए ज्यादा सच है.

पेरैंट्स से दूरी

लिव इन में रह रहे लड़केलड़कियों की जिंदगी में सामान्यतया मांबाप का दखल नाममात्र का होता है, क्योंकि इस बाबत उन की सहमति नहीं होती और वे अपने बच्चों से दूरी बना लेते हैं.

यदि वे घर वालों को इस बात की जानकारी नहीं देते, तो ऐसे में इस राज को छिपा कर रखना भी आसान हीं होता. कई तरह के मसले जैसे मांबाप से पैसों की मदद लेना, पार्टनर और उस के सामान को छिपाना जब अभिभावक अचानक मिलने आ रहे हों, लगातार उन की इच्छा के विरुद्ध जाने का अपराधबोध और झूठ बोलना जैसी बहुत सी बातें हैं, जो लिव इन में रहने वालों को बेचैन करती हैं.

विश्वास की कमी

जो शादी से पहले साथ रहते हैं, उन में अकसर अविश्वास का भाव विकसित होता है. परिपक्व प्रेम में गहरा विश्वास होता है कि आप का प्यार सिर्फ आप का है और कोई बीच में नहीं. मगर शादी से पहले ही नजदीकी बना लेने पर व्यक्ति के मन में कई तरह के शक पैदा होने लगते हैं कि कहीं इस की जिंदगी में मुझ से पहले भी तो कोई नहीं रहा या मेरे अलावा भविष्य में किसी और के साथ भी इस के संबंध तो नहीं बन जाएंगे.

इस तरह के अविश्वास और संदेह के भाव गहराने से व्यक्ति धीरेधीरे अपने पार्टनर के प्रति प्यार व सम्मान खोने लगता है जबकि शादीशुदा जिंदगी में विश्वास एक अहम फैक्टर होता है.

– 68% युवाओं का कहना था कि लिव इन प्यार (लव) नहीं वासना (लस्ट) है.

– 72% ने माना कि लिव इन का अंत ब्रेकअप में होता है.

– 36% महिलाओं ने ही इसे अच्छा माना.

– 52% युवा लड़कों ने लिव इन की जिंदगी जीने में रुचि दिखाई.

– 89% अभिभावकों ने कहा कि विवाह से पूर्व सैक्स स्वीकार्य नहीं.

– 51% युवाओं ने ही इसे गलत माना.

यशराज प्रोडक्शंस व औरमैक्स मीडिया द्वारा किए गए ‘शुद्ध देशी इंडिया की रोमांटिक सोच’ सर्वे से प्राप्त आंकड़े.

 

लिव इन रिलेशनशिप

भावनात्मक बंधन के आधार पर साथ रहने का एक व्यक्तिगत व आर्थिक प्रबंध मात्र है. इस में हमेशा के लिए एकदूसरे का साथ देने का कोई वादा नहीं होता…

पहले मजा बाद में सजा

‘‘देश की अदालतों में लिव इन में रहने वाले जोड़ों के मुकदमे दिनबदिन बढ़ रहे हैं. शारीरिक व भौतिक जरूरत के लिए लिव इन में रहना बाद में मुश्किल भी खड़ी कर सकता है. इन मामलों में आमतौर पर शादी का वादा कर के मुकरना, घरेलू हिंसा और यहां तक कि बलात्कार करने तक का संगीन आरोप लगता है. आपसी झगड़े का रूप कईकई बार बेहद आपराधिक हो जाता है. लड़कियां आत्महत्या कर लेती हैं, तो कई मामलों में लड़कियों की हत्या भी कर दी जाती है. हालिया हुई कई वारदातें इस बात का सुबूत हैं.’’

– अवधेश कुमार दुबे, ऐडवोकेट, दिल्ली हाई कोर्ट

आसान नहीं रहती जिंदगी

‘‘भारत में शहरी जनसंख्या खुले विचारों की है. उस पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी है. आज शिक्षा और नौकरी के कारण युवा बड़ी संख्या में अपने घरों से दूर रह रहे हैं, इसलिए लिव इन रिलेशनशिप का चलन लगातार बढ़ रहा है. आज की पीढ़ी के लिए यह एक अच्छा चलन है, क्योंकि इस में विवाह जितनी जटिलताएं नहीं हैं. इस में मूव इन और मूव आउट काफी आसान है. लेकिन यही इस रिश्ते की सब से बड़ी कमी भी है, क्योंकि इसी के कारण इस रिश्ते में असुरक्षा और अनिश्चित भविष्य की चिंताएं घर करने लगती हैं. अकसर लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोग असुरक्षा, गुस्सा, दुख, भ्रम, अवसाद और भावनात्मक उथलपुथल के शिकार हो जाते हैं.

‘‘भारतीय समाज का तानाबाना ऐसा है कि यहां आज भी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों पर परिवार और समाज का बहुत अधिक दबाव होता है. थोड़ी उम्र बीतने के बाद हर इनसान अपने जीवन में स्टैबिलिटी चाहता है, अपना परिवार बढ़ाना चाहता है. लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों में बच्चों को जन्म देने, उन्हें समाज, परिवार की मान्यता मिलने और उन के भविष्य को ले कर कई प्रकार की आशंकाएं होती हैं. वे हमेशा इस द्वंद्व में रहते हैं कि परिवार बढ़ाएं या न बढ़ाएं? इन पर हमेशा एक मानसिक दबाव रहता है. इस सब का मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मानसिक दबाव के कारण

इन लोगों का इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है, जो इन्हें बीमारियों का आसान शिकार बनाता है.’’

– डा. गौरव गुप्ता, मनोचिकित्सक, तुलसी है

पुरुषों को क्यों भाती हैं बड़ी उम्र की महिलाएं

1981 में रिलीज हुई ‘प्रेम गीत’ फिल्म के गाने की एक लाइन ‘न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन…’ बौलीवुड सितारों पर एकदम सटीक बैठती है. इन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में मलाइका अरोड़ा और एक्टर अर्जुन कपूर के अफेयर की चर्चा है और इस से ज्यादा चर्चा उन के बीच एज गैप की है. दोनों की उम्र में लगभग 11 साल का अंतर है. इस वजह से उन्हें अकसर सोशल मीडिया पर ट्रोल होना पड़ रहा है.

एक इंटरव्यू के दौरान मलाइका अरोड़ा ने कहा था कि हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां अगर एक उम्रदराज उम्र की महिला अपने से कम उम्र के लड़के से प्यार करे, तो लोग उसे ऐक्सैप्ट नहीं करते हैं.

समाज में यह धारणा है कि शादी के वक्त लड़की की उम्र लड़के से कम होनी चाहिए क्योंकि माना जाता है कि पति घर का मुखिया होता है तो उसे अनुभवी और ज्यादा सम  झदार होना चाहिए. भारत में सरकार की तरफ से भी शादी की कानूनन उम्र लड़के के लिए 21 साल और लड़की के लिए 18 रखी है.

मगर बदलते समय में प्यार करने के अंदाज में भी काफी बदलाव आया है और इस का सब से बड़ा उदाहरण है लड़कों का अपनी उम्र से बड़ी लड़कियों के प्रति आकर्षित होना. अब उम्र के अंतर को नजरअंदाज कर प्यार और सम्मान के भाव से देखा जा रहा है. लड़के अपने से उम्र में छोटी नहीं, बल्कि खुद से बड़ी लड़कियों को ज्यादा पसंद करने लगे हैं. बौलीवुड से ले कर हौलीवुड तक में इस तरह के कई कपल्स मिल जाएंगे जिन की उम्र में काफी अंतर है.

इमैनुएल मैक्रों: फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों अपनी पत्नी ब्रिजेट मैक्रों से 24 साल छोटे हैं. जिस वक्त इमैनुएल मैक्रों स्कूल में पढ़ते थे तब ब्रिजिट उन की टीचर थीं और दोनों के बीच उसी समय प्रेम परवान चढ़ा था.

उर्मिला मातोंडकर: ऐक्ट्रैस उर्मिला मातोंडर ने अपने से 9 साल छोड़े लड़के मीर मोहसिन अख्तर से शादी की. मोहसिन बिजनैस करने वाले कश्मीरी परिवार से हैं.

फराह खान: बौलीवुड की जानीमानी डायरैक्टर और कोरियाग्राफर फराह खान ने भी अपने से 9 साल छोटे शिरीष कुंदर से 2004 में शादी की और आज वे 3 बच्चों के मातापिता हैं. फराह खान ‘मैं हूं न’ फिल्म के सैट पर शिरीष कुंदर से पहली बार मिली थीं और फिर दोनों में प्यार हो गया.

प्रीति जिंटा: ऐक्ट्रैस प्रीति जिंटा ने अपने से 10 साल छोटे जीन गुडइनफ से 2016 में शादी की और आज वे अपने पति के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही हैं.

प्रियंका चोपड़ा: ऐक्ट्रैस प्रियंका चोपड़ा ने कुछ अरसा पहले ही क्रिश्चियन और हिंदू रीतिरिवाज के साथ हौलीवुड ऐक्टर और सिंगर निक जोनस से शादी की थी. दोनों का अफेयर काफी चर्चा में रहा. निक जोनस प्रियंका से 10 साल छोटे हैं.

सैक्सुअल प्रैजेंटेशन महिलाओं के लिए बेहद माने रखता है, साथ ही फिजिकल और इमोशन दोनों ही भावनाओं को बांटती हैं. इसलिए पुरुष और महिलाओं की उम्र का यह कौंबिनेशन परफैक्ट कहा जा रहा है. और भी बहुत से कारण है जिन के चलते पुरुष को बड़ी उम्र की महिलाएं भा रही हैं जैसे:

आत्मविश्वास: बड़ी उम्र की महिलाएं अपनेआप को बहुत अच्छी तरह सम  झती हैं. कोईर् भी फैसला वे बचपने में नहीं, बल्कि बहुत सोचसम  झ कर लेती हैं. वे अपनेआप में बहुत हद तक मैनेज्ड होती हैं. वे जानती हैं कि उन्हें अपनी लाइफ से क्या अपेक्षाएं रखनी चाहिए और क्या नहीं. वे आत्मविश्वासी होती हैं और इसीलिए पुरुष को मैच्योर महिलाएं ज्यादा आकर्षित करती हैं.

जिम्मेदार: समय और तजरबे के साथ मैच्योर महिलाएं जहां अपनी सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाना सीख जाती हैं, वहीं वे मुश्किल परिस्थियों का भी अच्छी तरह से सामना कर पाती हैं. कई मामलों में वे न सिर्फ अपने तजरबे की मदद लेती हैं बल्कि जरूरत पड़ने पर इन के हल भी ढूंढ़ निकालती हैं जिस की वजह से कई जगहों पर पुरुष उन के साथ रिलैक्स महसूस करते हैं. ऐसी महिलाएं अपने कैरियर को ले कर काफी सैट होती हैं. अपनी लाइफ को और बेहतर बनाने के लिए पुरुषों को ऐसी ही जिम्मेदार साथी की जरूरत होती है जो हर पथ पर उन के साथ कंधे से कंधा मिला कर चले.

स्वतंत्र: युवतियों और किशोरियों से एकदम अलग सोच रखने वाली बड़ी उम्र की महिलाएं मानसिक तौर पर स्वतंत्र होती हैं. अकसर बड़ी उम्र की महिलाएं कमाऊ होती हैं और पूरी तरह से आत्मनिर्भर होती हैं. जरूरत पड़ने पर वे अपने साथी की आर्थिक रूप से सपोर्ट भी करती हैं.

ईमानदार: प्रेम संबंधों में सम्मान और स्पेस दोनों ही अलग महत्त्व रखते हैं. और बड़ी उम्र की महिलाएं यह बात सम  झती हैं. वे अपने रिश्ते के प्रति बहुत ईमानदार होती हैं, साथ ही अपने साथी की भावनाओं को भी सम  झती हैं.

अनुभवी: बड़ी उम्र की महिलाएं अनुभवी होती हैं क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ अनुभव कर लिया होता है. इसलिए जीवन में आने वाली मुश्किलों के लिए वे तैयार रहती हैं.

बात करने का सलीका: बड़ी उम्र की महिलाओं का व्यवहार, पल में तोला पल में मासा की तरह नहीं होता यानी जल्दीजल्दी बदलता नहीं रहता. वे कोई भी काम सोचसम  झ कर और बड़े सलीके से करती हैं.

सैक्स: शरमाने की जगह बड़ी उम्र की महिलाएं सैक्स के दौरान अपने पार्टनर को सपोर्ट करती हैं. वे स्पष्ट तौर पर बता देती हैं कि उन्हें अपने पार्टनर से क्या अपेक्षाएं हैं जो पुरुष को काफी पसंद आता है.

उम्र से नहीं पड़ता खास फर्क

आज के तेजी से बदलते समय में किसी की उम्र का सही अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल काम है खासतौर से महिलाओं की और वैसे भी आज के युवाओं के लिए जीवनसाथी की उम्र से ज्यादा उस की प्रतिभा, सम  झ और सूरत ज्यादा माने रखती है.

स्वाभाविक प्रक्रिया

पुरुषों का महिलाओं की ओर आकर्षित होना हमेशा से ही स्वाभाविक प्रक्रिया रही है. प्रकृति ने वैसे भी पुरुष और महिला को एकदूसरे के पूरक के तौर पर बनाया है जिस की वजह से इन दोनों के बीच परस्पर आकर्षण होना स्वाभाविक है. लेकिन जब यह आकर्षण अपने से बड़ी उम्र की महिला के प्रति होने लगे तो यह खास बन जाता है.

हाल ही मेें एक रिसर्च में पाया गया है कि पुरुष अपने से बड़ी उम्र की महिला से संबंध बनाने के बाद मानसिक और शारीरिक रूप से ज्यादा संतुष्टि प्राप्त करते हैं.

मर्द और औरत की उम्र में इस अंतर में रिलेशनशिप बनते देखे जाना आज आम बात होती जा रही है. लेकिन इस के क्या कारण हैं? क्या उम्र के साथ जहां खूबसूरती ढलती है, वहीं कुछ सकारात्मक चीजें महिलाओं में बढ़ जाती हैं जिन्हें पुरुष शायद नोटिस करते हैं या ऐसी क्या चीजें हैं जो पुरुष को बड़ी उम्र की महिलाओं की ओर आकर्षित कर रही है. चलिए जानते हैं, इस संबंध में क्या कहते हैं साइकोलौजिस्ट:

कुछ साइकोलौजिस्ट ऐसा मानते हैं कि 45 से 50 की उम्र में महिलाओं में सेक्स के प्रति उत्तेजना और सम  झ बढ़ जाती है और किसी कम उम्र महिला की तुलना में वे पुरुष को ज्यादा संतुष्ट कर सकती हैं. तो यह भी एक कारण है कि पुरुष मैच्योर महिलाओं के प्रति आकर्षित होते हैं. वहीं कई शोध बताते हैं कि जहां पुरुष इंटीमेट होने में ज्यादा वक्त नहीं लगाते वहीं महिलाओं को इस के लिए वक्त चाहिए होता है. वे भी अपने से कम उम्र पुरुष की ओर अट्रैक्ट होती हैं क्योंकि वे अधिक ऊर्जावान होते हैं.

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