Monsoon Special: मौनसून का मजा लेना है तो इन 5 जगह जाना न भूलें

अगर हम बात करे मौनसून में घूमने की तो इसका अपना अलग ही मजा है. हम तो कहेंगे की आप भी इस मानसून इससे चूकिए नहीं. बैगपैक करिये और बारिश का मजा नए अंदाज में उठाइये. हम आपको कुछ ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपके मौनसून ट्रेवल को खास बना देंगे.

1. दूधसागर

मौनसून में लोग अक्सर गोवा को औफ सीजन बोलते हैं. पर आप मौनसून में ही गोवा का लुत्फ लेने जरूर जाएं. लोगों से भरे बीचों की जगह आप बारिश की फुहारों और ठंडी हवाओं के साथ साउथ गोवा और कर्नाटक बौर्डर पर दूधसागर झरने का आनंद लें. ये वही झरना है जो फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस में भी नजर आया था. जिसके उपर रेलवे ट्रैक था. इस लोकेशन को लोगों ने बहुत सराहा था. घने जंगलों से घिरे दूधसागर को देखने के लिए जून से सितंबर के बीच काफी संख्या में लोग आते हैं. इस झरने को दूर से देखने पर पहाड़ों से दूध का सागर बहता नजर आता है.

2. लोनावला                

लोनावला के पहाड़ों और घाटियों की खूबसूरती देखने के लिए मौनसून से बेहतर कोई मौसम नहीं होता है. इसे इंडिया का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है. मौनसून के दौरान यहां प्रकृति को बहुत पास से देखा जा सकता है. और हां अगर आप यहा जा रहे हैं तो लोनावला के टाइगर प्वाइंट पर भाजी खाना ना भूलें. यह आपके सफर को रोमांचक बना देगा.

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3. उदयपुर

पहाड़ों पर जाने का मन हो तो उदयपुर घूम आइये. मौनसून के दिनों में उदयपुर की खूबसूरती बढ़ जाती है. उदयपुर में आपको रंगीन राजस्थान की खूबसूरत झलक देखने को मिलेगी. राजस्थानी कल्चर और यहां के महल आपकी सारी थकान और परेशानी को दूर कर देंगे. ऊपर से बारिश की गिरती बूंदे आपको दीवाना बना देंगी.

4. आगरा

मानसून के मौसम को रोमांटिक मौसम भी कह सकते हैं. इस मौसम में रोमांटिक फीलिंग भी बढ़ने लगती है. तो फिर आप प्यार की निशानी कहे जाने वाले शहर आगरा घूम आइये. दिल्ली के पास सटे आगरा शहर में देश के सात अजूबों में से एक ताजमहल देख आइये. ताजमहल के अलावा भी यहां कई किले और महल हैं, जो विदेशी पर्यटकों को आगरा आने पर मजबूर करती हैं.

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5. पुडुचेरी

पुडुचेरी में वैसे तो बिन मौसम भी बरसात होती ही रहती है. लेकिन मौनसून की बारिश एक अलग ही मजा देती है. पुडुचेरी देश के टौप पर्यटन स्थल की लिस्ट में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला स्थान है. मौनसून के मौसम में पुडुचेरी की सैर एक अनोखा और यादगार पल होगा.

Summer Special: नेचर का लेना है मजा, तो केरल है बेस्ट औप्शन

गरमी की हों या सर्दी की, केरल भारत के बेस्ट पर्यटन स्थलों में से एक है. कतार में उगे नारियल के पेड़, बैकवाटर और नेचुरल खूबसूरती से सराबोर केरल की हरीभरी भूमि को रोमांटिक पर्यटन स्थल का दर्जा देता है. परिवार के साथ छुट्टियां बिताने के लिए केरल सब से अच्छा औप्शन है. यदि आप नेचर लवर हैं तो केरल में आप को नेचुरल खूबसूरती के साथ नेचर से जुड़े रोचक बातें जानने व देखने को मिल जाएंगे.

टीक म्यूजियम

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केरल में घूमने की जगहों में पौपुलर है निलांबुर का टीक म्यूजियम. इस म्यूजियम में 80 से 100 फुट लंबे सागौन के पेड़ों से जुडी विस्तृत जानकारी और उस के ऐतिहासिक तथ्य मौजूद हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस म्यूजियम को दुनियाभर में एक अलग तरह का म्यूजियम होने का दर्जा मिला है. केरल वन अनुसंधान संस्थान परिवार में 1995 में निर्मित यह म्यूजियम 2 मंजिली इमारत में है.

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निलांबुर में इस तरह का म्यूजियम होने की कुछ ऐतिहासिक वजहें भी हैं. दरअसल, निलांबुर वह जगह है जहां दुनियाभर में सबसे पहले सागौन के पेड़ लगाए गए थे. 1840 में ब्रिटिश शासनकाल में निलांबुर में सागौन के पेड़ों का रोपण कर उसकी लकड़ी को इंग्लैंड भेजा जाता था.

ऐसी ही कुछ और रोचक जानकारियों से भरा यह म्यूजियम सालभर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

रोचक जानकारियों से भरा म्यूजियम सालभर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित

म्यूजियम की रोचकता उसके एंट्री गेट से ही पता चल जाती है जहां 55 साल पुराने सागौन के पेड़ की जटिल जड़ प्रणाली के शानदार दृश्य मौजूद है. म्यूजियम के निचले तल में संरक्षित कन्नीमारा सागौन की ट्रांसलाइट, जो कि परम्बिकुलम वाइल्ड लाइफ सैंचुरी में पाया गया सबसे पुराना सागौन का पेड़ है, इसके साथ ही, यहां 160 साल पुराना कोन्नोल्ली के प्लांट से लाया गया बहुत बड़ा सागौन वृक्ष भी है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.

उरु नाम के प्राचीन समुद्री पोत का लकड़ी से बना मौडल और विभिन्न आकारों में सागौन की लकड़ी से बने खंभे भी निचले तल में देखने को मिलते हैं. यहां सबसे दिलचस्प नजारा नागरामपारा से लाए गए 480 वर्ष पुराने सागौन के पेड़ का है.

वैसे, सागौन के पेड़ के अलावा इस म्यूजियम का दूसरा सब से रोचक हिस्सा यहां मौजूद 300 तरह की अलग-अलग तितलियों और विभिन्न प्रकार के छोटे जानवरों का संग्रह है. इसके साथ ही, सागौन के पेड़ों की कटाई को दर्शाती पेंटिंग्स, खेती में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक औजार और तस्वीरें म्यूजियम की रोचकता को और भी बढ़ा देती हैं.

और भी हैं ठिकाने…

टीक म्यूजियम देखने के बाद निलांबुर में पर्यटकों के लिए और भी कई ठिकाने हैं, जहां घूम कर नेचुरल खूबसूरती का आनंद उठाया जा सकता है. नीलांबुर के पास ही स्थित नेदुनायकम, अपने वनों, हाथियों और लकड़ी से बने रेस्टहाउस के लिए बहुत प्रसिद्ध है.

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यदि आप निलांबुर से कुछ यादें समेट कर ले जाना चाहते हैं तो कुछ ही दूरी पर मौजूद छोटे से गांव अरुवेकोड जा कर कुछ खरीदारी कर सकते हैं. यह स्थान अपने पौपुलर मिट्टी के बरतनों के लिए जाना जाता है. पर्यटक अपने लिए और अपने रिश्तेदारों के लिए यहां से समान खरीदते हैं.

ठहरने की है अच्छी व्यवस्था…

नीलांबुर में यात्रियों के ठहरने की अच्छी व्यवस्था है. यहां होटलों और रिजौर्ट की सुविधा के साथ ही स्थानीय लोगों ने अपने ही घरों में भी किराए पर कमरे देने की व्यवस्था कर रखी है. यह सुविधा सस्ती होने के साथ ही आप को खूबसूरत नेचुरल दृश्य देखने का भी मौका देती है. नीलांबुर के रैस्तरां में टेस्टी और पारंपरिक मालाबारी खाने का जायका भी आपको इस जगह की बार-बार याद दिलाएगा.

तो फिर देर मत करिए, घूमने की प्लानिंग कर लीजिए.

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Summer Special: पहाड़ों की तराई में बिखरा सौंदर्य ‘मनाली’

पहाडि़यों की तराई में बसा हुआ खूबसूरत शहर है मनाली. चारों ओर ऊंची ऊंची पहाडि़यों और बीच में बहते झरनों की सायं सायं की आवाजें बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेती हैं. हरियाली देख कर पर्यटकों की थकान छूमंतर हो जाती है. सीजन में पड़ने वाली बर्फ का नजारा भी अद्भुत है. समुद्रतल से 2,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मनाली व्यास नदी के किनारे बसा है. व्यास नदी में ऐंडवैंचर के शौकीन लोग राफ्टिंग का मजा ले कर अपनी ट्रिप को यादगार बनाते हैं. अगर आप भी वहां ऐसा ही मजा लेना चाहते हैं तो मनाली जरूर जाएं. यहां ठहरने के लिए होटल, रिजौर्ट्स, लौज काफी संख्या में हैं. ठहरने की इन व्यवस्थाओं में एक है हाइलैंड पार्क रिजौर्ट जो बहुत ही आनंददायक व खूबसूरत है. मनाली के हाईलैंड पार्क रिजौर्ट में रुक कर आप का मन प्रफुल्लित हो जाएगा क्योंकि इस रिजौर्ट से ही आप को चारों ओर बर्फ से ढ़के पहाड़, उन से बहते झरने दिखाई देते हैं. साथ ही, सेबों के बागान देख कर आप खुद को काफी फ्रैश फील करेंगे. आप को रहने, खानेपीने, रिलैक्स करने, घूमने जाने के लिए गाड़ी जैसी सभी सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं.

इस संबंध में रिजौर्ट के एमडी अंबरीश गर्ग बताते हैं, ‘‘रोहतांग पास, सोलंग वैली, तिब्बती मार्केट आदि उन के रिजौर्ट से बहुत नजदीक हैं. सो, यहां ठहर कर आप आसपास के इलाके को आसानी से घूम सकते हैं और प्रकृति को करीब से निहार सकते हैं.’’

अन्य दर्शनीय स्थल

मनाली के आसपास सैलानियों के लिए बहुतकुछ है. आप जब भी वहां जाएं, इन जगहों को निहारना न भूलें:

रोहतांग दर्रा : यह 3,979 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होने के साथसाथ मनाली से 51 किलोमीटर दूर है. स्नो लवर्स को यह जगह खास लुभाती है क्योंकि यहां आ कर वे स्नो स्कूटर, स्कीइंग, माउंटेन बाइकिंग और ट्रैकिंग जैसी ऐडवैंचरस गतिविधियों को अंजाम दे कर खुद को सुकून जो पहुंचाते हैं. यहां आने का सब से अच्छा समय मई से जून और अक्तूबर से नवंबर का है. यहां आ कर प्रकृतिप्रेमी ग्लेशियर्स और लाहौल घाटी से निकलने वाली चंद्रा नदी के खूबसूरत नजारों को न देखें, ऐसा नहीं हो सकता. सिर्फ इतना ही नहीं, रोहतांग पास जाते हुए आप को रास्ते में राहाला वाटरफौल दिखेगा जो मनाली से 16 किलोमीटर की दूरी पर है. वहां के नजारे मनमोहक हैं. आप इन दृश्यों के बीच सैल्फी लेने का लुत्फ उठा सकते हैं.

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चंद्रखानी पास : ट्रैकिंग के शौकीन इस जगह पर आना न भूलें. यह जगह समुद्रतल से 3,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां के पहाड़ों की खूबसूरती पर्यटकों को खुद ही इस जगह की ओर खींच लेती है.

सोलंग घाटी : ग्लेशियर्स और बर्फ से ढके पहाड़ों का अद्भुत नजारा आप को सोलंग घाटी में देखने को मिलेगा. यह मनाली से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. स्कीइंग के लिए मशहूर यहां की ढलानों पर पर्यटक इस खेल का खूब मजा लेते हैं. स्कीइंग के शौकीनों के लिए यहां आने का परफैक्ट समय दिसंबर से जनवरी के बीच है. इस के लिए यहां पर कैंप भी आयोजित किए जाते हैं. यहां पर पैराशूटिंग, पैराग्लाइडिंग और हौर्स राइडिंग जैसे खेलों को जी भर कर खेल सकते हैं. यानी गरमी हो या सर्दी, ऐडवैंचर प्रेमियों को यहां से निराश हो कर नहीं जाना पड़ेगा.

नेहरू कुंड : रोहतांग मार्ग पर बना यह सुंदर प्राकृतिक झरना मनाली से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां सुबहशाम सैलानियों का जमावड़ा लगा रहता है. यह जगह खासकर से प्रकृतिप्रेमियों के लिए है.

नागर किला : नागर किला मनाली से थोड़ी दूरी पर है. इस में रशियन आर्टिस्ट निकोलस रोरिक की पेंटिंग्स की ढेरों कलैक्शंस देखने को मिलेंगी. इसलिए प्रकृतिप्रेमी के साथसाथ कलाप्रेमी भी बनिए और इस जगह को देखे बिना न लौटें.

कोठी : मनाली से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोठी से पहाड़ों का मनोरम दृश्य देखने को मिलता है. ऊंचाई से गिरते झरने बरबस ही सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं

मणिकरण : मणिकरण भी बहुत खूबसूरत जगह है. हर जगह ठंडा पानी है लेकिन नदी का एक हिस्सा ऐसा भी है जहां पर गरम पानी है.

कुल्लू : मनाली से कुछ दूरी पर ही कुल्लू घाटी है. कलकल करती नदियों, पहाडि़यों से गिरते झरने, देवदार के घने वृक्ष कुल्लू घाटी के प्राकृतिक सौंदर्य में चारचांद लगाते हैं.

कब जाएं

मानसून के मौसम को छोड़ कर आप कभी भी मनाली घूमने जा सकते हैं. सुहावने मौसम में आप को वहां घूमने और ऐडवैंचर करने में जो मजा आएगा, शायद उस का बयान आप शब्दों में भी न कर पाएं.

क्या खाना न भूलें

हिल पर घूमने जाएं और डट कर न खाएं, ऐसा नहीं हो सकता. अगर आप मनाली ट्रिप को पूरी तरह ऐंजौय करना चाहते हैं तो वहां की लोकल व फेमस डिशेज को खाए बिना न रहें जिन में सब से प्रसिद्ध है धाम. धाम खासकर त्योहारों व शादियों के अवसर पर परोसा जाता है जिस में चावल के साथसाथ दही व कई सब्जियां होती हैं. यह आप को वहां के लोकल फूड रैस्टोरैंट्स पर मिल जाएगा इस के अतिरिक्त आप वहां पर रैड राइस भी खा सकते हैं. इन्हें रैस्टोरैंट्स व ढाबों में किसी सब्जी के साथ ही परोसा जाता है, ये खाने में इतने टेस्टी होते हैं कि आप इसे एक बार नहीं, बल्कि कई बार खाना पसंद करेंगे. इसी के साथ आप वहां की चिली मौर्निंग और इवनिंग में सड़कों पर घूमते हुए मसाले वाला औमलेट व गरमागरम अदरक व इलायची वाली चाय का भी लुत्फ उठाएं. अगर आप चावल खाने के शौकीन हैं तो उसे हींग वाली कढ़ी के साथ ट्राई करना न भूलें. बाकी आप की पसंद पर निर्भर करता है कि आप क्या खाना पसंद करते हैं. वैसे, आप को वहां हर तरह की डिशेज आसानी से मिल जाएंगी.

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कहां से करें खरीदारी

पहाड़ों और नदियों के अलावा मनाली तिब्बती मार्केट के लिए भी खासा प्रसिद्ध है. यहां से आप हाथ से बनी चीजें खरीद सकते हैं. इसी तरह माल रोड जो बहुत ही पौपुलर है, वहां आप को वूलन कैप्स, शौल्स, ज्वैलरी, वुडन फर्नीचर, इयररिंग्स आदि सभी कुछ बहुत ही उचित दामों पर मिल जाएगा. तो फिर तैयार हैं न आप मनाली जाने के लिए.

कैसे पहुंचें मनाली

आप यहां रेल, बस, प्लेन किसी से भी जा सकते हैं. यह आप की चौइस और पौकेट पर निर्भर करता है. अगर आप समय की बचत कर मनाली में ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहते हैं तो आप वायुमार्ग द्वारा मनाली पहुंच सकते हैं. मनाली से 10 किलोमीटर की दूरी पर भुंतर हवाईअड्डा है जहां से आप को मनाली पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. मनाली पहुंचने के लिए आप जोगिंदर नगर रेलवेस्टेशन पर उतर सकते हैं. इस के अतिरिक्त आप रेल द्वारा चंडीगढ़ या अंबाला पहुंच कर वहां से मनाली के लिए बस या फिर टैक्सी भी ले सकते हैं. मनाली दिल्ली से 570 किलोमीटर की दूरी पर है. यह शिमला से सीधे सड़कमार्ग से जुड़ा है. दिल्ली, शिमला, चंडीगढ़ से मनाली के लिए हिमाचल परिवहन निगम की बसें भी उपलब्ध हैं.

Summer Special: खूबसूरत वादियों और वाइल्डलाइफ का अद्भुत मेल है उत्तराखंड

विविध वन्यजीव और प्राकृतिक सौंदर्य के आंचल में बसे उत्तराखंड की बात ही निराली है. यहां खूबसूरत वादियों में सैलानियों को रोमांचक अनुभव के साथसाथ विविध संस्कृति का संगम भी मिलता है तो फिर क्यों न निहारा जाए यहां की खूबसूरती को.

उत्तराखंड में घूमने लायक बहुत जगहें हैं. जो वाइल्डलाइफ पर्यटन का शौक रखते हैं वे यहां के जिम कौर्बेट नैशनल पार्क का दीदार कर सकते हैं. नैनीताल जिले में स्थित यह पार्क 1,318 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इस के 821 वर्ग किलोमीटर में बाघ संरक्षण का काम होता है. दिल्ली से यह पार्क 290 किलोमीटर दूर है.  मुरादाबाद से काशीपुर और रामनगर होते हुए यहां तक पहुंचा जा सकता है. यहां पर तमाम तरह के पशु मिलते हैं. इन में शेर, भालू, हाथी, हिरन, चीतल, नीलगाय और चीता प्रमुख हैं.

यहां 200 लोगों के ठहरने की व्यवस्था है. यहां अतिथि गृह, केबिन और टैंट उपलब्ध हैं. रामनगर रेलवे स्टेशन से 12 किलोमीटर की दूरी पर पार्क का गेट है. रामनगर रेलवे स्टेशन से पार्क के लिए छोटीबड़ी हर तरह की गाडि़यां मिलती हैं. यहां कई तरह के रिजोर्ट हैं. यहां से जिप्सी के जरिए पार्क में घूमने की व्यवस्था रहती है.

यहां हाथी भी बहुत उपलब्ध हैं. जो जंगल के बीच ऊंचाई तक सैर कराने ले जाते हैं. हाईवे पर ही हाथी स्टैंड बने हैं. हाथी की सैर चाहे महंगी हो पर यह पर्यटन का मजा दोगुना कर देती है.
सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे के बीच नेचर वाक का आयोजन किया जाता है. जिम कौर्बेट नैशनल पार्क के अलावा उत्तराखंड में कई खूबसूरत स्थल हैं जिन का मजा पर्यटकों को लेना चाहिए.

कौर्बेट पार्क और रामनगर के रास्ते में नदी के किनारे बने रिजोर्ट महंगे हैं पर लगभग हर रिजोर्ट से नदी का और सामने पेड़ों से ढकी पहाडि़यों के सुरम्य दर्शन होते हैं. इन रिजोर्टों में नम: रिजोर्ट बहुत आधुनिक है पर काफी महंगा है. कौर्बेट पार्क के पास नदी के बीच एक चट्टान पर एक मंदिर भी है. जहां आप चढ़ावे के लिए या पाखंड के लिए न जाएं पर वहां नदी किनारे बैठ कर सुस्ताने जरूर जाएं. यह इलाका बहुत शांत और प्रदूषण रहित है.  यहां बने छोटे बाजार में छोटीमोटी आकर्षक चीजें मिलती हैं.

नैनीताल   

उत्तराखंड प्रदेश की सब से अच्छी घूमने वाली जगह है नैनीताल. इस की खासीयत यहां के ताल हैं. यहां पर कम खर्च में हिल टूरिज्म का भरपूर मजा लिया जा सकता है. काठगोदाम, हल्द्वानी और लालकुआं नैनीताल के करीबी रेलवे स्टेशन हैं जहां से पर्यटक बस या टैक्सी के द्वारा आसानी से नैनीताल पहुंच सकते हैं. हनीमून कपल की यह सब से पसंदीदा जगह है. नैनीताल को अंगरेजों ने हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया था. यहां की इमारतों को देख कर अंगरेजी काल की वास्तुकला दिखाई देती है.  नैनीताल शहर के बीचोबीच एक झील है, इस को नैनी झील कहते हैं. इस झील की बनावट आंखों की तरह की है. इसी कारण इस को नैनी और शहर को नैनीताल कहा जाता है.

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काठगोदाम नैनीताल का सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. इस को कुमाऊं का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. गौला नदी इस के दाएं ओर से हो कर हल्द्वानी की ओर बहती है. हल्द्वानी व काठगोदाम से नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत और पिथौरागढ़ के लिए बसें चलती हैं. काठगोदाम से नैनीताल के लिए जब आगे बढ़ते हैं तो ज्योलिकोट में चीड़ के घने वन दिखाई पड़ते हैं. यहां से कुछ दूरी पर कौसानी, रानीखेत और जिम कौर्बेट नैशनल पार्क भी पड़ता है.

भीमताल नैनीताल का सब से बड़ा ताल है. इस की लंबाई 448 मीटर और चौड़ाई 175 मीटर है. भीमताल की गहराई 15 से 50 मीटर तक है. भीमताल के 2 कोने हैं. इन को तल्ली ताल और मल्ली ताल के नाम से जाना जाता है. ये दोनों कोने सड़क से जुडे़ हैं. नैनीताल से भीमताल की दूरी 22.5 किलोमीटर है.  भीमताल से 3 किलोमीटर दूर उत्तरपूर्व की ओर 9 कोनों वाला ताल है जो नौ कुचियाताल कहलाता है. सातताल कुमाऊं इलाके का सब से खूबसूरत ताल है. इतना सुंदर कोई दूसरा ताल नहीं है. इस ताल तक पहुंचने के लिए भीमताल से हो कर रास्ता जाता है. भीमताल से इस की दूरी 4 किलोमीटर है.

नैनीताल से यह 21 किलोमीटर दूर स्थित है.  साततालों में नलदमयंती ताल सब से अलग है. इस का आकार समकोण वाला है.  नैनीताल से 6 किलोमीटर दूर खुर्पाताल है. इस ताल का गहरा पानी इस की सब से बड़ी सुंदरता है. यहां पर पानी के अंदर छोटीछोटी मछलियों को तैरते हुए देखा जा सकता है. इन को रूमाल के सहारे पकड़ा भी जा सकता है.

रोपवे नैनीताल का सब से प्रमुख आकर्षण है. यह स्नोव्यू पौइंट और नैनीताल को जोड़ता है. यह मल्लीताल से शुरू होता है. यहां पर 2 ट्रोलियां हैं जो सवारियों को ले कर एक तरफ से दूसरी तरफ जाती हैं.   रोपवे से पूरे नैनीताल की खूबसूरती को देखा जा सकता है. मालरोड यहां का सब से आधुनिक बाजार है. यहीं पास में नैनी झील है. यहां पर बोटिंग का मजा लिया जा सकता है. मालरोड पर बहुत सारे होटल, रेस्तरां, दुकानें और बैंक हैं. यह रोड मल्लीताल और तल्लीताल को जोड़ने का काम भी करता है. यहां भीड़भाड़ और शांत दोनों तरह की जगहें हैं. नैनीताल में ही टैक्सी स्टैंड के पास 5 केव बनी हैं. इन के अंदर घुसने में रोमांचक अनुभव किया जा सकता है. यह जगह बहुत ठंडी और एकांत वाली है. हनीमून कपल को ऐसी जगहें खासतौर पर लुभाती हैं.
रानीखेत
अगर आप पहाड़, सुंदर घाटियां, चीड़ व देवदार के ऊंचेऊंचे पेड़, संकरे रास्ते और पक्षियों का कलरव सुनना चाहते हैं तो आप के लिए रानीखेत से बेहतर कोई दूसरी जगह नहीं हो सकती. यहां शहर के कोलाहल से दूर ग्रामीण परिवेश का अद्भुत सौंदर्य देखने को मिलेगा.

25 वर्ग किलोमीटर में फैले रानीखेत को फूलों की घाटी कहा जाता है. यहां से दिखने वाले पहाड़ों पर सुबह, दोपहर और शाम का अलगअलग रंग साफ दिखता है. इस इलाके में छोटेछोटे खेत हुआ करते थे, इसी कारण इस का नाम रानीखेत पड़ गया. इस शहर का बाजार पहाड़ों की उतार पर बसा है इसी कारण इस को खड़ा बाजार भी कहा जाता है. रानीखेत घूमने के लिए सब से बेहतर समय अप्रैल से सितंबर मध्य तक रहता है. यहां का सब से करीबी हवाईअड्डा पंतनगर है. यहां से 119 किलोमीटर टैक्सी से सफर कर रानीखेत पहुंचना होगा. रेलगाड़ी से पहुंचने के लिए काठगोदाम सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. यहां से रानीखेत 84 किलोमीटर दूर है. यहां से बस और टैक्सी दोनों की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

रानीखेत में देखने वाली तमाम जगहें हैं. इन में सब से प्रसिद्ध उपत नामक जगह है. यह रानीखेत शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर अल्मोड़ा जाने वाले रास्ते में है. चीड़ के घने जंगल के बीच यहां दुनिया का सब से मशहूर गोल्फ मैदान भी है. यहां कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है. कोमल हरी घास वाला यह मैदान 9 छेदों वाला है. ऐसा मैदान बहुत कम देखने को मिलता है. यहां खिलाडि़यों के रहने के लिए सुंदर बंगला भी बना है. रानीखेत शहर से 6 किलोमीटर दूर स्थित चिलियानौला नामक जगह है. घूमने और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह एक अच्छी जगह है. यहां फूलों के सुंदर बाग हैं जिन की सुंदरता देखते ही बनती है.

रानीखेत से 10 किलोमीटर दूर चौबटिया जगह है. यहां फलों का सब से बड़ा बगीचा है. यहां आसपास पानी के 3 झरने हैं जो देखने वालों को बहुत लुभाते हैं. रानीखेत से 35 किलोमीटर दूर शीतलखेत है. यहां से बर्फ से ढकी पहाडि़यां देखने में बहुत अच्छा महसूस होता है. ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से पूरा रानीखेत दिखता है. रानीखेत से 40 किलोमीटर दूर द्वाराहाट है. ऐतिहासिक खासीयत वाली जगहों को देखने के लिए लोग यहां आते हैं.

पर्वतों की रानी मसूरी देहरादून जाने वाला हर पर्यटक मसूरी जरूर जाना पसंद करता है. मसूरी दुनिया की उन जगहों में गिनी जाती है जहां पर लोग बारबार जाना चाहते हैं. इसे पर्वतों की रानी भी कहा जाता है. यह  देहरादून से 35 किलोमीटर दूर स्थित है. देहरादून तक आने के लिए देश के हर हिस्से से रेल, बस और हवाई जहाज की सुविधा उपलब्ध है. इस के उत्तर में बर्फ से ढके पर्वत दिखते हैं और दक्षिण में खूबसूरत दून घाटी दिखती है. इस सौंदर्य के कारण देखने वालों को मसूरी परी महल सी प्रतीत होती है. यहां पर देखने और घूमने वाली बहुत सारी जगहें हैं.

मुख्य आकर्षण 

मसूरी के करीब दूसरी ऊंची चोटी पर जाने के लिए रोपवे का मजा घूमने वाले लेते हैं.  यहां पैदल रास्ते से भी पहुंचा जा सकता है. यह रास्ता माल रोड पर कचहरी के निकट से जाता है. यहां पहुंचने में लगभग 20 मिनट का समय लगता है. रोपवे की लंबाई केवल 400 मीटर है. गन हिल से हिमालय पर्वत शृंखला बंदरपच, पिठवाड़ा और गंगोत्तरी को देखा जा सकता है. मसूरी और दून घाटी के सुंदर दृश्यों को यहां से देखा जा सकता है. आजादी से पहले इस पहाड़ी के ऊपर रखी तोप प्रतिदिन दोपहर में चलाई जाती थी. इस से लोग अपनी घडि़यों में समय मिलाते थे.

मसूरी का कंपनी गार्डन सुंदर उद्यान है. चाइल्डर्स लौज लाल टिब्बा के निकट स्थित मसूरी की सब से ऊंची चोटी है. मसूरी के पर्यटन कार्यालय से यह केवल 5 किलोमीटर दूर है. यहां तक घोडे़ पर या पैदल पहुंचा जा सकता है. यहां से बर्फ के दृश्य देखना बहुत रोमांचक लगता है.

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झड़ीपानी फौल मसूरी से 8 किलोमीटर दूर स्थित है. घूमने वाले यहां तक 7 किलोमीटर तक की दूरी बस या कार से तय कर सकते हैं. इस के बाद पैदल 1 किलोमीटर चल कर झरने तक पहुंच सकते हैं. मसूरी से 7 किलोमीटर दूर मसूरी देहरादून रोड पर भट्टा फौल स्थित है. यमुनोत्तरी रोड पर मसूरी से 15 किलोमीटर दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर स्थित कैंपटी फौल मसूरी की सब से सुंदर जगह है. कैंपटी फौल मसूरी का सब से बड़ा और खूबसूरत झरना है. यह चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. मसूरीयमुनोत्तरी मार्ग पर लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित यह झरना 5 अलगअलग धाराओं में बहता है. यह पर्यटकों की सब से पसंदीदा जगह है.

मसूरी देहरादून रोड पर मूसरी झील के नाम से नया पर्यटन स्थल बनाया गया है. यह मसूरी से 6 किलोमीटर दूर है. यहां पर पैडल बोट से झील में घूमने का आनंद लिया जा सकता है. यहां से घाटी के सुंदर गांवों को भी देखा जा सकता है. टिहरी बाईपास रोड पर लगभग 2 किलोमीटर दूर एक नया पिकनिक स्पौट बनाया गया है. इस के आसपास पार्क बने हैं. यह जगह देवदार के जंगलों और फूल की झाडि़यों से घिरी है. यहां तक पैदल या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है. इस पार्क में वन्यजीव, जैसे घुरार, कंणकर, हिमालयी मोर और मोनल आदि पाए जाते हैं.

मसूरी से 27 किलोमीटर चकराताबारकोट रोड पर यमुना ब्रिज है. यह फिशिंग के लिए सब से अच्छी जगह है. यहां परमिट ले कर फिश्ंिग की जा सकती है. मसूरी से लगभग 25 किलोमीटर दूर मसूरीटिहरी रोड पर धनोल्टी स्थित है. इस मार्ग में चीड़ और देवदार के जंगलों के बीच बुरानखांडा का शानदार दृश्य देखा जा सकता है. वीकएंड मनाने के लिए बहुत सारे परिवार धनोल्टी आते हैं. यहां रुकने के लिए टूरिस्ट बंगले भी उपलब्ध हैं.

धनोल्टी से लगभग 31 किलोेमीटर दूर चंबा जगह है. इस को टिहरी भी कहते हैं. यहां पहुंचने के लिए लोगों को जिस सड़क से हो कर गुजरना पड़ता है वह फलों के बागानों से घिरी है. सीजन के दौरान पूरे मार्ग पर सेब बहुत मिलते हैं. बसंत के मौसम में फलों से लदे वृक्ष देखते ही बनते हैं. इन को देखना आंखों को बहुत
सुखद लगता है.

देहरादून    

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून शिवालिक पहाडि़यों में बसा एक बहुत खूबसूरत शहर है. घाटी में बसे होने के कारण इस को दून घाटी भी कहा जाता है. देहरादून में दिन का तापमान मैदानी इलाके सा होता है पर शाम ढलते ही यहां का तापमान बदल कर पहाड़ों जैसा हो जाता है. देहरादून के तापमान में पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों का मजा मिलता है.देहरादून के पूर्व और पश्चिम में गंगा व यमुना नदियां बहती हैं. इस के उत्तर में हिमालय और दक्षिण में शिवालिक पहाडि़यां हैं. शहर को छोड़ते ही जंगल का हिस्सा शुरू हो जाता है. यहां पर वन्य प्राणियों को भी देखा जा सकता है.
देहरादून प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा शिक्षा संस्थानों के लिए भी प्रसिद्ध है. देहरादून 2110 फुट की ऊंचाई पर स्थित है. पर्वतों की रानी मसूरी के नीचे स्थित होने के कारण देहरादून में गरमी का मौसम भी सुहावना रहता है.

दर्शनीय स्थल

देहरादून में घूमने लायक सब से अच्छी जगह सहस्रधारा है.  देहरादून के करीब ही मसूरी है. यहां लोग जरूर घूमने जाते हैं. सहस्रधारा देहरादून से सब से करीब है. सहस्रधारा गंधक के पानी का प्राकृतिक स्रोत है. देहरादून से इस की दूरी करीब 14 किलोमीटर है. जंगल से घिरे इस इलाके में बालदी नदी में गंधक का स्रोत है. गंधक का पानी स्किन की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है. बालदी नदी में पडे़ पत्थरों पर बैठ कर लोग नहाते हैं. सहस्रधारा जाने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा उपलब्ध है. बस का किराया 20-22 रुपए के आसपास है. आटो टैक्सी आनेजाने का 200 रुपए ले लेती है.

सहस्रधारा के बाद ‘गुच्चू पानी’ नामक जगह भी देखने वाली है. यह शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गुच्चू पानी जलधारा है. इस का पानी गरमियों में ठंडा और जाड़ों में गरम रहता है. गरमियों में घूमने वाले यहां जरूर आते हैं. गुच्चू पानी आने वाले लोग अनारावाला गांव तक कार या बस से आते हैं. यहीं पर घूमने वाली एक जगह और है जिस को रौबर्स केव के नाम से जाना जाता है. देहरादून से सहस्रधारा जाने वाले रास्ते के बीच ही खलंग स्मारक बना हुआ है. यह अंगरेजों और गोरखा सिपाहियों के बीच हुए युद्ध का गवाह है. 1 हजार फुट की ऊंचाई पर यह स्मारक रिसपिना नदी के किनारे स्थित है.

देहरादून दिल्ली मार्ग पर बना चंद्रबदनी एक बहुत ही सुंदर स्थान है. देहरादून से इस की दूरी 7 किलोमीटर है. यह जगह चारों ओर पहाडि़यों से घिरी हुई है. यहां आने वाले लोग इस का प्रयोग सैरगाह के रूप में करते हैं. यहां पर एक पानी का कुंड भी है. अपने सौंदर्य के लिए ही इस का नाम चंद्रबदनी पड़ गया है.  देहरादून से 15 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बहुत ही खूबसूरत जगह को लच्छीवाला के नाम से जाना जाता है. जंगल में बहती नदी के किनारे होने के कारण लोग घूमने आते हैं. जंगल में होने के कारण यहां पर जंगली पशुपक्षी भी यहां पर देखने को मिल जाते हैं.

देहरादून चकराता रोड पर 50 किलोमीटर की दूरी पर कालसी जगह है जहां पर सम्राट अशोक के प्राचीन शिलालेख देखने को मिल जाते हैं. यह लेख पत्थर की बड़ी शिला पर पाली भाषा में लिखा है. पत्थर की शिला पर जब पानी डाला जाता है तभी यह दिखाई देता है.

देहरादून चकराता मार्ग पर 7 किलोमीटर दूर वन अनुसंधानशाला की सुंदर सी इमारत बनी है. यह इमारत ब्रिटिशकाल में बनी थी. यहां पर एक वनस्पति संग्रहालय बना है जिस में पेड़पौधों की बहुत सारी प्रजातियां रखी हैं.

गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर वन्यजीवों के संरक्षण के लिए 1977 में चीला वन्य संरक्षण उद्यान को बनाया गया था. यहां पर हाथी, टाइगर और भालू जैसे तमाम वन्यजीव पाए जाते हैं. नवंबर से जून का समय यहां घूमने के लिए सब से उचित रहता है. शिवालिक पहाडि़यों में 820 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में राजाजी नैशनल पार्क बनाया गया है. इस पार्क में स्तनपायी और दूसरी तरह के तमाम जीवजंतु पाए जाते हैं. सर्दी के मौसम में आप्रवासी पक्षी भी यहां पर खूब आते हैं.

कौसानी 

कौसानी को भारत की सब से खूबसूरत जगह माना जाता है. शायद इसी वजह से इस को भारत का स्विट्जरलैंड कहते हैं. कौसानी उत्तराखंड के अल्मोडा शहर से 53 किलोमीटर उत्तर में बसा है. यह बागेश्वर जिले में आता है. यहां से हिमालय की सुंदर वादियों को देखा जा सकता है. कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है. यहां पहुंचने के लिए रेलमार्ग से पहले काठगोदाम आना पड़ता है. यहां से बस या टैक्सी के द्वारा कौसानी पहुंचा जा सकता है. दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से कौसानी के लिए बस सेवा मौजूद है.
कौसानी में सब से अच्छी घूमने वाली जगह यहां के चाय बागान हैं. ये कौसानी के पास स्थित हैं. यहां चाय की खेती को देखा जा सकता है. घूमने वाले यहां की चाय की खरीदारी करना नहीं भूलते. यहां की चाय का स्वाद जरमनी, आस्टे्रलिया, कोरिया और अमेरिका तक के लोग लेते हैं. भारी मात्रा में यहां की चाय इन देशों को निर्यात की जाती है.

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कौसानी के आसपास भी घूमने वाली जगहें हैं. इन में कोट ब्रह्मारी 21 किलोमीटर दूर है. अगस्त माह में यहां मेला लगता है. 42 किलोमीटर दूर बागेश्वर में जनवरी माह में उत्तरायणी मेला लगता है. यहां से कुछ दूरी पर ही नीलेश्वर और भीलेश्वर की पहाडि़यां हैं जो देखने में बहुत सुंदर लगती हैं.

Summer Special: सैर पहाड़ों की रानी महाबलेश्वर की 

गर्मियों में अगर कहीं घूमने का मन बनाते है तो सबसे पहले याद आती है, हसीन वादियां और खुबसूरत मौसम, जो बिना कुछ कहे ही सबको आकर्षित करती है. ऐसी ही खुबसूरत वादियों से घिरा हुआ है, महाराष्ट्र के सतारा जिले का महाबलेश्वर, जहाँ तापमान पूरे साल खुशनुमा रहता है. 1438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस पर्यटन स्थल को महाराष्ट्र के हिल स्टेशन की रानी कहा जाता है. दूर-दूर तक फैली पहाड़ियां और उन पर हरियाली की छटा देखते ही बनती है. मुंबई से 264 किमी दक्षिण-पूर्व और सतारा के पश्चिमोत्तर में सह्याद्री की पहाड़ियों में अवस्थित इस स्थान की एक झलक पाने के लिए पर्यटक साल भर लालायित रहते है. कोरोना संक्रमण की वजह से पिछले साल और इस साल करीब 30 प्रतिशत पर्यटक ही आ रहे है, जिससे यहाँ के व्यवसाय को काफी नुकसान हुआ है.

कोविड टेस्ट है जरुरी

महाबलेश्वर के रहने वाले सोशल वर्कर गणेश उतेनकर कहते है कि जब से कोविड 19 शुरू हुआ है, यहाँ पर्यटक के आने का सिलसिला बहुत कम हुआ है, पिछले साल यहाँ 4 या 5 व्यक्ति को कोरोना संक्रमण हुआ था, जिन्हें इलाज कर ठीक कर दिया गया. यहाँ न तो कोविड है और न ही यहाँ आने वाले को कोविड 19 होने का डर रहता है, महाबलेश्वर अभी जीरों कोविड जोन के अंतर्गत है. कोरोना संक्रमण के डर से आने वाले पर्यटकों की संख्या में कमी होने की वजह से यहाँ के होटल और मार्केट के व्यवसाय में बहुत कमी आ गई है, जो चिंता का विषय है. यहाँ आने वाले सभी पर्यटक का कोविड टेस्ट किया जाता है. इसके लिए ग्राम पंचायत की एक ऑफिसर की ड्यूटी लगाई गई है. वह पर्यटक का आरटी पीसीआर टेस्ट करवाने के बाद ही होटल जाने की अनुमति देता है. अगर कोई ट्रेवल करने के 72 घंटे पहले कोविड टेस्ट करवा लेता है, तो उसे देखकर आगे भेजा जाता है. अभी वैक्सीनेशन चल रहा है, ऐसे में वैक्सीन लगाए हुए व्यक्ति की सर्टिफिकेट और कोविड टेस्ट दोनों जरुरी है. पर्यटक इस समय आसानी से यहाँ आ सकते है.

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यहाँ की आकर्षक जगहें 

महाबलेश्वर के टूरिस्ट कंपनी चलाने वाले राजेश कुमार कहते है कि महाबलेश्वर में सालों से पर्यटक आते रहे हैं, जो केवल भारत के ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी आते है. यहाँ देखने के लिए 30 से अधिक स्थल है, जिसे पर्यटक अपने बजट के हिसाब से घूमते है. यहाँ की जंगल, घाटियाँ, झरने और झीलें इतनी सुंदर है कि व्यक्ति की थकान यहाँ आने से ही दूर हो जाते है. इसके अलावा यहाँ की ख़ास जगहें एल्फिस्टन, माजोरी, नाथकोट, बॉम्बे पार्लर, सावित्री पॉइंट, आर्थर पॉइंट, विल्स पॉइंट, हेलेन पॉइंट, लॉकविंग पॉइंट और फोकलेक पॉइंट काफी मशहूर है. महाबलेश्वर जाने पर प्रतापगढ़ का किला देखना बहुत जरूरी है, जो वहां से करीब 24 किलोमीटर की दूरी पर है. इसकी कहानी बड़ी रोचक है कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने ताकतवर योद्धा अफज़ल खान को नाटकीय तरीके से मारकर किले पर फतह हासिल की थी. जहाँ से मराठा साम्राज्य ने निर्णायक मोड़ लिया था. पानघाट पर स्थित यह किला शिवाजी महाराज के 8 प्रमुख किलों में से एक है.

सोशल वर्कर गनेश उतेकर आगे कहते है कि महाबलेश्वर में लोग वीकेंड पर अधिक आते है. दो दिन और दो रात यहाँ ठहरने पर इस स्थान को घूमा जा सकता है. सन राइज पॉइंट को ख़ास देखने की जरुरत है जहाँ से आप सूर्योदय का आनंद ले सकते है.

महाबलेश्वर के पूर्व मेयर डी एम बावलेकर कहते है कि यहाँ की हर पॉइंट ख़ास है. एलिफैंट हेड पॉइंट में पत्थरों की बनावट हाथी के सिर के आकार में है जो देखने लायक है. जबकि बॉम्बे पॉइंट से पहले पूरी मुंबई दिखाई पड़ती थी, जो अब केवल साफ़ मौसम में ही दिखता है. इसके अलावा लिंग्माला वाटर फॉल, वेन्ना लेक, पुराना महाबलेश्वर मंदिर, हेरेसन फॉल, कमलगढ़ का किला आदि सभी देखने योग्य है, लेकिन वेन्ना लेक में अवश्य जाएँ, क्योंकि वहां पर आप पैडल बोट, रोइंग बोट, रंग-बिरंगी मछलियाँ पकड़ना, घुड़सवारी करना आदि सभी का आनंद आप परिवार के साथ ले सकते है.

महाबलेश्वर की डॉ. सरोज शेलार कहती है कि यहाँ अब कई नए पर्यटन स्थल विकसित हुए है जिसमें तपोला स्थान खास है, इसे मिनी कश्मीर भी कहा जाता है. यहाँ एग्रो टूरिज्म का विकास अधिक हुआ है. इसके अंतर्गत बड़े पैमाने पर स्ट्राबेरी की खेती होती है, यहाँ से पर्यटक ताजी-ताजी स्ट्राबेरी का आनंद ले सकते है, लेकिन इस साल कोविड की वजह से पर्यटकों के आने में कमी आई है.

महाबलेश्वर की पूर्व नगरसेविका सुरेखा प्रशांत आखाडे कहती है कि महाबलेश्वर के सभी वाटरफाल्स नेचुरल है. जिसमें से एक लिंगमाला वाटर फॉल में पर्यटक फोटोग्राफी और प्राकृतिक दृश्यों का खूब आनंद उठाते है. ये एक ख़ास पिकनिक स्पॉट भी है. वहां से पंचगनी केवल 20 किलोमीटर की दूरी पर है, जो टेबल लैंड पर बना हुआ खुबसूरत स्थल है. 

इन जगहों पर जरूर खाएं 

महाबलेश्वर में आने वाले पर्यटकों के हिसाब से भोजन रखा गया है. शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन यहाँ मिलते है. राजेश कुमार कहते है कि यहाँ आने वाले 75 प्रतिशत पर्यटक गुजराती होते हैं, इसलिए यहाँ पर उनकी पसंदीदा कढ़ी खिचड़ी, दाल खिचड़ी हर रेस्तरां और होटल में मिलती है. शहर के बीचो-बीच बिजी मार्केट एरिया में ‘ग्रेपवाइन होटल’ काफी लोकप्रिय है. इसके अलावा ‘होटल राजेश’ भी खाना खाने के लिए अच्छा होटल है. विदेशी पर्यटक के लिए यहाँ चायनिस और कॉन्टिनेंटल फ़ूड भी मिलते है. अगर ओल्ड महाबलेश्वर जाते है, तो ‘टेम्पल व्यू’ रेस्तरां में खाना जरुर खाएं.

गनेश कहते है कि ‘होटल सनी’ और ‘होटल ड्रीमलैंड’ की थालियाँ स्वादिष्ट और सस्ती है.जहाँ पर्यटक अधिकतर भोजन करना पसंद करते है. इसके अलावा वेन्ना लेक के पास का दृश्य बहुत कुछ जुहू चौपाटी की तरह है. जहाँ आसपास वडा पाव, मक्का पेटिस,स्वीट कॉर्न, आलू और प्याज के पकौड़े, मकई के पकौड़े, अलग-अलग तरह के भेल,छोटी- छोटी दुकानों में मिलते है. यहाँ साइकिल पार्लर भी है, जिसमें लोग घर के  बने हुए स्ट्राबेरी और लीची के आइसक्रीम बेचते है. इसके अलावा बगीचा कॉर्नर और शिवनेरी रेस्तरां भी बहुत प्रसिद्द है.

डी एम् बावलेकर के हिसाब से वहां की थाली बहुत खास है, जिसमें 50 तरह की शाकाहारी और मांसाहारी अलग-अलग व्यंजन के साथ थालियाँ मिलती है. ये स्वादिष्ट होने के साथ-साथ किफायती भी है, जिसमें परोसी गयी मक्के और बैगन की सब्जी खास होती है, जिसे अवश्य चखें.

पंचगनी के आर्किटेक्ट डेव्लपर नितिन शांताराम भिलारे  कहते है कि पंचगनी में महाराष्ट्र की ऑथेंटिक फ़ूड वरन भात,झुणका भाखर बहुत प्रसिद्द है.इसके अलावा वहां की फ़ूड कोर्ट लकी कैफे एंड बेकरी काफी लोकप्रिय है, वहां का बन मस्का का आनंद जरुर लें.

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डॉ. सरोज  के अनुसार यहाँ छोटे-छोटे दुकानों में हैण्ड मेड नेचुरल स्ट्राबेरी आइसक्रीम मिलते है, जिसे आप अपनी पसंद के अनुसार बनवाकर खा सकते है. इसके अलावा दुकानों में तरह-तरह के चूरन मिलते है, जिसे आप चखकर अपने स्वाद के हिसाब से खरीद सकती है.

सुरेखा का कहना है कि महाबलेश्वर में कई छोटे-छोटे बंगलों को होटल में परिवर्तित कर दिया गया है. वहां घर जैसा खाना मिलता है, जिसे पर्यटक काफी पसंद करते है.

कहाँ से और क्या करें खरीदारी 

डी एम् बावलेकर कहते है कि यहाँ की स्ट्राबेरी, गुजबेरी और मल्बेरी पूरे देश में प्रसिद्ध है. ये सीजनल होते है, लेकिन अच्छी क्वालिटी की प्रचुर मात्रा में होने की वजह से इसका उद्योग खूब फैला है जिसमें महिलाएं कार्यरत है. इन फलों से बने जैम, जेली, जूस, सिरप और चॉकलेट फ्रेश, सस्ता होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी होते है. ये केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, पूरे भारत में बिकता है.

सुरेखा के अनुसार यहाँ का मेप्रो मार्केट खरीदारी के दृष्टिकोण से काफी लोकप्रिय है. यहाँ हर तरह के बैग, पर्स, जूते चप्पल के अलावा जैम, जेली, चिक्की और भूनी हुई चने के कई वेरायटी मिलते है. इसी तरह वहां की सरोज बताती है कि महाबलेश्वर में लकड़ी के खिलौने, जूट के बैग और सजावट की वस्तुएं भी किफायती दाम पर मिलते है. यहाँ के पुरुष चप्पलें बनाते है,जो नए डिजाईन और फैशन के साथ-साथ बहुत सुंदर होते है, जिसके लिए कच्चा माल ये लोग आगरा, दिल्ली और कानपुर से लाते है,ये चप्पलें सस्ती और सुंदर होती है.

ठहरने की सुविधाएं 

महाबलेश्वर में ठहरने की व्यवस्था अच्छी है, क्योंकि यही एक ऐसा व्यवसाय है, जो सालों साल वहां की जीविका रही है. गनेश कहते है कि यहाँ 500 से लेकर 5000 रुपये तक का कमरा मिलता है. बजट के हिसाब से कमरे बुक कर सकते है. ऑनलाइन बुकिंग की भी सुविधा है. कीमत के हिसाब से सुविधाएं भी मिलती है. कई बड़े होटल भी आजकल यहाँ है जिसमें अधिकतर विदेशी सैलानी ठहरते है. इन होटलों में स्विमिंग पूल, स्पा और कांफ्रेंस रूम की व्यवस्था है. यहाँ का पूनम होटल काफी लोकप्रिय है.

घूमने का सही समय 

गनेश बताते है कि महाबलेश्वर एक हिल स्टेशन है, यहाँ हमेशा पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन  सबसे अच्छा मौसम यहाँ अप्रैल, मई, जून, अक्तूबर, नवम्बर और दिसम्बर होता है. मानसून में भी यहाँ लोग आते है, लेकिन बहुत अधिक बारिश होने की वजह से यहाँ कोहरे की पर्त जमी रहती है और बादल छाये रहते है, जिससे वे घाटियों की सुन्दरता का लुत्फ़ नहीं उठा पाते. इस बार कोविड की वजह से कम लोग आ रहे है.

सावधानियां है रखनी 

सुरेखा बताती है कि पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से यहाँ टेढ़े मेढ़े रास्ते है. ऐसे में बहुत ज्यादा सावधानी बरतने की जरुरत होती है. दिन में ही इन स्थानों पर जायें. पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए यहाँ प्लास्टिक ले जाना मना है, ताकि पर्यावरण प्रदूषण से इस रमणीय स्थल को बचाया जा सके.

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Summer Special: ऐडवेंचर और नेचर का संगम कुंभलगढ़

आप अगर कभी राजस्थान घूमने कुंभलगढ़, कैसे जाएं कुंभलगढ़, कुंभलगढ़ में कहां रूके का मन बनाते हैं, तो वहां के रेतीले टीले और सूखे व कटीले जंगल ही जेहन में आते हैं, जबकि राजस्थान पहाड़ों, झीलों का भी शहर है. राजस्थान का कुंभलगढ़ एक ऐसा ही खास स्थान है, जो देश में ही नहीं विदेशों में भी मशहूर है. यहां पूरे साल पर्यटकों का तांता लगा रहता है. उदयपुर से 80 किलोमीटर दूर व समुद्रतल से 1087 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह शहर अरावली पहाडि़यों में स्थित है. यह शहर दुर्ग, प्राकृतिक अभयारण्य, झीलों, कला और

संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है. वैसे तो यहां हर मौसम में पर्यटक आते हैं पर मौनसून में इस की हरियाली देखने के लिए पर्यटकों का तांता लग जाता है. यहां उदयपुर से बस या प्राइवेट टैक्सी ले कर पहुंचा जा सकता है. इस के बाद स्थानीय जगहों पर घूमने के लिए साधन उपलब्ध हैं.

यहां की आकर्षक जगहें

ट्रैवल डैस्क पर काम करने वाले प्रशांत कुमार झा बताते हैं कि कुंभलगढ़ में कुंभलगढ़ का फोर्ट, हमीर की पाल, कुंभलगढ़ वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी, अरावली की ऊंचीऊंची पहाडि़यां, हल्दीघाटी म्यूजियम आदि सभी देखने योग्य हैं. लेकिन इन में कुंभलगढ़ के फोर्ट की अपनी एक अलग खासीयत है. राजस्थान के दक्षिणी भाग में स्थित यह किला चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सब से बड़ी दीवार है. यह 150 किलोमीटर एरिया में फैला है. यहां की जलवायु मौडरेट होने की वजह से साल भर सैलानी यहां घूमने आते हैं. अमेरिका, फ्रांस, जरमनी और इटली के टूरिस्ट यहां पूरा साल देखे जा सकते हैं.

कुंभलगढ़ किले के बारे में कहा जाता है कि यह दुर्ग मेवाड़ के यशस्वी राजा रण कुंभा ने अपनी सूझबूझ और प्रतिभा से बनाया था. यह किला मेवाड़ों की संकटकालीन राजधानी होने के साथसाथ महाराणा प्रताप का जन्मस्थान भी है. इस किले को अजेयगढ़ भी कहा जाता है, क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करना असंभव था. इस का निर्माणकार्य पूरा होने में 15 वर्ष लगे थे. इस किले में प्रवेशद्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन रास्ता, महल, स्तंभ, छत्रियां आदि हैं.

फैशन शौप चलाने वाले दिनेश मालवीय कहते हैं कि कुंभलगढ़ का किला देखने सालों से पर्यटक आते रहे हैं, क्योंकि यह विश्वप्रसिद्ध है. इस की दीवार 36 किलोमीटर की लंबाई में किले को घेरे हुए है. इसे ‘ग्रेट वाल औफ इंडिया’ भी कहा जाता है. यहां की ऐंट्री फीस भारतीयों के लिए क्व15 और विदेशियों के लिए क्व100 है. कैमरे के लिए कोई फीस नहीं है. यह किला सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है. इसे 2013 में ‘यूनैस्को वर्ल्ड हैरिटेज साइट’ घोषित किया गया था.

कुंभलगढ़ फोर्ट का अधिक आनंद लेने के लिए शाम को लाइट ऐंड साउंड कार्यक्रम देखना आवश्यक है, जो 7 से 8 बजे तक होता है. इस से किले का पूरा इतिहास पता चलता है. कुंभलगढ़ फोर्ट से 48 किलोमीटर की दूरी पर हल्दीघाटी और 68 किलोमीटर की दूरी पर रनकपुर का जैन टैंपल देखा जा सकता है. जैन मंदिर संगमरमर पर खास कलाकृतियों के लिए मशहूर है.

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वाइल्ड लाइफ सफारी

फौरेस्ट गाइड रतन सिंह 15 सालों से कुंभलगढ़ में वाइल्ड लाइफ सफारी करवाते हैं. उन का कहना है कि पहले केवल 1-2 खुली जीपें सफारी के लिए जाती थीं, पर अब हर दिन 15 से 20 गाडि़यां जाती हैं. 3 घंटे के समय में पूरे जंगल की सैर हो जाती है. कुंभलगढ़ अभयारण्य में लोग आसपास के क्षेत्रों से वीकैंड में भी आते हैं और जंगल सफारी का आनंद उठाते हैं. यह 578 किलोमीटर एरिया में फैला हुआ बहुत ही आकर्षक जंगल है. यहां तेंदुए, बारहसिंगे, हिरण, सांभर, जंगली बिल्लियां, भालू, नीलगाय, लंगूर, बंदर, पोर्की पाइन आदि जानवर और भिन्नभिन्न प्रकार के पक्षी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं. यहां पहले राजारजवाड़े शिकार के लिए आते थे, लेकिन अब इस के सरकारके पास आ जाने की वजह से शिकार करना बंद हो चुका है.

हैंडीक्राफ्ट का सामान बेचने वाले जगदीश कुम्हार कहते हैं कि यहां के जंगलों की वनस्पति भी अति सुंदर है. जंगलों में महुआ, आम, खाखरा, गेमकी, घोस्ट के पेड़ों के अलावा शीशम की दुर्लभ प्रजाति डलवजिया शैलेशिया के पेड़ उपलब्ध हैं.

प्रशांत कुमार झा कहते हैं कि सफारी में ऐंट्री का समय दिन में सुबह 6 से ले कर 9 बजे रात तक होता है. दोपहर में 3 से 5 बजे तक और रात में 9 से 11 बजे तक नाइट सफारी होती है. नाइट सफारी में लोग अधिक जाते हैं, क्योंकि रात में जानवर घूमते हुए अधिक दिखाई देते हैं और मौसम भी ठंडा रहता है.

मौनसून में जंगल सफारी बंद रहती है. इस की ऐंट्री फीस 2,300 से ले कर 2,500 तक है. नाइट सफारी के लिए फौरेस्ट गाइड जीप ड्राइवर के पास बैठ कर लेड टौर्च लाइट का प्रयोग करते हैं ताकि जानवरों को नोटिस किया जा सके. जंगल सफारी में हमेशा थोड़ी सावधानी रखनी पड़ती है. मसलन, जानवरों को न छेड़ना, मोबाइल फोन की घंटी न बजाना आदि ताकि जानवर असहज महसूस न करें.

इतिहास जानिए करीब से

प्रेम सिंह कहते हैं कि हमीर की पाल तालाब सैलानियों के लिए खास आकर्षण का केंद्र है. इस तालाब में हजारों की संख्या में कैटफिश हैं, जिन का कोई शिकार नहीं कर सकता. गांव के लोग इस की पहरेदारी करते हैं. कहा जाता है कि हमीर नामक राजा ने इस पौंड को क्व1 लाख खर्च कर बनवाया था. इसीलिए इस का नाम लाखेला तालाब भी है.

इस के अलावा हल्दीघाटी म्यूजियम जो कुंभलगढ़ से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर है, वहां कार या बाइक से जाया जा सकता है. इस संग्रहालय में महाराणा प्रताप के पुतले के अलावा उन के समय के प्रयोग किए गए अस्त्रशस्त्र, किताबें, तसवीरें आदि करीने से सजा कर रखी गई हैं. हर 15 मिनट बाद यहां लाइट ऐंड साउंड प्रोग्राम भी होता है, जिस में महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े विषयों पर लघु फिल्म दिखाई जाती है. यहां हर साल सैलानी बड़ी संख्या में आते हैं.

इन्हें जरूर खाएं

क्लब महिंद्रा के रिजोर्ट मैनेजर सुप्रियो ढाली बताते हैं कि राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में शाकाहारी व्यंजन दाल बाटी, केर सांगड़ी, गट्टे की खिचड़ी, बूंदी रायता, बाजरे की रोटी, मक्के की रोटी आदि मुख्य भोजन हैं. नौनवैज में लाल मांस अधिक पौपुलर है. यहां की राजस्थानी थाली में कई तरह के स्वादिष्ठ व्यंजनों को छोटीछोटी कटोरियों में परोसा जाता है. दाल बाटी में बाटी को बालू में रख कर कंडों को जला कर पकाया जाता है. इस से इस का स्वाद मीठा होता है. ये व्यंजन अधिक महंगे नहीं होते.

जगदीश कुम्हार बताते हैं कि कुंभलगढ़ के हर रेस्तरां में यहां का भोजन मिल जाता है, जो खासकर देशी घी के साथ खाया जाता है. यहां आने पर यहां के भोजन का स्वाद चखना न भूलें. दालें यहां कई प्रकार की बनती हैं. मूंग की दाल, चने की दाल, अरहर की दाल. ये सभी दालें बाटी और देसी घी के साथ खाई जाती हैं. यहां का भोजन भी मौसम के अनुसार होता है. अधिक ठंड होने पर मूंगफली के कच्चे तेल के साथ दाल ढोकली, केर सांगरी आदि बनाई जाती है.

कहां से क्या करें खरीदारी

ज्वैलरी विक्रेता दिनेश मालवीय कहते हैं कि कुंभलगढ़ में अधिकतर सामान उदयपुर और नाथद्वार से मंगवाया जाता है. इस के अलावा लोकल और आसपास की भी कुछ महिलाएं घर पर हैंडीक्राफ्ट का काम करती हैं. इस में खासकर लहंगे पर कढ़ाई, ओढ़नी, दुपट्टा, वाल हैंगिंग्स, पौटरी बैंबू साड़ी, महारानी साड़ी आदि हैं. कठपुतली अधिकतर मारवाड़ के लोग बनाते हैं. ये सभी वस्तुएं आसपास के बाजारों या छोटीछोटी दुकानों में किफायती दाम पर मिल जाती हैं.

सोविनियर शौप चलाने वाले जगदीश कुम्हार का कहना है कि यहां आने पर अधिकतर लोग ट्रैडिशनल सोने, चांदी, लाख की ज्वैलरी, ब्लौक प्रिंट की कुरतियां, मौजरी, लकड़ी के खिलौने आदि की खरीदारी करते हैं. गहनों पर मीनाकारी का काम बहुत ही बारीकी से किया जाता है. इन के अलावा तरहतरह के मिट्टी के बरतन और खिलौने भी यहां बिकते हैं.

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ठहरने की सुविधा

कुंभलगढ़ में ठहरने की अच्छी व्यवस्था है. यहां करीब छोटेबड़े 30-35 होटल हैं. प्रशांत झा बताते हैं कि यहां होटलों का किराया पीक सीजन अर्थात अक्तूबर से मार्च तक अधिक रहता है, लेकिन बाकी समय में कई होटलों में क्व500 में भी कमरा मिल जाता है. रामादा रिजोर्ट, क्लब महिंद्रा रिजौर्ट, न्यू रतनदीप, रंग भवन इन, लेक अल्पी, राजगढ़, महुआ बाढ़ रिजोर्ट आदि कई छोटेबड़े होटल हैं. पैसे के अनुसार सुविधाएं भी इन होटलों में मिलती हैं. मसलन, घूमने के लिए गाड़ी, सफारी के लिए खुली जीप की व्यवस्था आदि.

घूमने का सही समय

वैसे तो कुंभलगढ़ में पूरा साल सैलानी आते हैं, लेकिन अक्तूबर से मार्च के समय में पर्यटकों की भीड़ अधिक रहती है. बाकी समय में अधिकतर कपल्स ही आते हैं. विदेशी सैलानियों में यूरोप के लोग अधिक आते हैं. मौनसून में घाटियों की हरियाली तो बढ़ जाती है, पर पर्यटक कम आते हैं, क्योंकि उस समय जंगल सफारी बंद रहती है.

देश के इन बेस्ट Sunrise Point’s पर जरूर जाएं

प्रकृति अपने आप में बहुत खूबसूरत है और इसकी खूबसूरती देखने के लिए हमें अपने बंद घरों से बाहर आना होगा और अपने व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा समय निकालना होगा. अगर आप घूमने के शौकीन हैं तो सनराइज देखना आपके सफर का एक अहम हिस्सा हो सकता है. भारत में कई सनराइज पौइंट्स हैं जहां पहुंचकर आपको ऐसा महसूस होगा कि इतना खूबसूरत सूर्योदय आपने पहले कभी नहीं देखा. आइए बताते हैं आपको इन सनराइज पौइंट्स के बारे में-

उमियम लेक, मेघालय

भारत के उत्तर पूर्व में स्थित यह झील भारत के खूबसूरत स्पौट्स में से एक है. यहां की अद्भुत खूबसूरती भारत के हर कोने के लोगों को खींचकर यहां लाती है. यह झील शिलौन्ग से 15 किलोमीटर की दूरी पर है. सूरज की पहली किरण जब झील के पानी को छूती है तो इसे देखकर ऐसा अहसास होता है कि सच में खूबसूरती में प्रकृति का कोई जवाब नहीं है.

टाइगर हिल, दार्जिलिंग

पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में स्थित टाइगर हिल सनराइज देखने के लिए सबसे अच्छी जगह है. जितने भी टूरिस्ट दार्जिलिंग घूमने आते हैं सभी सनराइज देखने टाइगर हिल जरूर जाते हैं. आप चाहें तो दार्जिलिंग से पहले स्थित घूम स्टेशन से पैदल या कार से भी टाइगर हिल जा सकते हैं.

कोवलम बीच, केरल

केरल को ‘गौड्स ओन कंट्री’ यानी भगवान का अपना देश भी कहा जाता है और इस शानदार जगह पर सनराइज देखना अपने आप में बहुत स्पेशल है. केरल में कई बीच हैं. केरल का कोवलम बीच अपनी नैचरल ब्यूटी और अरब सागर के नीले पानी के लिए मशहूर है. यहां से सनराइज देखना एक शानदार अनुभव है.

नंदी हिल्स, कर्नाटक

दक्षिण भारत के नंदी टाउन के पास स्थित नंदी हिल्स आपको शहरों के भीड़ भाड़ से निकालकर एक दूसरी दुनिया की सैर कराएगी. आप पहाड़ों और पुराने मंदिरों की खूबसूरती में खो जाएंगें. हल्की धुंध के बीच सनराइज देखने के लिए आपको यहां सुबह-सुबह जाना होगा. इस खूबसूरती को आप अपने कैमरे में भी कैद कर सकते हैं.

भारत के ठंडे रेगिस्तान के नाम से जाना जाता है लद्दाख, ट्रिप करें प्लान

गर्मियां आ चुकी हैं, ऐसे में ज्यादातर लोग हिल स्टेशनों की ओर रूख कर रहे हैं. गर्मियों के मौसम में वीकेंड पर सबसे ज्यादा भीड़ हिल स्टेशनों पर होती है. ऐसे में हिल स्टेशनों पर काफी लोगों को भीड़भाड़ के बीच सुकून नहीं मिल पाता. अगर आप भी गर्मियों में राहत के कुछ वक्त तलाशने के लिए जाना चाहती हैं, तो हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी जगह के बारे में जो सबसे पौपुलर लोकेशन्स में से एक है लेकिन वहां उत्तराखंड और हिमाचल के हिल स्टेशनों की तुलना में भीड़ कुछ कम देखने को मिलती है. आज हम आपको सैर करवाएंगे लद्दाख की. लद्दाख को भारत का कोल्ड डेजर्ट यानी ठंडा रेगिस्तान भी कहा जाता है और यहां जाना किसी भी टूरिस्ट के लिए कभी न भूलने वाला एक्सपीरियंस होता है.

लद्दाख का सबसे बड़ा और खूबसूरत शहर लेह

समुद्र तल से 3 हजार 500 मीटर की ऊंचाई पर उत्तर में कुनलुन पर्वत और दक्षिण में हिमालय के बीच स्थित है छोटा-सा शहर लेह जो लद्दाख का सबसे बड़ा शहर है और यहीं पर सबसे ज्यादा पर्यटक आते हैं. मई के अंतिम हफ्ते से सितंबर तक लद्दाख जा सकती हैं. यहां सड़क या हवाई मार्ग से ही पहुंचा जा सकता है. सड़क से जाना चाहें, तो एक रास्ता मनाली और दूसरा श्रीनगर होते हुए जाता है.

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दोनों ही रास्तों पर दुनिया के कुछ सबसे ऊंचे दर्रे यानी पास पड़ते हैं. मई से पहले और सितंबर के बाद यहां भारी बर्फ जम जाने की वजह से ये दर्रे बंद हो जाते हैं. लेह लद्दाख का हेडक्वार्टर है. लद्दाख देखने के लिए कम से कम 6 दिन का समय जरूर रखें. अगर इस इलाके को अच्छी तरह देखना चाहें, तो 1 से 2 हफ्ते का समय पर्याप्त है.

ऐसे करेंगे प्लानिंग तो आएगा दुगुना मजा

  • पहले दिन (मनाली वाले रास्ते पर) लेह से शे, थिक्से और हेमिस मोनेस्ट्री के अलावा स्तोक पैलेस और सिंधु नदी के तट पर जा सकती हैं.
  • दूसरे दिन (श्रीनगर वाले रास्ते पर) लेह से आल्ची और लिकिर मोनेस्ट्री के अलावा मैग्नेटिक हिल जा सकती हैं.
  • तीसरे दिन दुनिया की सबसे ऊंची सड़क देख सकती हैं, (नुब्रा घाटी वाले रास्ते पर) खारदुंगला जाते हुए.
  • इसके अलावा समय और हो, तो 2 दिन नुब्रा घाटी और 2 दिन पैन्गौन्ग लेक के लिए रखें.

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घूमने से पहले याद रखें ये बातें

यह ठंडा रेगिस्तान है, इसलिए यहां का मौसम हमेशा बदलता रहता है. सर्दियों में यहां का तापमान 0 डिग्री से -28 डिग्री के बीच होता है जबकि गर्मियों में 3 डिग्री से 30 डिग्री के बीच, इसलिए अगर आप मेडिकली फिट हैं, तो ही आप यहां आए.

VIDEO : समर स्पेशल कलर्स एंड पैटर्न्स विद द डिजिटल फैशन

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ट्रैवलिंग से पहले ऐसे करें फुटवियर्स की पैकिंग

ट्रिप के लिए सही फुटवियर को चुनना जितना जरूरी है उतनी ही जरूरी है उसकी पैकिंग करना भी. आपके बहुत सारे मैचिंग फुटवियर्स की पैकिंग करना सिर्फ और सिर्फ बैग का वजन बढ़ाना है और कई बार तो इनमें से कुछ को पहनने का मौका भी नहीं मिल पाता.

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बेशक हील्स स्टाइलिश लुक के साथ कौन्फिडेंस भी देते हैं लेकिन ट्रैवलिंग में कम्फर्टेबल रहने के लिए फ्लैट्स का विकल्प हर तरह से बेहतर है. तो आइए आज फुटवेियर्स की पैकिंग कैसे करें इसके बारे में जानते हैं.

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  • ब्लैक और ब्राउन जैसे डार्क कलर के फुटवियर्स हर तरीके से जचते हैं. जो आपके हर एक आउटफिट्स के साथ मैच भी हो जाते हैं और जल्दी गंदे भी नहीं होते. स्टाइलिश लुक के लिए बैग में ब्लैक या ब्राउन कलर का बेल्ट जरूर रखें.
  • सफर के दौरान ऐसे फुटवियर्स रखें जिन्हें आप ज्यादातर आउटफिट्स के साथ मिक्स एंड मैच कर पहन सकती हैं.

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  • फुटवियर्स को हमेशा किसी प्लास्टिक के बड़े बैग में रखें इससे आपको उन्हें ढूंढ़ने में भी आसानी होती है और इसके साथ ही किसी भी प्रकार की बदबू और गंदगी से आपका सामान भी सुरक्षित रहता है.
  • फुटवियर्स रखते समय उनके सोल एक-दूसरे के विपरीत रखें जिससे वो सुरक्षित भी रहेंगे और बैग में जगह भी बचेगा.

Smart look with stylish pants and high-heels

  • ट्रैकिंग, बीच या एडवेंचर ट्रिप, हर एक जगह के लिए अलग-अलग तरह के फुटवियर्स की जरूरत होती है.
  • ट्रैवलिंग में कम्फर्टेबल रहने के लिए वैसे तो फ्लैट्स चप्पल या सैंडल पहनने चाहिए लेकिन अगर आपका सामान जूतों की वजह से भारी हो रहा है तो बेहतर होगा कि आप उसे पहनकर यात्रा करें.
  • आपके पास लेस वाले फुटवियर्स को बैग के साइड में बांधने का भी विकल्प है. इससे जगह भी बचती है और जूतों से आने वाली बदबू भी बाहर रहने से कम हो जाती है.

हवाई यात्रा के दौरान इन चीजों से बना लें दूरी

फ्लाइट से पहली बार जब आप सफर करने जा रही हैं तो कई सारी चीज़ों का ध्यान रखना पड़ता है और उनमें से ही एक है आपकी पैकिंग. ऐसी कई सारी चीज़ें हैं जिन्हें आप फ्लाइट में कैरी नहीं कर सकती. वैसे तो इसकी जानकारी आपके टिकट में साफतौर से दी हुई होती है. इसके साथ ही फ्लाइट में कई सारी चीज़ों को ले जाने की भी मनाही भी होती है जिसके बारे में पता होना सबसे ज्यादा जरूरी है वरना एयरपोर्ट पर निकालकर रखने या फेंकने के अलावा कोई औप्शन नहीं बचता. तो आइए बताते हैं आपको किस तरह पैकिंग करनी चाहिए.

नुकीली चीज

किसी भी तरह की कोई नुकीली चीज़ को आप फ्लाइट में हैंडबैग में लेकर सफर नहीं कर सकती. क्योंकि ये औज़ार माने जाते हैं. तो अगर आप चाकू, बौक्स कटर या तलवार कैरी कर रहे हैं तो बेहतर होगा इन्हें अच्छे से पैक करके अपने चेक-इन बैग में रखें. इसी तरह रेज़र, ब्लेड, नेल फाइलर और नेल कटर भी लगेज चेक-इन में निकलवा लिया जाता है.

लिक्विड्स 

लिक्विड ले जाने की मनाही  हर एक देश में अलग-अलग है. तो बेहतर होगा आप फ्लाइट के नियमों का पालन करते हुए 100 मिली से ज्यादा लिक्विड न कैरी करें. और साथ ही इनकी पैकिंग भी अच्छी तरह से करें.

खेल सामग्री

बेसबौल बैट, स्की पोल्स, धनुष-तीर, हौकी स्टिक, गोल्फ क्लब या ऐसी ही दूसरी खेल सामग्री को भी आप फ्लाइट में लेकर सफर नहीं कर सकती. बेहतर होगा इन चीज़ों की खरीददारी डेस्टिनेशन पर पहुंचकर करें या रेंट पर ले लें.

मीट, फ्रूट्स, सब्जी

ज्यादातर देशों में आप अपने साथ मीट, फ्रूट्स, सब्जियां, पौधे और ऐसी चीज़ें कैरी नहीं कर सकते. तो अगर आप फ्रूट्स वाला कोई स्नैक्स अपने साथ कैरी करने की सोच रही हैं तो अच्छा होगा आप इसे एयरपोर्ट पर ही खा लें वरना चेक-इन के दौरान इसे जब्त कर लिया जाएगा.

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