औनलाइन फूड डिलिवरी ऐप ‘स्विगी’ के कर्मचारी द्वारा मुंबई में एक महिला के साथ मारपीट और पैसे ले कर भागने का मामला सामने आया है. पीडि़ता का आरोप है कि जब वह इस की शिकायत ले कर माहिम पुलिस थाने में पहुंची, तो पुलिसकर्मी ने उलटे उस से ही आपत्तिजनक सवाल करने शुरू कर दिए.

दरअसल, बात यह है कि रविवार सुबह 3 बजे वह महिला अपने दोस्त के साथ घर पर थी, उस ने स्विगी से खाना और्डर करने के साथ ही उस डिलिवरी बौय से सिगरेट लाने की भी अपील की जिस के लिए वह लड़का राजी भी हो गया. डिलिवरी के समय उस महिला ने उसे इस के लिए 150 रुपए अतिरिक्त भी दिए. पर वह कुछ और पैसे की मांग करते हुए घर में घुस आया. जब डिलिवरी बौय घर में घुसा तो वह महिला चिल्लाने लगी. लेकिन वह टेबल पर रखे 100 रुपए ले कर भाग गया. जब वह बाहर आई तो देखा कि नीचे वह करीब 4 लोगों के साथ खड़ा था और उस महिला को धमकी देने लगा कि उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे. फिर वह महिला हिम्मत कर के माहिम पुलिस थाने पहुंची. पर वहां पुलिसकर्मी एफआईआर दर्ज करने की जगह उस महिला के चरित्र पर ही सवाल उठाने लगे कि वह सिगरेट पीती है? क्या उस के मातापिता को पता है कि उन की बेटी सिगरेट पीती है? डिलिवरी बौय से सवाल करने की जगह पुलिसकर्मी उस महिला से ही आपत्तिजनक सवाल कर उसे शर्मिंदा करने लगे और डिलिवरी बौय को जाने दिया.

कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर एक तसवीर वायरल हो रही थी. तसवीर 2 लड़कियों की थी जो एक पार्क में सिगरेट पीते हुए सैल्फी ले रही थीं.

उस तसवीर की जम कर आलोचना हुई थी. दोनों लड़कियों को सिगरेट पीते देख लोगों ने अपनीअपनी राय देनी शुरू कर दी कि लड़की हो कर सिगरेट पीती है, लड़कियों को सिगरेट नहीं पीनी चाहिए, अच्छे घरों की लड़कियां सिगरेट नहीं पीतीं आदि. लोगों ने उस तसवीर को सभ्यता व संस्कृति से जोड़ते हुए उन लड़कियों को खूब लताड़ा था. लोगों का कहना था कि वैस्टर्न कल्चर हम पर हावी होने लगा है. यह सब विदेशों में चलता है, यहां नहीं.

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क्या कोई सिगरेट पहली बार पी रहा था जो लोग भाषण देने लगे? नहीं, बल्कि सिगरेट पीने वाली लड़कियां थीं, इसलिए सब को कमैंट करने का मौका मिला था. सिगरेट पीना कोई नई बात नहीं है, बहुत पीते हैं. खुले में पीते हैं, दोस्तरिश्तेदारों के सामने पीते हैं और मजे से पीते हैं, धुआं उड़ाउड़ा कर पीते हैं और लोग कुछ नहीं कहते, क्योंकि लड़के पी रहे हैं न. वहीं, लड़की पीती दिख गई, तो हायतोबा मच गई जैसे कोई अनर्थ हो गया. लड़के शराब, सिगरेट, गुटखा कुछ भी खापी सकते हैं, लड़कियों को छेड़ सकते हैं, क्योंकि संस्कृतिसभ्यता से तो सिर्फ लड़कियों का लेनादेना है.

एक लड़की बताती है, ‘‘एक बार दिल्ली के मोतीबाग में सुनसान पड़े एक स्टौप के करीब खड़े हो कर सिगरेट पीते हुए एक पुलिस वाले ने मुझे देख लिया. शाम होने वाली थी और आसपास दूरदूर कोई नहीं था. अपनी गश्ती वाली पीली मोटरसाइकिल पर बैठा वह पुलिस वाला मुझ तक आया, फिर उस ने जिस भाषा में मुझे लताड़ा, वह यकीनन ऐसा था कि जैसे मैं ने कोई बेहूदगी की हो. वजह थी मेरा सिगरेट पीना. मेरा सिगरेट पीना उस के लिए मेरे खराब चरित्र का सर्टिफिकेट था.’’ वह आगे कहती है, ‘‘कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं कि हंसी आ जाती है. आसपास के लोगों की अनचाही टिप्पणियों से बचने के लिए मुझे छिप कर सिगरेट पीनी पड़ती है. इतना ही नहीं, सुबूत मिटाने के लिए

मुझे परफ्यूम की बोतल साथ रखनी पड़ती है.’’

वह कहती है कि ऐसा नहीं कि उसे डर लगता है या फिर लोगों के जेहन में अपनी छवि संवारसहेज कर रखने का शौक है, बल्कि अपने आसपास के लोगों की बेवजह की असहजता बरदाश्त कर पाना उस के बस में नहीं है. सिगरेट पीना उस के लिए फैशन कतई नहीं है. यह उस की एक गंदी आदत है जिसे वह छोड़ना चाहती है. पर छोड़ नहीं पा रही है. उस का कहना है, ‘‘हां, पूरा हक है सिगरेट पीते देख आप को मुझे कोसने का, लेकिन अगर आप मुझे इसलिए कोसना चाहते हैं क्योंकि मैं एक लड़की हो कर सिगरेट पीती हूं, तो फिर आप की सलाह की मुझे कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं जहां लोग इस बात की दुहाई देते नजर आते हैं कि एक लड़की को कैसे कपड़े पहनने चाहिए और उसे कैसे पेश आना चाहिए. बहुत दुखद है कि हमारे देश में स्मोकिंग करने, टैटू बनाने वाली लड़कियों को बदचलन समझा जाता है. अगर कोई लड़का मुंहफट है या सिगरेट पीता है तो उस पर कोई उंगली नहीं उठाई जाती और न ही उसे कैरेक्टरलैस समझा जाता है. लेकिन लड़कियों के मामले में जल्दी ही लोग जजमैंट देना शुरू कर देते हैं,’’ यह कहना है बौलीवुड यंग ऐक्ट्रैस कृति सेनन का.

हम चाहे खुद को कितना ही उदार क्यों न कहलवा लें, लेकिन, आज भी हमारे देश में लड़कियों के सिगरेट पीने को नैतिकता से जोड़ कर देखा जाता है. हम ऐसा मानते हैं कि अगर एक लड़की सिगरेट पीती है, तो उस के कोई नैतिक मूल्य नहीं हैं. निश्चितरूप से ऐसी धारणा बेतुकी है क्योंकि सिगरेट और नैतिकता का आपस में कोई लेनादेना नहीं है. अगर सिगरेट पीना बुरा है तो पुरुषों का पीना भी बुरा है और अगर पुरुषों को अधिकार है सिगरेट पीने का, तो प्रत्येक औरत को भी अधिकार है सिगरेट पीने का. कोई चीज बुरी है, तो सब के लिए बुरी है और नहीं, तो किसी के लिए भी बुरी नहीं है. आखिर हर बात के लिए महिलाओं के साथ ही भेदभाव क्यों? क्यों औरतों के लिए अलग मापदंड निर्धारित किए गए हैं? पुरुष अगर लंगोट पहन कर नहाए तो ठीक और अगर औरत ऐसा करे तो चरित्रहीन बन गई? ये दोहरे मापदंड क्यों?

चरित्र पर भारी पड़ता सिगरेट का धुआं

चलती सड़क पर अचानक आप की नजर एक ऐसी लड़की पर पड़ती है जिस के हाथ में सिगरेट है. उस के मुंह से निकलता सिगरेट का धुआं आप को यह सोचने को विवश कर देता है कि न जाने आजकल की पीढ़ी को क्या हो गया है. आप भले ही इस बात को नकार दें लेकिन सच यही है कि जब भी आप किसी सिगरेट पीती लड़की को देखते हैं या आप को संबंधित लड़की के सिगरेट पीने जैसी आदत का पता चलता है, तो आप उस के विषय में कुछ ऐसी ही धारणा बना लेते हैं जिस का शायद कोई आधार ही नहीं होता.

सिगरेट पीते लड़के को आसानी से नजरअंदाज कर दिया जाता है लेकिन जब वही सिगरेट लड़की के हाथ में दिख जाए तो संस्कारों से ले कर उस के चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगा दिया जाता है. निश्चिततौर पर सिगरेट पीना खुली विचारधारा और उन्मुक्त स्वभाव को दर्शाता है लेकिन क्या इसे वैयक्तिक चरित्र से जोड़ कर देखा जाना सही है?

एक फिल्म आई थी ‘वीरे दी वैडिंग’. फिल्म उन दिनों चर्चा में थी. इसे करोड़ों लोगों ने देखा भी. इस फिल्म में बहुतकुछ है. 4 लड़कियां जो आपस में दोस्त हैं. उन का रिलेशनशिप है. नाचगाना है और साथ में हैं ढेर सारी गालियां और गालियां भी ऐसी जो महिलाओं को ले कर बनी हैं.

यह फिल्म अर्बन, अपर क्लास की 4 लिबरेटेड लड़कियों की कहानी है जो आजाद खयाल की हैं. एक स्टीरियोटाइप समाज में या कहें समाज के एक हिस्से में है कि अगर आजाद खयाल नजर आना है, तो कुछ चीजें करनी होंगी. मर्दों की तरह गाली देना उन में से एक है. लड़की बिंदास मानी जाएगी. गांव की औरतों का गाली देना गंवारपन है. लेकिन, शहरी खातीपीती, पढ़ीलिखी कई लड़कियों के लिए यह टशन है, स्टाइल है.

ऐसी गालियां देती औरतें अकसर यह भी ध्यान नहीं देतीं कि ये गालियां औरतों की देह और उन के अंगों को केंद्र में रख कर पुरुषों ने बनाई हैं. चूंकि, जैंडर न्यूट्रल गालियां नहीं हैं, इसलिए गालियां देनी हैं, तो आप के लिए सिर्फ ऐसी ही गालियां उपलब्ध हैं जिन में निशाने पर औरतों की देह है. पुरुष अगर गाली देता है, तो महिलाएं भी ऐसा कर सकती हैं.

गुस्से की अभिव्यक्ति अगर गाली से होती है, तो महिलाएं भी गाली क्यों न दें? अगर यह बुरा है, तो उतना ही बुरा है जितना पुरुषों का गाली देना है. समस्या सिर्फ यह है कि पुरुषों की देह को केंद्र में रख कर गालियां बनाई ही नहीं गई हैं. बात उन सिंबलों की करते हैं जिन के आधार पर भारत में अकसर किसी महिला को लिबरेटेड या स्वतंत्र होना मान लिया जाता है.

अब बात करते हैं महिलाओं के सिगरेट पीने की. सिगरेट पीने को लंबे समय तक और आज भी महिलाओं के एंपावरमैंट से जोड़ कर देखा जाता है. जैसे, कोई लड़की सिगरेट पीती है तो वह आजाद खयाल की लड़की मान ली जाती है. भारतीय संदर्भ में देखें तो यह बात पूरी तरह से निराधार भी नहीं है. हमारे समाज में खुले में सिगरेट वही लड़कियां पी सकती हैं जिन के पास आजादी नाम की थोड़ीबहुत चीज है.

मान लीजिए, लड़की की शादी की बात चल रही है और लड़के वालों से यह कहा जाए कि उन की बेटी सिगरेट और शराब पीती है, तो कितने लड़के वाले इस बात को नौर्मली लेंगे? लेकिन, यही बात अगर लड़के के बारे में बोली जाए तो शायद ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि लड़के के लिए शराबसिगरेट पीना तो आम बात है.

हालांकि, यह बात हम भी मानते हैं कि सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है. न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए, बल्कि आसपास के सभी लोगों को भी इस के इस्तेमाल से नुकसान पहुंचता है और यह पर्यावरण को भी दूषित करती है. इतना ही नहीं, सार्वजनिक धूम्रपान करना एक दंडनीय अपराध है जिस के लिए आप को जेल भी जाना पड़ सकता है. हालांकि, यह प्रशासनिक कार्यवाही है यदि आप धूम्रपान करते पाए जाते हैं तो.

परंपरागत समाज में यह माना जाता है कि शराब या सिगरेट पीने वाली लड़कियां गलत ही होंगी. उन का चरित्र खराब ही होगा. वे अगर धुआं उड़ा रही हैं तो कैरेक्टरलैस और अगर अगरबत्ती जला रही हैं तो संस्कारी ही होंगी. चाय के ठेले पर अगर कोई लड़की सिगरेट पीती दिख जाए, तो उसे नजरों से ही मंजिल तक पहुंचाया जाता है. जब तक लड़की आंख से ओझल न हो जाए, लोग उसे निहारते ही रहते हैं जैसे कोई अजूबा हो.

कोई लड़की अगर शराब पी कर सड़क पर हंगामा करे तो वह नैशनल न्यूज बन जाती है, जबकि यही काम लड़का करे तो यह नौर्मल लगता है. अगर कोई लड़की काम के कारण लेट घर आए तो वह जरूर बाहर लड़कों के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है. शोरशराबे से इतर जो लड़कियां शराब पीना चाहती हैं उन्हें घर वालों से छिप कर शराब पीनी पड़ती है, जबकि बेटे शराब पीते हैं तो यही बात परिवार और समाज को सामान्य लगती है.

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आखिर क्यों सोच लिया जाता है कि अगर लड़कियां शराबसिगरेट पी रही हैं तो वे गलत ही होंगी? एक कोरी पोस्ट पर यूजर ने सवाल किया था कि भारत में कितनी महिलाएं शराब का सेवन करती हैं? जवाब देने वाले ने कहा कि मैट्रोपौलिटन शहरों में करीब 80 फीसदी, बड़े शहरों में 40-45 फीसदी और छोटे शहरों में 5 फीसदी. सवाल और जवाब दोनों ही बड़े दिलचस्प थे लेकिन इस पर एक और सवाल है कि आखिर कितनी महिलाएं शराब पीती हैं, इस की जानकारी चाहिए ही क्यों?

आदिकाल से यह प्रथा चली आ रही है कि हिंदुस्तान में संस्कारी बहू के चर्चे होते हैं और अगर बहू ने कुछ गलत काम कर दिया तो घरबाहर सभी उसे दोषी मानने लगते हैं. जमाना तो बदल गया लेकिन संस्कारी बहूबेटी की परिभाषा को सोशल मीडिया पर अपडेट करना शायद आलादर्जा भूल गया. तभी तो देखिए न, आज भी लड़कियों के छोटे कपड़े पहनने, शराबसिगरेट पीने, घर देर से आने, लड़कों से बात करने, पार्टी करने, अपने मनमुताबिक जीने को उन के कैरेक्टर से जोड़ कर देखा जाता है.

मर्द पिए तो कोई बात नहीं और लड़की पिए तो उस का कैरेक्टर ढीला है? अगर कैरेक्टरलैस ही शराब पीने की परिभाषा है तो फिर लड़के भी उतने ही कैरेक्टरलैस हैं. विदेशों में यही कल्चर है, पर वहां किसी भी लड़की के शराबसिगरेट पीने को उस के कैरेक्टर से जोड़ कर नहीं देखा जाता. तो फिर भारत में ऐसा क्यों? भारत में इसे अपवाद माना जाता है. चलिए, ठीक है, लेकिन फिर सभ्य समाज उन लड़कों को क्या कहेगा जो हुड़दंग मचाते हैं और शराब पी कर काफी गलत कर जाते हैं? कुल मिला कर इसे सही न समझें. लेकिन इसे अपवाद भी न बनाएं. शराबसिगरेट पीना या न पीना किसी के कैरेक्टर की निशानी नहीं है.

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