उनके बारे में अनगिनत कहानियां हैं. ज्यादातर सच, कुछ झूठी और बहुत सारी काल्पनिक. उन पर अब तक लाखों लेख लिखे जा चुके हैं,हजारों कहानियाँ छप चुकी हैं. सैकड़ों उपन्यास, दर्जनों फिल्में, बीसियों धारवाहिक और उनके अनगिनत जुबानी किस्से लोगों ने सुन रखे हैं. फिर भी लगता है उनका दर्द अभी भी पूरी तरह से बयां नहीं हुआ. हो भी नहीं सकता. आज भी किसी बूढ़े रिफ्यूजी को कुरेद दीजिये तो उसकी आपबीती आपको रुला देगी. विस्थापन के इतिहास में भारत-पाक बंटवारे के की कहानी सबसे त्रासद है. यह मानव इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन था. दोनों तरफ के 1 करोड़ 60 लाख से ज्यादा लोग इससे सीधे-सीधे प्रभावित हुए थे. विभिन्न दस्तावेजों के मुताबिक़ 15 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे. लाखों लोग हमेशा के लिए अपाहिज हो गए थे. इस बंटवारे से जहाँ 1.20 करोड़ हिंदू तात्कालिक पूर्वी पाकिस्तान या मौजूदा बांग्लादेश में दोयम दर्जे के नागरिक बन जाने को मजबूर हो गए थे वहीं 4 करोड़ से ज्यादा भारत में रह गए मुसलमानों को भी अतिरिक्त डर के साथ जीना पड़ा.
भारत और पाकिस्तान के इतिहास में यह वैसी ही त्रासदी है जैसे पोलैंड और हंगरी के खाते में पहला और दूसरा विश्व-युद्ध. किसी को नहीं लगता था कि विभाजन हो ही जाएगा. यहाँ तक कि जिन्ना को भी. पाकिस्तान बनने के बाद उन्होंने एक बार मीडिया वालों के सामने और कहते हैं एक बार नेहरू से बात करते हुए भी यह कहा था. भले बाद में लोगों ने इसे जिन्ना का मजाक समझा हो मगर हकीकत यही थी की कि लोगों के साथ-साथ नेताओं को भी आखिरी तक लगता था कि शायद बंटवारा नहीं होगा. अंत आते आते बात बन ही जायेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अंततः बंटवारा हो ही गया. जिसकी सबसे वजनदार दस्तक फरवरी 1938 में ऐसा न चाहने वाले लोगों ने तब सुनी जब महात्मा गाँधी और मोहम्मद अली जिन्ना के बीच विभाजन को रोकने वाली बातचीत बिना किसी नतीजे के खत्म हो गयी.