रामदेव योग से सभी तरह की बीमारियों का इलाज करने का दावा करते हैं. इस के बावजूद वे आयुर्वेदिक दवाइयों के उत्पाद का भी काम करते हैं. उन की हरिद्वार स्थित फार्मेसी कुछ समय पहले चर्चा का विषय बन चुकी है, जब कम्युनिस्ट नेता वृंदा करात ने उन की फार्मेसी की दवाओं में हड्डियों व मानव अंगों के मिश्रण का दोषारोपण किया था. यदि योग सर्वरोग औषध है, सब बीमारियां इस से ही दूर हो जाती हैं तो फिर आयुर्वेदिक औषधियों का तो कोई औचित्य ही नहीं. फिर भी इन औषधियों को बनाना, उन को बनाने में आधुनिक मशीनों का प्रयोग करना और विभिन्न रोगों के लिए मरीजों को दवाएं देना आदि योग के दावों की पोल ही खोलता है.

अब अपनी दवाइयों के बाजार को चमकाने के लिए रामदेव के योग ट्रस्ट व पीठ ने नया दावा किया है कि उस ने संजीवनी बूटी ढूंढ़ ली है. संजीवनी के बारे में जनमानस में कई तरह की बातें घर किए हुए हैं. लोग समझते हैं कि इस से मरा हुआ व्यक्ति जीवित हो जाता है. रामदेव ट्रस्ट के आचार्य बालकृष्ण ने कहा है कि इस में 4 बूटियों के गुण हैं अर्थात यह फोर-इन-वन है. इस में मृत संजीवनी (बेहोशी दूर करने वाली), विशल्यकरणी (घाव ठीक करने वाली), सुवर्णकरणी (शरीर में पहले सी रंगत लाने वाली) और संधानी (टूटी हड्डी को जोड़ने वाली) आदि गुण हैं. ये सारी बातें, ये सारे दावे, सरासर गलत और तथ्यों के विपरीत हैं. संजीवनी से कभी कोई मुर्दा जिंदा नहीं हुआ. रामायण में कहानी आती है कि जब युद्ध में राम, लक्ष्मण और वानरसेना बेहोश हो गई, तब सुग्रीव, नील, अंगद आदि को कुछ सूझ नहीं रहा था. ऐसे में विभीषण ने उन से कहा कि ये लोग केवल मूर्च्छित हैं, मरे नहीं हैं, अत: घबराने की जरूरत नहीं है.

मा भैष्ट नास्त्यत्र विषादकालो यदार्यपुत्रो ह्यवशौ विषण्णौ.

तन्मानयन्तौ युधि राजपुत्रौ निपातितौ कोऽत्र विषादकाल:…

(वाल्मीकीय रामायण, युद्धकांड 74/3-4) इस से स्पष्ट है कि राम और लक्ष्मण मूर्छित (बेहोश) हुए थे. मरा कोई भी नहीं था. उन की बेहोशी को दूर करने के लिए जांबवान ने हनुमान से कहा कि तुम हिमालय पर जाओ. वहां तुम्हें 4 औषधियां (बूटियां) दिखाई देंगी. तुम उन्हें ले कर शीघ्र लौट आओ.

हिमवंतं नगश्रेष्ठं हनूमन् गन्तुमर्हसि. 29

तस्य वानरशार्दूल चतस्रो मूर्ध्निसंभवा:,

द्रक्ष्यस्योषधयो दीप्ता दीपयन्त्यो दिशोदश.

मृतसंजीवनीं चैव विशल्यकरणीमपि, सावर्ण्यकरणीं चैव संधानकरणीं तथा 33

ता: सर्वा हनुमन् गृह्य क्षिप्रमागन्तुमर्हसि.

34 (वा.रा.युद्धकांड, सर्ग 74) रामायण में आता है कि जब हनुमान वहां पहुंचे तो औषधियां तत्काल अदृश्य हो गईं. इस पर उन्होंने उस पर्वत शिखर के एक भाग को उखाड़ लिया जिस पर ये औषधियां (बूटियां) उगी हुई थीं. रामदेव की टीम का दावा है कि उन्हें यह बूटी 10 हजार फुट की ऊंचाई पर द्रोणगिरि पर मिली है. पर रामायण में कहा गया है कि जिस स्थान पर ये औषधियां थीं, वहां पर हाथी भी थे-सनागम् (वा.रा. 74/67). इस से स्पष्ट है कि 10 हजार फुट की ऊंचाई की बात गप है क्योंकि हाथी इतनी ऊंचाई पर रहने वाला जानवर नहीं है. स्पष्ट है कि हनुमान जिस इलाके से बूटी लाए वह ऐसा था जहां हाथी का होना संभव था.

दूसरे, यदि वास्तव में संजीवनी जैसी कोई बूटी है और वाल्मीकि के विवरण विश्वास करने योग्य हैं तो रामायण में कहा हुआ यह भी हमें मानना पडे़गा कि जब कोई इन बूटियों को लेने जाता है तो ये अदृश्य हो जाती हैं. इसीलिए जब हनुमान वहां पहुंचे तो ये अदृश्य हो गई थीं. ‘महौषध्यस्तत: सर्वास्तस्मिन् पर्वतसत्तमे,

विज्ञायार्थिनमायान्तं ततो जग्मुरदर्शनम्.’ (वा.रा. युद्धकांड 74/64)

यहां प्रश्न उठता है कि यदि रामभक्त हनुमान के लिए संजीवनी आदि बूटियां अदृश्य हो गई थीं और हर उस व्यक्ति के लिए वे अदृश्य हो जाती हैं जो उन्हें लेने जाता है, तो रामदेव योगा महानुभाव की टीम को वे किस तरह दिखाई दे गईं? यदि वाल्मीकि का कथन सही है तो स्पष्ट है कि रामदेव की टीम का कथन विश्वास के योग्य नहीं. ऐसा नहीं हो सकता कि महर्षि वाल्मीकि भी सच बोल रहे हों और रामदेव की टीम भी. एक तो अवश्य सच नहीं बोल रहा है. झूठ कोई तभी बोलता है जब उस का कोई स्वार्थ हो. वाल्मीकि का यहां क्या स्वार्थ हो सकता है? उन्हें न तो कोई फार्मेसी चलानी थी न अपनी दुकानदारी चमकानी थी. अत: मुझे लगता है वे जो कुछ कह अथवा लिख गए हैं, उस में असत्य का मिश्रण नहीं है.

रामायण में वाल्मीकि लिखते हैं कि उन 4 बूटियों की, न कि एक बूटी की, सुगंध से राम व लक्ष्मण स्वस्थ हो गए, उन के शरीर से बाण निकल गए और घाव भर गए. इसी प्रकार जो दूसरे प्रमुख वानर वीर थे, वे भी स्वस्थ हो गए : ‘तावप्युभौ मानुषराजपुत्रौ

तं गंधमाघ्राय महौषधीनाम्, बभूवतुस्तत्र तदा विशल्या-

वुत्तस्थुरन्ये च हरिप्रवीरा:’ (वा.रा. युद्धकांड 74/73)

यहां स्पष्ट है कि मूर्च्छित हो चुके राम, लक्ष्मण और दूसरे वानर, वीर हनुमान द्वारा लाई गई 4 बूटियों (औषधियों) के कारण स्वस्थ हुए, न कि किसी एक में ही चारों के गुण थे. कोई भी फोर-इन-वन नहीं थी. जब पूरी रामायण में कहीं भी ऐसी किसी बूटी का कोई जिक्र नहीं जिस में 4 अन्य बूटियों के गुण हों तो रामदेव की टीम के इस दावे को निराधार ही कहा जाएगा कि उस द्वारा कथित तौर पर ढूंढ़ी गई संजीवनी में उक्त चारों बूटियों के गुण हैं. तुलसीदास ने अपने रामचरितमानस में लिखा है कि जब इंद्रजीत के हाथों लक्ष्मण युद्ध में मूर्छित हो कर गिर गए तब हनुमान संजीवनी लेने के लिए गए थे और श्रीराम उन की वापसी की प्रतीक्षा में प्रलाप करते रहे थे. जब आधी रात बीत गई और कपि (हनुमान) वापस नहीं आए तो वे बहुत परेशान हुए –

अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ राम उठाइ अनुज उर लायउ.

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर,

आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महं बीर रस.

(रामचरितमानस, लंकाकांड) यहां तुलसीदास ने वाल्मीकि द्वारा प्रस्तुत ‘इतिहास’ को तोड़मरोड़ कर पेश किया है क्योंकि जब लक्ष्मण इंद्रजीत (मेघनाथ) के हाथों मूर्छित हुए थे, तब न हनुमान कहीं गए थे और न ही संजीवनी बूटी लाए थे, बल्कि राम के कहने पर सुषेण ने उन्हें ठीक कर दिया था.

वाल्मीकि लिखते हैं कि राम ने सुषेण से कहा कि तुम शीघ्र ही ऐसा इलाज करो जिस से ???????लक्ष्मण पूरी तरह स्वस्थ हो जाएं और इन के शरीर से बाण निकल जाएं, घाव भर जाएं तथा सारी पीड़ा दूर हो जाए : विशल्योऽयं महाप्राज्ञ सौमित्रिर्मित्रवत्सल:,

यथा भवति सुस्वस्थस्तथा त्वं समुपाचर (वा.रा. युद्धकांड, 91/21)

इस पर वानरयूथपति सुषेण ने लक्ष्मण की नाक में एक बहुत ही उत्तम औषधि लगा दी. उस की गंध सूंघते ही लक्ष्मण के शरीर से बाण निकल गए और सारी पीड़ा दूर हो गई. उन के जितने घाव थे, वे सब भर गए : लक्ष्मणस्य ददौ नस्य: सुषेण: सुमहाद्युते:.

सशल्यस्तां समाघ्राय लक्ष्मण: परवीरहा. विशल्यो विरुज: शीघ्रम्

उदतिष्ठन्महीतलात्… (वा.रा. युद्धकांड, 91/24-25)

तुलसीदास ने आगे भी वाल्मीकि के ‘इतिहास’ को तोड़ामरोड़ा है. वाल्मीकि कहते हैं कि सुषेण राम की सेना का एक प्रमुख था, यूथपति था, महात्मा हरियूथप: सुषेण: (वानरों के समूह का नायक महात्मा सुषेण). पर तुलसीदास इस के विपरीत ऐसी बात कहते हैं जो राम के चरित्र के, उन की सूझबूझ के, सर्वथा विपरीत जाती है : जामवंत कह बैद सुषेना,

लंकाँ रहइ को पठई लेना, धरि लघु रूप गयउ हनुमंता,

आनेउ भवन समेत तुरंता. राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेन,

कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन. (रामचरितमानस, लंकाकांड, 55)

यहां तुलसीदास का कहना है कि जांबवान ने श्रीराम से कहा कि लंका में रावण का वैद्य सुषेण है. हनुमान उस को घर समेत उठा लाए. उस ने आने पर रामचंद्र से कहा कि ‘यह’ औषधि है और इसे हनुमान ले आएं: क्या श्रीराम के पास कोई वैद्य नहीं था? क्या वे शत्रु के वैद्य के हाथों अपने भाई का इलाज करवाने जैसा कदम उठा सकते थे? क्या यह राजनीति और सामान्य बुद्धि के भी विपरीत नहीं होता? क्या राम ऐसा अदूरदर्शिता भरा कदम कभी उठा सकते थे? वाल्मीकि ने उन से कहीं ऐसा अनुचित कदम नहीं उठवाया है. ये सब

वाल्मीकि रामायण को तोड़मरोड़ कर पेश करने का ही दुष्परिणाम है कि तुलसीदास ने उन से ऐसा करवा दिया है. बूटी अज्ञात है

वाल्मीकि रामायण में इंद्रजीत के हाथों मूर्च्छित लक्ष्मण को राम की सेना का ही एक यूथपति सुषेण ठीक करता है और वह किस बूटी का प्रयोग इस के लिए करता है, यह ज्ञात नहीं, क्योंकि वाल्मीकि केवल इतना लिखते हैं, ‘सुषेण ने एक बहुत ही उत्तम औषधि लक्ष्मण की नाक में लगाई’: नस्य: सुषेण: सुमहाद्युते:.

(युद्धकांड 102/36) तुलसीदास कहते हैं कि वह औषधि संजीवनी थी, जो बिलकुल निराधार है, क्योंकि वाल्मीकि ने उस के नाम का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया है. दूसरे, यहां इंद्रजीत के हाथों लक्ष्मण सिर्फ घायल हुए थे, मरे नहीं थे. वाल्मीकि की ‘उत्तम औषधि’ और तुलसी की ‘संजीवनी’ केवल घायल लक्ष्मण को स्वस्थ करती है, न कि मृत लक्ष्मण को. अत: यह प्रचार सरासर गलत और गुमराह करने वाला है कि संजीवनी अथवा मृतसंजीवनी से मरा हुआ व्यक्ति जीवित हो जाता था या हो सकता है.

रामायण में कहीं भी कोई मरा हुआ व्यक्ति संजीवनी से जीवित होता नहीं दिखाया गया है. सिर्फ मूर्छित व्यक्ति ही स्वस्थ होते दिखाए गए हैं. यहां तक कि रामायण की कथा में तोड़मरोड़ करने के बावजूद तुलसीदास ने कहीं किसी मुर्दे को संजीवनी से जीवित होता नहीं दिखाया है. यदि तुलसीदास की बात पल भर के लिए मान लें कि सुषेण रावण का वैद्य था और उसे संजीवनी का ज्ञान था तथा उसी के ज्ञान के आधार पर हनुमान उस बूटी को लाए थे, तब तो स्पष्ट है कि रावण को भी इस का ज्ञान था. यदि यह मरे को जीवित करने में समर्थ होती तो रावण के यहां भी यह जरूर उपलब्ध होती और वह इस से अपने मरे पुत्र, भाई आदि को जीवित कर लेता. पर न रावण और न राम में से कोई भी रामायण में किसी बूटी से किसी मुर्दे को जीवित नहीं करते. इस से साफ है कि यह भावुकतापूर्ण प्रचारप्रसार मिथ्या है कि कथित संजीवनी से मुर्दे जीवित हो उठते थे और अब उसी बूटी के बल पर रामदेव भी मुर्दों को जीवित करने वाली चमत्कारपूर्ण दवाई बना रहे हैं या बना सकते हैं, जिस के बन जाने पर संसार भर की डाक्टरी खोजें निरर्थक हो जाएंगी. उसी एक दवाई से सब रोग, सब घाव आदि का इलाज हो जाएगा.

रामायण में लक्ष्मण 3 बार मूर्च्छित होते हैं. तीसरी बार उन्हें रावण मूर्छित करता है. राम जब धराशायी लक्ष्मण को देख कर चिंतित होते हैं तो सुषेण उन से कहता है : आप के भाई लक्ष्मण मरे नहीं हैं. देखिए, इन के मुख की आकृति अभी बिगड़ी नहीं है और न इन के चेहरे पर कालापन ही आया है. इन का मुख कांतिमान दिखाई दे रहा है. इन के हाथों की हथेलियां कमल जैसी कोमल हैं, आंखें बहुत साफ हैं. हे राजन, मरे हुए प्राणियों का ऐसा रूप नहीं होता. आप विषाद न करें. इन के शरीर में प्राण हैं. ये सो गए हैं. इन का शरीर शिथिल हो कर भूतल पर पड़ा है. सांस चल रही है और हृदय बारबार धड़क रहा है, उस की गति बंद नहीं हुई है. ये लक्षण अपने जीवित होने की सूचना दे रहे हैं : आश्वासयन्नुवाचेदं

सुषेण: परमं वच:, 24 नैव पंचत्वमापन्नो

लक्ष्मणो लक्ष्मिवर्धन:.25 न ह्यस्य विकृतं वक्त्रं

न च श्यामत्वमागतम्, सुप्रभं च प्रसन्नं च

मुखमस्य निरीक्ष्यताम्. 26 पद्मपत्रतलौ हस्तौ

सुप्रसन्ने च लोचने, नेदृशं दृश्यते रूपं

गतासूनां विशां पते. 27 विषादं मा कृथा वीर

सप्राणोऽयमरिंदम:, आख्याति तु प्रसुप्तस्य

स्रस्तगात्रस्य भूतले. 28 सोच्छ्वासं हृदयं वीर

कम्पमानं मुहुर्मुहु:. 29 (वा. रा. युद्धकांड, सर्ग 102)

विशल्यकरणी, न कि संजीवनी इस के बाद सुषेण हनुमान से कहते हैं कि तुम उस पर्वत पर जाओ जिस का पता तुम्हें जांबवान पहले ही बता चुके हैं. उस के दक्षिणी शिखर पर से विशल्यकरणी नाम की महौषधि को यहां ले आओ तथा सावर्ण्यकरणी (सुवर्णकरनी), संजीव- करणी (संजीवनी) और संधानी महौषधि को भी ले आओ ताकि लक्ष्मण को होश में लाया जा सके. वहां जा कर हनुमान उन्हें पहचानने में असमर्थ रहते हैं. वे सोचते हैं, ‘यदि मैं विशल्यकरणी को लिए बिना ही वापस गया तो अधिक समय बीतने से दोष की संभावना है और उस से बड़ी भारी घबराहट हो सकती है, मुश्किल पैदा हो सकती है.’

यह सोच कर हनुमान पर्वत का एक शिखर ले आते हैं ताकि सभी प्रकार की बूटियां लाई जा सकें : दक्षिणे शिखरे जातां

महौषधिमिहानय. विशल्यकरणीं नाम्ना

सावर्ण्यकरणीं तथा, संजीवकरणीं वीर

संधानीं च महौषधीम्. संजीवनार्थं वीरस्य

लक्ष्मणस्य त्वमानय, अगृह्य यदि गच्छामि

विशल्यकरणीमहम्, कालात्ययेन दोष: स्याद्

वैक्लव्यं च महद् भवेत्. इति संचिन्त्य, 37

इति संचिंत्य हनुमान् गत्वा क्षिप्रं महाबल:.

उत्पपात गृहीत्वा तु हनुमान् शिखरं गिरे:…

(वा. रा. युद्धकाण्ड 102/22-31) हनुमान जब उसे ले कर वापस आए, तब सुषेण ने उस औषधि को कूटपीस कर लक्ष्मण की नाक के पास रख दिया. उसे सूंघते ही शरीर के बाण निकल गए और वे नीरोग हो कर खडे़ हो गए :

तत: संक्षोदयित्वा तामोषधीं वानरोत्तम:, लक्ष्मणस्य ददौ नस्य: सुषेण: सुमहाद्युते:

सशल्यस्तां समाघ्राय लक्ष्मण: परवीरहा, विशल्यो विरुज: शीघ्रम्

उदतिष्ठन्महीतलात्. 44-45 (वा.रा. युद्धकांड, सर्ग 102)

इस विवरण से क्या पता चलता है? यही न कि हनुमान को संजीवनी नहीं, विशल्यकरणी लाने के लिए खासतौर से भेजा गया था. इसलिए उन्हें चिंता होती है कि यदि विशल्यकरणी बूटी न ले कर गया तो देर हो जाने से लक्ष्मण की स्थिति बिगड़ सकती है. इस के साथ अन्य बूटियों की बात भी कही गई. अब यदि किसी एक ही बूटी में सभी बूटियों के गुण होते जैसा रामदेव की टीम वाले दावा करते हैं, तब तो हनुमान के इस तरह चिंतित होने का कोई कारण ही नहीं था. वे चाहे कोई एक बूटी ले जाते, उस में चारों के ही गुण पाते- ‘फोर-इन-वन.’

इस तरह हम देखते हैं कि रामायण में 4 विभिन्न बूटियों का जिक्र है. संजीवनी बूटी, केवल बेहोश को होश में ला सकने वाली थी, न कि मुर्दे को जीवित करने वाली. उस बूटी की उस युग में भी, निशानियां बताने के बावजूद हनुमान जैसे बुद्धिमान को भी पहचान नहीं थी, आज तो क्या होनी है. वैसे, आज उस के बिना हमारा क्या कोई काम रुका पड़ा है? जब लक्ष्मण को कथित बूटी द्वारा होश में लाया गया, उस के बाद से किसी को उस के बारे में कुछ पता नहीं. महाभारत में, पुराणों में या अन्य किसी ग्रंथ में फिर इस का कहीं कोई विवरण उपलब्ध नहीं होता, लेकिन इनसान ने इस दौरान एक से बढ़ कर एक ऐसी दवाइयां तैयार कर ली हैं कि किसी के बेहोश होने पर अब किसी को हिमालय की चोटियों की ओर दौड़ाना या उड़ाना नहीं पड़ता.

हर शहर में, हर बडे़ गांव में, डाक्टरों के पास ऐसी अनेक दवाएं हैं जिन से अनेक तरह की बेहोशी को ठीक किया जा सकता है. अब यदि संजीवनी न भी मिले तो कोई हानि नहीं तथा यदि मिल भी जाए तो कोई विशेष लाभ नहीं. क्या रामदेव की बूटी संजीवनी है

अब जब रामदेव संजीवनी के मिल जाने का दावे करते हैं, तब यह प्रश्न उठना भी स्वाभाविक है कि क्या वह बूटी वास्तव में संजीवनी है या वैसे ही प्रचार पाने के लिए किसी दूसरी बूटी को संजीवनी बताया जा रहा है? ध्यान रहे कुछ समय पहले उत्तराखंड के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रमेश पोख्रियाल ‘निशंक’ ने संजीवनी बूटी ढूंढ़ने की परियोजना शुरू की थी. पर रामदेव, जिन की पातंजल योग पीठ नाम से हरिद्वार से एक सफल फार्मेसी चल रही है, आगे निकल जाने का दावा करते हैं, जबकि स्वास्थ्य मंत्री का कहना था कि हम संजीवनी ढूंढ़ने का अभियान जारी रखेंगे और अब ज्यादा ऊंचे इलाके में टीम भेजी जाएगी.

मंत्री महोदय के बयान से यही प्रतीत होता है कि उन्हें रामदेव की टीम के दावे में संदेह है. यदि वास्तव में उन्होंने यह बूटी ढूंढ़ ली होती तो फिर ‘संजीवनी की खोज जारी रखने’ का कोई अर्थ ही नहीं था. इतना ही नहीं, वनस्पतिशास्त्र के प्रख्यात विद्वानों ने रामदेव टीम द्वारा संजीवनी कह कर प्रचारित की गई बूटी को संजीवनी नहीं माना है. हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, के वनस्पतिशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. आर.डी. गौड़ ने इस दावे को निरस्त करते हुए कहा है कि जिन बूटियों-सेलिनम, केंडोली व सौसूर्य गोसीपिहोरा-को ढूंढ़ निकालने की बात की जा रही है, वे तो हिमालय में युगोंयुगों से हैं. भले ही इन बूटियों का आर्थिक दृष्टि से महत्त्व है, फिर भी इन्हें ‘संजीवनी’ नहीं कहा जा सकता.

प्रो. गौड़ का कहना है कि रामायण में संजीवनी के 3 गुण बताए गए हैं-यह प्रकाश छोड़ती है, होश वापस लाती है और शक्ति देती है. परंतु इस तथाकथित ‘खोजी’ गई बूटी में तीनों में से एक भी गुण नहीं है. इसी तरह के विचार पद्मश्री प्रो. ए.एन. पुरोहित के हैं, जो उच्चतर इलाकों के आयुर्विज्ञान से संबद्ध पेड़पौधों के विशेषज्ञ हैं. उन का कहना है, ‘‘कथित खोजी गई बूटियां वहां सैकड़ों सालों से हैं तथा इन के रासायनिक गुणों का वैज्ञानिकों द्वारा काफी अध्ययन किया जा चुका है. वे लोग सिर्फ लाभ कमाने के लिए भोलेभाले लोगों को मूर्ख बना रहे हैं.’’

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि ‘संजीवनी’ या ‘मृतसंजीवनी’ जैसी कोई बूटी नहीं है. रामायण में इसे मंगवाया और प्रयोग में लाया गया, पर वह भी बेहोशों को होश में लाने के लिए, न कि किसी मृतक को जीवित करने के लिए. इस बूटी के बारे में जांबवान (रीछ कबीले का सरदार) को ही पता था और किसी को नहीं. न तो राम उस की कही बात करते पाए जाते हैं, न लक्ष्मण और न रावण तथा विभीषण. उस के बारे में कपि (वानर) हनुमान भी कुछ नहीं जानते. इसीलिए समझा कर भेजे जाने पर भी संजीवनी बूटी को वे पहचान नहीं पाए थे. अत: यही अनुमान होता है कि यह कोई साधारण सी और उसी इलाके की कोई स्थानीय बूटी थी जो न प्रसिद्ध थी और न आम प्रचलित. जांबवान ही इसे जानतेपहचानते थे. यह बूटी सिर्फ बेहोश को होश में लाने के लिए उसी प्रकार इस्तेमाल की जाती थी जिस तरह कई इलाकों में बेहोश आदमी को जूते की बदबू सुंघाते हैं. यही कारण है कि इसे बाद में कहीं कोई महत्त्व नहीं दिया गया.

अब इस बूटी को धार्मिकता व पौराणिकता की चाशनी में लपेट कर पेश किया जा रहा है, जो सरासर गलत और अवैज्ञानिक तरीका है. वैसे इस बूटी के आज हमारे पास न होने से हमारा कौन सा काम रुका पड़ा है? इस से ज्यादा उम्दा व शीघ्र प्रभाव करने वाली अनेक तरह की बेहोशी को दूर करने वाली दवाइयां आज हमारे पास सुलभ हैं, जिन्हें जरूरत पड़ने पर आम आदमी को दिया जा सकता है और ठीक किया जा सकता है. यदि ढूंढ़ना है तो उन चीजों को ढूंढ़ो जो आज भी हमारे पास नहीं हैं. ढूंढ़े हुए को ढूंढ़ना तो पीसे हुए को पीसने के समान निरर्थक और व्यर्थ है. महाभारत काल में धृतराष्ट्र भारत का सम्राट होने के बावजूद उम्र भर अंधा ही रहा. उस के लिए क्या कोई जड़ीबूटी खोजी गई थी? क्या कोई ऐसी जड़ीबूटी है जो जन्मांध को देखने योग्य बना दे. क्या ऐसी बूटी को खोजने के प्रयास नहीं करने चाहिए?

इसी तरह पांडवों के पिता पांडु राजयक्ष्मा रोग से मर गए. क्या उन के लिए कोई जड़ीबूटी नहीं थी? जब बहेलिए ने तीर मार कर श्रीकृष्ण की इहलीला समाप्त कर दी थी तब यह तथाकथित विशल्यकरणी उन को क्यों न दी गई और उन्हें क्यों न बचाया जा सका? जब भीष्म तीरों से बुरी तरह बिंध कर युद्ध के मैदान में गिरे पड़े थे तब यह तथाकथित विशल्यकरणी कहां थी? क्यों नहीं इस से भीष्म के शरीर से तीर निकाले जा सके? क्यों नहीं इन बूटियों की गंध की मदद से उन्हें बचाया जा सका?

ऐसे में प्रश्न उठता है कि रामायण में इन की मदद से बेहोशों को होश में लाने और घायलों को ठीक करने के जो विवरण हैं, क्या वे असली हैं? क्या वे कवि की कल्पना मात्र नहीं हैं? (वैसे विद्वानों का तो यह भी कहना है कि हनुमान की दोनों हिमालय-यात्राएं प्रक्षिप्त हैं-सर्ग 74 और 102 बाद में मिलाए गए हैं. इसीलिए हिमालय यात्रा की कठिनाई का कहीं कोई वर्णन नहीं है.) क्या महाभारत काल के ऋषिमुनियों को इन बूटियों की पहचान नहीं थी? क्या उन के लिए ये बूटियां उपलब्ध नहीं थीं? और तो और वह योग भी उन के किसी काम न आया जिस से व्याधियां दूर होने के दमगजे अनेक गं्रथों में लिपिबद्ध हैं.

ऐसे में पौराणिकता, योग, धार्मिकता आदि के तानेबाने की नहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है ताकि आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में और उन्नति की जा सके. पुरानी व पौराणिक कहानियों की जुगाली करते रहने में इस विराट हिंदू समाज का बेड़ा ही गर्क होगा, उस का भला नहीं हो सकता, भले ही कुछ निहित स्वार्थी तत्त्वों की इस से थोड़े समय के लिए दुकानदारी क्यों न चमक जाए.

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