सृजना बगारिया (पी सेफ की सह-संस्थापिका )

मैन्सट्रुएशन एक हेल्दी बायोलॉजीकल प्रोसेस होता हैं . यह लड़कियों और महिलाओं के रिपरोडक्टिव सिस्टम से जुड़ा हुआ है . समाज में लोग इसे एक गंदगी के तौर पर देखते हैं इसलिए लड़कियां या महिलाएं इस पर बात करने से कतराती हैं.

देश में 88 प्रतिशत महिलाएं नहीं कर पाती पैड का इस्तेमाल

एक सर्वे के मुताबिक हमारे देश की लगभग 88 प्रतिशत महिलाएं अपने पीरियड्स के दौरान सैनेरटरी पैड का इस्तेमाल ही नहीं कर पाती हैं. पैड की जगह वे फटेपुराने कपड़े, अखबार, सूखी पत्तियां और प्लास्टिक तक इस्तेमाल में लाने को मजबूर हैं जो पूरी तरह गलत है और बहुत जोखिम भरा भी है .

पैड इस्तेमाल न करने से कैंसर का खतरा

भारत में मैन्सट्रुएशन लगभग 10 से लेकर14 साल की उम्र में शुरू हो जाता है जब कि मीनोपॉज की औसत उम्र लगभग 47 साल है . जब महिलाएं मेन्सट्रुअल में निकले खून को पैड के अलावा किसी दूसरी चीज से रोकती हैं तो वह खून उल्टी दिशा में बहने लगता है और वह एंडोमीट्रिओसिस जैसे गंभीर रोग की शिकार हो जाती हैं. पेल्विक इन्फेक्शन और रिप्रोडक्टिव ट्रेक्ट इन्फेक्शन जैसी गंभीर मामले आगे चल कर कैंसर होने की आशंका को बढ़ा देते हैं .

क्या है ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों का हाल

ग्रामीण भारत में मैन्सट्रुएशन और इसकी हाइजीन को ले कर अभी जागरुकता की काफी कमी है . लोगों का कहना है कि नेशनल फैमिली हेल्थ 2015-16 के सर्वे के अनुसार 15 से 24 साल तक की 58 प्रतिशत महिलाएं नैपकीन, सैनिटरी नैपकीन का इस्तेमाल करती हैं . शहरी क्षेत्रों में 78 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स के दौरान पैड समेत दूसरी सुरक्षित तकनीकें अपनाती हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में केवल 48 प्रतिशत महिलाएं ही पीरियड्स के दौरान हाइजीन और दूसरी साफसुथरी तकनीकों का इस्तेमाल कर पाती हैं .

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क्या होते हैं रीयूजेबल सैनिटरी पैड

जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि यह वह पैड्स हैं जिन्हें बारबार इस्तेमाल किया जा सकता है. इन पैड्स की एक बात यह है कि इन को लगातार 1.5 साल से ले कर 2 साल तक प्रयोग किया जा सकता है . पीरियड्स में इस्तेमाल किए गए सैनिटरी पैड्स से पैदा हुआ कचरा पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है लेकिन रीयूजेबल पैड्स से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है . एक समस्या यह भी है कि बहुत सी महिलाओं को अभी तक यह नहीं पता कि सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करने के बाद क्या करना है या उन्हें कहां फेंकना है. बहुत सी महिलाएं, यहां तक कि शहरों में भी सामान्य कचरे के साथ ही कूड़ेदान में फेंक देती हैं जो बिल्कुल गलत है . पैड्स को हमेशा मिट्टी में दफना देना चाहिए या पूरी तरह किसी काले पॉलीथीन में बंद करके अलग रखना चाहिए ताकि उस की पहचान अलग से हो सके .

युवा आ रहे हैं आगे

भारत में युवाओं का प्रतिशत सब से अधिक है और इसलिए इस समय हर क्षेत्र की कमान युवाओं ने अपने कंधे पर संभाली हुई है. मैन्सट्रुएशन के विषय पर जागरुकता बढ़ाने में भी युवा पीछे नहीं है . देश के कोनेकोने से युवा कार्यक्रम, आविष्कारों और आयोजनों के माध्यम से जागरुकता फैलाने का काम कर रहे हैं . कोई रियूज़ेबल सैनिटरी पैड्स बना रहा है तो कोई पीरियड्स को सरल बनाने के लिए समाज को शिक्षित कर रहा है तो कोई स्वयंसेवी संस्था के साथ जुड़ कर काम कर रहा है . युवाओं के इसी जोश के भरोसे आज देश के कोनेकोने में मैन्सट्रुएशन को ले कर कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. लोग समझ रहे हैं कि यह कोई गंदगी नहीं बल्कि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो लड़की या महिला के लिए बहुत आवश्यक है .

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