हम बस लड़कियों की बात करते हैं कि वे जेंडर भेद भाव की शिकार हैं और केवल उन्ही पर ध्यान देते हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं है. लड़कियों के साथ साथ अब लड़कें भी इस भेद भाव के शिकार बहुत तेज़ी से हो रहें हैं. हमने प्राचीन काल की कुछ ऐसी बातों को मान लिया है जिनका कोई प्रमाण ही नहीं है.

उदाहरण के तौर पर घर में लड़कों को शारीरिक रूप से मजबूत समझा जाता है और उनसे घर के वही काम कराये जाते हैं जिनमें शारीरिक शक्ति का इस्तेमाल हो. वहीं दूसरी तरफ लड़कियों को शारीरिक रूप से कमजोर मान लिया जाता है और उनसे वही काम कराये जाते हैं जिनमें शारीरिक शक्ति का इस्तेमाल न होता हो. और इन सब बातों के बावजूद हम अक्सर लैंगिक समानता की बात करते हैं.

हां , हम अक्सर बात करते हैं महिलाओं की और उनसे संबंधित लैंगिक समानता की. लेकिन  हम भूल जाते हैं कि जेंडर संबंधित रूढ़ियां हमारे लड़कों और लड़कियों दोनों को प्रभावित करती हैं इसलिए दोनों पर ध्यान देना जरूरी है.

आपका यह जानना जरूरी है को जेंडर संबंधित रूढ़ियों के लड़कों तथा लड़कियों पर पड़ने वाले प्रभाव क्या है

आप जानते हैं कि इन्हीं रूढ़िवादी सोच के चलते लोग महिलाओं को पुरषों से अलग समझते हैं और कमजोर भी, क्योंकि हमने ही लड़कों तथा लड़कियों के काम को निर्धारित कर दिया है. इन सभी रूढ़ियों की शुरुआत हमारे घर से होती है. अगर आपके घर में आपका कोई भाई है तो आपने अनुभव किया होगा की आपको आपके भाई की तुलना में कमजोर माना जाता है. उसे पढ़ने के लिए विदेश भेज दिया जाता है की वह अच्छा पढ़ेगा तो अच्छा कमाएगा और दूसरी तरफ  आपकी शादी का इंतजार किया जाता है. लड़कियों को घर का काम करने और बच्चे पालने तक ही सीमित रखा जाता है. इसलिए लड़कियों का कच्ची उम्र में ही विवाह कर दिया जाता है और वे कम उम्र में ही मां बन जाती हैं. जिससे उनकी सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है . इतना ही नहीं लड़कियों की शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है , उनकी मर्जी को महत्व नहीं दिया जाता जिस वजह से वे खुद को किसी भी तरह काबिल नहीं समझती.

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