मनोज के मन में आक्रोश दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. बीते 10 वर्ष उस ने अपने ननिहाल में बिताए थे. यहां आ कर अपने पिता को सौतेली मां के प्रति स्नेह लुटाते और अपने सौतेले 2 छोटे भाइयों के प्रति दुलार करते देखना उस के लिए बहुत कठिन हो रहा था. वह 16 वर्षीय किशोर है. बीते दिनों नानी के गुजर जाने के बाद वह अपने घर वर्षों बाद लौट कर आया है.
मगर घर पर दूसरी स्त्री और उस के बच्चों का अधिकार उसे बरदाश्त नहीं हुआ. उस के ननिहाल में सभी उसे चेताया करते थे कि उसे अपनी सौतेली मां से संभल कर रहना होगा. बेचारा बिन मां का बच्चा. सौतेली मां तो सौतेली ही रहेगी. यही बातें उस के जेहन में घर कर गईं. नतीजतन उसे अपनी मां की हर बात उलटी लगती, छोटे भाई बिना बात पिट जाते.
एक दिन पिताजी ने उसे पलट कर डपटा तो उस ने अपने पिता के बिस्तरे पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. तो कोई हताहत नहीं हुआ, मगर सब अवाक रह गए.
40 वर्षीय अविवाहित अलका ने जिस विधुर से विवाह किया उस की पत्नी 4 बच्चों को छोड़ कर कैंसर पीडि़त हो इस दुनिया से चली गई. घर में 10, 12 और 14 वर्षीय पुत्रियों और 5 वर्षीय पुत्र के अतिरिक्त बूढ़े मातापिता भी मौजूद थे. अलका से सभी को बहुत अपेक्षाएं थीं. मगर 2 बड़ी पुत्रियां अपनी सौतेली मां के हर काम में मीनमेख निकालतीं.
अलका को सम झ ही नहीं आता कि उस ने विवाह के लिए हामी क्यों भर दी, सिवा उस पल के जब छोटा बेटा उस की गोद में आ दुबकता.