मानो या न मानो पर एक औरत की सच्ची साथी एक आज्ञाकारी मेड ही है. हां, यह सवाल जरूर उठता है कि आज्ञाकारी मेड कहां मिलती है? मुझ से पूछें तो बड़ा ही आसान जवाब है. यह आज्ञाकारी मेड हर मेड में है. बस, जरूरत है अपनी मेड को अपनी सहकर्मी समझने की. यह मेरे अपने खयालात हैं, कोई यकीन करे या न करे, पर मैं ने अपनी मेड को कामवाली न मान कर अपनी सहयोगी माना है. आज आप कोई भी कार्य करना चाहें तो आप को एक सहयोगी की जरूरत होगी, जो आप को आप के घर की जिम्मेदारियों से मुक्त रखे. कई कामवालियों से बात करने पर पता चला है कि अपनी मालकिन के बारे में उन के क्या विचार हैं. मुझे अपने बचपन का एक किस्सा आज भी बहुत अच्छी तरह से याद है. हमारे घर में सुमन नाम की एक कामवाली काम करती थी. एक बार उस से मेरी मां का झगड़ा हो गया. वजह थी कि वह एक दिन काम पर नहीं आई थी. मेरी मां और कामवाली सुमन के बीच काफी बहसबाजी हो रही थी. मेरी मां ने उसे शायद कुछ ज्यादा ही डांट दिया. सुमन उठ कर चल दी पर जातेजाते उस ने मेरी मां को गाली दे दी. वह तो चली गई, पर मेरी मां दिन भर रोती रही. आखिर मालकिन तो मालकिन है. उस का भी कोई मान होता है. अपनी भी ईगो होती है. फिर कामवाली तो कामवाली ही है. कामवाली द्वारा की गई बेइज्जती मां से बरदाश्त नहीं हुई और सुमन का हमारे घर पर काम करने आना बंद हो गया. यह घटना मेरे दिमाग पर कुछ ज्यादा ही असर कर गई.