जब एक कामकाजी महिला मां बनने का निर्णय लेती है तो उस के सामने सवाल उठता है कि कैसे वह गर्भावस्था के साथसाथ औफिस की जिम्मेदारियों को भी सुचारु रूप से निभाए? प्रैगनैंट होना किसी चैलेंज से कम नहीं होता. उस समय उस का शरीर उस के निर्देशों को नहीं मानता. लेकिन इस सब के बावजूद प्रैगनैंसी कोई बीमारी नहीं है.

एक कामकाजी महिला निम्न तरीकों को अपना कर औफिस की जिम्मेदारियों को सहजता से निभा सकती है:

बौस से शेयर करें गुड न्यूज: प्रैगनैंट होने की गुड न्यूज मिलते ही सब से चैलेंजिंग काम होता है अपने बौस को इस बारे में बताना. ज्यादातर महिलाएं प्रथम तिमाही तक अपनी प्रैगनैंसी की खबर छिपाने की कोशिश करती  हैं. वे अपनी इस खुशखबरी को औफिस में बौस से शेयर करने में झिझकती हैं. ऐसा हरगिज न करें.

अपने कलीग की मदद से इस खबर को अपने बौस से शेयर करें व उन्हें अपने कौन्फिडैंस में लें ताकि आप को उन से पूरी सपोर्ट मिल सके. साथ ही कंपनी की पौलिसी की यानी मैटरनिटी लीव, मैडिकल रिऐंबर्समैंट, लीव विदाउट पे की पूरी जानकारी लें.

अपराधबोध न पालें: आप ने टैलीविजन पर राधिका आप्टे अभिनीत एक शौर्ट वीडियो देखा होगा, जिस में राधिका आप्टे को उस की सीनियर उस की ड्रैस में उस के बेबी बंप को अच्छी तरह से छिप जाने पर कौंप्लिमैंट करती है, पर साथ ही उसे इस दौरान न मिलने वाली प्रमोशन की वजह भी बताती हैं.

राधिका आप्टे बिना किसी झिझक के पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी प्रैगनैंसी पर गर्व महसूस करते हुए जवाब देती हैं, ‘‘दरअसल, हमारे यहां औफिस में जब पता चलता है कि कोई महिला प्रैगनैंट है तो न केवल उसे नसीहतों का भंडार तोहफे में दिया जाता है, वरन उस की कार्यक्षमता पर भी शंका व्यक्त की जाती है कि वह प्रैगनैंसी व औफिस साथसाथ कैसे मैनेज करेगी? उसे बारबार याद दिलाया जाता है कि उसे दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. ‘ऐसे मत बैठो, ऐसे मत चलो, यह मत खाओ, ऐसे कपड़े मत पहनो’ जैसी अनेकानेक नसीहतों से उस में अपराधबोध पैदा किया जाता है, उस का प्रैगनैंसी के साथसाथ नौकरी करने का आत्मविश्वास कम करने की कोशिश की जाती है.

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