‘3 इडियट्स’ को देख कर राजू, फरहान और रैंचो जैसी दोस्ती किस को नहीं चाहिए थी. क्या जिंदगी थी उन की भी, यहां से वहां ‘भैया औल इज वैल’ गाते फिरना, रातरात भर यहां से वहां मटरगश्ती करना, किसी और की शादी में खाना खा कर आना और पकड़े जाने पर कान पकड़ना. यही तो मजा होता है रूममेट्स के साथ रहने का. लेकिन मेरी जिंदगी में ग्रहण तो तब लगा जब मैं कालेज के होस्टल में अपनी रूममेट से मिली. मेरी रूममेट बिलकुल भी वैसी नहीं थी जैसा मैं ने सोचा था.

मैं अपने रूम में घुसी तो देखा वह एक औरत, जोकि उस की मम्मी लग रही थी, के साथ बैड पर बैठी हुई थी. मैं ठहरी एक्स्ट्रोवर्ट जिसे नाचनागाना, धूम मचाना पसंद है. पर जब मैं ने उस की बातें सुनीं तो मुझे समझ आ गया कि इस की और मेरी तो कभी जमने नहीं वाली.

‘‘नहीं, मैं कहीं घूमूंगी नहीं,’’ रूममेट ने सामने बैठी आंटी से कहा.

‘‘अरे, बेटा, यही तो मौका है. कब तक ऐसी छुईमुई सी बनी बैठी रहेगी. यही तो समय है घूमनेफिरने का, थोड़ा बाहर निकल, मजे कर,’’ आंटी ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘मम्मी, नहीं न. मुझे यह सब पसंद नहीं है. आप छोड़ो न यह सब. आप की फ्लाइट का टाइम हो रहा है, जाओ आप.’’

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‘‘अच्छा, ठीक है, जैसा तू चाहे कर,’’ यह कहते हुए आंटी ने उसे गले लगा लिया.

मैं कोने में खड़ी यह दृश्य देख रही थी. सचमुच यह देख कर तो मेरी आंखों में आंसू आ गए. नहींनहीं, इसलिए नहीं कि दृश्य बहुत मार्मिक था, बल्कि इसलिए कि मुझे तो मेरे घर से यह कह कर भेजा गया था कि ज्यादा मटरगश्ती करने की जरूरत नहीं है दिल्ली में. और यहां देखो, माजरा ही अलग है. खैर, जातेजाते उस की मम्मी मुझे नमस्ते के साथ यह कह कर गई थी कि दोनों खूब मजे करना. अब उन आंटी को क्या कहूं कि आप की बेटी का मेरी रूममेट बनने भर से मेरा जीवन मजा से सजा के फेज में आ चुका है.

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