हमारे घरों में जब भी सासबहू में झगड़ा या तूतू, मैंमैं हो तो तुरंत शादी के समय की बातें ही नहीं, बहू के मायके के किस्से भी सास की जबान से ऐसे फिसलते हैं मानो शब्दों के नीचे ग्रीस लगी हो.

‘‘मांजी, यह भगोना तो खराब हो गया है,’’ बहू के यह कहते ही सास अगर कह दे, ‘‘शादी के समय देखा था कैसे जगों में पानी पिलाया था... और अपने चाचा के घर में देखा है, एक भी बरतन ढंग का नहीं है और यहां नए भगोने की मांग कर रही है महारानीजी.’’

यह भाषा भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की जवान पर चढ़ी रहती है और वे रोज सारी सासों को बताते हैं कि यही भाषा इस महान देश की संस्कृति का हिस्सा है. आप पूछें कि समाचारपत्रों की स्वतंत्रता का बुरा हाल है तो तुरंत कहा जाएगा याद है न आपातकाल, जब सारे अखबारों पर सैंसरशिप लगा रखी थी.

आप कहें कि पैट्रोलडीजल के दाम बढ़ गए तो उस पर कहेंगे 1973 को याद करो जब इंदिरा गांधी ने 4 गुना दाम बढ़ाए थे. आप कहेंगे कि श्रमिकों की ट्रेनों में पैसा वसूला गया तो तुरंत कहेंगे कि ये सब नेहरुइंदिरा की वजह से है कि ये श्रमिक अपने गांव छोड़ कर बाहर गए थे और कांग्रेस ने तो 70 साल देश को लूटा था और अब किस मुंह से श्रमिकों के हिमायती बन रही है?

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भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा बड़ी डींगें हांक रहे थे कि देश 5 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था बनेगी. कांग्रेसी नुमाइंदे ने भरी सभा में पूछ डाला कि संबितजी, बताइए कि ट्रिलियन में कितने शून्य होते हैं? पता है क्या जवाब मिला? ‘‘आप पहले राहुल गांधी से पूछें, फिर मैं बताऊंगा. मुझे मालूम है पर राहुल गांधी जवाब दें तो मैं बता सकूंगा.’’

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