हाल ही में पंजाब के बटाला में दिनदिहाड़े एक 7 साल के बच्चे को अगवा करने की कोशिश की गई. लेकिन उसी समय बच्चे के साथ आए उस की ममेरी बहन के बेटे ने शोर मचा दिया. उसी समय बच्चे का पड़ोसी वहां से निकल रहा था. उस ने किडनैपर पर ईंट से हमला कर दिया, तो वह बच्चे को वहीं छोड़ कर भाग गया.

इस घटना ने बच्चे की मां सोनिया को अहसास दिलाया कि अगर वह पड़ोसी समय पर वहां नहीं पहुंचता और बच्चे को बचाने की कोशिश नहीं करता, तो पता नहीं उस के मासूम बच्चे के साथ क्या होता.

अक्तूबर, 2018 में हरियाणा में गुरुग्राम के ट्यूलिप औरेंज हाईराइज अपार्टमैंट्स में पड़ोसी की मदद करने का एक ऐसा मामला सामने आया जिस ने अच्छे और हिम्मती पड़ोसी होने की मिसाल दी. 33 साल की स्वाति ने पड़ोसियों की जिंदगी बचाने के लिए अपनी ही जान दांव पर लगा दी थी.

दरअसल, एक छोटे से शौर्टसर्किट से लगी आग ने उस इमारत के एक फ्लोर पर बड़ा भीषण रूप ले लिया था. स्वाति अपार्टमैंट्स से निकलने के बजाय वहां मौजूद सभी लोगों को
होशियार कर बाहर जाने के लिए कहने लगीं और निकलने में मदद भी करने लगीं. आग बुझने के बाद फायरफाइटर्स को छत के दरवाजे पर बेहोशी की हालत में स्वाति मिली थी. अस्पताल ले जाते समय उन की रास्ते में ही मौत हो गई थी.

इसी तरह दिल्ली की रहने वाली प्रिया की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. प्रिया हर राखी के दिन सुबहसुबह तैयार हो कर थाल में राखी सजा कर कुतुब भाई के घर जाती थी. कुतुब उस का सगा भाई नहीं था. दोनों के धर्म भी अलग थे, मगर उन के परिवारों में रिश्तेदारों सा प्यार था.

दरअसल, जब प्रिया छोटी थी तब उस के पड़ोस में एक परिवार आया. उस परिवार में कई बच्चे थे, जिन में एक कुतुब भी था. प्रिया के घर वाले दूसरे धर्म के लोगों से ज्यादा बातचीत नहीं रखते थे. सो, प्रिया को उन के घर जाने की मनाही थी.

इसी बीच एक दिन प्रिया छत से नीचे गिर गई. उस समय उस के पिता औफिस में थे और मां नहा रही थीं. घर में दादी थीं जो चल नहीं पाती थीं. सामने गली में खेल रहे कुतुब ने प्रिया को गिरते देखा तो तुरंत भागा और अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर उसे अस्पताल पहुंचाया.

बाद में जब प्रिया के मातापिता को इस घटना की जानकारी मिली तो वे हाथ जोड़ कर कुतुब को धन्यवाद कहने लगे. तभी से प्रिया और कुतुब के परिवारों में रिश्तेदारों सा प्यार हो गया और प्रिया हर साल कुतुब को राखी बांधने लगी. यह रिश्ता आज तक उसी तरह चल रहा है.

एक समय था जब ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की तर्ज पर सारा महल्ला भाईचारा निभाता था और लोग पड़ोसियों के साथ हर तरह के दुखसुख एक परिवार की तरह शेयर किया करते थे. पर आज समय बदल गया है. गलाकाट प्रतियोगिता के इस समय में लोगों की व्यस्तता बहुत बढ़ गई है, इसलिए कहीं न कहीं लोग अपने घरों में सिमटते जा रहे हैं. एकल परिवार के इस जमाने में पड़ोसियों की कौन कहे अब तो रिश्तेदारों से भी मिले हुए महीने और साल बीत जाते हैं.

मगर इस बदलाव के बीच भी जब इनसान मुसीबत में होता है तो उस की मदद के लिए पड़ोसी ही सब से पहले पहुंच सकते हैं. अगर आप घर से दफ्तर जाने में लेट हो रहे हैं या आधी रात में कभी अस्पताल जाने की जरूरत हो तो आप के पड़ोसी ही आप की मदद कर सकते हैं. आप को लिफ्ट दे सकते हैं. साथ ही आप के न होने पर पीछे से आप के घर की निगरानी भी रख सकते हैं. ऐसे में पड़ोसियों से हमेशा बना कर रखने में ही समझदारी है. आप के पास कुछ पड़ोसी ऐसे जरूर होने चाहिए जो आड़े वक्त में काम आएं और रिश्तेदारों की कमी पूरी कर सकें.

जातिधर्म का न रखें बंधन

इनसान शादीब्याह तो अपनी मरजी चला सकता है और अपनी जाति या धर्म में जीवनसाथी खोज सकता है, मगर जब बात आती है पड़ोसी की तो यहां आप का कोई वश नहीं.

धर्मजाति का प्रमाणपत्र दे कर कोई इनसान घर नहीं लेता. घर अपना हो या किराए पर, आप के बगल में कोई भी रहने आ सकता है. बेहतर होगा कि पुरानी सोच अपनाते हुए उस की जन्मकुंडली पूछने के बजाय आप खुले दिल से उसे अपनाएं. उसे अहसास दिलाएं कि वह आप के लिए बहुत अहमियत रखता है, क्योंकि पड़ोसी ही रियल लाइफ में आप के सुखदुख का साथी बनता है.

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अगर पड़ोसी के साथ आप के मधुर संबंध हैं तो समझिए कि आप को जिंदगी की बहुत बड़ी नियामत मिल गई है.

अगर पड़ोसी दूसरे धर्म या जाति का है तो यह भी अच्छा है. आप को उन के बारे में जानने का मौका मिलता है. दूसरों की संस्कृति की जानकारी मिलती है. हर संस्कृति में बहुत सी अच्छी और सीखने की बातें होती हैं. यह आप पर निर्भर करता है कि आप उन से क्या सीखते हैं.

बच्चों को बढ़ाने दें मेलजोल

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी ने हमें इतना मसरूफ कर दिया है कि हमारे पास अपने पड़ोसियों के साथ बैठ कर बात करने का क्या उन का हालचाल तक पूछने का समय नहीं है. अब लोगों के घर तो बड़े होते जा रहे हैं, पर अपने पड़ोसियों के लिए उन के दरवाजे तक नहीं खुलते हैं. मर्द सुबहसुबह काम पर निकल जाते हैं और अपने पड़ोसियों से कोई खास संबंध नहीं रखते हैं, जबकि औरतें टैलीविजन के सामने पड़े रहने में ज्यादा सुकून महसूस करती हैं. बच्चों को भी बाहर जा कर पड़ोस के बच्चों के साथ न खेलने की हिदायतें दी जाती हैं.

बच्चों के स्कूल के दोस्त अकसर उन के घरों से बहुत दूर रहते हैं. घर में दिनभर बंद कमरे में वीडियो गेम खेलना बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर बुरा असर डालता है. अगर बच्चे पड़ोस के बच्चों के साथ खेलें, बातें करें तो वे शारीरिक व मानसिक तौर पर सेहतमंद भी रहेंगे.

एक रिपोर्ट के मुताबिक 55 फीसदी बच्चों को उन के मातापिता द्वारा बाहर जा कर खेलने की इजाजत नहीं दी जाती है, जबकि उन के विकास के लिए उन्हें पड़ोस के बच्चों के साथ
खेलने दिया जाना चाहिए.

ऐसे कायम रखें रिश्ते में मिठास

जिंदगी में रस घोलते पड़ोसी केवल मुश्किल समय में ही नहीं, बल्कि खुशी के माहौल को और मजेदार बनाने में भी सब से बेहतर साबित होते हैं. बगीचे की छोटीमोटी सफाई हो, बच्चों की बर्थडे पार्टी हो या घर की चीनी खत्म हो जाए तो पड़ोसी का दरवाजा खटखटाने का अनुभव, पड़ोसियों के साथ आपसी संबंध बहुत प्यारे और मीठे होते हैं, जो जिंदगी में ताजगी भर देते हैं. इस मिठास को बरकरार रखने के लिए ध्यान रखें इन कुछ बातों का :

-पड़ोसियों से रिश्ते बनाने और उसे कायम रखने का सब से पहला नियम है कि उन्हें उन की प्राइवेसी दें. दोस्ती का हाथ जरूर बढ़ाएं, पर उन के हर काम में या निजी मसलों में दखलअंदाजी न करें.

-ऐसा कोई शख्स नहीं जिसे कभी न कभी किसी की जरूरत न पड़ती हो. हमारा पड़ोसी ही एक ऐसा इनसान होता है जिस की हमें सब से ज्यादा जरूरत पड़ती है, क्योंकि वह सब से करीब होता है और किसी भी समय आप के पास पहुंच सकता है, इसलिए जरूरी है कि आप भी मददगार बनें, तभी आप का पड़ोसी भी मुसीबत के समय में आप के काम आएगा. अगर उन्हें किसी तरह की जरूरत है तो कोशिश करें कि आप उन की मदद कर सकें.

-आप हफ्ते में एक बार किटी पार्टी का प्रोग्राम भी बना सकते हैं. इस से आप एकदूसरे के परिवारों से परिचित होंगे व आपसी संबंधों में मिठास भी रहेगी.

-अकसर घरेलू औरतें घरों में ही रहती हैं और केवल बच्चों को स्कूल से लाना और ले जाना ही करती हैं. ऐसी औरतें पड़ोस की दूसरी औरतों के साथ पास के बाजार या माल वगैरह में जा कर बाहरी दुनिया से रूबरू हो सकती हैं. कभीकभी पड़ोसी के और अपने बच्चों को साथ ले कर पिकनिक का प्रोग्राम भी बनाया जा सकता है.

-अगर आप की और आप के पड़ोसी की काम करने की जगह आसपास है तो गाड़ी में एक साथ भी जाया जा सकता है. इस से पैसों की बचत के साथसाथ रिश्ते भी मजबूत होते हैं.

जब बेवजह हो चिड़चिड़ाहट

-पैसे का लेनदेन करते समय ईमानदारी बरतें. अगर आप ने उन से जरूरत के समय रुपए लिए हैं तो वापस करना भी आप का फर्ज बनता है, ताकि बाद में कभी जरूरत होने पर वह खुद से आप की मदद करने को आगे आएं.

-इसी तरह पड़ोसियों के वाहन, फोन, उपकरण, सिलैंडर या दूसरी चीजें मांगते हैं तो समय पर उन्हें
सहीसलामत वापस करना न भूलें.

-चुगलखोर पड़ोसी न बनें. भूल कर भी पड़ोसियों के बारे में कोई अंटशंट बात न कहें, क्योंकि एक बार भरोसा टूट जाए तो रिश्ता पहले की तरह बनने में समय लगता है.

-डींग न हांकें. कभी भी पड़ोसी के आगे अपनी अमीरी को ले कर घमंड न दिखाएं. एकदूसरे को समान समझें, तभी प्यार बढ़ता है.

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