मुंबई हर मानसून में पानी-पानी हो जाती है और ये धीरे-धीरे हर साल बढती जा रही है, कितना भी कोशिश प्रसाशन कर ले, इसे रोक नहीं पाती. कई लो लाइंग एरिया को ऊपर किया गया, रास्ते और सीवर लाइन बदले गए, लेकिन मानसून में पानी जमा होने को रोक नहीं पाये, जिससे हर साल यहाँ के निवासियों को बाढ़ जैसे हालात का सामना मानसून में करना पड़ता है. असल में इस महानगरका तापमान पिछले एक दशक में काफी बढ़ी है. एक दशक पहले 35 डिग्री सेल्सियस तक,अक्तूबर और नवम्बर में रहने वाला तापमान अब 35 से 40 डिग्री तक होने लगा है. इसकी वजह जंगल काटकर शहरीकरण करना, पर्यावरण पर अधिक दबाव का पड़ना है,जिससे ग्रीन जोन लगातार कम हो रहा है. यहाँ की जनसँख्या भी अधिक है, जिससे गाड़ियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. मुंबई में रहनेवालों के पास भले ही 350 स्कवायर फीट का घर हो, पर गाड़ी वे बड़ी खरीदते है, ऐसे कई विषम परिस्थितियों की वजह से पूरे विश्व में पर्यावरण प्रदूषण बहुतबढ़ चुकी है, जिससे जलवायु में परिवर्तन भी जल्दी दिख रहा है और ये समस्या जनसंख्या विस्फोट से भी अधिक भयावह हो गयी है, लेकिन विश्व इसे अनसुना कर रही है, ऐसे में अगर इसे रोकने की व्यवस्था नही की गई, तो आने वाली कुछ सालों में मुंबई और समुद्र के पास स्थित बड़ी-बड़ी शहरों को डूबने से कोई बचा नहीं सकेगा.
बदल रही है जलवायु
जलवायु परिवर्तन की समस्या से पूरा विश्व गुजर रहा है, जिसमें आर्कटिक में तीसरी बड़ी ग्लेसियर के पिघलने की वजह से इस साल वहां और कनाडा में भयंकर गर्मी पड़ना,जर्मनी में अचानक बाढ़ आना,अमेरिका की जंगलों में बिना मौसम के आग लगना, आदि न जाने कितने ही आपदा इस जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है, इसे गिन पाना संभव नहीं. एक नए शोध में यह बात सामने आई है कि आने वाली कुछ सालों में भारतीय मानसून और अधिकतीव्र हो जायेगा, इसकी वजह पिघलती बर्फ और बढ़ते कार्बन डाई आक्साइड है, जिससे समुद्र के निकवर्ती एरिया डूब जाने की आशंका है.