अमेरिका में बसने की चाहत इतनी ज्यादा होती है कि बहुत से विदेशी घुसपैठिए, टूरिस्ट, स्टूडैंट आदि वीजा पर एक बार घुस जाने के बाद शादी या शादी के बिना बच्चे पैदा कर लेते हैं. अब तक अमेरिकी कानून में जो बच्चा अमेरिकी जमीन पर पैदा हुआ वह अमेरिकी नागरिक है और लाखों अमेरिकी नागरिक इसी रास्ते आए हैं.

बाद में वे अपने गैर अमेरिकियों को गार्जियन, डिपैंडैंट मान कर अमेरिका में रहने या नागरिकता पाने का मौका भी हथिया लेते हैं. दुनिया का यही अकेला देश है जो अब तक विदेशियों का खुलेआम स्वागत करता रहा है. भारत महागरीब होते हुए भी घुसपैठियों का राग अलापता है, जबकि यहां आने वाले चाहे तिब्बती हों, बर्मी, श्रीलंकाई या बंगलादेशी बहुत छोटा काम कर पाते हैं. अमेरिका में इस तरह नागरिक बने लोग ऊंची जगहों पर पहुंचे हैं और खुशहाल हैं.

अब अमेरिका एकएक कर के दरवाजे बंद कर रहा है और यह कानून कि जो अमेरिका में पैदा हुआ वह अमेरिकी ही है बदलने की सोच रहा. हमारी भगवाई सोच की तरह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस कानून को नए सिरे से बनाने का प्रस्ताव रख दिया है.

एक तरह से यह ठीक है. या तो दुनिया के सारे देश यह मानें कि उन की जमीन पर पैदा हुआ बच्चा उन के देश की नागरिकता पाने का अधिकार रखता है या कोई न माने. अमेरिकियों ने ही ऐसा समाज बना लिया जहां हरेक को लगभग बराबर माना जाता है और हरेक को अवसर मिलते हैं.

यही वह देश है जिस ने गुलामों की खातिर अपने ही लोगों से गृहयुद्ध किया है. यही वह देश है जहां आज भी आधी जनता डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ केवल इसलिए है कि वह भेदभाव को मुख्य नीति मानता है.

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