पैट्रोल और डीजल के दाम बेतहाशा बढ़ रहे हैं पर नरेंद्र मोदी की सरकार अपने कर घटाने को तैयार नहीं है. सरकार अपनी आर्थिक विफलताओं को छिपाने के लिए डौलर के मुकाबले रुपए की गिरती कीमतों की आड़ में अपनी आय बढ़ाने में लगी है. पिछली सरकारों से कहीं ज्यादा यह सरकार अकेले कमाऊ आदमी की मौत पर बच्चों को मृत्यु भोज कराने की आदी है और इसे पुण्य का काम मानती है और उसी तरह सरकार का खजाना भरने को नागरिकों की जिम्मेदारी मानती है. देश अरबों रुपया देशभर के मंदिरों की देखभाल पर खर्च कर रहा है. यज्ञहवन भी खूब हो रहे हैं और उन पर भी सरकारी पैसा खर्च किया जाता है. उसे पूरा करने के लिए किल्लत के दिनों में भी सरकार डीजल और पैट्रोल पर टैक्स कम नहीं कर रही है. जितने दाम बढ़ रहे हैं, उतने टैक्स भी बढ़ रहे हैं. यदि प्रति लिटर टैक्स वही 2014 वाला रहता तो भी पैट्रोलडीजल के दाम इतने न बढ़ते.
सरकार की हठधर्मी का कारण यह है कि उस का खजाना खाली सा है. सरकार को नोटबंदी से जिस आय की उम्मीद थी वह हुई नहीं, जीएसटी ने भी छप्पर फाड़ कर पैसा नहीं दिया. छोटा व्यापार बंद सा हो गया है. बाजारों में मुर्दनी छाने लगी है. बैंकों के नुकसान पूरे करने में सरकार को लाखोंकरोड़ों देने पड़ रहे हैं. ये सब कहां से आएगा? आम जनता के लिए पैट्रोल व डीजल अब बेसिक भूख की तरह ही हो गए हैं. ये विलासिता की चीज नहीं हैं. जैसे अनाज पर टैक्स कम होता है वैसे ही इन पर नाममात्र का टैक्स होना चाहिए, क्योंकि इन के बिना नागरिक के सारे संवैधानिक अधिकार शून्य हो जाते हैं. ये अमीरों के उपयोग की चीजें नहीं हैं. इन्हीं से ट्रैक्टर चलते हैं, खेतों के पंप चलते हैं, अनाज मंडियों तक आता है. पहले डीजल का दाम सरकारें किसानों के हितों को ध्यान में रख कर कम ही रखती थीं. अब प्रदूषण के कारण ही दाम बढ़ाने पड़े हैं. सरकार इस मूल बात को मानने से इनकार कर रही है.