पेरैंटिंग को ले कर पहले ही मातापिता काफी परेशान रहते थे और अब तो कोरोना के डर से बच्चे और पेरैंट्स चाहें तो सही फायदा उठा सकते हैं और यह जानने की कोशिश कर सकते हैं कि बच्चा आखिर सोचता क्या है या फिर उस के व्यवहार में आने वाले बदलावों का कारण क्या है. कई रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई है कि आजकल के बच्चों में गुस्सा और चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है.

बच्चों के साथ कुछ तो गलत है. कहीं न कहीं बच्चों के जीवन में कुछ बहुत जरूरी चीजें मिसिंग हैं और उन में सब से महत्त्वपूर्ण है घर वालों से घटता जुड़ाव और सोशल मीडिया से बढ़ता लगाव.

पहले जब संयुक्त परिवार हुआ करते थे तो लोग मन लगाने, जानकारी पाने और प्यार जताने के लिए किसी गैजेट पर निर्भर नहीं रहते थे. आमनेसामने बातें होती थीं. तरहतरह के रिश्ते होते थे और उन में प्यार छलकता था. मगर आज अकेले कमरे में मोबाइल या लैपटौप ले कर बैठा बच्चा लौटलौट कर मोबाइल में हर घंटे यह देखता रहता है कि क्या किसी ने उस के पोस्ट्स लाइक किए? उस की तसवीरों को सराहा? उसे याद किया?

आज बच्चों को अपना अलग कमरा मिलता है जहां वे अपनी मरजी से बिना किसी दखल जीना चाहते हैं. वे मन में उठ रहे सवालों या भावों को पेरैंट्स के बजाय दोस्तों या सोशल मीडिया से शेयर करते हैं.

यदि पेरैंट्स इस बात की चिंता करते हैं कि बच्चे मोबाइल या लैपटौप का ओवरयूज तो नहीं कर रहे तो वे उन से नाराज हो जाते हैं.

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