ताज़ा वैश्विक महामारी से चर्चा में आए कुछ शब्दों में से एक है सोशल डिस्टेंसिंग. दुनियाभर में इसे लागू किया गया और लोगों ने इस पर अमल भी किया, हालांकि, इस का मकसद दूसरा था. यानी, यह शब्द फिट नहीं. इस शब्द के इस्तेमाल करने की सलाह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने दी थी.
दरअसल, सोशल डिस्टेंसिंग शब्द विरोधाभासी है. इस से लगता है कि हमें एकदूसरे से अलग हो जाना है.
जबकि दुनिया पर नजर डालें या औनलाइन मंचों को देखें तो पता चलता है कि लोग सिर्फ शारीरिक तौर पर दूर रहना चाहते हैं, सामाजिक तौर पर नहीं. यानी, एकदूसरे से कट कर नहीं.
विभाजनकारी है यह :
सोशल डिस्टेंसिंग शब्द तो 'एकला चलो रे' सरीखा गलत संदेश देता है. आगे चल कर यह सामाजिक ढांचे के थराशायी होने की वजह बन सकता है. यह विभाजनकारी शब्द लगता है.इस के इस्तेमाल से बचा जाना चाहिए. यह समाज को एकदूसरे से अलगअलग तरह से रहने के लिए प्रेरित करने के साथ उसे सही भी ठहराता प्रतीत होता है.
भारत पर नजर डालें तो हमारा समाज एक लंबे समय तक छुआछूत, जो एक प्रकार की सोशल डिस्टेंसिंग ही है, को मानता रहा है. जाति आधारित गांवों के विभिन्न टोले लंबे समय से चले आ रहे सोशल डिस्टेंसिंग के ही उदाहरण हैं.आज भी यह प्रथा और परंपरा
देश में मौजूद है. बल्कि, भारत ही नहीं, दुनियाभर में रंग, नस्ल और जातिगत भेदभाव रहे हैं.
भारत में सोशल डिस्टेंसिंग रगरग में समाई है :
‘सोशल डिस्टेंसिंग’ को भारतीय जनमानस जिन अर्थों में ग्रहण करता है, उस के पीछे की सामाजिक व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना जरूरी है. यह शब्द हमारे देश में लंबे समय से सामाजिक वर्चस्व बनाए रखने के लिए इस्तेमाल होता रहा है. ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ हमेशा ताकतवर समूह द्वारा कमजोर समूह पर थोपी जाती है. भेदभाव और दूरी बनाए रखने व छुआछूत को अमल में लाने के तरीके के तौर पर इस का इस्तेमाल होता रहा है. यह पवित्र और अपवित्र की धार्मिक धारणा का सामाजिक जीवन में विस्तार है.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
- 24 प्रिंट मैगजीन