जब तक 2 इंसान अकेले होते हैं वे अजनबी कहलाते हैं. फिर जब इन अजनबियों में जान-पहचान होती है, तो यह परिचय कहलाता है. धीरेधीरे परिचय दोस्ती की ओर कदम बढ़ाता है. फिर जब घनिष्टता बढ़ कर प्रगाढ़ हो जाती है तब इस घनिष्टता को संबंध में बदलने के वादे किए जाते हैं. लेकिन दोस्ती तक तो काफी कुछ सहन और नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन जब बात इस सीमा को लांघ कर पतिपत्नी बनने की दहलीज पर आ रुके तो बहुत से गंभीर निर्णय लेने पड़ते हैं. आइए, उन की चर्चा कर ली जाए.
1. जन्मकुंडली कहां तक मान्य
हिंदू समाज में रिश्ता तय करने से पहले पंडितजी से लड़केलड़की की कुंडली मिलान कराने की आदत बढ़ रही है. मान्यता है कि 36 या कम से कम 20 गुणों का मेल हो जाए तो बात आगे बढ़ाई जाती है. किंतु क्या गुणों का मिलान रिश्ते की सफलता का पैमाना है? कदाचित नहीं. गुण नहीं स्वभाव अधिक महत्त्वपूर्ण है. कहते हैं यदि एक को अग्नि और दूसरे को जल मान लिया जाए तो भी जोड़ी समझबूझ के साथ जम जाती है. यदि दोनों जल हैं तब भी चिंता की कोई बात नहीं. लेकिन यदि दोनों अग्नि तत्त्व हैं तो जीवन नरक बन सकता है, क्योंकि समझौता दोनों को मान्य नहीं होता. यह कुंडली का पाखंड है, जिसे पंडितों ने अपना हित साधने के लिए हिंदू समाज पर थोपा है ताकि विवाह जैसे नितांत व्यक्तिगत मामले में भी दखल दे कर मोटी कमाई की जा सके.
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