अकसर कहा जाता है कि दूरी दिल को निकट लाती है. एकदूसरे को एकदूसरे का महत्त्व पता चलता है. साथ रहते हुए जो बातें महसूस नहीं हो पातीं, वे भी बहुत शिद्दत से महत्त्व के साथ महसूस होती हैं. शादी की शुरुआत में पीहर वालों की दूरी खटकती है, वही धीरेधीरे ससुराल वालों के लिए भी महसूस होने लगती है. पति से दूरी तो खासतौर से खटकती है. एक नवविवाहित जोड़े की पत्नी कहती हैं कि हम अभी हनीमून भी पूरा नहीं कर पाए थे कि पति को विदेश जाना पड़ा. साथ बिताए महज 10 दिन और 3 महीनों की दूरी. दोनों का रोरो कर बुरा हाल. सारे घरपरिवार में पति का मजाक बना. किसी ने उन्हें तुलसीदास कहा तो किसी ने कालिदास. तब औरों के सामने मुंह तक न खोलने वाले पति ने सब से दिलेरी से कहा कि मेरा मजाक उड़ाने का अधिकार उसे ही है जिस ने खुद दिलेरी से जुदाई सही हो. धीरेधीरे सब चुप हो गए. इस जोड़े के पति कहते हैं कि हमें हनीमून के रोमानी दिनों ने ही फर्ज में दक्ष कर दिया. कहां हम मौजमस्ती के लिए घूम रहे थे और कहां साथ ले जाने के लिए सामानों की सूची तैयार कर रहे थे और उन्हें खरीद रहे थे. मैं ने अपनेआप को बहुत अच्छा महसूस किया. पहले दफ्तर के काम के साथ यह काम करता था. तब बहुत दबाव रहता था. मेरा ध्यान अधिकतर कंपनी के काम पर होता था, इसलिए व्यक्तिगत रूप से कुछ न कुछ छूट जाता था. अब कंपनी के काम की तैयारी मैं ने व निजी काम की पूरी तैयारी पत्नी ने की. कुल मिला कर सुखद यात्रा. बाद में सिर्फ उस की कमी थी. लेकिन हम शरीर से दूर थे पर मन से बेहद निकट. इस का श्रेय दूरी को ही है, वरना हम इतनी जल्दी एकदूसरे को नहीं जान पाते. बस कई दंपतियों की तरह लड़तेझगड़ते.