फिल्में समाज का आईना होती है, लिहाजा फिल्म में वही दिखाया जाता है जो कहीं ना कहीं समाज में चल रहा होता है और कई बार कई फिल्में दर्शकों को जागरूक करने वाले शिक्षाप्रद संदेश भी देते हैं . जिससे दर्शक सीख लेकर अपनी जिंदगी में भी लागू करते हैं. फिर चाहे वह अमिताभ बच्चन अभिनीत पारिवारिक फिल्म बागबान हो, जिसमें बूढ़े मांबाप को बच्चे अपने स्वार्थ के चलते तकलीफ देते हैं. बूढ़े मांबाप को घर से बेघर कर देते हैं या सुनील दत्त नरगिस अभिनीत फिल्म मदर इंडिया ही क्यों ना हो जिसमें एक मां एक औरत की इज्जत की रक्षा करने के लिए अपने बेटे को भी गोली मार देती है. गौरतलब है पुराने जमाने में ज्यादातर सामाजिक फिल्में ही बनती थी. जो न सिर्फ परिवार के साथ देखने वाली पारिवारिक फिल्में होती थी बल्कि उन फिल्मों के जरिए आम इंसान बहुत सारी अच्छी बातें भी सीखता था.
लेकिन बाद में एक समय ऐसा भी आया जब सिर्फ पैसा कमाने के उद्देश्य से फिल्मों का निर्माण होने लगा. और कई तरह की फिल्में बनने लगी. फिर चाहे वह आक्रामक हिंसा से भरपूर फिल्में हो या सेक्स पर आधारित अश्लील फिल्में ही क्यों ना हो. जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना और बौक्स औफिस पर अच्छा कलेक्शन करना होता था. लेकिन फिर से एक बार समय का चक्र घुमा और एक बार फिर सामाजिक फिल्मों का दौर शुरू हुआ. जिसमें नामी गिरामी एक्टरों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. फिर चाहे वह अक्षय कुमार हूं अमिताभ बच्चन हो या तापसी पन्नू और दीपिका पादुकोण ही क्यों ना हो.