बीते 20 सालों में औरत होने के माने काफी बदल गए हैं. इस का एक अहम और सीधा नाता गर्भधारण की स्वतंत्रता और इच्छा से भी है. निजी और सरकारी क्षेत्र में कई दशकों से औरतों का नौकरियों में आने का सिलसिला जो शुरू हुआ वह थमने का नाम नहीं ले रहा है.
अब हर कहीं औरत दिख रही है तो इस की बड़ी वजह उस की आर्थिक निर्भरता की सम?ा है. जब तक वह पैसों और जीवनयापन के लिए पुरुषों की मुहताज थी तब तक उसे पुरुष की मरजी से किए गए सैक्स संबंध के परिणामस्वरूप हुए गर्भ को धारण करना पड़ता ही था.
इस दबाव में धर्म की भूमिका भी अहम रही है जिस के तहत स्त्री बच्चा पैदा करना अपना फर्ज सम?ाती रही. गर्भधारण से बचने के पहले ज्यादा उपाय नहीं थे और ऐसी कोई सहूलियत भी उपलब्ध नहीं थी कि वह अपनी मरजी से उस से बच सके. आज अमीर और गरीब सभी वर्गों की औरतों ने गर्भधारण को नियंत्रित करने के उपाय जान लिए हैं और इसीलिए जनसंख्या वृद्धि तेजी भी से घट रही है.
दिलचस्प इत्तफाक
यह बेहद दिलचस्प इत्तफाक है कि गर्भधारण से बचने या गर्भपात करने के लिए गोलियों का चलन भी 90 के दशक से ही शुरू हुआ. शुरुआती दौर में हिचकने के बाद औरतें इन्हें बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर रही हैं और उन्हें रोकने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा. सहमति से स्थापित हुए यौन संबंधों को लोग व्यभिचार के दायरे के बाहर रखने लगे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता दे कर बहुतों की उल?ान को दूर कर दिया है. एक दबी सामाजिक क्रांति अब स्वीकृत हो चुकी है कि औरत को गर्भधारण करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता उलटे गर्भपात के लिए उसे प्रोत्साहित किया जा रहा है. जिन समाजों में गर्भपात को ईश्वर की मरजी के खिलाफ सम?ा जाना है, जिन में अमेरिका के गोरे कट्टरपंथी चर्च जाने वाले भी हैं, औरतें बेहद तनाव में रहने को मजबूर हैं.
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