घरेलू हिंसा यानी घरों में परिवार के सदस्यों के द्वारा की जाने वाली हिंसा. आमतौर पर घरेलू हिंसा को पति के द्वारा पत्नी से की जाने वाली मारपीट के संदर्भ में ही देखा जाता है. भारतीय परिवारों में हिंसा की शिकार पत्नियां तो होती ही हैं, बेटियों के प्रति भी बहुत हिंसा होती है. भारतीय परिवारों में बेटे और बेटी में फर्क किया जाता है. बेटे को जहां वंश की बेल बढ़ाने वाला, वृद्घावस्था का सहारा माना जाता है, वहीं बेटियों को बोझ मान कर उन से अनचाहे कार्य करवाना, कार्य न करने पर मारपीट करना या पढ़ने व आगे बढ़ने के अवसर न देना, इच्छा न होने पर भी विवाह के खूंटे से बांध देना एक प्रकार से हिंसा के ही रूप हैं. आमतौर पर प्रत्येक भारतीय परिवारों में पाई जाने वाली यह ऐसी हिंसा है जिस पर कभी गौर ही नहीं किया जाता.
प्रसिद्घ कवि बिहारीजी के दोहे ‘देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर’ को सही मानों में चरितार्थ करती इस हिंसा के निशान शरीर पर प्रत्यक्ष भले ही न दिखते हों, परंतु आंतरिक मनमस्तिष्क में इतना गहरा प्रभाव छोड़ जाते हैं कि प्रभावित लड़की उन से ताउम्र जूझती रहती है.
कैसी कैसी हिंसाएं
यौन हिंसा: घर की बेटियों से सगेसंबंधी, चाचा, मामा, ताऊ, चचेरे भाइयों द्वारा छेड़छाड़ करना, उन से जबरदस्ती यौन संबंध बनाने की कोशिश करना एक ऐसी हिंसा है, जिस की शिकार आमतौर पर प्रत्येक भारतीय लड़की होती है. इस हिंसा के घाव कई बार इतने गहरे होते हैं कि लड़की पूरी जिंदगी उन से उबर नहीं पाती और कभीकभी तो उन का वैवाहिक जीवन भी खतरे में पड़ जाता है. 8 वर्षीय गरिमा से उस के चचेरे भाई ने उस समय संबंध बनाने की कोशिश की जब वह सो रही थी. संकोचवश वह कभी अपने मातापिता को नहीं बता पाई, परंतु विवाह के बाद जब भी पति उस के साथ संबंध बनाने की कोशिश करता घबराहट से उस का पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो जाता और वह लाख कोशिश करने के बाद भी पति को सहयोग नहीं दे पाती थी. समझदार पति ने जब गरिमा की काउंसलिंग करवाई तो पता चला कि बचपन में हुई यौन हिंसा का असर उस के मनमस्तिष्क पर इतना गहरा बैठा है कि वह सैक्स शब्द सुन कर ही घबरा जाती है. इसी कारण पति के साथ संबंध बनाते समय वह असहज हो जाती है. लंबी काउंसलिंग के बाद वह अपनेआप को संभाल पाई.