“राजेश क्या तुम अपने पहने कपड़ों को सही जगह नहीं रख सकते? लांड्री बैग है, फिर क्यों सब बिखरा पड़ा है? मैं और कितना करूँगी”!
राजेश कहता है, “अजीब बात है, मैं ऑफिस से थका हुआ घर आया हूँ, तो एक कप चाय पूछने के बजाए तुम कपड़ों को लेकर झगड़ रही हो! माँ सही कहती थी, तुम कभी मेरी सही पत्नी नहीं बन सकती!”
ऐसे छोटे छोटे झगड़ों से ही रिश्ते में तनाव आता है. गौर करें ‘सही’ शब्द पर. आखिर ‘सही’ की परिभाषा क्या है? ये समझ ना पाने की वजह से ही रिश्ते टूटते हैं. इंसान क्यों शादी जैसे पाक रिश्ते को तोड़ना चाहता है, और कैसे हम इसे बचा सकते हैं?
1. क्रोध बुरा है
अपने गुस्से को खुद पर हावी न होने दें. मतभेद होंगे, झगड़ा होगा, एक दूसरे पर कभी कभी गुस्सा भी आएगा, पर अपने गुस्से से अपने प्यार को मिटने न दें.
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2. बात करना ज़रूरी है
अगर आप बात नहीं करेंगे, तो एक दूसरे के नज़रिये को समझ नहीं पाएंगे, और इससे, गलतफहमियां बढ़ सकती है. इसलिए, समस्या जो भी है, गुस्सा है, मलाल है, तो बता दीजिये. बैठ कर उस पर विचार करें, तो मन हल्का हो जाएगा, और मुश्किलें आसान हो जाएँगी.
3. सुनने और समझने की कोशिश करें
नमन वैसे तो शांत इंसान था, लेकिन हर दिन घरवालों की शिकायत से वह तंग आ गया था. वह अपने घरवालों को जानता था, उनसे जुड़ी समस्या को भी समझता था, पर सपना की बात को सुनना नहीं चाहता था. समस्या से मुंह फेरना, समस्या का हल नहीं है. सपना गलत नहीं थी. वह घर में नई थी, और उसे कई नई परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा था, और ऐसे में वह नमन को छोड़ किसे बताती? इसलिए अपने साथी की बात को सुने, उनका सहारा बने. उनसे बहस करना ज़रूरी नहीं है, समझाया बाद में भी जा सकता है.
4. खुद को उनकी जगह रख कर सोचें
ये पति पत्नी दोनों पर लागू होता है, कि बहस के वक़्त, वे खुद को एक दूसरे की जगह रख कर सोचें. अगर सपना ऐसा करती तो वह समझ पाती कि घरवालों की निंदा हमेशा नमन को सुनना पसंद नहीं होगा.
5. अपने साथी पर का दबाव न डालें
हम अकसर अपने साथी को सर्वोत्तम समझने लगते हैं, और चाहते हैं, की वह हमारी तरह सोचें और करें, पर सब अलग व्यक्ति है, मत अलग है, तो ये आशा न करें कि आपका साथी आपकी तरह सोचेगा.
6. साथी बने, अभिभावक नहीं
पत्नियां सोचती हैं, कि वे अपने पति को बदल देंगी, पर इसकी ज़रूरत क्या है? मोबाइल चेक करना, हर बात पर टोकना, घर से बाहर जाते वक़्त रोकना, ये हरकतें, आपको उनके दिल से दूर कर सकती हैं . उन्हें अपनी ज़िन्दगी जीने दें, अगर कोई आदत उनके लिए हानिकारक है, तो उन्हें सही तरह से समझाएं.
पति को भी समझना चाहिए की उनकी पत्नी एक पूर्ण महिला हैं, और उन्हें अपनी जिम्मेदारी और फैसले लेना आता है. तो उनके साथी बने, अभिभावक नहीं.
7. साथ में फैसले करें
इससे हर साथी खुद को ख़ास और महत्वपूर्ण महसूस करेगा, और आपके रिश्ते पर अच्छा असर पड़ेगा.
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8. ईगो को छोड़ दें
“मैं क्यों आगे जा कर बात करूँ, उसने झगड़ा किया है, उसे माफ़ी मांगनी चाहिए, अगर उसे परवाह नहीं, तो मुझे भी नहीं”, ऐसी मनोवृत्ति रखने का कोई फायदा नहीं. उन्हें हो न हो, आपको उनकी ज़रूरत है, ये आप समझें, अगर आप कहते हैं, “परवाह नहीं”, तो आप खुद को धोखा दे रहे हैं.
इस लिए ईगो को छोड़ दें, और खुद आगे बढ़ कर रिश्ते में सुधार लाएं, और अपनी शादी को बचाएं.