आज कल के युवाओं में गुस्सा बहुत सामान्य हो गया है, गुस्सा एक भावना है. जिसको नई पीढ़ी में अधिक मात्रा में देखा जा रहा है, यहां तक की बच्चे ही नहीं बड़ो में भी यह काफी हद तक बढ़ता जा रहा है. जिसकें कारण कम उम्र में ही व्यक्ति को अकेलेपन , स्ट्रेस, डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

कई बार इस कारण जरा सा हताश होने पर अपनी जान से भी खेल जाते हैं और अपनी जीवन लीला समाप्त करने से नहीं चूकते. यह एक महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या यह गलत परवरिश का नतीजा है या बढ़ती आधुनिकता इसका कारण है. जरूरी है इसे समझना.

परिस्थिति से लें सकरात्मक सीख

अक्सर व्यक्ति अपने आक्रोश का दोष परिस्थिति को देता है. परंतु समय की तरह परिस्थिति भी हमेशा एक नहीं रहती. “परिवर्तन ही संसार का नियम है.” यह कथन सिर्फ किताबी नहीं हैं बल्कि जीवन की सच्चाई है यदि कोई परिस्थिति को समझते हुए अपने गुस्से पर काबू पा लेता है तो जीवन में सफलता उसके कदम चूमती हैं अन्यथा गुस्सा ही उसके विनाश का करण बनता है. गुस्सा एक नकारात्मक भाव है लेकिन गुस्से के सकारात्मक प्रभाव भी होतें हैं, जो व्यक्ति को कुछ हासिल करने और सफ़लता की ओर ले जाने में सहायक होता है.

साझा करना है जरूरी

अधिकतर युवा जिंदगी में आने वाली समस्याओं को बर्दाश्त नहीं कर पाते और वे अपनी बात किसी से साझा तक नहीं करते. ऐसे में तनाव और गुस्से का ग्राफ लगतार बढ़ता ही जाता है. जरूरी हैं अपनी समस्याओं को किसी भरोसेमंद से साझा करें.

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