पिछले कुछ सालों से कश्मीर एक बार फिर देश के सैलानियों के लिए एक स्पौट बन रहा था, खासतौर पर सर्दियों में जब गुलमर्ग पर पूरी तरह बर्फ पड़ जाती थी और स्कीइंग और एलैजिंग का मजा लूटा जा सकता था. अब लगता है कि एक बार फिर कश्मीर हिंदूमुसलिम विवाद में फंस रहा है.
भारत सरकार ने बड़ी आनबानशान से कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करते हुए उसे उपराज्यपाल के अंतर्गत डाल दिया और संविधान के अनुच्छेद 370 को संशोधित करते हुए ऐलान कर डाला कि कश्मीर अब पूरी तरह भारत का हिस्सा हो गया. पर मईजून माह में ताबड़तोड़ आतंकवादी हमलों ने फिर उन पुराने दहशत भरे दिनों को वापस ला दिया जब देश के बाहरी इलाकों के लोग कश्मीर में व्यापार तक करने जाने से घबराते थे.
आतंकवादी चुनचुन कर देश के बाहरी इलाकों से आए लोगों को मार रहे हैं. एक महिला टीचर और एक युवा नवविवाहित बैंक मैनेजर की मौत ने फिर से कश्मीर को पराया बना डाला है. जो सरकार समर्थक पहले व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर पर कश्मीर में प्लौट खरीदने की बातें कर रहे थे अब न जाने कौन से कुओं में छिप गए हैं.
किसी प्रदेश, किसी जाति, किसी धर्म को दुश्मन मान कर चलने वाली नीति असल में बेहद खतरनाक है. आज के शहरी जीवन में सब लोगों को एकदूसरे के साथ रहने की आदत डालनी होगी क्योंकि शहरी अर्थव्यवस्था सैकड़ों तरह के लोगों के सम्मिलित कामों का परिणाम होती है.
हर महल्ले में, हर सोसाइटी में, हर गली में हर तरह के लोग रहें, शांति से रहें और मिलजुल कर रहें तो ही यह भरोसा रह सकता है कि चाहे कश्मीर में हों या नागालैंड में, आप के साथ भेदभाव नहीं होगा. यहां तो सरकार की शह पर हर गली में जाति और धर्म की लाइनें खींची जा रही हैं ताकि लोग आपस में विभाजित रह कर या तो सरकार के जूते धोएं या अपने लोगों से संरक्षण मांगने के लिए अपनी अलग बस्तियां बनाएं.
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