लेखक -वीरेंद्र बहादुर सिंह
पैट्रोल पंप पर पुरुष महिलाओं को बाहर ही उतार देते हैं और खुद अकेले पैट्रोल भराने जाते हैं. इस की वजह यह है कि पैट्रोल पंप पर बाहर लिखा होता है कि कृपया विस्फोटक सामग्री साथ में न लाएं.’ यह जोक्स सुन कर यही लगता है कि महिलाएं विस्फोटक सामग्री हैं.
एक दूसरा जोक- ‘रेप कोई अपराध नहीं. यह सरप्राइज सैक्स है.’ ये जोक्स पढ़ कर यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि जो घटना किसी को आत्महत्या या डिप्रैशन की स्थिति तक ले जाती है, वह किसी के लिए मजाक कैसे हो सकती है? किसी साहित्यकार ने लिखा है कि अगर महिलाओं के पास बुद्घि होती तो पुरुषों का जीना काफी मुश्किल हो जाता. एक पाठक के रूप में इस का मतलब यही निकाला जा सकता है कि उस साहित्यकार के अनुसार महिलाओं को बुद्धि नहीं होती है.
हर जगह सिर्फ मजाक
फिल्मी परदा हो, टीवी सीरियल हो, सोशल मीडिया हो या फिर नाटक, हर जगह महिलाओं को मजाक का साधन माना जाता है. हैरानी की बात तो यह है कि महिलाओं को मजाक का साधन मानना उचित है.
हमारा समाज पुरुषप्रधान है और इस समाज का मानना है कि महिलाओं को बुद्घि नहीं होती जबकि वर्तमान में महिलाओं ने अपनी क्षमता साबित कर दिखाई है. सही बात तो यह है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका ही नहीं मिला था. इसीलिए वे पीछे रह गईं. रचना करने वाले ने रचनाकरने की क्षमता महिलाओं को दी है. यह क्षमता पुरुषों को कभी नहीं मिलने वाली. महिलाएं चाहें तो इस मुद्दे पर पुरुषों का मजाक उड़ा सकती हैं.
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पुरुष महिलाओं का मजाक उड़ा कर महिलाओं को सम्मान देने में कंजूसी करता आया है. पर अब चूंकि हर क्षेत्र में महिलाएं आगे हैं, इसलिए उन्हें नीचा दिखाने और उन का मुकाबला न कर पाने की अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए पुरुष महिलाओं को मजाक का साधन बनाते हैं. महिलाओं का भोलापन, जल्दी विश्वास कर लेने वाले उन के स्वभाव को पुरुष उन की कमजोरी मानता है. महिलाओं के इस स्वभाव में कमी नहीं आ रही, इसलिए महिलाएं कमजोर पड़ती हैं और वे मजाक का साधन बनती हैं. महिलाओं को मजाक का साधन बना कर पुरुष यह साबित करता है कि वह हीनभावना से ग्रस्त है. महिलाएं कमजोर हैं, इसलिए पुरुष इस बात को नहीं मानता, पर महिलाओं पर विश्वास करने की पुरुष में क्षमता नहीं है. इसलिए वह महिलाओं को कमजोर मानता है.
मजाक में कमजोरी छिपाते पुरुष
सही बात तो यह है कि जो पुरुष महिलाओं का मजाक उड़ाते हैं, उन का ठीक से विकास नहीं हुआ होता. पुरुष अपने अंदर इतनी विशालता नहीं ला सका है कि वह महिलाओं पर विश्वास कर सके और उन्हें समान हक देने की हिम्मत कर सके.
यह भी सच है कि कमजोर लोग या अन्य कोई खुद से आगे न निकल सके, इस तरह का डर होने पर वे दूसरों का मजाक उड़ाते हैं, कटाक्ष करते हैं. समाज में महिलाओं की सुरक्षा के बारे में चर्चा होती है तो उस में भी कहीं न कहीं फायदा उठाने की बात होती है.
टीवी चैनलों में भी महिलाओं का मजाक उड़ाने के लिए एक नई रीति अपनाई गई है. पुरुषों को महिलाओं के कपड़े पहना कर अप्राकृतिक उभार बना कर गलत हरकतें करा कर कौमेडी की जाती है. ऐसे कार्यक्रमों में अकसर पत्नी को अपमानित करने वाले जोक्स करते हैं. उन के शरीर के अंगों के बारे में गंदे शब्दों से कटाक्ष करते हैं, जबकि यह एक तरह से बीभत्सता है.
दुख की बात तो यह है कि पुरुषों की इस प्रवृत्ति में महिलाएं भी अपना अधिकार मान कर इस सब को स्वीकार कर लेती है. अगर महिलाएं इस तरह के कार्यक्रम देखना बंद कर दें तो इस तरह के कार्यक्रम अपनेआप बंद हो जाएंगे. इस तरह के कार्यक्रमों से यही लगता है कि जैसे पुरुष महिलाओं को बताते हैं कि उन का स्थान क्या है. पुरुष इस तरह के कार्यक्रमों से यही प्रयास करते हैं कि घर में उन की चलती रहे.
सही बात तो यह है कि हास्य,उस में भी निर्दोष हास्य परोसने में खासी मेहनत करनी पड़ती है, जबकि महिलाओं का मजाक उड़ाने में कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ती. इसलिए हास्य के लिए पुरुषों का सब से बड़ा हथियार है महिलाओं का मजाक उड़ाना. पुरुष को अपमानित करने के लिए उसे चूडि़यां पहनाईर् जाती हैं. इस का मलब क्या है? दरअसल, चूडि़यां पहना कर यह बताने की कोशिश की जाती है कि यह आदमी अब बेकार हो चुका है. इस तरह चूडि़यां पहना कर एक तरह से महिला की क्षमता पर कटाक्ष है. चूडि़यां पहनाने का मतलब है नामर्द और नामर्द यानी क्या? इस तरह चूडि़यां पहना कर यह बताया जाता है कि नामर्द यानी महिला. इस का मतलब महिला होना पूर्णता नहीं है. उस में कुछ कमी है.
देवी और अबला के बीच की खाई
हमारे यहां एक वर्ग अबला नारी का है और दूसरा वर्ग देवी माता का. पुरुष की बराबरी का महिला का कोई वर्ग नहीं है, जैसे उसे स्वीकृत ही नहीं है. देवी और महिला के बीच का अंतर जैसे बढ़ा दिया गया है. महिलाओं को एक मनुष्य के रूप में जो आदर मिलना चाहिए, वह नहीं मिलता. जिस पर पुरुष का जोर नहीं चलता, उस महिला को देवी बना दिया जाता है. बाकी महिलाओं को अबला बना कर पैरों के नीचे दबाया जाता है. अगर देवी और अबला के बीच अंतर कम हो जाए, तभी महिलाओं का सम्मान बढ़ेगा.
ज्यादातर पुरुष महिलाओं को प्रेम दिखा कर या फिर झूठ बोल कर बेवकूफ बनाते हैं. रोज के जीवन में भी पतिपत्नी के संबंधों में महिलाओं को बेवकूफ बनाया जाता है. लेकिन जब यह कहा जाता है कि महिलाओं की बुद्धि घुटनों में होती है, तब सारी महिला जाति का अपमान किया जाता है. इस बात को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता.
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एक तरह से देखा जाए तो महिलाओं का दिखावा, सुंदरता, उन की बुद्धिक्षमता, उन का हक, उन का फर्ज सब पुरुषों ने तय किए हैं. पुरुषों ने अपने दृष्टिकोण से महिलाओं के लिए विचार पैदा किए हैं. इसीलिए शृंगार के हास्य में पुरुषों की भूमिका अधिक है. पुरुष महिलाओं को साधन के रूप में देखता है. बोलने और सुनने वाला ज्यादातर पुरुष ही होता है. पुरुष द्वारा तय की गई सुंदरता की व्याख्या में फिट न बैठने वाली महिलाओं का पुरुष मजाक उड़ाते हैं. फिल्मों में कौमेडी सीन के लिए मोटी महिलाओं को दिखाया जाता है. टीवी कार्यक्रमों में भी महिलाओं के कपड़े पहन कर आने वाले पुरुष कुछ भी न करें, तब भी उन्हें देख कर हंसी तो आती ही है. इस का अर्थ यह है कि पुरुष महिलाओं को उच्च पदों पर देखने को राजी नहीं है. शायद इसीलिए कहीं बेचारी दुखियारी तो कहीं मजाक का साधन बनी है.
हमारे समाज में महिलाओं को उपभोग का साधन बनाने का षड्यंत्र चल रहा है. रोजाना इंटरनैट की अलगअलग साइट्स पर महिलाओं के लिए जोक्स, गंदेगंदे कमैंट लिखे जाते हैं. व्यंग्यकार, लेखक या कवि भी महिलाओं का मजाक उड़ा कर अपना काम चला लेते हैं. जैसे पत्नी या महिलाओं के अलावा दूसरे किसी विषय पर उन्हें हास्य मिलता ही नहीं है.
हास्य तो स्वच्छ समाज की पहचान है. हास्य जरूरी है, पर किसी के दुख या कमी को मजाक बनाया जाए तो दुख होता है. जोक्स सुन कर मात्र हंस लेने के बदले उस का अर्थ सम झने की कोशिश करेंगे तो सचमुच हंसने के बजाय रोना आ जाएगा.
इस स्थिति का एक ही इलाज है. महिलाओं पर बने जोक्स पर कम से कम महिलाओं को तो नहीं ही हंसना चाहिए. अगर महिलाएं इस तरह के मजाक का बहिष्कार करना शुरू कर दें तो इस तरह के जोक्स बंद हो जाएंगे और महिलाओं का सम्मान बढ़ेगा.