दिल्ली की एक साधारण वर्ग की कालोनी में एक पड़ोसी द्वारा भाई पर आक्रमण के दौरान एक बहन की मृत्यु हो जाना दुखद है पर यह दिखाता है कि धीरे-धीरे औरतें व युवतियां अपने खोल से निकल रही हैं. इस मामले में पड़ोसी को संदेह था कि मृतका का भाई उस की पत्नी को छेड़ता है और वह चाकू ले कर उसे मारने घर में घुस गया. 23 वर्षीय ज्योति ने भाई को बचाने की कोशिश में हमलावर को पकड़ना चाहा तो इस दौरान चाकू ज्योति को मार दिया गया.
पहले ऐसी घटना में युवतियां डर कर कोने में छिप जाती थीं पर आज की बोल्ड लड़कियां अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगी हैं. तभी भाई की सुरक्षा में इस ज्योति ने अपनी जान तक कुरबान कर दी.
लड़कियों के मन में हीनभावना धर्म ने बड़ी चतुराई से भरी है. उन्हें बचपन से ही लड़कों से कमतर समझा गया है और उन्हें खोल में रखना सिखाया गया है. उन्हें चारदीवारियों, घूंघटों, परदों, बुरकों में बंद कर दिया गया. उन्हें बाहरी खेलों में भाग नहीं लेने दिया गया, जिन से उन की मांसपेशियां बन सकें. उन्हें इस कदर कमजोर कर दिया गया कि हाल तक बड़ी संख्या में औरतें गर्भ में बच्चों तक को संभाल नहीं पाती थीं.
नीची जाति की औरतें, जो अब तक धर्म के चंगुलों में कम फंसी थीं, हमेशा से दमदार रही हैं और न छेड़ने वालों को बख्शती थीं न मर्दों को. उन्हें अपना पति छोड़ कर दूसरे के साथ जाने तक की छूट थी. धर्म के आवरण में सुरक्षा ढूंढ़ने वाली औरतें ही कमजोर रहती हैं. अगर इस ज्योति की तरह हर औरत स्थिति का मुकाबला करने को तैयार हो जाए, तो औरतों के प्रति हिंसा कम हो जाए. इस के लिए धर्म ने जो हीनभावना उन में कूटकूट कर भर रखी है वह निकालनी होगी.