नागरिकता संशोधन कानून के बाद गृहमंत्री के शब्दों में एनपीआर और एनआरसी आएंगे ही और तभी सारे देश में शाहीन बाग जैसे हो रहे धरनों में ‘कागज नहीं दिखाएंगे’ के नारे गूंज रहे हैं. सरकार दोमुंही बातें कर रही है, ठीक धार्मिक ग्रंथों की तर्ज पर जो ‘अश्वत्थामा मर गया’ के झूठ के जरीए गुरु द्रोणाचार्य को मरवाने का काम भी धर्मसम्मत सम झते हैं. गुरुग्राम, हरियाणा में पुलिस ने कागज देखने शुरू भी कर दिए हैं.
गुरुग्राम के स्लमों और गरीबों के इलाकों में फोटो आईडी देखने के लिए पुलिस वाले घरघर जा रहे हैं. पुलिस वाले अपने डंडे से दरवाजा खटखटाएं तो औरतों के मन में दहशत फैल जाती है. घरों में उस समय तो औरतें ही होती हैं. यदि वे कहें कि आदमी काम पर गए हैं तो पुलिस वाले आदमी को थाने आने का हुक्म दे डालते हैं. कागज दिखाने के लिए थाने जाने का मतलब सारा दिन चोरउचक्कों के बीच भूखेप्यासे बैठो और पुलिस वालों की मार देखो.
अवैध लोग आप के बीच तो नहीं रह रहे इस की जांच आज की सरकार के लिए ज्यादा जरूरी हो गई है, बजाय अवैध काम करने वालों को पकड़ने के. देश में डर का माहौल बना है जिस से औरतें रोज डरी रहें कि शाम को उन का आदमी या बेटा अथवा बेटी घर लौटेगी या नहीं. यह सरकार की जानीपहचानी नीति है. आपातकाल में 1975-77 के दौरान ऐसा किया गया था और अब न जाने कब तक चलेगा.
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यह तो पक्का है कि जितने अवैध काम पुलिस करती है वे अपराधों से कहीं ज्यादा होते हैं. जब पुलिस मुकदमे दायर करती है तो ज्यादातर मामलों में उस के पास सुबूत ही नहीं होते. केवल उन अपराधों में सजा हो पाती है जहां पीडि़त सामने खड़ा हो कर अपने वकील से अपराधी के खिलाफ पैरवी कराता है. ऐसी पुलिस अवैध लोगों को ढूंढ़ कर करेगी क्या?
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