अश्लीलता परोसने वाली लगभग 850 पोर्न वैबसाइट्स पर प्रतिबंध लगाया गया है. हजारों वैबसाइट्स में से सिर्फ 850 ही क्यों चुनी गईं? इन्हें चुनने का क्या पैमाना है? इस के पीछे सरकार की क्या मंशा है?
यदि इन सभी सवालों के जवाब तलाशने की जगह क्या हम यह मान कर निश्चिंत हो सकते हैं कि पोर्नोग्राफी पर नियंत्रण से समाज में स्वस्थ मानसिकता फलीभूत होगी. फलस्वरूप क्राइम रेट घटेगा. यह कोई गारंटी नहीं है क्योंकि यौन अपराध तो साइबर क्रांति से पहले भी हो रहे थे.
हां, इस बहाने सरकार को अपना छिपा एजेंडा लागू करने का मौका मिल रहा है और विरोधियों पर नियंत्रण करने का भी. कुछ लोगों का सही मानना है कि यह पाबंदी उन के अधिकारों का हनन है.
यह ठीक है कि यौन शोषण को रोकने के लिए सरकार को कड़े कानून बनाने चाहिए. नियमों के साथ उस के पालन पर भी पैनी नजर सरकार की होनी चाहिए. अगर इस ओर सख्ती नहीं बरती गई तो मासूम बच्चों को जिस्मफरोशी से ले कर पोर्नोग्राफी जैसे गंदे व्यवसाय में धकेला जा सकता है.
बेबुनियाद तर्क
मोबाइल पर पोर्न देखने के मामले पर भारत चौथे स्थान पर है. कुछ ही दिनों में इंटरनैट के सब से अधिक उपभोक्ता भारत में होंगे. ऐसे में यह कहना कि पोर्न पर नियत्रंण की यह पहल समाज से हिंसा, रेप, शोषण, वेश्यावृत्ति आदि के नामोनिशान मिटाने में कारगर होगी, बेबुनियाद है.
इस प्रतिबंध से कुछ हासिल नहीं होगा. समाज में हिंसा, रेप, शोषण, वेश्यावृत्ति आदि घिनौनी हरकतों का अस्तित्व रहेगा. इंसान को जिस चीज के लिए रोका जाता है वह उसी के पीछे दौड़ता है. यह इंसान की फितरत है.