' कब तक लौटोगी,' 'अभी रुको', 'कैसे जाओगी', 'अकेली मत जाओ', 'पहुंच कर कौल कर देना', 'मैं छोड़ देता हूं'  - ये बहुत सामान्य लाइनें हैं जिन्हें लड़कियां बचपन से सुनते हुए बड़ी होती हैं. हमारे घरों में अक्सर 10 -11 साल का लड़का भी अपनी जवान और बालिग बहन की सुरक्षा के लिए उसके साथ बाहर जाने पर भेजा जाता है. यानी 10 साल का लड़का 20 साल की लड़की के देखे ज्यादा मजबूत माना जाता है. इतना मजबूत कि अपनी कमजोर बहन को मर्दों की दुनिया में सुरक्षा दे सके.

हालात ये हैं कि अपनी सुरक्षा की चिंता में और सुरक्षित यात्रा हो इस की कोशिश में महिलाएं कितनी भी रकम खर्च करने को तैयार रहती हैं. वर्ल्ड बैंक के द्वारा दिल्ली में महिलाओं पर किए गए शोध के अनुसार महिलाएं सुरक्षित रास्तों से यात्रा करने के लिए हर साल 17,500 रुपये का अतिरिक्त खर्च उठाने को तैयार रहती हैं.

मगर जब बात फिटनेस और खुद को मजबूत बनाने की आती है तो महिलाएं पीछे हट जाती हैं. घरवाले भी उन्हें ऐसा करने को मजबूर करते हैं. हाल ही में फिटनेस को ले कर एक सर्वे किया गया. अपनी तरह का यह पहला सर्वे था जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर यह समझने की कोशिश की गई कि देशवासियों के बीच स्पोर्ट्स और फिजिकल एक्टिविटी का क्या लेवल है. इसका सबसे दिलचस्प पहलू यह रहा कि इस मामले में भी जेंडर का भेद साफ साफ दिखा. हालांकि पारंपरिक तौर पर देखा जाए तो महिलाएं घर में काफी ज्यादा शारीरिक श्रम करती हैं फिर भी आधुनिक मानदंडों पर फिजिकल फिटनेस बनाए रखने के लिए की जाने वाली गतिविधियों में आधी आबादी की हिस्सेदारी काफी कम है. खासकर शहरों में रहने वाली लड़कियां फिज़िकली सब से ज्यादा इनएक्टिव पाई गई.

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