झगड़ा करने वाले पति पत्नी आम हैं. मारपीट भी अनसुनी नहीं है. किसी भी आर्थिक व शैक्षिक स्तर पर हाथापाई पर उतर आना अजब नहीं होता. वाक्युद्ध तो प्रेम में डूबे पति पत्नी भी करते रहते हैं पर जल्द ही मान भी जाते हैं. अब बच्चे ज्यादा चौकन्ने होने लगे हैं. कानून, पुलिस, दादादादी, नानानानी से ज्यादा प्रभावशाली बच्चों की उपस्थिति झगड़े के दौरान होने लगी है.

कोलकाता के एक स्कूल की लड़की ने अपने मातापिता की पोलपट्टी तब खोल दी, जब उस ने स्कूल में दिए गए ‘माई फैमिली’ पर ऐस्से में घर में होने वाली मार पिटाई साफसाफ शब्दों में लिख दी. इस पर स्कूल ने ज्यादा समझदारी दिखाई और मातापिता को बुला कर उन्हें घर बांट लेने की सलाह दी ताकि बेटी मारपीट की दर्शक या शिकार न बने.

आज के बच्चे बहुत सी बातों की सहीगलत की समझ ही नहीं रखते, उसे कहने में भी हिचकते नहीं हैं. घर में दादादादी या नानानानी न हों तो वे स्कूल में मित्रोंसहेलियों व शिक्षकों से अपने दुख शेयर कर सकते हैं. शिक्षकों के लिए मातापिता की प्रतिष्ठा से ज्यादा बच्चों की सुखशांति महत्त्वपूर्ण होती है और उन के पास मातापिता को बुलाने का वह अधिकार है, जो मजिस्ट्रेटों के पास भी नहीं है और वह भी बिना वकील के.

पतिपत्नी बच्चे पैदा करने के बाद अपनी बहुत सी स्वतंत्रताएं खो देते हैं, यह उन्हें समझ लेना चाहिए. बच्चे उन के अपने सुखों, कैरियर, गुस्से, फ्रस्ट्रेशन से ऊपर हैं, यह समझ कर ही उन से व्यवहार करना चाहिए. बच्चों के प्रति ज्यादा लाडप्यार गलत है और उन की मनमानी सहना भी खतरनाक है पर उन की छत पर क्रैक्स न हों, यह जिम्मेदारी मातापिता की है.

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