मध्यवर्गीय शहरी भारतीय महिलाओं के लिए शराब पीना अब वर्जित नहीं रहा. ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि ज्यादातर औरतें शराब क्यों पी रही हैं? अध्ययन करने पर निम्न कारण सामने आते हैं:

– आर्थिक स्वतंत्रता व बदलते सामाजिक वातावरण ने महिलाओं में फैली वर्जनाओं को कम किया है.

– कार्य का दबाव, प्रोफैशनल जिम्मेदारियां और दोस्तों का दबाव हफ्ते में 1 बार ड्रिंक करने के लिए महिलाओं को विवश कर देता है.

– मैट्रो शहरों में हफ्ते में 1 बार लेडीज नाइट ने ड्रिंक की आदत बहुत बढ़ाई है.

– भारतीय उद्योग में स्त्रियों की हर साल 15% बढ़ोतरी हो रही है.

– हर हफ्ते ज्यादातर महिलाएं सामान्य से अधिक मात्रा में शराब पीती हैं.

– पुरुषों के मुकाबले महिलाओं पर शराब ज्यादा बुरा प्रभाव डालती है. इस की आदी होने की संभावना भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अधिक होती है.

30 वर्षीय हर्षिता मेनन का कहना है कि उसे शराब पी कर नाचना बहुत पसंद है. जब वह पीए हुए नहीं होती तब नाचना ऐसा नहीं होता जैसाकि नशे के बाद होता है, क्योंकि नशे के बाद संगीत के प्रति उस की दीवानगी और बढ़ जाती है. शरीर संगीत के अनुसार नाचने लगता है. शराब उसे खुशी प्रदान करती है तथा बातूनी व बेशर्म बनाती है. यह युवा प्रोजैक्ट मैनेजर हफ्ते में औसतन 5 बार शराब पीती है. यह अपने बौयफ्रैंड के साथ रोज शाम को कम से कम 1 बोतल बीयर अवश्य पीती है और यदि सुबह 2 बजे तक मजा न आए तो व्हिस्की पीती है.

मध्यवर्गीय शहरी भारतीय महिलाओं में से सिमरन कौर भी एक है, जो हर हफ्ते कम से कम 2 दिन ‘बार’ अवश्य जाती है, जहां दिन भर के काम के बाद शराब पीती है या फिर 2 रात कौकटेल्स में गुजारती है.

महिलाओं में बढ़ती शराब की लत

आर्थिक रूप से अपनी आजादी व बदलती सामाजिकता के कारण शहरी महिलाएं पहले से ज्यादा शराब पीने लगी हैं. इन आधुनिक महिलाओं की पीने की शुरुआत बीयर से होती है. उस के बाद ये व्हिस्की, वोदका, जिन आदि पीने लगती हैं और फिर यह सिलसिला लगातार जारी रहता है.

20वीं सदी के अंत तक भारतीय महिलाएं लगभग 25 वर्ष की उम्र में पीना शुरू करती थीं, लेकिन वर्तमान समय में यह उम्र घट कर मात्र 11-12 साल रह गई है.

19 साल की लीला का कहना है कि वह 12 साल की उम्र से शराब पी रही है. 22 वर्षीय चेन्नई निवासी संगीता एक ऐड एजेंसी में काम करती है. वह कहती है कि उस ने 15 साल की उम्र तक आतेआते वह सब कर लिया था, जो एक 19 साल का लड़का करता है.

स्टेटस सिंबल है शराब

आधे से ज्यादा पियक्कड़ औरतें पुरुषों जितनी तेजी से ही शराब पीती हैं. ज्यादातर पार्टियों में जहां हर कोई इस बात पर सहमत होता है कि किसी का भी स्तर उस के पीने के स्तर से मापा जाएगा, वहां बहुत बड़े स्तर पर सामाजिक सहमति होती है तथा वहां आप की आधुनिकता को भी चैलेंज होता है, जिस में आप का मेजबान आप से बारबार यह पूछता है कि आप की ड्रिंक कहां है?

23 वर्षीय बैंगलुरु निवासी शोध छात्रा प्रीति ने बताया कि वह अपनी सब से बड़ी कमजोरी शराब न पीना मानती है. उस का कहना कि उस के पब के साथी उस से यही कहते हैं कि जब शराब नहीं पीनी है, तो पब क्यों आई. उसे उन की बातों का जवाब देना बहुत कठिन हो जाता है. उस पर पिछड़ेपन का ठप्पा लग जाता है.

इस तरह की पार्टी या गैटटूगैदर में सोबर लोग फिट नहीं होते हैं. 26 वर्षीय पूजा का कहना है कि जब उस ने ऐडवरटाइजिंग एजेंसी में नौकरी शुरू की तो ड्रिंकिंग केवल सप्ताह के अंत में या फिर किसी के जन्मदिन आदि मौके पर ही होती थी, परंतु अब यह आदत में शुमार हो गई है. अब यह मीटिंग, सामाजिक संबंधों तथा आपसी संपर्क बढ़ाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण चीज है. साथ ही, अपना तनाव मिटाने या रात के 2 बजे तक काम करने की हताशा को दूर करने का जरिया भी है.

डा. अतुल कक्कड़ कहते हैं, ‘‘शराब पीने वाली महिलाओं की तादाद दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है. मैं पिछले 5 सालों में कई ऐसी युवा लड़कियों से मिला, जिन्हें ड्रिंकिंग से होने वाली समस्याएं थीं जैसे पाचनक्रिया में कमी, गैस की समस्या, हैपेटाइटिस, ध्यान की कमी, याददाश्त की समस्या, हलके दौरों की समस्या आदि.’’

अब पहले जैसा माहौल नहीं रहा है, न ही कोई वर्जना महिलाओं, लड़कियों को पीने से रोक पाती है. अब सब कुछ सामान्य है. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह क्या करता या करती है. आधुनिक लड़कियां एकदूसरे को पिछली गुजरी बरबाद रात के बारे में गले में हाथ डाल कर ऐसे बताती हैं जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ा काम किया हो.

भारतीय शराब उद्योग इस में अधिकतम बढ़ोतरी चाहता है. शराब कंपनियां लगातार अपने हथियारों का प्रयोग कर रही हैं. वे इसी कोशिश में हैं कि औरतें बार से दूर न रहें. इस के लिए विज्ञापनों को और आकर्षक बनाया जा रहा है. फिल्मों के सैटों पर मुक्त शराब बांटी जाती है ताकि फिल्मों में नायकनायिका भी पीते दिखाए जा सकें. अब खलनायक ही नहीं पीते.

भारतीय नाइट क्लबों तथा बड़े लोगों की होने वाली नाइट पार्टियां जो केवल शराब से रंगीन होती हैं, उन की संख्या बढ़ती जा रही है. जिस तरह से औरतों के बीच शराब पीना एक सामाजिकता बनती जा रही है, उस के अनुसार 1-2 पैग पर रुकना बहुत मुश्किल है.

हाल ही के एनआईएमएचएएनएस के अध्ययन के अनुसार ज्यादातर भारतीय महिलाएं 1-2 पैग पर नहीं रुकती हैं. एक बार में सामान्य ड्रिंक की अपेक्षा कम से कम दोगुना तो पीती ही हैं.

सेहत पर भारी पड़ती शराब

यह दुख की बात है कि महिलाएं भी पुरुषों की तरह बिना जमीन पर गिरे इस पेय को घूंटघूंट कर पी रही हैं, इसलिए उन का लिवर भी अब पहले जैसा नहीं रहा है. स्त्रियों के लिवर में डीहाइड्रोजन ऐंजाइम की मात्रा कम होती है, जोकि शराब के टुकड़े करता है. यही कारण है कि तंत्रिका प्रणाली पर शराब का नशीला प्रभाव बढ़ जाता है. चूंकि महिलाओं के शरीर में पानी की मात्रा कम होती है, इसलिए शराब ज्यादा अम्लीय हो जाती है. इस से उन के शरीर में फैट हारमोन व सैक्स हारमोन की अधिकता हो जाती है. लंबे समय तक शराब का सेवन करने से उस का दुष्प्रभाव ज्यादा भयानक होता है, क्योंकि मस्तिष्क व लिवर के ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं.

डा. बेनेगल के अनुसार महिलाओं का एक बड़ा वर्ग अपना दुख, घबराहट, चिंता आदि को मिटाने के लिए भी शराब का सहारा ले रहा है, जबकि पुरुष केवल अच्छा महसूस करने व सामाजिक संबंध बनाने के लिए पीते हैं. अत: आधुनिक व उदारवादी समाज होने व शराब पीने वालों के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है, जो औरतें आदतन शराब पीती हैं वे पुरुषों से ज्यादा जल्दी शराब पीने की आदी हो जाती हैं.

शराब पीने की आदत ज्यादातर स्त्रियों की नौकरी व सेहत आदि को प्रभावित करती है. वे चाहें तो अपनी मित्रों के साथ मिल कर शराब पीना छोड़ सकती हैं. 30 वर्षीय रुचिता का कहना है

कि 11 साल पहले जब उस ने स्वयं सहायता समूह जौइन किया था तब मुश्किल से ही कोई महिला उस में शामिल होती थी. लेकिन अब लगभग 45 नियमित मैंबर्स हैं और दर्जनों जुड़ने की कोशिश करती हैं. लेकिन आज भी वे अपनी गुप्त सभाओं को बंद करने को तैयार नहीं हैं. पहले सभी घर में रहते थे परंतु अब सब बाहर रहते हैं. पहले विदेशी महिला, विदेशी व्हिस्की के मुकाबले आराम से मिल जाती थी. समाज को दोनों चीजों की जरूरत थी. आज आप विदेशी बीयर, वाइन, व्हिस्की और वोदका आसानी से पा सकते हैं. विदेशी महिला नहीं. यदि आप शराब से नजरें चुराएंगे तो आप को बहुत पिछड़ा कहा जाएगा. इस तरह से शराब का शिकंजा कसता जाता है.

नूपुर ने अपनी 14 साल की शराब पीने की आदत को हाल ही में छोड़ा है, जो किसी भी शराबी के लिए बहुत बड़ी बात है. उस ने बताया, ‘‘मैं ने पहले धीरेधीरे शराब को बुरा मानना शुरू किया. फिर मैं ने पार्टी में एक अलग ग्रुप बना लिया. जब मैं ने एक दिन होस्ट से कहा कि मुझे शराब नहीं पीनी तो उस ने कहा कि आप की सोच बहुत अच्छी है. फिर कभी मैं ने शराब का सेवन नहीं किया. फिर मेरी हर शाम खुशनुमा बन गई.’’

सीमा ने बताया, जो अब तलाकशुदा का बिल्ला लगाए घूमती है, ‘‘अपने पूर्व पति के साथ 10 दिन की जयपुर यात्रा से लौटने पर मुझे बिना शराब पीए रहना मुश्किल हो गया था, क्योंकि मैं इस की आदी हो गई थी. एक दिन शराब न मिलने पर मेरा शरीर इस के लिए तड़प रहा था. मैं ने दोपहर में वोदका पी, क्योंकि इस से महक नहीं आती और रात में 5-6 पैग व्हिस्की पी और फिर अगले दिन भी शराब पी. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि मैं क्या पी रही हूं. मेरा वैवाहिक जीवन जो ठीक से शुरू भी नहीं हुआ था, खत्म हो गया था यानी पति से संबंधविच्छेद हो गया.’’

कभी कालेज की ब्यूटी क्वीन रही सीमा का चेहरा धब्बेदार, शरीर थुलथुल व बेकार हो गया था. पुराने दोस्त उसे पहचान नहीं पा रहे थे. इस से सब कुछ साफ हो जाता है कि शराब कितनी हानिकारक है. यही नहीं कई शराबी अपराधी भी बन जाते हैं.     

– डा. प्रेमपाल सिंह वाल्यान –

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