इनसिक्योरिटी यानी असुरक्षा की भावना ... कितना बड़ा और गंभीर शब्‍द है न,पर इससे भी बड़े इसके मायने है. आज के दौर में लगभग हर इंसान अपने आपमें इनसिक्योर महसूस करता हैं. हममें से कुछ लोग कुछ कारणों से कभी-कभी इनसिक्योर महसूस करते हैं, लेकिन हममें से ज्यादातर लोग हर वक़्त अपने आपको इनसिक्योर महसूस करते हैं. कोई अपनी उपलब्धियों के बावजूद ,कोई अपने साथी को लेकर तो कोई दूसरों के स्‍टेटस को लेकर इनसिक्‍योर हैं,किसी को लगता है की वो स्थायी प्रेम के लायक नहीं है तो कोई अपने वजन,अपनी हाइट और अपनी बोली भाषा को लेकर इनसिक्‍योर फील करता है.
पर हद तो तब हो जाती है जब वो व्यक्ति इसके लिए अपनी किसी भी चीज को दांव पर लगाने को तैयार हो जाता है.....
पर सवाल ये है कि ये इनसिक्‍योरिटी इंसान के अंदर आती क्‍यों है. दरअसल इसका जवाब भी उसी के पास है जो इंसान इनसिक्‍योर फील करता है. इनसिक्योरिटी तब विकसित होती है जब हम अपने और दूसरों के बीच अंतर को या तो स्वयं या किसी और के माध्यम से पहचानते हैं और जाने अनजाने दूसरों से अपनी तुलना करने लगते है और खुद को अपने आप में नीचा महसूस करने लगते है.

उदाहरण के लिए

1-जब एक बच्चे का उसके मोटापे के कारण उसके साथियों के द्वारा खेल के मैदान में मजाक बनाया जाता है तो उसके अन्दर अपने वजन को लेकर एक इनसिक्योरिटी की भावना आ जाती है.
2-एक व्यक्ति जो अपने वजन के बारे में इनसिक्योर है, अपने शरीर के आकार को छिपाने के लिए बैगी और ढीले ढाले कपड़े पहनता है.
3-एक व्यक्ति जिसको इंग्लिश बोलना नहीं आता वो भी कहीं न कहीं समाज के बीच में बात करने से कतराता है.

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