लाखों अनुयायियों के गुरु माने जाने वाले गुरमीत राम रहीम को बलात्कार के मामले में अदालत द्वारा दोषी करार दिया गया तो उपद्रव, हिंसा से कई शहर जल उठे. इस घटना से स्तब्ध देश में बाबाओं की बढ़ती भीड़ को ले कर प्रश्न उठ रहे हैं. क्यों बाबाओं की जमातें बढ़ रही हैं. उन के पीछे लाखों अंधभक्त क्यों पागल हो रहे हैं?

असल में बाबाओं की यह खरपतवार हमारे देश की भेदभावपूर्ण सामाजिक, धार्मिक व्यवस्था की देन है. बाबाओं ने हमारे सामाजिक विभाजन का पूरा फायदा उठाया. सदियों से दलित, पिछड़े, वंचित लोग हाशिए पर थे, ये लोग उन के लिए अवतार, भगवान बन गए. लाखों, करोड़ों लोग उन के चरणों में झुकने लगे. बाद में राजनीतिबाजों ने उन्हें लपक लिया.

पंथ के नामों पर बने हुए डेरे, आश्रम, मठ, मंदिर अलगअलग धर्म, जाति, विभाजित समाज को मुंह चिढ़ाते नजर आते हैं. इन के बीच आपसी प्रेम, सौहार्द नहीं है. आएदिन झगड़े, खूनखराबा, पुलिस, अदालती मामले सामने आते रहते हैं. कभीकभी लगता है कि देश में गृहयुद्ध सा चल रहा है.

देश के हर हिस्से में बाबा विराजते हैं. बाबागीरी का लबादा ओढ़े ज्यादातर बाबा जमीन हथियाने, राजनीतिक दलाली करने में जुटे हैं. इन के कालेधंधे भी चलते हैं. इन की करतूतों का अकसर परदाफाश होता भी रहा है.

ऐशोआराम का धंधा

हैरानी की बात है कि हर डेरा, आश्रम, मठ पांचसितारा से कम नहीं दिखता. बाबा लोग सोनेचांदी के सिंहासनों पर विराजते हैं. ये एअरकंडीशंड आश्रमों में रहते हैं और  महंगी लक्जरी गाडि़यों में घूमते हैं. इन के यहां ऐशोआराम के सभी साधन उपलब्ध हैं. आश्रमों में अप्सराएं भी थोक में उपलब्ध रहती हैं.

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