बिहार के चप्पेचप्पे में पर्यटन बिखरा हुआ है. इस के बावजूद यहां का पर्यटन उद्योग दम तोड़ रहा है. पर्यटन की बदहाली पर गौर करें तो इस की वजह साफ हो जाती है. राज्य की पर्यटन नीति यहां की औद्योगिक नीति के तहत संचालित होती है. औद्योगिक नीति को उद्योग विभाग तय करता है. वहीं टूरिस्ट बसों को परिमिट देने का काम परिवहन विभाग के पास है. टूरिस्ट होटलों के रजिस्ट्रेशन का नियंत्रण 1863 के सराय ऐक्ट के तहत जिलाधीश की मुट्ठी में है. इस लिहाज से पर्यटन विभाग कहने को ही पर्यटन विभाग है. उस के पास अपने बूते पर्यटन की तरक्की की योजना बनाने की बात तो दूर, एक कदम अपनी मरजी से चलने की भी क्षमता नहीं है.
पर्यटन स्थलों के रखरखाव के अलावा पर्यटन विभाग के पास कोई काम नहीं है. ऐसी हालत में राज्य में पर्यटन की तरक्की की बात ही बेमानी हो जाती है.
बिहार का पर्यटन कई विभागों के जाल में फंसा हुआ है. कोई भी नई योजना बनाने और उसे पास कराने के लिए उसे कई विभागों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, इस से राज्य का पर्यटन उद्योग लचर व लाचार बन कर रह गया है. हालत यह है कि पर्यटन के क्षेत्र में निवेश के नाम पर केवल बयानबाजी और ऐलान ही होते रहे हैं. बिहार में पर्यटन की तमाम संभावनाओं के बाद भी कोई निवेशक आगे नहीं आ पाता है. दरअसल, राज्य के पर्यटन में निवेश करने के लिए कई देशी और विदेशी निवेशक इच्छुक हैं, पर विभागों की चक्करघिरनी में फंसने को वे भी तैयार नहीं हैं.