प्रोफैसर सुमित्रा के घर उत्सव का माहौल था. 3 महीने पहले बुक की गई नई औडी आज घर आने वाली थी. पंडितजी ने कार घर लाने का मुहूर्त आज का निकाला था. उन के पति डाक्टर चंद्रभूषण ने, जो शहर के प्रसिद्ध चिकित्सक हैं, आज अपने नर्सिंग होम जा कर जरूरी औपरेशन करने का काम भी किसी और को दे दिया था, क्योंकि उन का पूजा में बैठना जरूरी था. मयंक जो एमडी कर रहा था, चिराग जो इंजीनियर था, आज छुट्टी पर थे. पंडितजी की पूजा काफी देर से चल रही थी.

बेटे गाड़ी ले कर आए तो पंडितजी ने कार को फूलमाला पहनाई, घूमघूम कर कई जगह लाल टीका लगाया, हर पहिए पर जल छिड़का, फिर सड़क पर कार के सामने नारियल फोड़ा. कई मंत्र पढ़े जो किसी को समझ नहीं आए.

सब का नाम ले कर गाड़ी के चारों तरफ घूमघूम कर श्लोक बुदबुदाए. उस के बाद सब ने उन के पैर छुए.

पौराणिक सोच

पंडितजी ने पहले ही करीब 50 लाख की औडी के हिसाब से 5 हजार का शुभदान का संकेत दे दिया था. गरीब मरीजों का भी खून चूसने वाले डाक्टर चंद्रभूषण को किसी पंडित को कार पूजा के लिए इतनी दक्षिणा देना कहीं से भी गलत नहीं लगा.

प्रश्न यह उठता है कि एक से एक पढ़ालिखा परिवार भी लेटैस्ट तकनीक की कार खरीदने पर पूजा पौराणिक जमाने की क्यों करता है? क्या मंत्र, जाप, पूजापाठ ही कार चलाने वाले और उस में बैठने वाले की सुरक्षा करते हैं? अगर कोई सीटबैल्ट नहीं बांधेगा, सुरक्षा कानून का पालन नहीं करेगा, पी कर गाड़ी चलाएगा, नटबोल्ट की जानकारी नहीं होगी, उसे पंडितजी के ये मंत्र बचा लेंगे? रोज सड़कों पर इतने हादसे होते हैं. देखतेदेखते ही ऐक्सीडैंट में कारों का कचूमर निकल जाता है. उन कारों की भी तो पूजा की गई होती है, फिर?

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