ऐसा लगता है कि चीन पूरी दुनिया के दुर्लभ जानवरों को खा जाएगा. बहुत सारी प्रजातियां भारत से लुप्त हो रही हैं और उन के शरीर के अंग चीन में बिक रहे हैं. केकड़ों से ले कर शार्कों और चीतों जैसे अनेक जंतुओं का शिकार हमारा पड़ोसी मुल्क अवैध ढंग से कर रहा है. चीन से सटे राज्यों में कौए लगभग समाप्त हो चुके हैं. अब हमारे पेड़पौधों पर भी खतरा मंडरा रहा है. चीन का पारंपरिक दवाओं के नाम पर अवैध कारोबार इस का उत्तरदायी है. आयुर्वेद की तरह ट्रैडिशनल चीन परंपरागत तरीके से दवा बनाने के लिए पेड़पौधों, जानवरों के शरीर के अंगों और खनिज पदार्थों का इस्तेमाल करता है. चीनी पारंपरिक चिकित्सा के अनुसार शरीर को सेहतमंद बनाए रखने के लिए उस में जीवंत ऊर्जा ‘की’ समाहित करना बेहद जरूरी है. यह ज्ञान तीसरी सदी में लिखी गई किताब ‘नाइजिंग’ पर आधारित है. चीन वैद्यिकी लगभग 1,000 प्रजातियों के पेड़पौधों, 36 तरह के जानवरों और 100 से भी ज्यादा प्रजातियों के कीड़ेमकोड़ों का इस्तेमाल करता है, जिन में ज्यादातर भारत में पाए जाते हैं.
समुद्र में पाए जाने वाले अश्वमीन यानी सीहौर्स का शिकार करना कानूनन अपराध है. लेकिन लाखों सीहौर्सेज से भरे जहाजों, जोकि चेन्नई से चीन जा रहे थे, को पकड़ा गया था. चीन में खाने के शौकीनों की मांग को पूरा करने के लिए हम अपने जंगली भालुओं को लगभग खत्म कर चुके हैं, जो बचे हैं वे संरक्षण में हैं. शेरों पर खतरा: पिछले 100 सालों में भारतीय शेरों की संख्या 1 लाख से घट कर 1,000 रह गई है. इन में से करीब 60 हजार शेरों को चीन के लिए ही मारा गया है. शेरों और तेंदुओं की खाल को तिब्बत में खुलेआम बिकते देखा जा सकता है. आखिर किस अचूक दवा के काम आते हैं हमारे शेर? चीनी वैद्यिकी में इन की हड्डियों का इस्तेमाल प्लास्टर के तौर पर किया जाता है ताकि जोड़ों से संबंधित परेशानियों का इलाज किया जा सके. मिरगी के रोगी इन की आंखें खाते हैं, मूंछों का इस्तेमाल दांतदर्द के लिए किया जाता है, गुप्तांग को पौरुष बढ़ाने के लिए खाया जाता है.