स्कूली लड़कियां ही नहीं स्कूली लड़कों के साथ भी रेप करने के बढ़ते मामले भय और आतंक का माहौल खड़ा कर रहे हैं. स्कूली बच्चों से यौन क्रिया सदियों से चली आ रही है पर उम्मीद थी कि जैसेजैसे लोगों में शिक्षा बढ़ेगी, समाज में कानून का जोर चलेगा, बच्चों के मातापिता अधिकारों के प्रति जागरूक होंगे और पुरुष अपनी सीमाएं जानेंगे, तो ये कुकर्म नहीं होंगे. पर लगता नहीं कि ऐसा हो रहा है या फिर अब थोड़े से मामले ही सुर्खियां बन जाते हैं और डरावना माहौल पैदा कर देते हैं.

यह बात पक्की है कि न तो दुनिया भर में सैक्स व्यापार कम हो रहा है और न ही छेड़खानी. जिन देशों में कानून की कड़ी चौकसी है वहां भी बुरी तरह रौंदे जाने के मामले हो रहे हैं और भारत जैसे देश में जहां न के बराबर कानून की चौकसी है, हाल बुरा है. पर फिर भी यह कहना होगा कि मातापिता को अपनी बेटियों की शादी 14 साल की आयु में कर के मुसीबत को टालना अनिवार्य नहीं हो रहा है.

सैक्स अपराधों की एक मुख्य वजह तो प्राकृतिक है पर प्रकृति ने तो एकदूसरे को मारने, एकदूसरे को झपटने और एकदूसरे पर आक्रमण करना भी सिखाया था. मानव ने अपने हजारों साल के इतिहास में इस प्रवृत्ति पर विजय पाई है. आज सड़क पर महीनों कीमती सामान पड़ा रहे, कोई नहीं उठाता. सड़कों पर नगर निकायों के लोहे के बैंच, पानी के हैंडपंप, सिगनल, बैरियर आदि आसानी से चोरी नहीं होते क्योंकि समाज ने शिक्षा दे दी है.

घर से बाहर जाती अब हर औरत सुरक्षित महसूस करती है. उस का हल्ला उसे बचाने के लिए काफी है. अगर कोई हादसा हो जाए तो बहुत से मामलों में तो अपराधियों को पकड़ा जाना संभव हो ही जाता है. स्थिति बुरी है पर इतनी नहीं.

स्कूली बच्चों के बारे में मातापिता व सामान्य लोग अकसर निश्चिंत से हो जाते हैं और वे सुरक्षा के सामान्य उपाय नहीं अपनाते. यही उन की कमी है. स्कूली बच्चों को, लड़केलड़कियों दोनों को, आगाह करना जरूरी है कि वे जानेअनजाने लोगों के चंगुल में न फंसें. प्यार और सैक्स भावना में अंतर समझें. बच्चों को भयभीत करे बिना अपना खयाल रखना सिखाना जरूरी है. इस के लिए अगर बच्चों को प्रशिक्षित करना जरूरी है तो मातापिता को भी. क्लासें तो दोनों की लगनी चाहिए.

कामकाजी मातापिताओं को दोहरा सावधान होना चाहिए. उन्हें अपना घर अकेले अबोध बच्चों पर न छोड़ कर ग्रुप बनाने चाहिए ताकि 3-4 बच्चे बारी बारी एक एक के घर रह कर तब तक अपना काम कर सकें जब तक कि माता-पिता काम से लौट कर न आ जाएं. बच्चों को पालने के लिए सही गुर समझाने चाहिएं, वे खुदबखुद सीख जाएंगे, यह भूल जाना चाहिए. सरकारों, कानूनों, पुलिस व संस्थाओं पर ज्यादा निर्भर रहना भी गलत है. बच्चों के मामलों में हर संभव चौकन्ना रहना जरूरी है.

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