Acid Attack : जीवन में कभी न कभी हर किसी को रिजैक्शन का सामना करना पड़ता है. फिर चाहे बात शिक्षा की हो, नौकरी की या रिश्तों की. लेकिन कुछ लोग इस रिजैक्शन को बरदाश्त नहीं कर पाते. इसी वजह से बहुत से लोग तनावग्रस्त हो जाते हैं, तो कुछ गलत कदम उठा लेते हैं.
बात यदि रिश्तो में मिलने वाले रिजैक्शन की करें तो हम खुद की जिंदगी खत्म करने तक का सोच लेते हैं. लेकिन कुछ लोगों को इस बात की तकलीफ होती है कि आखिर उन में ऐसी क्या कमी है, जिस की वजह से उन्हें रिजैक्शन का सामना करना पड़ा और वह व्यक्ति बदला लेने की सोचने लगता है. ऐसा ही एक मामला वैलेंटाइन डे पर सामने आया. जहां सिरफिरे आशिक ने लड़की से रिजैक्शन मिलने पर चाकू से वार कर उस पर तेजाब फेंक दिया। लेकिन सवाल यहां यह खबर देने का नहीं है, सवाल है कि आखिर कब तक लड़कियां इन दरिंदों के हाथों शिकार होती रहेंगी. इन सिरफिरों के बदला लेने की आग जाने कितने मासूमों के चेहरे ही नहीं बल्कि उन के मनोबल, आत्मविश्वास, सपने, उम्मीदों सब को अपने बदले की संतुष्टी पाने के लिए जलाते रहेंगे.
कब रुकेगा यह सिलसिला
क्या हमेशा लड़कियां इन सिरफिरों के हत्थे एसिड अटैक की शिकार होती रहेंगी? जिस तरह से दवाई के लिए कैमिस्ट को डाक्टर का प्रिस्क्रिप्शन दिखाना अनिवार्य होता है, उसी तरह तेजाब के लिए क्यों नहीं? जबकि यह तो जहर की दवा से भी बदतर मौत देता है. जहर खा कर मनुष्य कुछ देर तड़पता है और फिर मर जाता है लेकिन एसिड अटैक से तड़पती ये लड़कियां रोज तिलतिल मरती हैं। और हर रोज जिंदा होने का अफसोस मनाती हैं.
तबाह हो जाती है जिंदगी
माना कि कुछ लड़कियों ने अपना जज्बा न खो कर मिसाल गढ़ी हैं लेकिन सोचें तो उस को कितनी तकलीफों से गुजरना पड़ाता है क्योंकि हंसतीखेलती एक लङकी को यह घाव समाज में दोयम दर्जे का नागरिक बना देता है. जहां वह जीवन को खूबसूरत बनाने के सपने संजोती है, वहीं उस की जगह उसे एसिड सर्वाइवर का टैग मिलता है.
आज जब भी वह खुद को आईने में देखती होगी तो वह दिल दहला देने वाला मंजर आंखों से दिखना बंद होने पर भी उसे साफ नजर आता होगा.
गंभीर समस्या
क्यों आएदिन ऐसे सिरफिरे आशिक खुलेआम इन वारदात को अंजाम देने की हिम्मत जुटा पाते हैं?
भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में यह बेहद गंभीर समस्या है. स्वयंसेवी संस्था एसिड सर्वाइवल ट्रस्ट इंटरनैशनल (एएसटीआई) के अनुसार, दुनिया में सब से ज्यादा एसिड हमले ब्रिटेन में होते हैं, जिस का ज्यादा इस्तेमाल गैंगवार में होता है. ब्रिटेन के बाद भारत का नंबर आता है जहां हर साल 1 हजार से ज्यादा मामले सामने आते हैं.
क्या कहते हैं आंकङे
नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, एसिड अटैक साल 2019 में 150 मामले, साल 2020 में 105 मामले, साल 2021 में 102 मामले आए। ऐसे मामलों में पश्चिम बंगाल पहले नंबर पर, दूसरे पर उत्तर प्रदेश और तीसरे पर दिल्ली रहा। 2021 के मामलों पर गौर करें तो देश में 107 पीड़ितों के साथ एसिड हमले की 102 घटनाएं और एसिड हमले के प्रयास के 48 मामले दर्ज किए गए थे, जहां चार्जशीट दर्ज करने की दर 89% रही जबकि दोषसिद्धि की दर 20% दर्ज की गई जोकि बेहद चिंताजनक आंकड़े हैं। इस में सजा का प्रावधान देखें तो एसिड अटैक के मामले आईपीसी की धारा 326 ए के तहत दर्ज किए जाते हैं, जबकि एसिड अटैक के प्रयास के मामले आईपीसी की धारा 326 बी के तहत दर्ज किए जाते हैं, जिस में न्यूनतम 10 वर्ष की सजा से ले कर आजीवन कारावास के साथ आर्थिक दंड का प्रावधान है।
पेरैंट्स की क्या हो भूमिका
मनोविज्ञान के अनुसार देखें तो ऐसे हमले अति आवेश भरे व्यवहार के कारण होते हैं जिन्हें इंपल्सिव डिसऔर्डर कहा जाता है. यह व्यवहार 1-2 दिन की नहीं, बल्कि बचपन में ही इस की नींव रखी जा चुकी होती है। जब मांबाप बच्चे को न सुनने का आदि ही नहीं रहने देते तो उस के व्यक्तित्व में इनकार सुनने जैसे शब्दों कि जगह होती ही नहीं। जिस कारण यदि कोई उस का कहा न माने तो आवेग में आ कर वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाता है.
देखा जाए तो आने वाले समय में ऐसे बच्चों की तादाद में और भी इजफा होगा क्योंकि आजकल एकल परिवार में रहने वाले बच्चे सिर्फ प्यार, समय से पहले मिलने वाली सुविधाओं की लत सी लग गई है.
इसलिए जरूरी है कि अपना कल अच्छा बनाना है तो अपने आज में न कहने की आदत डालें. आज जरूरत है कि बच्चों के प्रशिक्षण के साथ नए कानून बनाए जाएं जहां सजा का प्रावधान ऐसा हो कि तेजाब तो दूर वह पानी फेंकने तक की हिम्मत न जुटा पाए क्योंकि चोटिल काया तो सब को नजर आ जाती है लेकिन जेहन पर लगे घावों की पीड़ा एक सर्वाइवर ही जानती है जिस की जिंदगी बेहद बोझिल और दर्दनाक हो कर रह जाती है.