कभी सर्वशक्तिमान रहा अमेरिका अब पहले जैसा नहीं रहा. वह कोरोना महामारी से जंग हार चुका है. वह नस्लवाद के ख़िलाफ़ पूरे देश में जारी प्रदर्शनों के सामने नाकाम हो चुका है. हालत यह है कि अमेरिका एक पराजय पर कराह रहा होता है कि इसी बीच दूसरी पराजय उस पर सवार हो जाती है. अब तो नस्लवाद व दूसरी कई समस्याओं के कारण अमेरिका की अखंडता तक ख़तरे में पड़ गई है. यह कहना ग़लत नहीं होगा कि अमेरिका उस गड्ढे में जा गिरा है जो उस ने अब तक दूसरों के लिए खोदा था.

पसोपेश में दुनिया का दादा :

यह खुला सत्य है कि अमेरिका ने हमेशा ही साम्राज्यवाद से मुक़ाबले को प्राथमिकता दी है. लेकिन, आज अमेरिकी जनता ने अपने ही देश की सरकार के नस्लभेद होने के खिलाफ संघर्ष करने का संकल्प ले लिया है.

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सकते में आ गए हैं. उन्हीं की सरकार के रक्षा विभाग तक ने उन की मनमानी का साथ देने से इनकार कर दिया है. दुनिया के देशों का रवैया बदल रहा है. हर वह प्रतीक, जिस के ज़रिए अमेरिका अपनेआप को सुपरपावर बताता था व दुनिया के सामने अपना ग़लत चित्र पेश करता था, ढहता जा रहा है.

गौर हो कि अमेरिका अच्छीअच्छी बातों के माध्यम से अपना परिचय कराता था, लेकिन अमेरिकी समाज की पीड़ादायक वास्तविकताएं, जिन्हें दबा कर रखा गया था, अब सामने आती जा रही हैं. अमेरिका अपनेआप को आज़ादी और मानवाधिकार का केंद्र बताया करता था, लेकिन अब उस की हक़ीक़त सामने आ गई है और उस के सभी दावे खोखले सिद्ध हो रहे हैं.

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