बुजुर्गों के हाथों और चेहरे पर झुर्रियां पड़ चुकी हैं पर उन्हें रील देखने की बुरी लत लग चुकी है. फोन चला लेने में सक्षम हो चुके ये बुजुर्ग कांपते हाथों से हर समय रील्स देखने में लगे रहते हैं. पहले ये अपने से छोटों को समय की एहमियत पर लताड़ लगा दिया करते थे. टाइम पास नहीं होता था तो अपने पुराने किस्से बता दिया करते थे, पर अब खुद फोन पर घंटों लगे रहते हैं.
इन से भी फोन का मोह नहीं छूट पा रहा है. एक आंख में मोतियाबिंद का औपरेशन हो रखा है पिर भी दूसरी आंख से रील देखने में व्यस्त हैं जबकि तिरछे में सफेद पट्टी माथे डाक्टर ने आंख पर ज्यादा जोर डालने से मना किया है पर फिर भी रील देखने से कंप्रोमाइज नहीं करते. स्क्रीन से तब तक नजर नहीं हटती है जब तक कोई टोक न दे.
रील का चसका ऐसा कि बहू किचन से खाना तैयार है जोर से बाबूजीबाबूजी कह कर ड्राइंगरूम में बुला रही है पर बाबूजी अपने कमरे में मोबाइल में उलझे पड़े हैं. खाना ठंडा हो जा रहा है, फिर भी बिस्तर से सरक नहीं रहे हैं.
हैरानी की बात
जो बाबूजी पहले खुद जल्दबाजी मचाया करते थे, समय पर खाना खाने की अहमियत बताया करते थे उन्हें अब खुद फोन की घंटी बजा कर बुलाना पड़ता है. हैरानी की बात तो यह कि खातेखाते भी रील देख रहे हैं. फोन कुछ देर रखने को कहो तो ?ाल्ला कर खाना ही छोड़ देंगे.
यही हाल सास का भी है. पहले जिस सास का काम दिनभर बहू की निगरानी करना था, उसे आटेदाल का भाव बताना था, सुबह जल्दी उठने की नसीहत देना था, बातबात पर टोकनाडपटना था वह भी अब बिना अलार्म की बांग पर उठ नहीं रही है. अलार्म भी 4-5 सैट करने पड़ते हैं. पहले अलार्म से तो केवल भौंहें ही फड़कती हैं.