काम से लौटी महिला बोझिल व असहाय होती है. उस के लिए तुरंत कोई भी अप्रिय स्थिति झेलना या घरेलू कार्य करना संभव नहीं होता. ऐसी परिस्थिति में परिवार चाहे संयुक्त हो या एकल, जहां सारी अपेक्षाएं सिर्फ उसी से रखी जाती हैं, वहां तनाव बढ़ता जाता है.
कामकाजी महिलाओं का लगभग एकतिहाई हिस्सा ‘लाइफ स्टाइल डिजीज’ की चपेट में है. एक सर्वे के अनुसार 20-40 साल तक की उम्र की महिलाओं में ‘लाइफ स्टाइल डिजीज’ का खतरा सब से अधिक रहता है. समय रहते इस पर ध्यान न देने से यह गंभीर परेशानी खड़ी कर सकता है. डिप्रैशन, मोटापा, ब्लडप्रैशर, डाइबिटीज जैसी समस्याएं लाइफ स्टाइल डिजीज के अंर्तगत आती हैं, जो कामकाजी महिलाओं में अंदरबाहर की जिम्मेदारियों के कारण उपजे भीषण तनाव से पैदा होती हैं.
पिछली पीढ़ी की कामकाजी महिलाएं
वे बड़े परिवारों में बड़ी होती थीं और बड़े परिवारों में ब्याह दी जाती थीं. संयुक्त परिवारों की सहीगलत, अच्छीबुरी, पसंदनापसंद परंपराएं अपनातीं, निभातीं ये महिलाएं संयुक्त परिवारों में अनेक रिश्तों को निभाने की जिम्मेदारियां भी निभातीं और किसी तरह सब को खुश रख कर अपनी नौकरी बचाए रखने की जद्दोजहद में भी लगी रहती थीं.
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उन के खुद के कमाए पैसे पर भले ही उन का हक न होता था और उन्हें उस का मानसम्मान व आत्मविश्वास प्राप्त न हो पाता था पर उन पर सब का हक होता था. उन का नौकरी करना उन की खुद की समस्या थी, उन के परिवार की नहीं. उन्हें सब के प्रति अपने कर्तव्य पालन में हर वक्त खड़े रहना पड़ता था. अगर उन्हें एक अच्छा खुशहाल जीवन जीना होता था तो उन्हें एक अच्छी पत्नी, मां, बहू, भाभी, हर भूमिका मुस्तैदी से निभानी पड़ती. उन के नौकरी करने में पति का सहयोग न के बराबर होता था.