कहानी थोड़ी फिल्मी प्रतीत होती है, लेकिन सच्ची है. लड़की सहारनपुर के एक संयुक्त मुस्लिम परिवार से है, जिसमें मिश्रित विवाह का इतिहास 1955 से है- हिन्दू-मुस्लिम, सिख-मुस्लिम, शिया-सुन्नी... इस परिवार में सभी रंग के जोड़े हैं. कारण- परिवार के दादा और दादी अपने समय से बहुत आगे थे. लेकिन लड़की की मां पुराने ख्यालात की है. अपनी बेटी का निकाह शरिअत (मुस्लिम कानून व रीति रिवाज) के पाबंद लड़के से करना चाहती है, जिसके लम्बी न सही मगर विराट कोहली जैसी दाढ़ी तो हो. क्या इतना काफी नहीं कि वह लगभग दो दशक से एक क्लीन शेव नास्तिक पति को बर्दाश्त करती आ रही है?
लड़का मेरठ के अग्रवाल परिवार से है. उसके संयुक्त व्यापारी परिवार को अपनी शुद्ध अग्रसेन वंशावली पर गर्व है. आज तक न वर्ण से बाहर और न ही पूर्व निर्धारित दहेज के बिना परिवार में कोई विवाह हुआ है. प्रेम विवाह की तो किसी ने कल्पना तक नहीं की है. घर में अंडे व प्याज तक का सेवन नहीं होता. लोग मांस भी खाते हैं यह सिर्फ सुना है, देखा नहीं. अब लड़का नाक कटवाने पर तुला है. वर्ण, जाति तो छोड़िये दूसरे धर्म की मांसभक्षी लड़की को दुल्हन बनाकर लाना चाहता है. क्या कलियुग है, धर्म भ्रष्ट करायेगा, पाप लगेगा.
लड़के और लड़की की मुलाकात दिल्ली में हुई थी. जब दोनों एक ही इंस्टीट्यूट से एमबीए कर रहे थे. मुलाकातें प्रेम में कब बदल गईं, पता ही नहीं चला. फिर एक दूसरे के बिना रहना कठिन हो गया, दोनों ने आपस में शादी करने का फैसला किया. अपने-अपने पैरेंट्स को खबर देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी, इश्क और मुश्क (सुगंध) छुपाने से कहां छुपते हैं. दोनों तरफ के पैरेंट्स इस रिश्ते से असहमत हैं. उन्हें उम्मीद है कि जवानी का जोश है कुछ समय में उतर जायेगा या योगी का एंटी रोमियो दस्ता खुद इश्क का भूत उतार देगा.
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