रिद्धिमा अपने कमरे में तकिए में मुंह छिपाए सुबक रही है. उसे लग रहा है कि उस के जीने का कोई औचित्य ही नहीं है. उसे मर जाना चाहिए. अपने पति शशांक के रोजरोज के तानों और अपशब्दों के प्रहार से अपमानित हो वह अंदर ही अंदर टूटती जा रही है. सुबह की ही बात है. शशांक औफिस के लिए तैयार हो रहा था. रिद्धिमा ने शशांक के औफिस पहन कर जाने वाले कपड़े बैड पर निकाल कर रखे और किचन में जा कर उस का टिफिन पैक करने लगी. तभी शशांक दनदनाता हुआ किचन में आया और रिद्धिमा पर चिल्लाने लगा, ‘‘तुम से कोई काम ढंग से नहीं होता, धेले भर की अक्ल नहीं है.’’ रिद्धिमा की कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर उस की गलती क्या है. उस ने जैसे ही शशांक से पूछने की कोशिश की, शशांक ने हर बार की तरह उस पर ‘निकम्मी’, ‘फूहड़’, ‘नकारा’, ‘अनपढ़’, ‘गंवार’ जैसे अपशब्दों का प्रहार कर दिया.

शशांक के हृदयभेदी शब्द रिद्धिमा को छलनी किए जा रहे थे. उस का आत्मसम्मान, आत्मविश्वास खोता जा रहा था. वह भावनात्मक रूप से टूटती जा रही थी. वह शशांक के डर के मारे हर काम गलत कर देती. वह सचमुच खुद को नकारा समझने लगी थी. पति द्वारा पत्नी पर अपशब्दों का प्रहार आम बात है. बातबात पर पति पत्नी पर अपशब्दों का प्रहार कर अपमानित करता रहता है और वह बेचारी बन कर सब सहती रहती है और फिर धीरेधीरे अपना वजूद खोने लगती है. कहा जाता है कि शारीरिक प्रताड़ना के घाव तो समय के साथ भर जाते हैं पर वर्बल ऐब्यूज यानी मौखिक प्रताड़ना के घाव हमेशा हरे रहते हैं यानी इन का प्रभाव गहरा और स्थायी होता है. जहां शारीरिक प्रताड़ना को पहचाना जा सकता है, वहीं मौखिक प्रताड़ना को समझना कठिन होता है. यह वह झूठ होता है जो आप के बारे में आप से ही बोला जाता है. जो कमियां आप में नहीं होतीं उन के बारे में बारबार बोल कर आप को नीचा दिखाया जाता है, प्रताडि़त किया जाता है. प्रताडि़त करने वाले का उद्देश्य आप को अपमानित करना होता है, आप के आत्मविश्वास को चोट पहुंचा कर आप को मानसिक रूप से कमजोर करना होता है. मौखिक प्रताड़ना के भीतर चीखनाचिल्लाना, बातबात पर गलती निकालना, आलोचना करना, उन बातों पर बात न करना जो आप को परेशान कर रही हों, काम करने के तरीकों पर टोकाटाकी करना, परिवार वालों को ताने देना आदि आता है.

बर्बल ऐब्यूज की पहचान

जब पति आप की जिंदगी को नियंत्रित करने की कोशिश करने लगे. आप के पहननेओढ़ने, खानेपीने, कहीं आनेजाने पर अपना निर्णय थोपने लगे.

आप के विचारों, भावनाओं, इच्छाओं को महत्त्व न दे.

आप की हर बात में आलोचना करे. बातबात पर धमकी दे.गुस्सा करे. किसी अन्य पुरुष से बात करने पर, मिलने पर आप के चरित्र पर आरोप लगाए.

बच्चों को हथियार बना कर धमकी दे.

हर गलती के लिए आप को जिम्मेदार ठहराए.

आप को घरपरिवार, दोस्तों से दूर करे.

‘तुम अपना दिमाग क्यों नहीं लगातीं’, ‘तुम तो मजाक भी नहीं समझतीं’, ‘तुम्हें पता होना चाहिए मुझे कैसे खुश रखना है’, ‘तुम्हें खानेपीने पहननेओढ़ने, बात करने की तमीज नहीं है’, ‘तुम तो ज्यादा पढ़ीलिखी हो न’, ‘तुम्हारे मांबाप तो टाटाबिरला के खानदान से हैं’, ‘पूरा दिन करती क्या हो’, ‘मुफ्त की रोटियां तोड़ती हो’, ‘तुम से कोई काम ढंग से नहीं होता’, ‘क्या गंवारों जैसे कपड़े पहनती हो’, ‘मुझे पता है तुम्हारा कहीं चक्कर चल रहा है’, ‘मैं तुम जैसी गंवार के मुंह नहीं लगना चाहता’ आदि अपवाक्यों के प्रहार से आप समझ सकती हैं कि सामने वाला आप को मौखिक रूप से, मानसिक रूप से प्रताडि़त कर रहा है.

मौखिक प्रताड़ना के पीछे छिपी मानसिकता

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक, विक्टिमोलौजिस्ट व सोशल ऐक्टिविस्ट अनुजा कपूर का मानना है कि वर्बल ऐब्यूज करने व सहने वाले के बीच नेचर व नर्चर का सिद्धांत काम करता है. यहां एक ऐब्यूसिव होता है, जो प्रताडि़त करता है और दूसरा प्रताडि़त होता है. दोनों के बीच का रिश्ता नैगेटिव यानी नकारात्मक होता है और प्रताडि़त करने वाला अपने साथी पर अपना हक जमा लेता है. हक जमाने वाले या प्रताडि़त करने वाले को ऐल्फा कहा जाता है. ऐल्फा कैटेगरी में आने वाले लोग स्ट्रौंग, अग्रैसिव व गुस्सैल स्वभाव के होते हैं, वे हमेशा सामने वाले पर हावी होना चाहते हैं. वे हमेशा खुद को ऊपर रखते हैं. उन का उद्देश्य सामने वाले को नीचा दिखाना, अपमानित करना होता है.जब एक बेटा अपने घर में अपने पिता को अपनी मां पर हावी होते देखता है, तो वह अपने पिता की इस प्रवृत्ति का शिकार हो कर पिता को अपना रोल मौडल मानने लगता है. इसी तरह से बेटियां अपनी मां को रोल मौडल मानती हैं और पति द्वारा दी गई प्रताड़ना को मां की तरह सहना अपनी नियति मानने लगती हैं यानी बच्चे अपने परिवार से वर्बल व इमोशनल ऐब्यूज करना व सहना सीखते हैं.

धार्मिक दबाव

अनुजा कपूर कहती हैं, ‘‘हमारे यहां लड़कियों को बचपन से सिखाया जाता है कि पति परमेश्वर होता है, पति का पत्नी पर हक बनता है, पत्नी को पति के हमेशा नीचे रहना चाहिए और तो और वैवाहिक संस्कारों में भी कहा जाता है कि पति को ही हर संस्कार में आगे रहना चाहिए, जीतना चाहिए वरना पत्नी उस पर हावी हो जाएगी. इन्हीं दबावों के चलते पत्नी पति से प्रताडि़त होती है, उस से डौमिनेट होती है. भले ही किसी महिला के मां न बनने का कारण पति हो, लेकिन पति उसे बांझ कह कर, बेटा जन्म न दे सकने का उत्तरदायी मान कर उस को मौखिक रूप से प्रताडि़त करता रहता है.’’

इस दौरान क्या करें

अनुजा कपूर मानती हैं कि जिंदगी में किसी को भी अपने साथ दुर्व्यवहार करने का मौका नहीं देना चाहिए, फिर चाहे वह मौखिक, आर्थिक, इमोशनल हो या फिर शारीरिक प्रताड़ना. मौखिक प्रताड़ना यानी शब्दों का प्रहार चाहे किसी को शारीरिक तौर पर चोट न पहुंचा पाए पर जिंदगी भर के गम दे सकता है. कोई भी महिला वर्बल ऐब्यूज, पारिवारिक दबाव, आर्थिक रूप से निर्भरता व डर सामने वाले से जुड़ाव के कारण सहती है. जबकि शब्दों का प्रहार करने वाला इस स्थिति का फायदा उठाता है और सामने वाले पर हावी होता जाता है. यह ट्रौमा की स्थिति होती है. इस में प्रताडि़त होने वाले को चाहिए कि वह प्रताडि़त करने वाले की बातों को दिल पर न ले, खुद को अपराधी न माने. अगर सामने वाला उसे गंवार, अनपढ़, फूहड़ मानता है तो वह खुद को ऐसा न मानने लगे, फाइट बैक करे. समस्या को गंभीर माने, क्योंकि वर्बल ऐब्यूज कब फिजिकल ऐब्यूज में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता. इसलिए खुद को अपराधी न माने. अपने निर्णय खुद ले, खुद पर विश्वास रखे. अपनी ताकत को इकट्ठा करे. स्वयं के आत्मविश्वास को वापस लाने को प्राथमिकता दे.

अगर कोई सामने वाले को खुद पर हावी होने देता है तो उस का आत्मविश्वास टूटने लगता है और वह खुद को गलत मानने लगता है. अत: जब भी सामने वाला आप पर शब्दों का प्रहार करे, आप को इमोशनली प्रताडि़त करे, आप अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखें. उसे बताएं कि उस के व्यवहार से आप प्रताडि़त हो रही हैं और आप को यह व्यवहार कदापि स्वीकार्य नहीं है. अपनी सीमाएं निर्धारित करें कि आप क्या स्वीकारेंगी और क्या नहीं. वर्बल ऐब्यूज की ज्यादातर घटनाएं पुरुषों द्वारा महिलाओं पर देखने को मिलती हैं, पर कई केसेज में पत्नी या महिला भी पति को शब्दों की मार से प्रताडि़त करती है, सास बहू को, बहू सास को प्रताडि़त करती है.

पुरुषों के मामले में उन के पालनपोषण का तरीका, उन का पारिवारिक माहौल जहां उन्हें महिलाओं का सम्मान करने का तरीका नहीं सिखाया जाता और जहां महिलाओं को बराबरी का अधिकार नहीं दिया जाता, जिम्मेदार होता है. कुछ केसेज में पुरुषों में श्रेष्ठता का भाव होता है. वे महिलाओं को अपने पैर की जूती मानते हैं और इस तरह का घटिया व्यवहार करते हैं. जबकि कुछ केसेज में पुरुषों में हीनभावना होती है और वे अपनी पत्नी को जो उन से अधिक पढ़ीलिखी, सुघड़, खूबसूरत हो नीचा दिखाने के लिए उसे अपशब्दों द्वारा प्रताडि़त करते हैं. उसे बातबात पर सुनाते हैं कि ज्यादा पढ़लिख क्या गईं पता नहीं खुद को क्या समझती हो. अगर पत्नी खूबसूरत हो तो पति कहते हैं कि मुझे पता है तुम किस के लिए सजतीसंवरती हो. ऐसा कहते समय के सैक्सुअली ऐब्यूज करने से भी बाज नहीं आते. हीनभावना से ग्रस्त ऐसे लोगों को काउंसलिंग, कपल थेरैपी द्वारा सुधारा जा सकता है, अगर तब भी न सुधरें तो कानून की मदद लें.

महिला संरक्षण अधिनियम-2005

महिलाओं पर होने वाले शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक उत्पीडन की रोकथाम हेतु भारत में अनेक कानून बनाए गए हैं, जिन में सब से प्रभावशाली ‘डोमैस्टिक वायलैंस ऐक्ट-2005’ है. इस कानून में पहली बार घरेलू हिंसा को सिर्फ शारीरिक हिंसा तक सीमित न रख कर मानसिक, लैंगिक, मौखिक, भावनात्मक व आर्थिक हिंसा को भी घरेलू हिंसा में शामिल किया गया है. इस ऐक्ट के तहत कोई भी महिला जो बहन, बेटी, मां, पत्नी, विधवा है, इस कानून का लाभ उठा सकती है. इस कानून के तहत अगर उसे किसी भी तरह अपमानित किया जाता हो, नौकरी करने से रोका जाता हो, उस के चरित्र पर लांछन लगाया जाता हो, किसी व्यक्ति विशेष से बात करने, मिलने से रोका जाता हो, घर छोड़ने पर विवश किया जाता हो या और किसी तरीके से दुर्व्यवहार किया जाता हो, तो वह इस ऐक्ट का लाभ उठा सकती है.

मौखिक व भावनात्मक हिंसा से पीडि़त महिलाएं सहायता के लिए प्रार्थनापत्र पुलिस थाने, महिला एवं बाल विकास विभाग या सीधे न्यायालय में दाखिल करा सकती हैं. मौखिक व भावनात्मक हिंसा के अंतर्गत अपमान, उपहास, नाम से बुलाना खासतौर पर बच्चा न होने या लड़का पैदा न करने का ताना दे कर अपमानित करना, गालीगलौज करना, शारीरिक हिंसा की धमकी देना आदि भी आते हैं.दिल्ली स्थित एक सामाजिक संस्था द्वारा कराए गए अध्ययन के अनुसार भारत में लगभग 5 करोड़ महिलाओं को अपने घर में ही हिंसा का सामना करना पड़ता है. इन में से मात्र 0.1% ही हिंसा के खिलाफ रिपोर्ट लिखाती हैं. हैरानी की बात है कि भारत में आज भी ज्यादातर महिलाएं इस बात से वाकिफ नहीं हैं कि घरेलू हिंसा से बचाव के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम बना है. इस अधिकार के बारे में जानकारी न होने के कारण महिलाएं घर की चारदीवारी में शब्दों की मार सहती रहती हैं और अपना आत्मसम्मान और आत्मविश्वास खोती रहती हैं. अत: अपशब्दों की मार का शिकार होने से बचने के लिए महिलाओं को अपने कानूनी और आर्थिक अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा. तभी वे इस प्रताड़ना से खुद को बचा पाएंगी व सम्मान से जिंदगी जी पाएंगी.

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