दिल्ली के कनाट प्लेस इलाके में 3 महीनों के लिए सभी तरह के वाहन बंद करने का प्रयोग करा जा रहा है ताकि विदेशों के कई शहरों की तरह यह पूरा इलाका भी केवल पैदल चलने वालों के लिए हो जाए. यह एक अच्छा प्रयोग है और देश के हर शहर में ऐसे क्षेत्र हैं जहां लोग कुछ खरीदारी के लिए तो कुछ केवल घूमने के लिए जाते हैं, मगर आड़ीतिरछी खड़ी गाड़ियां उन्हें तंग करती हैं.
दिल्ली में करोल बाग, साउथ ऐक्सटैंशन, चांदनी चौक, राजोरी गार्डन आदि बहुत से ऐसे इलाके हैं जहां दुकाने हैं पर चलने की जगह नहीं. जब से गाड़ियां आई हैं लोगों को जरूरत होती है कि ऐन दुकान के सामने गाड़ी खड़ी हो और राजारानी की तरह वे उतर कर शौपिंग करें. यह दूसरों के साथ अन्याय भी है और खुद के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी.
गाड़ियां की घेरी जगह अब बेशकीमती होने लगी है और उन्हें कम करना जरूरी होता जा रहा है. सरकारी ढीलमढाल का नतीजा है कि सुविधाजनक, भरोसेमंद पब्लिक वाहन पूरे देश में कहीं नहीं हैं जहां सामान से लदेफंदे लोग उन का इस्तेमाल हक से कर सकें. पब्लिक वाहन चलाने वालों को मोटी रिश्वत देनी पड़ती है. खरीद पर मोटा ब्याज देना पड़ता है, रखरखाव पर भी मोटा खर्चा होता है और इसीलिए टैक्सियां हों, बैटरी रिकशा हों या आम रिकशा, सब मैलेकुचैले ही होते हैं.
बसों, टैंपुओं, लोकल ट्रेनों, मैट्रो का तो बुरा हाल है ही. ऐसे में कौन जोखिम लेगा कि 10 हजार की साड़ी पहन कर मैले वाहन में जा कर शान वाली दुकान या एअरकंडीशंड रेस्तरां में जाएं.