शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने गुजरात मौडल के तिथि भोजन को देश भर में लागू कराने की योजना बनाई है. इस योजना के अंतर्गत स्कूली बच्चों को लोग किसी खास अवसर पर खाना खिलाते हैं. यह अवसर उन के बच्चों के जन्मदिन व परीक्षा में विशेष स्थान पाने आदि के उपलक्ष्य में हो सकता है. स्मृति ईरानी का कहना है कि यह भोजन बच्चों में आपसी प्रेम, स्कूलों के अभिभावकों में संवाद और बराबरी का एहसास आदि पैदा करता है.

असल में यह मुफ्त का भोजन पंडों को भोजन कराने की परंपरा को और मजबूत बनाना है. खुशी के अवसर पर मित्र संबंधी मिल कर खाना खाएं यह तो ठीक है, क्योंकि खुशी का खाना एकएक कर के हरेक के घर में हो ही जाता है. पर स्कूली बच्चों की भारी संख्या को खाना खिलाना हरेक के बस में नहीं होता. यह काम कुछ लोग करेंगे और बाकी बच्चे गरीब भिखारियों की तरह खाएंगे.

यह धर्मों की संस्कृतियों का कमाल है कि वे भक्तों से खाना ही नहीं कपड़े, ऐश का साधन और आमतौर पर लड़कियां और औरतें भी वसूल लेते हैं. लेकिन फिर भी उन के धर्म गुरु एहसान करते हुए गुर्राते हैं. स्मृति ईरानी इस परंपरा को सरकारी कार्यक्रम की शक्ल दे रही हैं. दोपहर का भोजन जो पिछली सरकारें दे रही थीं, वह पुण्य कमाने का हिस्सा नहीं है. वहां हरेक बच्चे का हक होता है खाना पाने का. उस में कोई दानी या दाता नहीं होता और पाने वाला याचक या भिखारी नहीं होता.

यह मुफ्त का खाना है, जो कई धर्मों में बांटा जाता है पर यह धर्म का काम करने के नाम पर किया जाता है और इस का मतलब ईश्वर को खुश करना होता है ताकि या तो इस जीवन में या अगले जीवन में कुछ अच्छा फल मिले. धर्मों ने यह सब तरहतरह के चमत्कारों की झूठी कहानियां फैला कर कायम किया है.

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