इस गुस्से की ट्रेनिंग कौन देता है? अपने घर के बाहर मोटरसाइकिल पर स्टंट करने को मना करने पर 3 लड़कों ने एक 25 साला युवक को मारापीटा ही नहीं 28 बार चाकू मार कर दिनदहाड़े खुलेआम उस की हत्या कर दी. सभ्य समाज का दावा करने वाले पूजापाठी लोगों में से कोई राहगीर आगे नहीं आया कि इस अत्याचार को रोक ले. पुलिस ने इन तीनों को पकड़ लिया है पर ये शायद 18 साल से कम के हैं, हलकी सी सजा के बाद मुक्त हो जाएंगे.
दिल्ली के पास ही एक बोर्डिंग स्कूल में 14 साल की किशोरी ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसे उस के साथी परेशान करते थे. स्कूल वालों ने उस का जल्दबाजी में दहन भी कर दिया ताकि ज्यादा पूछताछ न हो.
हम जो शिक्षा आज अपने किशोरों और युवाओं को दे रहे हैं उस में पूजापाठ तो बहुत है पर तर्क व सत्य की जगह नहीं है. एक सभ्य व उन्नत समाज के लिए यह आवश्यक है.
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भेड़चाल या नियमों को तोड़ने की प्रवृत्ति हर समाज में होती है पर जहां कहीं और रोमांच नहीं मिलता, वहां कुछ नया करने के लिए नहीं मिलता वहां घर या आसपास के नियम तोड़े जाते हैं.
आज हमारा समाज ऐसे माहौल में है जहां युवाओं और किशोरों के सामने घना अंधेरा है. लड़कियों का केवल शादी में भविष्य दिख रहा है तो लड़कों को केवल उद्दंडता व गुंडई वाली राजनीति में. कुछ करने के सारे अवसर बंद हो गए हैं.
आधुनिक तकनीकों के कारण आज भूखा तो कोई नहीं रहता पर यह जवान होते लोगों के लिए काफी नहीं है. उन्हें कुछ करने की इच्छा होती है पर न बैकपैक बांध कर पहाड़ पर चढ़ने की सुविधा है न नदियां, समुद्र पार करने की. जो पढ़ाई कराई जा रही है वह इतनी छिछली है कि अधिकांश किशोर व नवयुवक पढ़ भी नहीं सकते और किताबों का रोमांच भी उन से दूर है.
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रहासहा मोबाइल है, जिस में टिकटौक जैसे ऐप पर वे नाचगा कर अपने करतब दूसरों को दिखा पाते हैं. पर यह नाकाफी है. लाइक्स से जिंदगी नहीं बनती. आसपास के लोगों की आबादी की कमी थोड़े से डिवाइस के नाटकों से पूरी नहीं हो सकती.
हत्या कर कानून हाथ में लेना, डिप्रैस होना, आत्महत्या करना एक बड़ी समस्या का अंग है. अफसोस है कि कर्जधारों को इस की चिंता नहीं है.