एक एक छोटे क्लीनिक का स्त्रीरोग विभाग का आउटडोर. बाहर एक मेज पर हाउस सर्जन बैठी हैं, अंदर चैंबर में चीफ सर्जन. एक बाब कट बालों और जींसटौप पहने युवती आती है और हाउस सर्जन की मेज पर फाइल रख बिना किसी भूमिका के कहती है, ‘‘मुझे अबौर्शन कराना है.’’
हाउस सर्जन पूछती है, ‘‘अबौर्शन क्यों करवाना चाहती है?’’
‘‘बच्चा नहीं चाहती इसलिए और क्यों?’’ जवाब मिलता.
‘‘नहीं चाहती तो गर्भधारण ही क्यों किया था?’’
‘‘कौन सा चाह कर किया था, यह तो हो गया,’’ फिर थोड़ा झुं झलाते हुए बोली, ‘‘आप मु झे चीफ सर्जन के पास ले चलेंगी?’’
वह युवती चीफ को बताती है, ‘‘मैं एक मल्टी नैशनल कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव हूं, विवाह नहीं किया है. अपनी पसंद के लड़के के साथ रह रही हूं. चूक से गर्भ ठहर गया है. अबौर्शन करवाना है.’’
फाइल देख चीफ पूछती है, ‘‘चूक हो गई तो अभी तक क्या रही थी? 20 सप्ताह हो गए.’’
‘‘जी, काम ही ऐसा है. समय ही नहीं मिला. अभी भी दिक्कत है. अगर शनिवार को अबौर्शन कर दें तो सोमवार को औफिस चली जाऊं.’’
उसे मालूम है 20 सप्ताह तक गर्भपात कराना महिला का अधिकार है. वह पहले भी करवा चुकी है. सब जानती है.
चीफ उसे कानून विशेषज्ञ के पास भेज देती है. वे देख कर कहते हैं कि निरोध की असफलता से ठहरा गर्भ गिराना केवल विवाहित महिला में ही मान्य है.
वह बहस करती है कि कानून पढ़ा देते हैं. वह चली जाती है, और पति का नाम लिख दूसरी फाइल बनवाती है और कानून विशेषज्ञ को आ कर बताती है कि चीफ सर्जन मान गई हैं.